HIV (human immunodeficiency virus) is a virus that attacks the immune system, the body's natural defense system. Without a strong immune system, the body has trouble fighting off disease. Both the virus and the infection it causes are called HIV. White blood cells are an important part of the immune system. HIV infects and destroys certain white blood cells called CD4+ cells. If too many CD4+ cells are destroyed, the body can no longer defend itself against infection. The last stage of HIV infection is AIDS (acquired immunodeficiency syndrome). People with AIDS have a low number of CD4+ cells and get infections or cancers that rarely occur in healthy people. These can be deadly. But having HIV doesn't mean you have AIDS. Even without treatment, it takes a long time for HIV to progress to AIDS-usually 10 to 12 years. When HIV is diagnosed before it becomes AIDS, medicines can slow or stop the damage to the immune system. If AIDS does develop, medicines can often help the immune system return to a healthier state. With treatment, many people with HIV are able to live long and active lives. There are two types of HIV:
- HIV-1, which causes almost all the cases of AIDS worldwide
चारों तरफ corona virus का डर फैल रहा है ये तो सभी virus में लक्षण मिलते हैं पिछले दिनों स्वाइन फ्लू के भी ये ही symptoms थे और दूसरे viruses के भी. कोई भी virus breathing problems के साथ शुरू होकर फिर दूसरे organs को effected करta है. छींक से खासी से हाथ मिलाने से फैलता है. हमेशा virus effects sessions change पर hi होता है क्योंकि इस टोम पर लोगों की immunity week रहती है so allways keep remember साफ सफाई का ध्यान रखे. खासी और छींक के time रुमाल उसे करे और खाने से पहले हाथ धुले. ये सभी को हमेशा के लिए करना चाहिए. Or ab बात virus से बचने की. तो गूगल और loban या सामग्री या नीम के पत्ते का धुआ घर मे रखे. रोज. पानी एकत्र ना होने दे. Or सबसे जरूरी बात लाइट खाना session change के time पर आपको सभी तरह के virus से बचाएगा. अगर आपके गैस्ट्रिक जूस लाइटर diet के साथ healthy रहते हैं. तो आप sessions change ki छोटी छोटी बीमारी या virus से दूर रहेंगे. याद है ना वो चिकनगुनिया और डेंगू और स्वाइन फ्लू मे पेट मे दर्द और उल्टी से शुरू और फिर एक particular जगह pakad लेना. Kabhi फेफड़े कभी घुटने. उन दिनों मैं लाइट diet, rest और साफ सफाई ही काम आती है दोस्तों. So डर नहीं एन छोटी छोटी session change की बीमारियों से बचने के लिए इस massage को ज्यादा से ज्यादा लोगों को share करे. Virus किसी बीमारी नाम नहीं बल्कि छोटे छोटे लक्षण का एक समूह (syndrome) है
The Nipah virus may be little known, but scores extremely high when it comes to risk. The virus was first reported in Malaysia in 1998 and is no stranger to India. Indeed, it has struck India and Bangladesh multiple times since, leaving behind a toll count of nearly 280 infections and 211 deaths. And now, it’s back!
Nipah virus has already claimed over 9 lives in Kerala in past one month. Three people have tested positive for the virus over the past two weeks. And over 25 victims carrying its symptoms have been hospitalized.
Here’s what you should know about the Nipah menace.
Symptoms of Nipah Virus:
The incubation period for the symptoms to develop for this virus is from 5 to 14 days and once the diagnosis is done the treatment must be given immediately. The Nipah virus can lead to the following in patients
Severe Lung condition
Asymptomatic infection
Inflammation of brain tissues
Preventive measures:
Treatment for Nipah Virus:
No vaccination or medicine is available for treating people or animals with Nipah virus. The only treatment available is intensive supportive care. So visit a hospital as soon as you see the symptoms.
Not surprisingly, the Nipah virus ranks in the list of Top 10 priority diseases that the World Health Organization (WHO) has earmarked as possible candidates for the next major outbreak. Though treatment is currently limited care, efforts are on by the government and the medical community to develop preventive measures to combat the spread of the Nipah virus.
