If you suffer from vision loss and have to wear spectacles in order to see clearly you may be considering lasik surgery. Lasik surgery can be used to treat near sightedness, far sightedness and astigmatism. It involves reshaping the cornea with the help of a laser beam. This is an outpatient procedure where you can get back to work in a day or two.
To be able to undergo a lasik surgery, you must be:
Before the surgery begins, numbing eye drops are applied to prevent any discomfort during the procedure. The surgery itself involves the creation of a thin flap in the cornea. This is the folded back to reveal the corneal tissue below. If you suffer from nearsightedness, an excimer laser is used to flatten the cornea while if you suffer from nearsightedness, it creates a steeper cornea.
In cases of astigmatism, the cornea is smoothened into a normal shape. Once this has been done, the flap is laid back in place and the cornea is allowed to heal naturally. An uncomplicated lasik surgery for one eye usually takes less than five minutes. You may feel some pressure on your eyes and hear a steady clicking sound while the laser is in use.
You may feel temporary burning or itching immediately after the procedure. Do not in any condition rub your eyes to relieve this sensation. Also, do not attempt to drive and have somebody else drive you home. The blurred vision and haziness will clear by the next morning. You may also experience heightened sensitivity to light and may see halos around lights. The whites of your eyes may also look bloodshot for a few days. In most cases, vision improves immediately but in a few rare cases, it could take several weeks or longer.
Though you can return to work the next day, it is a good idea to take a few days off. Also refrain from strenuous activities of any sort for a week after the surgery. Take the medication prescribed by the doctor regularly and do not change the eye drops without consulting him first. Avoid using makeup or cream around the eye for up to two weeks after the surgery to minimize the risk of infection. You should also avoid using swimming pools or hot tubs for 1-2 months after the surgery.
लेसिक लेजर सर्जरी का इस्तेमाल आँखों के उपचार के लिए किया जाता है. जाहीर है आँखें अनमोल हैं इसलिए इनकी सुरक्षा बेहद आवश्यक है. नजर कमजोर होने पर चश्मा या कॉन्टैक्ट लेंस लगाना हर किसी को पसंद नहीं आता. ऐसे में सर्जरी का सहारा लेना पड़ता है. आज-कल लेजर तकनीक से होने वाली सर्जरी काफी अडवांस्ड हो गई है. इसकी मदद से बिना किसी खास तकलीफ के आप नजर के दोष से छुटकारा पा सकते हैं. लेसिक लेजर या कॉर्नियोरिफ्रेक्टिव सर्जरी नजर का चश्मा हटाने की तकनीक है. इससे जिन दोषों में चश्मा हटाया जा सकता है, वे हैलेसिक लेजर की मदद से कॉर्निया की सतह को इस तरह से बदल दिया जाता है कि नजर दोष में जिस तरह के लेंस की जरूरत होती है, वह उसकी तरह काम करने लगता है. इससे किसी भी चीज का प्रतिबिंब एकदम रेटिना पर बनने लगता है और बिना चश्मे भी एकदम साफ दिखने लगता है. आइए इस लेख के माध्यम से हम लेसिक लेजर सर्जरी के बारे में जानें ताकि इस विषय को लेकर लोगों में जानकारी बढ़े.
लेसिक लेजर सर्जरी के प्रकार-
लेसिक लेजर 3 तरह का होता है.
* सिंपल लेसिक लेजर
* ई-लेसिक या इपि-लेसिक लेजर
* सी-लेसिक या कस्टमाइज्ड लेसिक लेजर
सिंपल लेसिक लेजर-
आंख में लोकल एनेस्थीसिया डाला जाता है. फिर लेजर से फ्लैप बनाते हैं. कट लगातार कॉर्नियो को री-शेप किया जाता है. पूरे प्रोसेस में करीब 20-25 मिनट लगते हैं.
खूबियां-
- इससे ऑपरेशन के बाद चश्मा पूरी तरह हट जाता है और नजर साफ हो जाती है.
