एकॉस्टिक न्यूरोमा या वेस्टिबुलर श्वानोमा एक बेनाइंग ट्यूमर है जो जो आपके आंतरिक कान को मस्तिष्क से जोड़ने वाली तंत्रिका पर विकसित होता है। यह आमतौर पर एक धीमी गति से बढ़ने वाला ट्यूमर है, हालांकि गैर-आक्रामक, और कैंसर वाला ट्यूमर पर है पर यह यदि यह नियंत्रण से बाहर हो जाए तो मस्तिष्क में विभिन्न संरचनाओं पर दबाव डाल सकता है। इससे सबसे अधिक सामान्य रूप से सुनना, शरीर का संतुलन और चेहरे के भाव प्रभावित होते हैं।
यह ट्यूमर बहुत ज्यादा सामान्य नहीं माना जाता है और यह बहुत कम लोगों को होता है। इसके होने का प्रतिशत बहुत कम है। हालांकि यह किसी को भी हो सकता है। एकॉस्टिक न्यूरोमा किसी भी आयु वर्ग को हो सकता है लेकिन इससे सबसे ज्यादा प्रभावित 40 से 50 वर्ष के आयुवर्ग के लोग होते हैं।
सामान्य तौर पर, एकॉस्टिक न्यूरोमा के दो तरह के होते हैं :
सबसे आम तरह का स्पोराडिक एकॉस्टिक न्यूरोमा और दूसरा प्रकार है न्यूरोफाइब्रोमैटोसिस टाइप-II एकॉस्टिक न्यूरोमा। हालाकि कि दूसरे तरह का न्यूरोमा बहुत कम ही लोगों को होता है।
यदि एक एकॉस्टिक न्यूरोमा छोटा है, तो हो सकता है कि पीड़ित को किसी भी लक्षण का अनुभव ही ना हो। जिन्हें इस तरह के लक्षणों का अनुभव होता उन्हें प्रभावित कान में निम्नलिखित दोष पता लग सकते हैं-
जैसे ही एक एकॉस्टिक न्यूरोमा बड़ा हो जाता है, यह चेहरे, मुंह और गले की अन्य और आस-पास की नसों पर दबाव ड़ालना शुर कर देत करना शुरू कर सकता है। इससे लक्षण हो सकते हैं जैसे:
बहुत बड़े ध्वनिक न्यूरोमा सेरेब्रोस्पाइनल द्रव (सीएसएफ) के प्रवाह को बाधित कर सकते हैं। इससे हाइड्रोसेफलस नामक गंभीर स्थिति हो सकती है। हाइड्रोसिफ़लस में, सीएसएफ का निर्माण होता है, जिससे खोपड़ी में दबाव बढ़ जाता है। इसमें सरदर्द,उलटी अथवा मितली,बिगड़ा हुआ आंदोलन समन्वय (एटैक्सिया),भ्रम या परिवर्तित मानसिक स्थिति जैसे लक्षण हो सकते हैं।
एकॉस्टिक न्यूरोमा होने का सटीक कारण वैसे तो अज्ञात है, दोनों तरह के एकॉस्टिक न्यूरोमा में जो एक बात एक तरह की है वो है क्रोमोसोम 22 पर होने वाला एक जीन दोष। यह जीन, सामान्य परिस्थितियों में,कान और सुनने वाली श्वान सेल्स में होने वाले किसी भी असामान्य विकास को दबा देता है।
एलोपैथी में कई बार इसे ट्यमर माना ही नहीं जाता जब तक ये दिमाग के किसी हिस्से को दबाए नहीं। कई बार इसे वेट एंड वाच की परिस्थिति में भी रखा जाता है। वहीं प्राकृतिक इलाज में कुछ जड़ी बूटियों को काफी प्राभावी मना गया है।
सारीवदी वटी प्राकृतिक बूटियों का एक ऐसा मिश्रण है जो कई तरह की स्वास्थ्य समस्याओं में काम आता है। यह सामान्य रूप से कान की परेशानी जैसे टिन्निटस, कान के इंफेक्शन, सुनने की समस्या आदि में इसका उपयोग किया जाता है। इस बूटी का जीवाणुरोधी गुण इसे कान में होने वाले हर तरह के इंफेक्शन को रोकने के लिए उपयोगी बनाता है। न्यूरोमा की वजह से होने वाले कई लक्षणों जैसे बेहोश होना, भ्रमित होना आदि में यह वटी बहुत करगर है साथ ही यह वेस्टीबुलोकॉक्लियर नर्व को भी सशक्त करती है।
बोसवेलिया करक्यूमिन कई प्रकार की जड़ी बूटियों को मिलकर बनाई गई टैबलेट है जो सूजन को कम करने में बहुत प्रभावी मानी जाती है। यह कैंसर और ब्रेन ट्यूमर के इलाज में भी काफी प्रभावी हैं। यह एकॉउस्टिक न्यूरोमा के इलाज में भी बहुत महत्वपूर्ण औषधि मानी जाती है।
एकॉस्टिक न्यूरोमा के प्राकृतिक इलाज में मंजिष्ठा कैप्सूल बहुत ही प्रभावी औषधि मानी जाती है। यह मंजिष्ठा जड़ी बूटी से बनती है और कैप्सूल के रूप में भी मिलती है। यह मानव शरीर के वात और पित्त दोष को संतुलित करती है। यह खून को डीटाक्सीफाई करने और शरीर से टॉक्सिन बाहर करने में उपयोगी है। इसमें सूजन रोधी गुण भी होते हैं जो न्यूरोमा के असर को कम कर सकते हैं।
मंजिष्ठा कैप्सूल की तरह की एकॉस्टिक न्यूरोमा के प्राकृतिक इलाज में ब्राह्मी कैप्सूल भी बहुत ही प्रभावी औषधि मानी जाती है। यह नसों के लिए एक टॉनिक के तौर पर मानी जाती है। इससे चक्कर, बेचैनी, तनाव, ब्लड प्रेशर आदि का इलाज होती है। यह न्यूरॉन्स को शक्ति देती और नर्व को स्वस्थ रखती है।
यह लिंफैटिक तंत्र के ठीक से काम करने में मदद करता है। साथ ही शरीर से विषाक्त टॉक्सिन्स को बाहर निकालता है। यह ट्यूमर, सिस्ट, कैंसर के इलाज में भी प्रयोग किया जाता है। यह एकॉस्टिक न्यूरोमा के इलाज में प्रभावी माना जाता है।
एकॉस्टिक न्यूरोमा के आकार और वृद्धि, लक्षणों और आपकी व्यक्तिगत प्राथमिकताओं के आधार पर इलाज हर व्यक्ति के लिए अलग हो सकता है। विकल्पों में शामिल हैं:
यदि आपके एकॉस्टिक न्यूरोमा का आकार कम है और जो बढ़ नहीं रहा है या धीरे-धीरे बढ़ रहा है और कुछ या कोई लक्षण या लक्षण नहीं पैदा करता है, तो आपका डॉक्टर इसकी निगरानी करने का निर्णय ले सकता है। यह निर्णय लगता आपकी स्थिति के आधार पर सिर्फ आपके डाक्टर को लेना चाहिए। या फिर आपको उनसे निर्देश लेकर यह निर्णय लेना चाहिए।
इसकी निगरानी के लिए नियमित इमेजिंग और सुनने के परीक्षण शामिल होते हैं। यह अवधि आमतौर पर हर छह से 12 महीने की हो सकती है।