डीऑक्सीरिबोन्यूक्लिक एसिड या डीएनए एक मॉलिक्यूल है, जिसमें एक जीव के विकसित होने, जीवित रहने और अपने परिवार को बढ़ाने के निर्देश होते हैं. यह निर्देश हर सेल्स के अंदर मौजूद होते हैं और माता पिता से उनके बच्चो में पास होते हैं. डीएनए की एक मॉलिक्यूल चार अलग-अलग रास वस्तुओं से बना है जिन्हें न्यूक्लियोटाइड कहते है. हर न्यूक्लियोटाइड एक नाइट्रोजन युक्त वस्तु है. इन चार न्यूक्लियोटाइडोन को एडेनिन, ग्वानिन, थाइमिन और साइटोसिन कहा जाता है. इन न्यूक्लियोटाइडोन से युक्त डिऑक्सीराइबोस नाम का एक शुगर भी पाया जाता है. इन न्यूक्लियोटाइडोन को एक फॉस्फेट की मॉलिक्यूल जोड़ती है. न्यूक्लियोटाइडोन के सम्बन्ध के अनुसार एक सेल के लिए जरुरी डीएनए हर एक जीवित कोशिका के लिए अनिवार्य है.
क्या है डीएनए?
डीएनए एक बहुत ही प्रचलित शब्द है जिससे हर एक पढ़ा लिखा इंसान परिचित होता है. यह जीवन के सारे रहस्यों और तथ्यों को समेटे होता है. डीऑक्सीराइबोज़ शुगर¸; गुआनिन¸ साइटोसिन, फॉस्फेट और एडेनिन¸ एवं थाइमिन जैसे प्युरिन एवं पायरीमिडीन प्रकार के नाइट्रोजन बेसेज़ से निर्मित डीएनए के अणुओं की संरचना दोहरे कुंडलिनी अथार्त् रस्सी से बने घुमावदार सीढ़ी जैसी होती है. यहां एकांतरित रूप से व्यस्थित डीऑक्सीराइबोज़ तथा फॉस्फेट के मॉलिक्यूल इस सीढ़ी की रस्सी का काम करते हैं.
डीएनए संरचना
डीएनए न्यूक्लियोटाइड नामक मॉलिक्यूल से बना है. हर न्यूक्लियोटाइड एक फॉस्फेट ग्रुप, एक शुगर ग्रुप और एक नाइट्रोजन बेस से बने होते हैं.
चार प्रकार के नाइट्रोज बेस इस प्रकार से हैं
सी और टी बसे जिनका एक रिंग होता है जिसे पाइरिमिडीन कहते हैं. वही ए और जी के दो रिंग होते हैं जिसे प्युरिंस बोलते हैं. डीएनए के न्यूक्लियोटाइड एक चेन की तरह स्ट्रक्चर बनाते है जो कोवैलेंट बॉन्ड से जुड़ा होता हैं, ये जुडाव एक न्यूक्लियोटाइड के डिऑक्सिराइबो शुगर और दुसरे न्यूक्लियोटाइड के फॉस्फेट ग्रुप के बीच होता है, यह स्ट्रक्चर एक के बाद दूसरा कर के डिऑक्सिराइबो शुगर और फॉस्फेट ग्रुप का एक चेन बनाते हैं. इस स्ट्रक्चर को शुगर – फॉस्फेट बैकबोन कहते हैं. वाटसन और क्रिक ने एक डीएनए का मॉडल प्रस्तुत किया जिसे हम डबल हेलिक्स कहते हैं क्योंकी इसमें दो लम्बे स्टैंड्स एक घूमी हुए सीढ़ी की तरह की तरह दीखते हैं.
डीएनए के विभिन्न संरचनात्मक पहलू-
समांतर ढंग से व्यस्थित ऐसी दोनों रस्सियों के प्रत्येक डीऑक्सीराइबोज़ के एक अणु जुड़ा होता है. ये अणु रस्सी से अन्दर की ओर उन्मुख होते हैं. इसमें इस तरह की व्यवस्था मौजूद होती है कि एक रस्सी से जुड़े एडेनिन हमेशा दूसरी रस्सी से जुड़े थाइमिन के सामने होते हैं. इसके साथ ही गुआनिन¸ दूसरी रस्सी से जुड़े साइटोसिन के सामने होते हैं. जीवित कोशिकाओं के गुणसूत्रों में पाए जाने वाले तंतुनुमा अणु को डी-ऑक्सीराइबोन्यूक्लिक अम्ल या डीएनए कहते हैं. इसमें अनुवांशिक कूट निबद्ध रहता है. जहां तक बात है डीएनए अणु के संरचना की तो ये एक घुमावदार सीढ़ी की तरह दिखती है.