- खर्च काफी कम होता है. दोनों आंखों के ऑपरेशन पर करीब 20 हजार रुपये खर्च आता है.
खामियां-
- सिंपल लेसिक सर्जरी का इस्तेमाल अब ज्यादा नहीं होता. अब इससे बेहतर तकनीक भी मौजूद हैं.
- ऑपरेशन के बाद काफी दिक्कतों की आशंका बनी रहती है.
ई-लेसिक या इपि-लेसिक लेजर-
इसका प्रोसेस करीब-करीब सिंपल लेसिक जैसा ही होता है. असली फर्क मशीन का होता है. इसमें ज्यादा अडवांस्ड मशीन इस्तेमाल की जाती हैं.
खूबियां-
- इसके नतीजे बेहतर होते हैं और ज्यादातर मामलों में कामयाबी मिलती है.
- मरीज की रिकवरी काफी जल्दी हो जाती है.
- दिक्कतें काफी कम होती हैं.
खामियां-
- सिंपल लेसिक से महंगा है. दोनों आंखों के ऑपरेशन पर करीब 35-40 हजार रुपये तक खर्च आता है.
- छोटी-मोटी दिक्कतें हो सकती हैं, जैसे कि आंख लाल होना, चौंध लगना आदि.
- कभी-कभार आंख में फूला/माड़ा पड़ने जैसी दिक्कत भी सामने आती है.
सी-लेसिक: कस्टमाइज्ड लेसिक लेजर-
खूबियां-
- प्रोसेस काफी आसान है और रिजल्ट बहुत अच्छे हैं.
- ओवर या अंडर करेक्शन नहीं होती और नतीजा सटीक होता है.
- मरीज को अस्पताल में भर्ती रखने की जरूरत नहीं होती.
- साइड इफेक्ट्स काफी कम होते हैं.
खामियां-
- महंगा प्रोसेस है यह. दोनों आंखों के ऑपरेशन पर 40 हजार तक खर्च आता है. कुछ अस्पताल इससे ज्यादा भी वसूल लेते हैं.
- आंख लाल होने, खुजली होने, एक की बजाय दो दिखने जैसी प्रॉब्लम आ सकती हैं, जो आसानी से ठीक हो जाती हैं.
कुछ और खासियतें
- चश्मा हटाने के ज्यादातर ऑपरेशन आज-कल इसी तकनीक से किए जा रहे हैं. सिंपल लेसिक में पहले से बने एक प्रोग्राम के जरिए आंख का ऑपरेशन किया जाता है, जबकि सी-लेसिक में आपकी आंख के साइज के हिसाब से पूरा प्रोग्राम बनाया जाता है.
- सर्जन का अनुभव, कार्यकुशलता, लेसिक लेजर से पहले और बाद की देखभाल की क्वॉलिटी लेसिक लेजर सर्जरी के नतीजे के लिए काफी महत्वपूर्ण होती है.
- चश्मे का नंबर अगर 1 से लेकर 8 डायप्टर है तो लेसिक लेजर ज्यादा उपयोगी होता है.
- आज-कल लेसिक लेजर सर्जरी से -10 से -12 डायप्टर तक के मायोपिया, +4 से +5 डायप्टर तक के हायपरमेट्रोपिया और 5 डायप्टर तक के एस्टिग्मेटिज्म का इलाज किया जाता है.