अगर एकॉस्टिक न्यूरोमा बढ़ रहा है या संकेत और लक्षण पैदा कर रहा है। इस प्रक्रिया में, डॉक्टर ट्यूमर को विकिरण की अत्यधिक सटीक, एक खुराक देते हैं। ट्यूमर के विकास को रोकने में प्रक्रिया की सफलता दर आमतौर पर 90 प्रतिशत से अधिक होती है। स्टीरियोटैक्टिक रेडियोसर्जरी आस-पास के संतुलन, सुनने और चेहरे की नसों को नुकसान पहुंचा सकती है हालांकि ये बहुत कम मामलों में ही होता है।
आमतौर पर सर्जिकल हटाने की सिफारिश तब की जाती है जब ट्यूमर बड़ा हो या तेजी से बढ़ रहा हो। इसमें आंतरिक कान के माध्यम से या आपकी सिर से एक खिड़की के माध्यम से ट्यूमर को निकालना शामिल है। यदि इसे नसों को चोट पहुंचाए बिना हटाया जा सकता है, तो आपकी सुनने की क्षमता को कोई नुकसान नहीं पहुंचता है।
सर्जरी के जोखिमों में नर्व को नुकसान और लक्षणों का बिगड़ना शामिल है। सामान्य तौर पर, ट्यूमर जितना बड़ा होता है, आपके सुनने, संतुलन और चेहरे की नसों के प्रभावित होने की संभावना उतनी ही अधिक होती है। अन्य जटिलताओं में लगातार सिरदर्द शामिल हो सकते हैं।
कई लोगों को चश्मा लगाना पसंद नहीं होता। खासकर जब उन्हें शादी या किसी पार्टी में जाना हो। ज़ाहिर है सज धजकर तैयार होने के बाद चश्मा लगाना से सारा लुक ही बदल जाता है। ऐसे में लोग लेंस का इस्तेमाल करते हैं।पर लेंस लगाने और उतारने के लिए काफी सतर्कता की ज़रूरत होती है। ये सबको सूट भी नहीं करते। हालांकि ऐसे में अधिकतर लोग आजकल लेसिक सर्जरी का तरफ आकर्षित हो रहे हैं। लेसिक एक प्रकार की रिफ्रैक्टिव आई सर्जरी है।
लेसिक सर्जरी के परिणाम अधिकतर सफल रहे हैं। ऐसे मामले कम ही हैं जिससे जटिलताएं और दृष्टि की हानि हो। कुछ दुष्प्रभाव, विशेष रूप से शुष्क आंखें और अस्थायी रूप से आंखों में चमक लगना जैसे लक्षण काफी सामान्य हैं। लेकिन ये आमतौर पर कुछ हफ्तों या महीनों के बाद ठीक हो जाते हैं, और बहुत कम लोग इन्हें दीर्घकालिक समस्या मानते हैं।
जिन लोगों की दूर की नज़र थोड़ी सी कमजोर है उन्हें रिफ्रेक्टिव सर्जरी से सबसे अधिक सफलता मिलती है। पर जिनकी आंखें ज्यादा कमज़ोर हैं उनमें परिणामों का अनुमान लगाना कठिन होता है।
आमतौर पर, चित्र हमारी आंख के पिछले हिस्से में रेटिना पर केंद्रित होते हैं। निकट दृष्टिदोष या दूर की दृष्टि में या तो रेटिना के सामने या पीछे केंद्रित हो जाते हैं, जिसके परिणामस्वरूप दृष्टि धुंधली हो जाती है।
सामान्य तौर पर, लेजर सर्जरी उन लोगों के लिए सबसे उपयुक्त है जिनके पास मध्यम स्तर की रिफ्रैक्टिव त्रुटि है और कोई असामान्य दृष्टि की समस्या नहीं है।
आपको गंभीर निकट दृष्टिदोष है या हाई रिफ्रैक्टिव त्रुटि का निदान किया गया है।
आपकी समग्र दृष्टि अच्छी है। यदि आपको केवल कुछ देर के लिए चश्मे की ज़रूरत पड़ती है तो सर्जरी में होने वाले जोखिम लेने की आनश्यकता नहीं है।
आपकी आंखों में उम्र से संबंधित परिवर्तन हो रहे हों जिसके कारण आपकी दृष्टि कम स्पष्ट होती है।
लेसिक सर्जरी के फायदे
हालांकि लेसिक सर्जरी की कीमत अधिक हो सकती है पर समय के साथ यह आपको पैसे बचा सकता है। यानी अगर आप युवा होने पर लेसिक सराजरी करवाते हैं।तो आप प्रत्येक वर्ष चश्मे की लागत बचा सकते हैं।
कॉंटैक्ट लेंस लगाने से आंखों की परिशानियों का खतरा बढ़ जाता है।कुछ अवसरों पर गंभीर आंखों के संक्रमण का कारण बन सकते हैं। लेसिक उस जोखिम को समाप्त कर देता है ।इससे आपकी आंखें अधिक सुरक्षित रहती हैं।
लेसिक सर्जरी करवाने से आपका जीवन काफी सुगम हो जाता है। यह काम करने से लेकर खेलों तक सब कुछ बहुत आसान बना देता है।चश्मा पहनने पर कई बार आप चिलचिलाती गरमी,धूप या खेलों में उतना सुविधाजनक महसूस नहीं करते।
समय के साथ आप सुधारात्मक लेंस खरीदने और बनाए रखने की तुलना में लेसिक होने से कम खर्च कर सकते हैं। बेहतर दृष्टि आपके जीवन को कई तरह से बेहतर बना सकती है। लेसिक सर्जरी के बाद आपको इस बारे में चिंता करने की ज़रूरत नहीं होगी कि क्या आपके चश्मे के बिना गाड़ी चलाना सुरक्षित है। कांटैक्ट लेंस भी कभी कभी आंखों को परेशान करते हैं।इसलिए लेसिक ही बेहतर विकल्प है।
लेसिक प्रक्रिया से आपकी दृष्टि में स्थायी सुधार करता है इसका मतलब है कि नियमित अंतराल पर आपको चश्मा बनवाने या नेत्र परीक्षण के लिए चिकित्सक के पास जाने की ज़रूरत नहीं पड़ती ।इससे होने वाला सुधार स्थायी है।
जानकार मानते हैं कि लेसिक सर्जरी में जटिलताएं दुर्लभ हैं पर कुछ दुष्प्रभावों से इंकार नहीं किया जा स। जान लीजिए क्या हैं वो दुष्प्रभाव।
लेसिक सर्जरी आंखों में आंसू उत्पादन में अस्थायी कमी का कारण बनती है। आपकी सर्जरी के बाद पहले छह महीनों तक, आपकी आंखें ठीक होने पर असामान्य रूप से शुष्क महसूस हो सकती हैं। उपचार के बाद भी आपके लक्षणों में वृद्धि हो सकती है। इस दौरान आई ड्रॉप का उपयोग करने की सलाह दी जाती है।
इसमें सर्जरी के बाद आंखों में चकाचौंध,हेलो और चीज़ें दोहरी नज़र आ सकती हैं। सर्जरी के बाद आपको रात में देखने में कठिनाई हो सकती है।यह आमतौर पर कुछ दिनों से लेकर कुछ हफ्तों तक रहता है ।
यदि लेजर आपकी आंख से बहुत कम ऊतक को हटाता है, तो आपको सर्जरी के बाद भी स्पष्ट नहीं दिखेगा। उन लोगों के लिए अंडरकरेक्शन अधिक आम हैं जो निकट दृष्टि दोष से ग्रस्त हैं। अधिक ऊतक निकालने के लिए आपको एक वर्ष के भीतर एक और सर्जरी की आवश्यकता हो सकती है।
यह भी संभव है कि लेजर आपकी आंख से बहुत अधिक ऊतक निकाल दे। अत्यधिक सुधारों को ठीक करना अधिक कठिन हो सकता है।