डीएनए और क्रोमोजोम-
आमतौर पर, डीएनए क्रोमोजोम के रूप में होता है. एक कोशिका में गुणसूत्रों के सेट अपने जीनोम का निर्माण करता है; मानव जीनोम 46 गुणसूत्रों की व्यवस्था में डीएनए के लगभग 3 अरब आधार जोड़े है. जीन में आनुवंशिक जानकारी के प्रसारण की पूरक आधार बाँधना के माध्यम से हासिल की है. उदाहरण के लिए, एक कोशिका एक जीन में जानकारी का उपयोग करता है जब प्रतिलेखन में, डीएनए अनुक्रम डीएनए और सही आरएनए न्यूक्लियोटाइडों के बीच आकर्षण के माध्यम से एक पूरक शाही सेना अनुक्रम में नकल है. आमतौर पर, यह आरएनए की नकल तो शाही सेना न्यूक्लियोटाइडों के बीच एक ही बातचीत पर निर्भर करता है जो अनुवाद नामक प्रक्रिया में एक मिलान प्रोटीन अनुक्रम बनाने के लिए प्रयोग किया जाता है. वैकल्पिक भानुमति में एक कोशिका बस एक प्रक्रिया बुलाया डीएनए प्रतिकृति में अपने आनुवंशिक जानकारी कॉपी कर सकते हैं.
डीएनए के मॉलिक्यूल की लंबाई निश्चित नहीं होती है मतलब नाइट्रोजन बेस के योग से बनी सीढ़ियों की कुल संख्या डीएनए के अलग–अलग मॉलिक्यूल में अलग–अलग हो सकती है. साथ ही इनकी व्यवस्था भी डीएनए के अलग–अलग मॉलिक्यूल्स में ही नहीं बल्कि एक मॉलिक्यूल के विभिन्न हिस्सों में भी अलग–अलग ढंग से हो सकती है. कितने एडेनिन–थाइमिन से बने डंडों के बाद साइटोसिन–गुआनिन के योग से बने कितने डंडे व्यवस्थित होंगे – यह डीएनए के अलग–अलग अणुओं की ही नहीं¸ अपितु इसके किसी एक अणु के विभिन्न हिस्सों की भी अपनी विशिष्टता होती है. यह विशिष्टता डीएनए के अणु के एक हिस्से को दूसरे हिस्से से संरचनात्मक रूप से ही नहीं¸ बल्कि कार्य–रूप में भी अलग करती है.
क्या छुपा है डीएनए के एक अणु में?
डीएनए के मॉलिक्यूल का एक हिस्सा इन नाइट्रोजन बेसेज़ की विशिष्ट व्यवस्था के रूप में कूट भाषा में वह रहस्य छिपाए रहता है¸ जिसके बल किसी एक प्रोटीन–विशेष के अणुओं का निर्माण किया जा सकता है तो किसी दूसरे हिस्से से किसी अन्य प्रोटीन–विशेष के मॉलिक्यूल का. डीएनए के जिस हिस्से से एक प्रकार के प्रोटीन का निर्माण संभव है¸ उसे जीन–विशेष की संज्ञा दी जा सकती है तो दूसरे भाग को¸ जिससे किसी अन्य प्रकार के प्रोटीन के मॉलिक्यूल्स का निर्माण संभव है – दूसरे जीन–विशेष की संज्ञा दी जा सकती है. किसी सेल में इतने जीन्स अवश्य होते हैं जिनके द्वारा सेल की संरचना के साथ–साथ जीवन पर्यंत चलने वाली विभिन्न बायो-केमिकल प्रतिक्रियाओं के संचालन में प्रयुक्त होने वाले विभिन्न प्रकार के प्रोटीन्स के मॉलिक्यूल्स का निर्माण किया जा सके.
इबोला वायरस एक विषाणु है. इस रोग की पहचान सर्वप्रथम सन 1976 में इबोला नदी के पास स्थित एक गाँव में की गई थी. इसी कारण कागों की एक सहायक नदी इबोला के नाम पर इस वायरस का नाम भी इबोला रखा गया है. यह वर्तमान में एक गंभीर बीमारी का रूप धारण कर चुका है. इस बीमारी में शरीर में नसों से खून बाहर आना शुरु हो जाता है, जिससे अंदरूनी रक्तस्त्राव प्रारंभ हो जाता है. यह एक अत्यंत घातक रोग है. इसमें 90% रोगियों की मृत्यु हो जाती है. इबोला एक ऐसा रोग है जो मरीज के संपर्क में आने से फैलता है. मरीज के पसीने, मरीज के खून या,श्वास से बचकर रहें. इसके चपेट में आकर टाइफाइड, कॉलरा, बुखार और मांसपेशियों में दर्द होता है, बाल झड़ने लगते हैं, नसों या मांशपेशियों में खून उतर आता है. इससे बचाव करने के लिए खुद को सतर्क रखना ही एक उपाय है. इबोला के मरीजों की 50 से 80 फीसदी मौत रिकॉर्ड की गई है. आइए इस लेख के माध्यम से हम इबोला वायरस के बारे में जानें ताकि इस विषय में लोगों में जागरूकता आए.