कैसे करते हैं ऑपरेशन-
इस ऑपरेशन में पांच मिनट का वक्त लगता है और उसी दिन मरीज घर जा सकता है. ऑपरेशन करने से पहले डॉक्टर आंख की पूरी जांच करते हैं और उसके बाद तय करते हैं कि ऑपरेशन किया जाना चाहिए या नहीं. ऑपरेशन शुरू होने से पहले आंख को एक आई-ड्रॉप की मदद से सुन्न (एनेस्थिसिया) किया जाता है. इसके बाद मरीज को कमर के बल लेटने को कहा जाता है और आंख पर पड़ रही एक टिमटिमाती लाइट को देखने को कहा जाता है. अब एक स्पेशल डिवाइस माइक्रोकिरेटोम की मदद से आंख के कॉर्निया पर कट लगाया जाता है और आंख की झिल्ली को उठा दिया जाता है. इस झिल्ली का एक हिस्सा आंख से जुड़ा रहता है. अब पहले से तैयार एक कंप्यूटर प्रोग्राम के जरिए इस झिल्ली के नीचे लेजर बीम डाली जाती हैं. लेजर बीम कितनी देर के लिए डाली जाएगी, यह डॉक्टर पहले की गई आंख की जांच के आधार पर तय कर लेते हैं. लेजर बीम पड़ने के बाद झिल्ली को वापस कॉर्निया पर लगा दिया जाता है और ऑपरेशन पूरा हो जाता है. यह झिल्ली एक-दो दिन में खुद ही कॉर्निया के साथ जुड़ जाती है और आंख नॉर्मल हो जाती है. मरीज उसी दिन अपने घर जा सकता है. कुछ लोग ऑपरेशन के ठीक बाद रोशनी लौटने का अनुभव कर लेते हैं, लेकिन ज्यादातर में सही विजन आने में एक या दिन का समय लग जाता है.
सर्जरी के बाद-
- ऑपरेशन के बाद दो-तीन दिन तक आराम करना होता है और उसके बाद मरीज नॉर्मल तरीके से काम पर लौट सकता है.
- लेसिक लेजर सर्जरी के बाद मरीज को बहुत कम दर्द महसूस होता है और किसी टांके या पट्टी की जरूरत नहीं होती.
- आंख की पूरी रोशनी बहुत जल्दी (2-3 दिन में) लौट आती है और चश्मे या कॉन्टैक्ट लेंस के बिना भी मरीज को साफ दिखने लगता है.
- स्विमिंग, मेकअप आदि से कुछ हफ्ते परहेज करना होता है.
- करीब 90 फीसदी लोगों में यह सर्जरी पूरी तरह कामयाब होती है. बाकी लोगों में 0.25 से लेकर 0.5 नंबर तक के चश्मे की जरूरत पड़ सकती है.
- जो बदलाव कॉर्निया में किया गया है, वह स्थायी है इसलिए नंबर बढ़ने या चश्मा दोबारा लगने की भी कोई दिक्कत नहीं होती, लेकिन कुछ और वजहों, मसलन डायबीटीज या उम्र बढ़ने के साथ चश्मा लग जाए, तो अलग बात है.
कौन करा सकता है?
- जिनकी उम्र 20 साल से ज्यादा हो. इसके बाद किसी भी उम्र में करा सकते हैं.
- चश्मे/कॉन्टैक्ट लेंस का नंबर पिछले कम-से-कम एक साल से बदला न हो.
- मरीज का कॉर्निया ठीक हो. उसका डायमीटर सही हो. उसमें इन्फेक्शन या फूला/माड़ा न हो.
- लेसिक सर्जरी से कम-से-कम तीन हफ्ते पहले लेंस पहनना बंद कर देना चाहिए.
कौन नहीं करा सकता?
- किसी की उम्र 18 साल से ज्यादा है लेकिन उसका नंबर स्थायी नहीं हुआ है, तो उसकी सर्जरी नहीं की जाती.
- जिन लोगों का कॉर्निया पतला (450 मिमी से कम) है, उन्हें ऑपरेशन नहीं कराना चाहिए.
- गर्भवती महिलाओं का ऑपरेशन नहीं किया जाता.
ऑप्शन: चश्मा/कॉन्टैक्ट लेंस ऐसे लोगों के लिए ऑप्शन हैं.