समान ऊतक हटाने के कारण दृष्टिवैषम्य हो सकता है। इसके लिए अतिरिक्त सर्जरी, चश्मे या कॉन्टैक्ट लेंस की आवश्यकता हो सकती है।
कॉर्नियल एक्टेसिया अधिक गंभीर जटिलताओं में से एक है और कॉर्निया की वक्रता के स्थिर होने के कारण प्रगतिशील मायोपिया के कारण होता है।
सर्जरी के दौरान अपनी आंख के सामने से फ्लैप को वापस मोड़ने या हटाने से संक्रमण और अतिरिक्त आँसू सहित और भी जटिलताएँ हो सकती हैं। उपचार प्रक्रिया के दौरान सबसे बाहरी कॉर्नियल ऊतक परत फ्लैप के नीचे असामान्य रूप से बढ़ सकती है।
आप सर्जिकल जटिलताओं के कारण दृष्टि के नुकसान का अनुभव कर सकते हैं। कुछ लोग पहले की तरह तेज या स्पष्ट रूप से नहीं देख सकते हैं।
आजकल की भागदौड़ भरी जिंदगी में सिरदर्द या माइग्रेन बहुत सामान्य बीमारी के तौर पर उभर रही है। माइग्रेन एक न्यूरोलॉजिकल समस्य है जो किसी भी उम्र के लोगों को हो सकती है। वैसे तो माइग्रेन का की बहुत सटीक इलाज या दवा नहीं है लेकिन बहुत सी ऐसी चीजें हैं जिससे माइग्रेन से पीड़ित लोगों को राहत मिल सकती है। आइए हम ऐसे तरीकों के बारे में बात करते हैं जो माइग्रेन से राहत दिलाते हैं।
एक्यूप्रेशर की प्रक्रिया मे शरीर के खास अंगों पर दबाव डाला जाता है जिससे ये बिंदु उत्तेजित होते हैं और इससे दर्द से राहत मिलती है। एक्यूप्रेशर घर पर भी किया जा सकता है पर जब तक आपको ठीक से पता ना हो पेशेवर की ही मदद लें। माइग्रेन में एक्यूप्रेशर प्रभावी होता है। शरीर में LI-4 बिंदु होता है, जो बाएं अंगूठे के आधार और तर्जनी के बीच की जगह में होता है। 5 मिनट के लिए विपरीत हाथ का उपयोग करके एलआई -4 बिंदु पर तेज, पर दर्दनाक नहीं, गोलाकार दबाव डालने से सिरदर्द दर्द से राहत मिल सकती है।
यह चिकित्सा पद्धति है एक्यूप्रेशर के समान है। इस प्रक्रिया में एक चिकित्सक लक्षित प्रभावों के लिए शरीर के विशिष्ट क्षेत्रों में सुइयों का इस्तेमाल करता है। इसके लिए जानकार पेशेवर की जरुरत होती है। एक शोध के मुताबिक माइग्रेन से परेशान लोगों के लिए एक्यूपंक्चर एक सुरक्षित और प्रभावी उपचार विकल्प है।
कुछ लोगों के केस में कुछ खास खाने माइग्रेन ट्रिगर कर सकते हैं। अगर सबसे आम होते हैं। माइग्रेन को ट्रिगर करने वाले कुछ सामान्य खाद्य पदार्थों हैं:
ऐसे में माइग्रेन से पीड़ित लोगों को इन चीजों से बचना चाहिए
लैवेंडर तेल तनाव, चिंता और सिरदर्द को दूर करने में मदद कर सकता है। एक स्टडी में ये सामने आया है कि 10 प्रकार के विशेष तेलों में ऐसे तत्व होते हैं जो माइग्रेन के लक्षणों को कम करने में मदद कर सकते हैं। इन तेलों में लैवेंडर, पेपरमिंट, कैमोमाइल और तुलसी का तेल शामिल हैं।
यह भी गौरतलब है कि कुछ तेल बच्चों के लिए हानिकारक हो सकते हैं। इसके अलावा जिन लोगों को अस्थमा है, या जो गर्भवती हैं या नर्सिंग कर रहे हैं। कृपया इनका उपयोग करने से पहले डॉक्टर से सलाह लें।
कई अध्ययनों में अदरक पाउडर माइग्रेन से पीड़ित लोगों के इलाज में सुरक्षित और प्रभावी पाया गया है । ऐसा पाया गया कि अदरक पाउडर लेने के 2 घंटे के बाद माइग्रेन का दर्द काफी कम हो गया। इसके अलावा अदरक मतली और उल्टी को दूर करने में भी मदद करता है। अदरक लेने से पहले डॉक्टर की सलाह जरुरी है क्योंकि अदरक के फायदों के साथ ही कुछ लोगों को इसके साइड इफेक्ट और इंटरैक्शन का खतरा होता है। खास तौर पर वार्फरिन लेने वाले लोगों में रक्तस्राव का खतरा बढ़ सकता है।
विशेषज्ञों का मानना है कि तनाव माइग्रेन से पीड़ित 10 में से 7 लोगों में लक्षणों को ट्रिगर करता है। दरअसल तनाव और माइग्रेन एक तरह का चक्र है, जिसमें माइग्रेन का दर्द तनाव को बढ़ा देता है, जो फिर एक और माइग्रेन को ट्रिगर करता है। ऐसे में जब भी संभव हो, उन स्थितियों से बचना चाहिए जो तनाव का कारण बन सकती हैं। जर्नलिंग,व्यायाम और ध्यान से मदद मिल सकती है। अन्य तरीकों में गुनगुने पानी से नहाना, संगीत सुनना या ब्रीदिंग टेक्नीक का अभ्यास करना शामिल हो सकता है। तनाव प्रबंधन कक्षाएं भी मददगार साबित हो सकती हैं।
थोड़े-थोड़े समय में किए जाने वाले योग से माइग्रेन के लक्षणों को कम किया। इसके अलावा योग से चिंता,अवसाद और तनाव को भी कम किया, जिससे माइग्रेन की समस्या हो सकती है। एक अध्ययन के मुताबिक ये पाया गया है कि योग में भाग लेने वाले एक समूह को उन लोगों की तुलना में माइग्रेन से ज्यादा राहत मिली है जो सिर्फ माइग्रेन का परंपरागत इलाज कर रहे हैं। हर हफ्ते 5 दिन भी योग किया जाय तो भी माइग्रेन में राहत मिल सकती है।
बायोफीडबैक एक ऐसी चिकित्सा है जिसमें हम ऐसे शारीरिक कार्यों को नियंत्रण में करना सीखते हैं जो समान्य तौर पर हमारे नियंत्रण में नहीं होते हैं। उदाहरण के लिए, इस थेरेपी के माध्यम से कोई भी व्यक्ति ये सीख सकता है कि उसे अपनी मांसपेशियों को कैसे आराम देना है। जिन मांसपेशियों को हमें आराम देना है उन पर हम सेंसर लगाते हैं और एक छोटी मशीन हमें ये बता देती है कि मांसपेशियों में कितना तनाव है या कौन सी मांसपेशियां को आराम दिलाने की जरुरत है। माइग्रेन से पीड़ित लोगों के जॉलाइन या कंधों में ट्रेपेज़ियस मांसपेशियों के साथ सेंसर का उपयोग करने से उन्हें राहत दिलाई जा सकती है।