इबोला वायरस के फैलने का कारण-
ये एक संक्रामक रोग है जो कि मुख्य रूप से पसीने और लार से फैलता है. लेकिन इसके अलावा भी इसके फैलने के कई कारण हैं. संक्रमित खून और मल के सीधे संपर्क में आने से भी यह फैलता है. इसके अतिरिक्त, यौन संबंध और इबोला से संक्रमित शव को ठीक तरह से व्यवस्थित न करने से भी यह रोग हो सकता है. जाहीर है कि संक्रामक रोगों को फैलने से रोकना भी इसके रोकथाम की दिशा में महत्वपूर्ण कदम है.
इबोला वायरस के फैलने का लक्षण-
इसके लक्षण हैं- उल्टी-दस्त, बुखार, सिरदर्द, रक्तस्त्राव, आँखें लाल होना और गले में कफ़. अक्सर इसके लक्षण प्रकट होने में तीन सप्ताह तक का समय लग जाता है. इस रोग में रोगी की त्वचा गलने लगती है. यहाँ तक कि हाथ-पैर से लेकर पूरा शरीर गल जाता है. ऐसे रोगी से दूर रह कर ही इस रोग से बचा जा सकता है. इबोला एक क़िस्म की वायरल बीमारी है. इसके लक्षण हैं अचानक बुख़ार, कमज़ोरी, मांसपेशियों में दर्द और गले में ख़राश. ये लक्षण बीमारी की शुरुआत भर होते हैं. इसका अगला चरण है उल्टी होना, डायरिया और कुछ मामलों में अंदरूनी और बाहरी रक्तस्राव. इस बीमारी की गंभीरता को देखते हुए हुए उपरोक्त लक्षण दिखाई पड़ने पर आपको तुरंत किसी चिकित्सक या विशेषज्ञ से संपर्क करना चाहिए ताकि समय रहते इसपर नियंत्रण किया जा सके.
उपचार-
अभी इस बीमारी का कोई ईलाज नहीं है. इसके लिए कोई दवा नहीं बनाई जा सकी है. इसका कोई एंटी-वायरस भी नहीं है. इसके लिए टीका विकसित करने के प्रयास जारी हैं; हालांकि अभी तक ऐसा कोई टीका मौजूद नहीं है. तो ऐसे में इस बात पर बल दिया जाना चाहिए कि इसके लक्षणों के बारे में व्यापक प्रसार हो ताकि लोग समय रहते इसकी पहचान कर सकें और इसके लिए आवश्यक सभी सावधानियाँ अपना सकें.
संक्रमण-
मनुष्यों में इसका संक्रमण संक्रमित जानवरों, जैसे, चिंपैंजी, चमगादड़ और हिरण आदि के सीधे संपर्क में आने से होता है. एक दूसरे के बीच इसका संक्रमण संक्रमित रक्त, द्रव या अंगों के मार्फ़त होता है. यहां तक कि इबोला के शिकार व्यक्ति का अंतिम संस्कार भी ख़तरे से ख़ाली नहीं होता. शव को छूने से भी इसका संक्रमण हो सकता है. बिना सावधानी के इलाज करने वाले चिकित्सकों को भी इससे संक्रमित होने का भारी ख़तरा रहता है. संक्रमण के चरम तक पहुंचने में दो दिन से लेकर तीन सप्ताह तक का वक़्त लग सकता है और इसकी पहचान और भी मुश्किल है. इससे संक्रमित व्यक्ति के ठीक हो जाने के सात सप्ताह तक संक्रमण का ख़तरा बना रहता है. डब्ल्यूएचओ के मुताबिक़, उष्णकटिबंधीय बरसाती जंगलों वाले मध्य और पश्चिम अफ़्रीका के दूरदराज़ गांवों में यह बीमारी फैली. पूर्वी अफ़्रीका की ओर कांगो, युगांडा और सूडान में भी इसका प्रसार हो रहा है.