जब आपकी दृष्टि कमजोर पड़ जाती है तो डॉक्टर आपको चश्मा या कॉन्टैक्ट लेंस निर्धारित करता है जो शायद हर किसी को पसंद नहीं आता है. ऐसे में हम दुसरे विकल्प की तरफ देखते है जिसमे हमें सर्जरी का सहारा लेना पड़ता है. वर्तमान समय में लेजर तकनीक से होने वाली सर्जरी बहुत उन्नत हो गयी है. इसकी सहायता से बिना किसी ज्यादा जोखिम के आप दृष्टि के समस्या से निजात पा सकते हैं. इस लेख में आपको लेज़र तकनीक सर्जरी के बारे में पूरी जानकारी दी जाएगी. लेसिक लेजर या कॉर्नियोरिफ्रेक्टिव सर्जरी कॉन्टैक्ट लेंस हटाने के लिए दो तकनीक है. इससे जिन दोषों में चश्मा हटाया जा सकता है. आइए इस लेख के माध्यम से हम लेसिक लेजर सर्जरी में होने वाले अनुमानित खर्च को जानें ताकि लोगों को इस संदर्भ परेशानी का सामना न करना पड़े.
लेसिक लेजर सर्जरी 3 प्रकार के होते है
* सिंपल लेसिक लेजर
* ई-लेसिक या इपि-लेसिक लेजर
* सी-लेसिक या कस्टमाइज्ड लेसिक लेजर
1. सिंपल लेसिक लेजर सर्जरी: - इस सर्जिकल प्रक्रिया में आँखों में लोकल एनेस्थीसिया डाला जाता है. इसके बाद लेजर से फ्लैप बनाया जाता हैं. इसके कट निरंतर कॉर्नियो को री-शेप करता रहता है. इस पूरे प्रक्रिया में लगभग 20-25 मिनट लगते हैं.
2. ई-लेसिक या इपि-लेसिक लेजर सर्जरी: - यह तकनीक लगभग सिंपल लेसिक जैसा ही होता है. इसमें केवल एक ही फर्क होता है इसमें इस्तेमाल होने वाला मशीन ज्यादा एडवांस होता हैं.
3. सी-लेसिक: कस्टमाइज्ड लेसिक लेजर सर्जरी: - यह एक बहुत ही आसान प्रक्रिया है और इसके परिबाम बहुत बेहतर होते हैं. ओवर या अंडर करेक्शन नहीं होती और नतीजा सटीक होता है. मरीज को अस्पताल में भर्ती रखने की जरूरत नहीं होती. साइड इफेक्ट्स काफी कम होते हैं. महंगा प्रोसेस है यह. दोनों आंखों के ऑपरेशन पर 40 हजार तक खर्च आता है. कुछ अस्पताल इससे ज्यादा भी वसूल लेते हैं. आंख लाल होने, खुजली होने, एक की बजाय दो दिखने जैसी प्रॉब्लम आ सकती हैं, जो आसानी से ठीक हो जाती हैं.
कितना खर्च-
लेसिक लेजर सर्जरी के दौरान पुतली (कॉर्निया) को पुन: नए सिरे से आकार दिया जाता है. इसके परिणामस्वरूप मरीज चश्मा पहने बगैर स्पष्ट देख सकता है. आज ब्लेडलेस लेसिक सर्जरी की मदद से लेजर के द्वारा यह विधि क ी जाती है. इस कारण यह विधि सटीक और लगभग त्रुटि रहित है. आमतौर पर यह सर्जरी 15,000 से 90,000 रुपये में करायी जा सकती है, हालांकि इसकी कीमत लेसिक सर्जरी के तरीके पर निर्भर करती है. लेसिक सर्जरी से मरीज लगभग 1 दिन बाद या कुछ घंटों बाद ही मनचाहा परिणाम प्राप्त कर सकता है. यह प्रक्रिया बहुत जल्दी खत्म हो जाती है और इसमें किसी टांके व पट्टी का प्रयोग नहीं होता. इसके अतिरिक्त यह एक पीड़ाहीन विधि है. दोनों आंखों का खर्च औसतन 30-40 हजार रुपये आता है. हालांकि कुछ प्राइवेट अस्पताल इससे ज्यादा भी लेते हैं. सरकारी अस्पतालों में काफी कम खर्च में काम हो जाता है.