गर्दन और कंधों में मांसपेशियों की मालिश करने से तनाव दूर करने और माइग्रेन के दर्द को कम करने में मदद मिल सकती है। मालिश तनाव को भी कम कर सकती है। पेशेवर द्वारा की जाने वाली मालिश से व्यक्ति को लाभ हो सकता है। माइग्रेन कोई भी व्यक्ति एक साफ टेनिस बॉल के साथ खुद की भी मालिश कर सकता है। इसके लिए वो दीवार के सहारे खड़ा होकर टेनिस बॉल से अपने कंधों और पीठ पर कुछ दबाव के साथ रोल करे तो माइग्रेन में आराम मिल सकता है।
10- मैग्नीशियम
शरीर के लिए जरुरी मैग्नीशियम की कमी से माइग्रेन या मेन्सूरल (मासिक धर्म) माइग्रेन सिरदर्द हो सकता है। मैग्नीशियम सप्लीमेंट लेने से कुछ लोगों को माइग्रेन में राहत मिल सकती है। लेकिन इस सप्लीमेंट को लेने से पहले डॉक्टर से बात करनी बहुत जरुरी है।
विटामिन बी माइग्रेन की गंभीरता और उनके आने की फ्रीक्वेंसी को कम कर सकते हैं। विटामिन बी मस्तिष्क में न्यूरोट्रांसमीटर को रेग्यूलेट करने में बड़ी भूमिका निभाते हैं। एक शोध के मुताबिक रोजाना 400 मिलीग्राम विटामिन बी2 लेने से माइग्रेन होने के दिनों, उसकी अवधि, गंभीरता, उसकी फ्रीक्वेंसी पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
बी विटामिन पानी में घुलनशील होते हैं ऐसे में इसके शरीर में ज्यादा होने या उसके दुष्प्रभाव के कोई संभावना ना के बराबर है। अतिरिक्त विटामिन बी पेशाब के साथ शरीर से निकल जाता है। फिर भी, खुराक लेने से पहले डॉक्टर से बात करना सबसे अच्छा है।
बटरबर और फीवरफ्यू दो हर्बल सप्लीमेंट हैं जो माइग्रेन के दर्द और एपिसोड की आवृत्ति को कम करने में सहायक हो सकते हैं।
डीहाइड्रेशन माइग्रेन को ट्रिगर कर सकता है। दिन भर में पर्याप्त पानी पीने से माइग्रेन रोकने में मदद मिल सकती है। पानी के छोटे घूंट लेने से भी व्यक्ति को माइग्रेन और उससे होने वाली मिचली के कुछ लक्षणों से निपटने में मदद मिलती है।
यदि किसी व्यक्ति को हर महीने कई बार माइग्रेन के लक्षणों का अनुभव करना पड़ रहा हो। अगर माइग्रेन आपकी सामान्य गतिविधियोंको बाधित कर रहा है,तो डॉक्टर की सलाह जरुरी है।
कई लोगों को अपने घाव को प्राकृतिक रूप से ठीक करने की इच्छा होती है। उनकी कोशिश होती है कि वो दवाओं और केमिकल का प्रयोग किए बिना ही अपने घाव को ठीक कर लें। प्राकृतिक रूप से घाव को ठीक करने में भारत की अपनी समृद्ध परंपरा है। आर्युवेद से लेकर यूनानी तक हर तरह की चिकित्सा पद्धति में घाव को प्राकृतिक रूपसे ठीक करने के लिए जड़ी बूटी समेत प्रकृति की चीजों का इस्तेमाल होता है।
वैसे मामूली घावों के लिए, घाव को बहते पानी और एक सौम्य साबुन से साफ करने और इसे सुखाकर घाव को एक स्टेराइल पट्टी से ढकने से काम चल सकता है। लेकिन गंभीर घावों के लिए, डाक्टर की देखभाल जरुरी है। यदि आप घावों को तेजी से भरने में मदद करने के लिए कुछ अतिरिक्त प्राकृतिक उपचारों की तलाश कर रहे हैं, तो यहां कुछ बेहतरीन उपाय दिए गए हैं:
यदि आप गहरे घावों को तेजी से ठीक करना चाहते हैं, तो अपने आहार बहुत महत्वपूर्ण हैं। ऐसे कई खाद्य पदार्थ हैं जो घावों के उपचार में मदद कर सकते हैं। ऐसे ही कुछ खाद्य पदार्थो के बारे में हम लेख में चर्चा करने वाले हैं।
घाव को तेजी से ठीक करने के लिए कोलेजन एक अच्छा विकल्प हो सकता है। कोलेजन शरीर में सबसे प्रचुर मात्रा में पाया जाने वाला प्रोटीन है, और त्वचा को संरचना प्रदान करता है। कोलेजन का आंतरिक उपयोग घाव भरने को बढ़ावा देने में मदद कर सकता है। जहां पर भी घाव हो उस इलाके की मरम्मत के लिए शरीर के कोलेजन का बनना जरुरी है।
आहार में कोलेजन को शामिल करने के लिए, घर का बना बोन ब्रोथ उपयोगी हो सकता है। बोन ब्रोथ से बने प्रोटीन पाउडर का उपयोग किया जा सकता है जो कोलेजन से भरपूर होता है। अनुसंधान से पता चलता है कि कोलेजन पाउडर पुराने घावों जैसे दबाव अल्सर और मधुमेह के पैर के अल्सर के लिए सहायक चिकित्सा के रूप में भी सहायक हो सकता है।
घावों को जल्दी भरने में मदद करने के लिए कच्चा शहद एक शानदार विकल्प साबित होता है। शहद घाव को साफ करने, मवाद और गंध सहित संक्रमण के लक्षणों को कम करने, दर्द को कम करने और यहां तक कि उपचार प्रक्रिया को तेज करने में मदद कर सकता है। शहद एक प्रभावी एंटीसेप्टिक घाव ड्रेसिंग के रूप में कार्य करता है।
शहद वास्तव में हाइड्रोजन पेरोक्साइड बनाने के लिए शरीर के तरल पदार्थों के साथ प्रतिक्रिया करता है, जिससे बैक्टीरिया को रोका जा सकता है। इसके अलावा, आमतौर पर घाव पर लगाए जाने वाले हाइड्रोजन पेरोक्साइड की सांद्रता बहुत कम होती है, इस प्रकार, हाइड्रोजन पेरोक्साइड द्वारा साइटोटोक्सिक क्षति बहुत कम होती है।
शहद का इस्तेमाल शुद्ध हाइड्रोजन पेरोक्साइड की जगह अगर किया जाय तो हाइड्रोजन पेरोक्साइड के आदर्श स्तर को बढ़ावा मिल सकता है। कई बार हाइड्रोजन पेरोक्साइड घावों के लिए बहुत मजबूत हो सकता है और इससे टिश्यू लॉस का कारण भी बन सकता है।
कुछ घावों को शहद के प्रयोग से ठीक करने के लिए जाना जाता है। शहद को कई प्रकार के ऐसे घावों के उपचार में सहायक हो सकता है जिसमें सर्जरी के बाद होने वाले घाव, पुराने पैर के अल्सर, फोड़े, जलन, घर्षण और कटौती शामिल हैं। शहद गंध और मवाद को कम करता है, घाव को साफ करने में मदद करता है, संक्रमण को कम करता है, दर्द को कम करता है और उपचार के समय को कम करता है। कई अस्पतालों में भी संक्रमित घावों के लिए शहद और घी के मिश्रण की ड्रेसिंग का इस्तेमाल किया जाता रहा है।