तेज़ी से प्रसार-
पू्र्व की ओर बीमारी का प्रसार असामान्य है क्योंकि यह यह पश्चिम की ओर ही केंद्रित था और अब शहरी इलाक़ों को भी अपनी चपेट में ले रहा है. इस बीमारी की शुरुआत गिनी के दूर दराज़ वाले इलाक़े ज़ेरेकोर में हुई थी. बीमारी का प्रकोप देखते हुए स्वयंसेवी संस्था मेडिसिंस सैंस फ्रंटियर्स ने इसे 'अभूतपूर्व' बताया है. डब्ल्यूएचओ द्वारा जारी दिशा निर्देश के अनुसार, इबोला से पीड़ित रोगियों के शारीरिक द्रव और उनसे सीधे संपर्क से बचना चाहिए. साथ ही साझा तौलिये के इस्तेमाल से बचना चाहिए क्योंकि यह सार्वजनिक स्थलों पर संक्रमित हो सकता है. डब्ल्यूएचओ ने मुताबिक़ इलाज करने वालों को दस्ताने और मास्क पहनने चाहिए और समय-समय पर हाथ धोते रहना चाहिए.
चेतावनी-
चमगादड़, बंदर आदि से दूर रहना चाहिए और जंगली जानवरों का मांस खाने से बचना चाहिए. लाइबेरिया की राजधानी मोनरोविया में मौजूद बीबीसी संवाददाता ने बताया कि वहां सुपरमार्केट और मॉल आदि में कर्मचारी दस्ताने पहन रहे हैं. सेनेगल ने गिनी से लगती अपनी सीमा बंद कर दी है. यहां के गायक यूसुओ एन'डूर अपना एक संगीत कार्यक्रम रद्द कर चुके हैं. उनका कहना था कि एक बंद जगह में हज़ारों लोगों को इकट्ठा करना इस समय ठीक नहीं है. अभी तक इस बीमारी का इलाज नहीं खोजा जा सका है लेकिन नई दवाओं का प्रयोग चल रहा है.
Herpes simplex virus is a viral infection of the genitals. This disorder can also occur in the mouth, characterized by the formation of fever, blisters and cold sores. The disorder occurs when the body is infected by the Herpes Simplex Virus.
Causes:
Herpes is caused by a contagious virus called the ‘Herpes Simplex Virus’. This virus spreads through direct contact with an infected person. A child may also contract the disease from an already infected adult. This infection may also spread via media such as sharing utensils, kissing or sharing toiletries. Sexual contact with an infected person is one of the primary ways to contract genital herpes. The risk factors for this disorder are –
Multiple sex partners.
Gender: Women are more prone to developing Genital Herpes.
Weak immune system.
If you are affected by a sexually transmitted infection.
Symptoms:
In case of genital herpes, sores form on the genitals. Symptoms include difficulty in passing urine, headaches, fever, fatigue and a lack of appetite. Pain in the eyes and watery discharge from the eyes will be common symptoms if the infection spreads to the eyes.
Treatment:
There is no cure for this disorder. The aim of the treatment is to manage the symptoms and prevent it from spreading. The sores need not necessarily be medically catered to. Certain medications such as ‘acyclovir’ and ‘valacyclovir’ are prescribed to reduce the severity of the symptoms.
Once infected with the virus, it might remain in the body in a dormant state till a long time, in some cases, even a lifetime. However, symptoms might not show up. Factors such as stress and excessive sun exposure can lead to reactivation of the virus. Over time, the intensity of the symptoms tend to come down as the body adapts itself to the disease. If you wish to discuss about any specific problem, you can consult an IVF Specialist.
How to make your home mosquito free
With zika virus threat looming large in India, dengue, chikungunya, malaria and other deadly diseases aren't cases on the rise throughout the country, there has been an alarming rise is the use of market bought mosquito repellents. While they are no doubt, very effective, but they also emit gases which can be harmful to us. There exist in our homes, commodities with which we can achieve the same results - to have a mosquito-free home. Few such ways are as follows:
1. Though it might smell bad initially, it is also the reason why mosquitoes will stay away. Crush a few pods of garlic, boil it in water and spray the liquid in the room, especially in the corners.
2. Camphor is easily available and good way to get rid of mosquitoes. Light a little bit of camphor in a room after closing all doors and windows. Leave the room for about twenty minutes and when you go back, your room will be mosquito free.
3. Infuse citronella oil in a candle and burn the candle to have a mosquito free room. Alternatively, you can use the oil in a vaporizer.
4. If you have a garden, plant mosquito repellent plants like lavender, catnip and citronella in the areas near the windows of your house to drive the mosquitoes away.
5. Get rid of all stored water within and around your house. These waters are breeding grounds for mosquitoes. If you need to store water for the unexpected shortage of water, make sure that you keep changing it.
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