कहां होता है लेसिक लेजर-
लेसिक लेजर सर्जरी तमाम बड़े प्राइवेट अस्पतालों और कुछ बड़े क्लिनिकों में भी हो सकता है. in सब के अलावा बड़े सरकारी अस्पतालों जैसे एम्स पीजीआई जैसे अस्पतालों में भी हो सकता है. इन जगहों पर इलाज बेहतर तरीकों के साथ रेट भी कम लगते हैं लेकिन लंबी लाइन होने की वजह से वेटिंग अक्सर ज्यादा होती है
जब आपकी दृष्टि कमजोर पड़ जाती है तो डॉक्टर आपको चश्मा या कॉन्टैक्ट लेंस निर्धारित करता है जो शायद हर किसी को पसंद नहीं आता है. ऐसे में हम दुसरे विकल्प की तरफ देखते है जिसमे हमें सर्जरी का सहारा लेना पड़ता है. वर्तमान समय में लेजर तकनीक से होने वाली सर्जरी बहुत उन्नत हो गयी है. इसकी सहायता से बिना किसी ज्यादा जोखिम के आप दृष्टि के समस्या से निजात पा सकते हैं. इस लेख में आपको लेज़र तकनीक सर्जरी के बारे में पूरी जानकारी दी जाएगी. लेसिक लेजर या कॉर्नियोरिफ्रेक्टिव सर्जरी कॉन्टैक्ट लेंस हटाने के लिए दो तकनीक है. इससे जिन दोषों में चश्मा हटाया जा सकता है, वे निम्नलिखित हैं:
1. मायोपिया: मायोपिया को निकट दूर दृष्टि भी कहा जाता है. इसमें किसी भी वस्तु का प्रतिबिंब रेटिना के आगे बन जाता है, जिससे दूर का देखने में समस्या होती है. इसे ठीक करने के लिए माइनस यानी कॉनकेव लेंस की आवश्यकता पड़ती है.
2. हायपरमेट्रोपिया: हायपरमेट्रोपिया को दूरदृष्टि दोष के रूप में भी जाना जाता है. इस स्थिति में किसी भी चीज का प्रतिबिंब रेटिना के पीछे बनता है, जिससे पास का देखने में समस्या होती है. इसे ठीक करने के लिए प्लस यानी कॉनवेक्स लेंस की जरूरत होती है.
3. एस्टिगमेटिज्म: इसमें आंख के पर्दे पर रोशनी की किरणें अलग-अलग जगह केंद्रित होती हैं, जिससे दूर या पास या दोनों तरफ की चीजें साफ नजर नहीं आतीं है.
कैसे करता है काम-
लेसिक लेजर की सहायता से कॉर्निया को इस तरह से बदल दिया जाता है की नजर दोष में जिस तरह के कांटेक्ट लेंस की जरुरत पड़ती है, वह उसी तरह से काम करने लग जाता है. इससे किसी भी वस्तु का प्रतिबिंब रेटिना पर बनने लगता है और बिना चश्मे लगाए सब कुछ साफ नज़र आने लगता है.
लेसिक सर्जरी के प्रकार-
लेसिक लेजर 3 प्रकार का होता है.
* सिंपल लेसिक लेजर
* ई-लेसिक या इपि-लेसिक लेजर
* सी-लेसिक या कस्टमाइज्ड लेसिक लेजर
सिंपल लेसिक लेजर-
इस प्रक्रिया में आँखों में लोकल एनेस्थीसिया इंजेक्ट किया जाता है. इसके बाद लेजर से आँखों में फ्लैप बनाते हैं. और कट निरंतर कॉर्नियो के आकार को दोबारा आकार देता है. इस पूरे प्रक्रिया में लगभग 20-25 मिनट लगते हैं.
फायदे-
1. इस सर्जरी की मदद से आँखों से चश्मा उतर जाता है और दृष्टि स्पष्ट हो जाती है.
2. इस सर्जरी में खर्च भी बहुत कम हो जाता है. इस सर्जरी को करने में दोनों आंखों के लिए लगभग 20 हजार रुपये खर्च आता है.