जलने और घावों के उपचार के लिए, एक उच्च गुणवत्ता वाला शहद सीधे प्रभावित क्षेत्र पर या ड्रेसिंग में लगाया जा सकता है।इसके अलावा कच्चे शहद, टी ट्री ऑयल और लैवेंडर ऑयल को मिलाकर घर पर हीलिंग सॉल्यूशन भी बना सकते हैं।
टी ट्री ऑयल और मेंहदी जैसे आवश्यक तेलों में बैक्टीरिया और फंगस की एक विस्तृत श्रृंखला के खिलाफ प्रभावशाली जीवाणुरोधी गुण होते हैं। नारियल के तेल जैसे कैरियर तेल के साथ आवश्यक तेलों को 1: 1 के अनुपात में लगाने से पहले पतला करें। आप इसे प्रति दिन तीन बार तक इस्तेमाल कर सकते हैं।
यह घाव क्षेत्र की नमी के स्तर को भी बढ़ाता है, जो उपचार के लिए बहुत अच्छा है। इससे घाव जल्दी भरते हैं। विशेषज्ञों के अनुसार, घावों को भरने के लिए नमी की आवश्यकता होती है। घाव को खुला छोड़ देने से, बनने वाली नई सतह कोशिकाएं सूख जाती हैं, जो दर्द को बदतर बना सकती हैं और/या उपचार प्रक्रिया को धीमा कर सकती हैं।
तो, वाहक तेल के साथ पतले एसेंशियल ऑयल का प्रोग करना सुनिश्चित करें और फिर क्षेत्र को एक बाँझ पट्टी के साथ कवर करें। यदि किसी ऑयल से एलर्जी है तो उसका उपयोग ना करें। एसेंशियल आयल को आखों और म्यूकस मेंब्रेन से दूर रखें।
जिंक शरीर की प्रतिरक्षा को बढ़ावा देता है और त्वचा की चिकित्सा में सुधार करता है। जिंक की कमी घाव भरने की प्रक्रिया को धीमा और खराब कर सकती है। जिंक घाव भरने की प्रक्रिया के हर चरण को विनियमित करने में एक प्रमुख भूमिका निभाता है जैसे झिल्ली की मरम्मत, ऑक्सीडेटिव तनाव, जमावट, सूजन और प्रतिरक्षा रक्षा, ऊतक पुन: उपकलाकरण, एंजियोजेनेसिस से लेकर फाइब्रोसिस / निशान बनने तक।
जिंक प्रोटीन के लिए यह एक सहकारक के रूप में कार्य करता है। इससे मुश्किल से ठीक होने वाले घावों के उपचार और देखभाल भी आसानी से हो जाती है। ऐसे कई जिंक युक्त खाद्य पदार्थ हैं जिनका प्रयोग कर आप अपने घाव भरने की प्रक्रिया को तेज कर सकते हैं। लैंब मीट, कद्दू के बीज और काजू शामिल हैं। जिंक के सप्लीमेंट भी बाजार में उपलब्ध होते हैं।
एक अन्य महत्वपूर्ण पोषक तत्व जो वास्तव में आपके घाव की देखभाल के प्रयासों को बढ़ावा दे सकता है, विटामिन सी कोलेजन के निर्माण में मदद करता है, जिसे अब आप जानते हैं कि त्वचा के ऊतकों और रक्त वाहिकाओं को नुकसान को ठीक करने के लिए महत्वपूर्ण है। घाव भरने की प्रक्रिया के सभी चरणों में विटामिन सी वास्तव में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
खट्टे फल, शिमला मिर्च, स्ट्रॉबेरी और टमाटर जैसे विटामिन सी से भरपूर खाद्य पदार्थों के माध्यम से इस शक्तिशाली एंटीऑक्सीडेंट को अपने आहार में रोजाना शामिल करना मुश्किल नहीं है। आप आंवला पाउडर के पूरक के रूप में उच्च गुणवत्ता वाला विटामिन सी सप्लीमेंट भी ले सकते हैं। यह विटामिन सी का एक उत्कृष्ट स्रोत है।
ऐसे पदार्थों से बचें जो घाव भरने की प्रक्रिया को धीमा करते हैं|
कुछ ऐसे खाद्य पदार्थ हैं जिनसे आपको दूरी बनाकर रखनी होगी। ये आहार आपके घाव भरने की प्रक्रिया को धीमा करते हैं:
हर किसी को जीवन में कभी न कभी त्वचा में खुजली की समस्या होती है। ये किसी भी कारण हो सकती है पर हर वक्त खुजली करते रहने से शर्मिदगी भी महसूस हो सकती है। ये खुजली शरीर के किसी एक हिस्से में या पूरे शरीर में हो सकती है।
खुजली एक लक्षण है जो सामान्य हो सकती है या किसी अन्य स्वास्थ्य संबंधी स्थिति के कारण हो सकती है। आमतौर पर यह एक गंभीर समस्या नहीं होती है और कुछ हफ्तों के भीतर कम हो जाती है। पर कई बार त्वचा में खुजली से दाने भी विकसित हो सकते हैं।
अधिक खुजलाने से त्वचा को खरोंच लग सकती है और त्वचा की सुरक्षात्मक बाधा को नुकसान पहुंच सकता है।ऐसे में शरीर हानिकारक कीटाणुओं और संक्रमणों के खतरे में आ जाता है।
खुजली से होने वाली जलन के कारण त्वचा लाल, खुजलीदार, सूजी हुई या ड्राई हो जाती है और दिखने में पपड़ीदार हो सकती है। खुजली पर प्रतिक्रिया देते हुए शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली हिस्टामाइन छोड़ती है।यही कारण है कि मच्छर के काटने से त्वचा में जलन होती है।
खुजली के पीछे विभिन्न कारक हो सकते हैं जैसे:
त्वचा में खुजली का सबसे आम कारण मौसम में बदलाव है। मौसमी बदलाव के कारण त्वचा शुष्क हो जाती है। एक अच्छे मॉइस्चराइजर का उपयोग करने से आपकी त्वचा में नमी लॉक हो जाती है। यह त्वचा को रूखा होने से बचाता है। मॉइस्चराइजर का उपयोग करते समय कुछ बातों का ध्यान रखें।
गुनगुने पानी से नहाने के बाद त्वचा को धीरे से सुखाकर तुरंत मॉइस्चराइजर लगाएं। सही प्रकार का मॉइस्चराइजर चुनना भी महत्वपूर्ण है। यदि आप सेरामाइड युक्त मॉइस्चराइज़र का उपयोग करेंगे तो बेहतर होगा क्योंकि सेरामाइड त्वचा की बाधाओं की बहाली और नमी के नुकसान की रोकथाम में सहायता करता है।
कोल्ड कंप्रेस का इस्तेमाल करने से खुजली में राहत मिल सकती है।इसके लिए एक ठंडा नम कपड़ा लें या एक तौलिया में आइस पैक लपेटकर प्रभावित क्षेत्र पर लगाएं ।ये खुजली वाली त्वचा से राहत दिलाने में मदद कर सकता है। ठंड का अहसास खुजली के चक्र को तोड़ता है और बार-बार होने वाली खुजली के कारण होने वाली त्वचा की सूजन को कम करता है।