नुकसान-
1. हालाँकि, इस सर्जरी का इस्तेमाल ज्यादा नहीं होता है. अब इससे बेहतर तकनीक भी मौजूद हैं.
2. इस सर्जरी के बाद काफी समस्याओं का शंका बना रहता है.
2. ई-लेसिक या इपिलेसिक लेजर
यह प्रक्रिया तकरीबन सिंपल लेसिक के जैसा ही होता है. इसमें मूल अंतर मशीन का होता है. इसमें ज्यादा उन्नत मशीन इस्तेमाल की जाती हैं.
फायदे-
1. यह अच्छे परिणाम देते हैं और ज्यादातर मामलों में सफलता मिलती है.
2. मरीज जल्दी स्वस्थ हो जाते है.
3. जोखिम कम होती हैं.
नुकसान
1. सिंपल लेसिक के तुलना में थोडा महंगा होता है. इन दोनों आंखों के ऑपरेशन पर लगभग 35-40 हजार रुपये तक खर्च आता है.
2. छोटी-मोटी समस्याएं हो सकती हैं, जैसे कि आंख लाल होना, चौंध लगना इत्यादि.
3. कभी-कभार आंख में फूलने जैसी समस्या भी आ सकता है.
3. सी-लेसिक: कस्टमाइज्ड लेसिक लेजर
यह एक बहुत ही आसान प्रक्रिया है और परिणाम बहुत बेहतर होते हैं. इसमें ओवर या अंडर करेक्शन नहीं होती और नतीजा सटीक होता है. इस प्रक्रिया के दौरान ज्यादा समय नहीं लगता है, जिसमे मरीज को अस्पताल में भर्ती होने की जरूरत नहीं होती है. और इसके साइड इफेक्ट्स काफी कम होते हैं.
नुकसान
1. यह एक महंगी प्रक्रिया है. इसमें दोनों आंखों के ऑपरेशन पर करीब 40 हजार तक खर्च हो सकता है. कुछ अस्पताल इससे ज्यादा पैसे भी ले सकते हैं.
2. इसके साइड इफेक्ट्स में आंख लाल होने, खुजली, डबल विज़न जैसी समस्या आ सकती हैं, लेकिन यह आसानी से ठीक हो जाती हैं.
कुछ और खासियतें
1. आज कल कांटेक्ट लेंस या चश्मा हटाने के लिए ज्यादातर इसी प्रक्रिया का इस्तेमाल किया जा रहा है. सिंपल लेसिक सर्जरी मरीज को पहले से बने एक प्रोग्राम के जरिए आंख का ऑपरेशन किया जाता है, जबकि सी-लेसिक सर्जरी में आपकी आंख के साइज के हिसाब से पूरा प्रोग्राम बनाया जाता है.
2. सर्जन का अनुभव, काबिलियत, लेसिक लेजर से पहले और बाद की देखभाल की गुणवत्ता लेसिक लेजर सर्जरी के नतीजे के लिए काफी महत्वपूर्ण होती है.
3. चश्मे का नंबर अगर 1 से लेकर 8 डायप्टर है तो लेसिक लेजर ज्यादा उपयोगी होता है.
4. आज-कल लेसिक लेजर सर्जरी से -10 से -12 डायप्टर तक के मायोपिया, +4 से +5 डायप्टर तक के हायपरमेट्रोपिया और 5 डायप्टर तक के एस्टिग्मेटिज्म का इलाज किया जाता है.