ऐसे साबुन और डिटर्जेंट का उपयोग करने से बचें जिनमें अधिक केमिकल होते हैं।इनसे भी त्वचा में जलन हो सकती है। हल्के साबुन और कपड़े धोने वाले डिटर्जेंट का उपयोग करने से आपको त्वचा की खुजली को कम करने में मदद मिल सकती है।
सिंथेटिक्स कपड़ों के इस्तेमाल से बचें, क्योंकि ये आपकी त्वचा में खुजली पैदा कर सकते हैं। सूती कपड़े पहनें और सूती चादरें ही बिछाएं ।इससे आपको खुजली वाली त्वचा के लक्षणों को कम करने में मदद मिल सकती है
ओटमील में विशेष रसायन होते हैं जिन्हें एवेनेंथ्रामाइड्स कहा जाता है। इनके कारण खुजली या जलन में कमी आ सकती है।जनाकरा मानते हैं कि बेकिंग सोडा के साथ ओटमील मिलाकर एक पेस्ट बनाएं और इसे प्रभावित क्षेत्र पर लगाएं।इसे खुजली में राहत मिल सकती है। आप दही और शहद में थोड़ा सा ओट्स मिलाकर त्वचा के रैशेज पर लगा सकते हैं ।इससे त्वचा के रैशेज दूर हो सकते हैं। इसका उपयोग चेहरे की त्वचा की एलर्जी के घरेलू उपचारों में से एक के रूप में किया जा सकता है।
बेकिंग सोडा भी खुजली कम करने में मदद करता है, खासकर ऐसे लक्षण जो कीड़े के काटने के कारण होते हैं। बेकिंग सोडा को पानी की कुछ बूंदों के साथ मिलाकर खुजली वाली त्वचा पर लगाने से तुरंत आराम मिलता है। नहाने के पानी में बेकिंग सोडा मिलाकर नहाने से पूरे शरीर की खुजली में आराम मिल सकता है।
एक्जिमा की समस्या में एक्सट्रा वर्जिन नारियल का तेल फायदा पहुंचा सकता है। इसे लगाने से शरीर पर लंबे समय तक मॉइस्चर बना रहता है।इसे प्रभावित त्वचा पर नियमित रूप से लगाने से लाभ हो सकता है
अलसी में त्वचा की जलन से राहत और सूजन कम करने वाले गुण होते हैं जो हर प्रकार की त्वचा की एलर्जी और चकत्तों के लिए फायदेमंद होते हैं। अलसी के बीजों को एक कपड़े में लपेटकर, उन्हें हल्का सा गर्म कर लीजिए और सूजन और रैशेज पर लगाकर सिंकाई कीजिए। आप अलसी को अपने आहार में शामिल करके भी इसके लाभकारी प्रभाव प्राप्त करने में सक्षम हो सकते हैं।
मेथी के बीज एक्जिमा और त्वचा की हल्की सूजन से राहत के लिए पारंपरिक हर्बल दवा का एक हिस्सा हैं। आप मेथी के कुछ बीज लेकर, उन्हें पानी में उबालकर और नहाने के लिए पानी का उपयोग करके त्वचा की एलर्जी दूर कर सकते हैं।
एक पारंपरिक हर्बल दवा के रूप में, ओक की छाल का उपयोग त्वचा की मामूली सूजन, अन्य त्वचा के रोगों और एक्जिमा के इलाज के लिए किया जाता है। इसका उपयोग नहाने के पानी में मिलाकर किया जाता है।इसके अलावा इसका एसेंशियल ऑयल भी उपयोग किया जा सकता है।
मौसम का बदलाव कई सुखद चीजें लेकर अपने साथ आता है पर कई बार इस बदलाव के साथ कुछ ऐसा भी होता है कि जो हम बिलकुल नहीं चाहते। ये है फ्लू या फिर सामान्य भाषा में कहें तो सर्दी जुकाम, बुखार या फिर वायरल बुखार। फ्लू ठीक होने में अपना समय लेता है।
व्यक्ति की इम्यूनिटी के हिसाब से लक्षण गंभीर या हल्के हो सकते हैं पर फ्लू अपना समय पूरा करके ही शरीर से निकलता है। ऐसे में बहुत से लोग दवा की जगह प्राकृचतिक तरीकों से ही फ्लू से मुकाबला करना चाहते हैं। हम इस लेख में ऐसे ही तरीकों पर चर्चा करेंगे।
हालांकि फ्लू जैसे वायरल संक्रमणों को निश्चित रूप से रोकना असंभव है, लेकिन आपके जोखिम को कम करना संभव है। ऐसे में प्राकृतिक तरीकों फ्लू के मौसम में स्वस्थ रखने में मदद कर सकते हैं।
अपने हाथों को अच्छी तरह और बार-बार धोएं
हालांकि फ्लू एक हवाई बीमारी है, यह अक्सर हाथ मिलाने और अक्सर इस्तेमाल की जाने वाली सतहों को छूने से फैलता है। अपने जोखिम को कम करने और दूसरों के लिए भी फ्लू के खतरे को कम करने लिए हाथ धोना बहुत जरुरी और आसान तरीका है। हाथों को कम से कम 15 सेकंड के लिए नियमित रूप से गर्म पानी और साबुन से धोना सुनिश्चित करें। खाने से पहले और खांसने या छींकने के बाद अपने हाथ धोना विशेष रूप से महत्वपूर्ण है।
बीमार लोग अपने हाथों में खांसने और छींकने और फिर सतह को छूने के माध्यम से इन्फ्लूएंजा वायरस जैसे श्वसन वायरस को सतहों पर स्थानांतरित कर सकते हैं। यदि आप संक्रमित सतहों के संपर्क में आते हैं और हाथ की उचित स्वच्छता नहीं रखते हैं तो ये वायरस आपके शरीर में स्थानांतरित हो सकते हैं और आपको बीमार कर सकते हैं।
यदि साबुन और पानी उपलब्ध नहीं है तो हैंड सैनिटाइज़र की एक बोतल अपने साथ रखें और अपने हाथों को सेनिटाइज़ करें। अपनी नाक, मुंह या आंखों को छूने से बचें क्योंकि फ्लू वायरस आपके शरीर में प्रवेश कर सकता है जब आपके संक्रमित हाथ आपके चेहरे को छूते हैं।छींकते समय टिश्यू पेपर का इस्तेमला करें या अपनी कोहनी में छींकें।
दूरी है जरुरी। यह सुनकर आपको कुछ सुना सुना लग रहा होगा। कोविड की तरह ही फ्लू सांस की बूंदों से गुजरता है जो छह फीट की दूरी तय कर सकती है। ऐसे में जब भी संभव हो दूसरों से लगभग छह फीट दूर रहने की कोशिश करें।
मौसम में सर्दी बढ़ने के साथ हमारी बिस्तर से दोस्ती बढ़ जाती है। खासकर रजाई , कंफर्टर कंबल हमें खींचने लगते हैं। यह जितना लुभावना हो, नियमित व्यायाम करना प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत करने और संपूर्ण स्वास्थ्य को बेहतर बनाने का एक सरल और स्मार्ट तरीका है। प्रतिरक्षा प्रणाली इन्फ्लूएंजा वायरस और अन्य बीमारी पैदा करने वाले कीटाणुओं के खिलाफ शरीर की रक्षा है। तेज गति से टहलना जैसी समान्य गतिविधियाँ भी फ्लू के मौसम में आपको स्वस्थ रखने में मदद कर सकती हैं।
अच्छी तरह से काम करने वाली प्रतिरक्षा प्रणाली के लिए नींद महत्वपूर्ण है। ऐसे में नींद को प्राथमिकता देना फ्लू और सामान्य सर्दी जैसी अन्य अजीब बीमारियों से बचाव में मदद करने का एक प्राकृतिक तरीका है। दोपहर में कैफीन का सेवन सीमित करने की कोशिश करें और हर रात कम से कम 7 से 9 घंटे की नींद लें। यदि आपको सोने में परेशानी होती है, तो प्राकृतिक पूरक लेने पर विशेषज्ञ से चर्चा करें ।
प्रतिरक्षा प्रणाली फ्लू जैसे संक्रमणों को कितनी अच्छी तरह से रोक सकती है। इसके लिए आहार में अधिक फलों और सब्जियों को शामिल करने का प्रयास करें। ऐसे खाद्य पदार्थों को प्राथमिकता दें जो प्रतिरक्षा-बढ़ाने वाले विटामिन और सेलेनियम से भरपूर हों। ऐसे खाद्य पदार्थों / पेय पदार्थों का सेवन करना भी महत्वपूर्ण है जिनमें प्रोबायोटिक्स-अनुकूल बैक्टीरिया होते हैं जो पाचन तंत्र में रहते हैं और प्रतिरक्षा स्वास्थ्य को प्रभावित करते हैं। विशिष्ट स्वास्थ्य आवश्यकताओं के लिए कौन से खाद्य पदार्थ और पूरक सर्वोत्तम हैं, इस बारे में डॉक्टर करना चाहिए।
विटामिन सी उन लोगों में सर्दी को रोकने में मदद करता है जो ठंड के मौसम के संपर्क में हैं या जिन्होंने अत्यधिक शारीरिक गतिविधि की है। विटामिन सी कुछ हद तक इलाज में भी मदद कर सकता है। यह सर्दी की अवधि को 24 से 36 घंटे तक कम कर सकता है। आहार में विटामिन सी से भरपूर भोजन जैसे संतरा, नींबू आदि को शामिल करना एक बेहतरीन विकल्प है।
लहसुन को प्रतिरक्षा प्रणाली को उत्तेजित करने के लिए माना जाता है। लहसुन सर्दी और फ्लू को पकड़ने की संभावना को कम कर सकता है।लहसुन कच्चा खाने पर सबसे अच्छा काम करता है।
जिंक एक आवश्यक खनिज है जो आपकी प्रतिरक्षा प्रणाली के लिए महत्वपूर्ण है। यह कई कोशिकीय प्रक्रियाओं में शामिल होता है जैसे कि आपके शरीर को व्हाइट ब्लड सेल्स (डब्ल्यू बीसी) बनाने में मदद करना। ये कीटाणुओं से लड़ते हैं और आपको संक्रमण से सुरक्षित रखते हैं। जिंक फ्लू और सर्दी के लक्षणों को कम करने में मदद कर सकता है। जिंक वायरस के बढ़ने की गति को धीमा कर सकता है। ताजे फल, सब्जियों के साथ एक संतुलित आहार आपकी जिंक की जरूरतों को पूरा कर सकते हैं। आप फ्लू के मौसम में जिंक सप्लीमेंट या जिंक युक्त मल्टीविटामिन ले सकते हैं।
मैंगोस्टीन एक ट्रापिकल फल है। इसका उपयोग औषधि के रूप में किया जाता है। खास बात यह है कि इसके फल, फलों के रस, छिलके, टहनी और छाल का उपयोग किया जाता है।
मैंगोस्टीन बहुत ही स्वादिष्ट होता है। इसे वैज्ञानिक रूप से गार्सिनिया मैंगोस्टाना कहा जाता है। स्थानीय भाषाओं में, इसे हिंदी में "मंगुस्तान", तेलुगु में "इवारुमामिडी" और मलयालम में "कट्टाम्पी" कहा जाता है।
यह व्यापक रूप से थाईलैंड, मलेशिया, फिलीपींस और भारत जैसे दक्षिण पूर्व एशियाई देशों के उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में उगाया जाता है। यह एक मौसमी फल है, जिसे गर्मी के महीनों में बड़े पैमाने पर खाया जाता है।
सारांश- एक ट्रापिकल, स्वादिष्ट फल मैंगोस्टीन भारत, थाईलैंड, मलेशिया समेत दक्षिण एशियाई देशो में पाया जाता है। हर जगह इसका अलग-अलग नाम है। इसका उपयोग बहुत सी बीमारियों में होता है।
इस फल का कठोर, बाहरी आवरण गहरे बैंगनी रंग का होता है और इसे आसानी से खोला जा सकता है, जिसमें छोटे बादाम के आकार के बीजों के साथ अंदर सफेद गूदा होता देता है। हालाँकि, इसके बीज बेहद कड़वे होते हैं।
मैंगोस्टीन देखने में बहुत आकर्षक होता है। इसकी सुगंध बहुत मनमोहक होती है। ये फल मीठा और स्वादिष्ट होता है और सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि यह पोषण का भंडार होता है।
सारांश- मौंगस्टीन देखने में सुंदर, पोषण का भंडार और बहुत सुगंधित होता है। इसका फल मीठा पर बीज बेहद कड़वा होता है।
मैंगोस्टीन को अक्सर मीठे फल के रूप में खाया जाता है या इससे जैम बनाया जाता है। इसे जूस और शेक के रूप में भी उपयोग किया जाता है। कहा जाता है कि रानी विक्टोरिया का यह पसंदीदा फल था।
इन दिनों, मैंगोस्टीन का रस एक लोकप्रिय "स्वास्थ्य पेय" बनता जा रहा है। इससे कई प्रकार के बेक्ड व्यंजनों में भी इस्तेमाल किया जाता है ।
मौंगोस्टीन फलों के छिलके में टैनिन होता है। ये डायरिया में मदद कर सकते हैं। लेकिन इस बारे में कोई वैज्ञानिक जानकारी उपलब्ध नहीं है।
यह कैलोरी में स्वाभाविक रूप से कम है। यही वजह है कि यह फल वजन घटाने में सहायता करता है और प्राकृतिक शर्करा प्रदान करता है जिसे आसानी से अवशोषित किया जा सकता है। इसे खाने से तत्काल ऊर्जा मिल सकती है। मौंगोस्टीन में मौजूद फाइबर पाचन में सहायता करते हैं।
यह विटामिन बी का भंडार होता है जो मेटाबालिज़्म को बढ़ावा दोता है। इसके अलावा, मैंगोस्टीन विटामिन सी से भी भरपूर होता है, जो तेज़ी से घाव भरने में मदद करता है। इसमें मौजूद एंटीऑक्सिडेंट शरीर की कोशिकाओं को नुकसान से बचाते हैं।
सारांश- मैंगोस्टीन पोषक तत्वों और गुणों से भरपूर है। विटामिन बी का भंडार है, मेटाबाल्जिम को बढ़ावा देता है। तत्काल ऊर्जा बढ़ती है। यह एंटीऑक्सिडेंट से भी भरपूर है।