कैसे करते हैं ऑपरेशन-
इस ऑपरेशन में बहुत कम समय लगता है, इसे करने में ज्यादा से ज्यादा 10 से 15 मिनट तक का समय लग सकता है. इस सर्जरी के दौरान मरीज को हॉस्पिटल में भर्ती होने की जरुरत नहीं होती है. ऑपरेशन की शुरुआत करने से पहले डॉक्टर आँखों को अच्छे से चेक करते हैं. इसके बाद ही सर्जरी करने का निर्णय लिया जाता है. जब ऑपरेशन करने का निर्णय लिया जाता है तो शुरू होने से पहले आँखों को आई-ड्रॉप के द्वारा सुन्न (एनेस्थिसिया) किया जाता है. फिर मरीज को कमर के बल लेटकर आंख पर पड़ रही एक टिमटिमाती लाइट को देखते रहने को कहा जाता है. अब एक विषेशरूप से तैयार किए गए यंत्र माइक्रोकिरेटोम की सहायता से आंख के कॉर्निया पर कट लगाकर आंख की झिल्ली को उठा देते हैं. हालांकि अब भी इस झिल्ली का एक हिस्सा आंख से जुड़ा ही रहता है. अब ऑलरेडी तैयार एक कंप्यूटर प्रोग्राम के द्वारा इस झिल्ली के नीचे लेजर बीम डालते हैं. लेजर बीम कितनी देर तक डालते रहना है इसे चिकित्सक जांच के दौरान ही पता कर लेते हैं. लेजर बीम पड़ने के बाद झिल्ली को वापस कॉर्निया पर लगा दिया जाता है और ऑपरेशन पूरा हो जाता है. यह झिल्ली एक-दो दिन में खुद ही कॉर्निया के साथ जुड़ जाती है और आंख नॉर्मल हो जाती है. मरीज उसी दिन अपने घर जा सकता है. कुछ लोग ऑपरेशन के ठीक बाद रोशनी लौटने का अनुभव कर लेते हैं, लेकिन ज्यादातर में सही विजन आने में एक या दिन का समय लग जाता है.
सर्जरी के बाद-
1. ऑपरेशन के बाद दो-तीन दिन तक आराम करना होता है और उसके बाद मरीज नॉर्मल तरीके से काम पर लौट सकता है.
2. लेसिक लेजर सर्जरी के बाद मरीज को बहुत कम दर्द महसूस होता है और किसी टांके या पट्टी की जरूरत नहीं होती.
3. आंख की पूरी रोशनी बहुत जल्दी (2-3 दिन में) लौट आती है और चश्मे या कॉन्टैक्ट लेंस के बिना भी मरीज को साफ दिखने लगता है.
4. स्विमिंग, मेकअप आदि से कुछ हफ्ते परहेज करना होता है.
5. करीब 90 फीसदी लोगों में यह सर्जरी पूरी तरह कामयाब होती है. बाकी लोगों में 0.25 से लेकर 0.5 नंबर तक के चश्मे की जरूरत पड़ सकती है.
6. जो बदलाव कॉर्निया में किया गया है, वह स्थायी है इसलिए नंबर बढ़ने या चश्मा दोबारा लगने की भी कोई दिक्कत नहीं होती, लेकिन कुछ और वजहों, मसलन डायबीटीज या उम्र बढ़ने के साथ चश्मा लग जाए, तो अलग बात है.
कौन करा सकता है-
1. जिनकी उम्र 20 साल से ज्यादा हो. इसके बाद किसी भी उम्र में करा सकते हैं.
2. चश्मे/कॉन्टैक्ट लेंस का नंबर पिछले कम-से-कम एक साल से बदला न हो.
3. मरीज का कॉर्निया ठीक हो. उसका डायमीटर सही हो. उसमें इन्फेक्शन या फूला/माड़ा न हो.
4. लेसिक सर्जरी से कम-से-कम तीन हफ्ते पहले लेंस पहनना बंद कर देना चाहिए.
कौन नहीं करा सकता-
1. किसी की उम्र 18 साल से ज्यादा है लेकिन उसका नंबर स्थायी नहीं हुआ है, तो उसकी सर्जरी नहीं की जाती.
2. जिन लोगों का कॉर्निया पतला (450 मिमी से कम) है, उन्हें ऑपरेशन नहीं कराना चाहिए.
3. गर्भवती महिलाओं का ऑपरेशन नहीं किया जाता.
विकल्प: चश्मा/कॉन्टैक्ट लेंस ऐसे लोगों के लिए ऑप्शन हैं.