मैंगोस्टीन का उपयोग कई स्थितियों के लिए किया जाता है, लेकिन अभी तक, यह निर्धारित करने के लिए पर्याप्त वैज्ञानिक प्रमाण नहीं हैं कि यह उनमें से किसी के लिए प्रभावी है या नहीं।
जिन रोगों में मैंगोस्टीन का इस्तेमाल कारगर तरीके से किया जाता है वो हैं-
इसका उपयोग प्रतिरक्षा प्रणाली को उत्तेजित करने और मानसिक स्वास्थ्य में सुधार के लिए भी किया जाता है। कुछ लोग एक्जिमा और अन्य त्वचा स्थितियों के लिए त्वचा पर मैंगोस्टीन लगाते हैं।
सारांश- पारंपरिक तौर पर मैंगोस्टीन का इस्तेमाल यूटीआई, संक्रमण से लेकर कैंसर तक कई बीमारियों में होता है। त्वचा रोग में भी इसका उपयोग किया जाता है।
मौंगोस्टीन शरीर के करीब करीब हर अंग के लिए फायदेमंद है। इसमें पाए जाने वाले यौगिक कई तरह से फायदा करते हैं। आइए जानते हैं इस सेहत के दोस्त के गुण
मैंगोस्टीन रक्त वाहिकाओं को फैलाकर शरीर के सभी अंगों, विशेष रूप से हृदय में उचित रक्त प्रवाह सुनिश्चित करता है। मैंगोस्टीन का यह गुण उच्च रक्तचाप के लक्षणों जैसे हाई बीपी, सिरदर्द, तनाव और धड़कन को नियंत्रित करने में बहुत कारगर है।
यह ट्राइग्लिसराइड्स के स्तर को भी नियंत्रित करता है, हृदय गति को नियंत्रित करता है और सामान्य रक्तचाप को बनाए रखने में सहायता करता है।
यह फल सीने में दर्द, हृदय में कंजेशन और एथेरोस्क्लेरोसिस जैसी गंभीर हृदय संबंधी बीमारियों को रोकने में अत्यधिक प्रभावी है।
विटामिन सी से भरपूर होने के कारण, मैंगोस्टीन सुरक्षात्मक एंटीऑक्सीडेंट गुण प्रदान करता है और एक कुशल प्रतिरक्षा प्रणाली का निर्माण करता है।
एंटीऑक्सिडेंट शरीर में स्वस्थ कोशिकाओं को नष्ट करने से हानिकारक मुक्त कणों को खत्म करते हैं, जबकि एंटीबॉडी नामक प्रोटीन वायरस से सिस्टम की रक्षा करते हैं जो निमोनिया, फ्लू और सामान्य सर्दी जैसी बीमारियों का कारण बनते हैं।
मैंगोस्टीन में बड़ी मात्रा में ज़ैंथोन होते हैं, जो स्वाभाविक रूप से पौधों के यौगिकों का एक समूह है जो शक्तिशाली एंटी इंफ्लेमेटरी गुणों से भरपूर हैं। ज़ैंथोन मानव प्रणाली के तनावग्रस्त क्षेत्रों में दबाव को कम करने में कार्य करता है।
मैंगोस्टीन में यह महत्वपूर्ण गुण गठिया, साइटिका और मासिक धर्म में ऐंठन के कारण होने वाले असहनीय शरीर दर्द से राहत दिलाने के लिए इसे एक उल्लेखनीय उपाय है।
फ्लेवोनोइड्स (शक्तिशाली एंटीऑक्सिडेंट) और फोलेट (विटामिन बी 9) से भरपूर, मैंगोस्टीन मस्तिष्क तक जाने वाली नसों के माध्यम से संकेतों के सुचारू संचरण में सहायता करता है। इसके अलावा, यह मस्तिष्क की कोशिकाओं में प्लाक के संचय को रोकता है और स्मृति में भी सुधार करता है।
मैंगोस्टीन का सेवन करने से अल्जाइमर रोग जैसी न्यूरोडीजेनेरेटिव स्थितियों में संज्ञानात्मक क्षमताओं को बढ़ाने में मदद मिलती है।
मैंगोस्टीन कैटेचिन नामक एंटीऑक्सीडेंट का एक पावरहाउस है, जो ग्रीन टी में भी मौजूद होता है। यह त्वचा में स्वस्थ कोशिकाओं को खराब होने से बचाता है।
इसके साथ ही यह त्वचा की कोशिकाओं में रक्त और पोषक तत्वों के प्रवाह को बढ़ावा देता है। मैंगोस्टीन बैक्टीरियल त्वचा संक्रमण का भी मुकाबला करता है, जिससे एक युवा, दमकती त्वचा मिलती है।
मैंगोस्टीन न केवल एक सुखद स्वाद प्रदान करता है बल्कि फाइबर और ज़ैंथोन की प्रचुर मात्रा में आपूर्ति करता है। यह एंटीऑक्सिडेंट और एंटी इंफ्लेमेटरी गुणों के साथ शक्तिशाली फाइटोन्यूट्रिएंट्स होते हैं।
इसमें मौजूद घुलनशील और अघुलनशील फाइबर भूख को नियंत्रित करने, असमय खाने की इच्छा को नियंत्रित करने, पाचन को बढ़ावा देने, ऊर्जा को बढ़ाने में मदद करते हैं।
इसके अलावा, मैंगोस्टीन में ज़ैंथोन शरीर से हानिकारक मुक्त कणों, विषाक्त पदार्थों को खत्म करते हैं और इंसुलिन संश्लेषण को बढ़ाते हैं, मांसपेशियों की कोशिकाओं द्वारा रक्त ग्लूकोज के बेहतर प्रसंस्करण के लिए कार्य करते हैं।
विटामिन सी, बी विटामिन, साथ ही ज़ैंथोन, फ्लेवोनोइड और कैटेचिन एंटीऑक्सिडेंट की पर्याप्त मात्रा से भरपूर, मैंगोस्टीन त्वचा की बनावट को फिर से जीवंत करने के लिए शानदार प्रोत्साहन प्रदान करता है।
विटामिन सी एक शक्तिशाली एंटीऑक्सिडेंट है जो शरीर से मुक्त कणों को हटाता है और उन्हें स्वस्थ त्वचा कोशिकाओं और बी विटामिनों को ऑक्सीकरण करने से रोकता है।
मैंगोस्टीन में पाया जाने वाला फोलेट, विशेष रूप से त्वचा के ऊतकों की एक नई परत बनाने के लिए रक्त परिसंचरण को बढ़ावा देता है। ज़ैंथोन्स और फ्लेवोनोइड्स सूजन को कम करते हैं और मुंहासे, दाग-धब्बों को ठीक करते हैं।
ये सूरज की हानिकारक यूवी किरणों से त्वचा को बचाते हैं, जबकि कैटेचिन युवा, चमकदार, स्पष्ट त्वचा के लिए झुर्रियों, सैगिंग, महीन रेखाओं को कम करके उत्कृष्ट एंटी-एजिंग लाभ प्रदान करते हैं।
मैंगोस्टीन पौधों से प्राप्त बायोएक्टिव घटकों से भरपूर होता है। ये फाइटोन्यूट्रिएंट्स होते हैं जिनमें बेहतरीन एंटी-इंफ्लेमेटरी, एंटीऑक्सिडेंट और एंटी-कैंसर गुण होते हैं।
पॉलीफेनोल, ज़ैंथोन, टैनिन, प्रोसायनिडिन, एंथोसायनिन सहित यौगिक ट्यूमर कोशिकाओं को नष्ट करने और शरीर के भीतर कैंसर कोशिकाओं के मेटास्टेसिस को रोकने में जबरदस्त क्षमता प्रदर्शित करते हैं।
इसके अलावा, वे स्तन, फेफड़े, लावर, गुर्दे, पेट, आंतों और अग्न्याशय जैसे कई प्रमुख महत्वपूर्ण अंगों में घातक ऊतकों के गठन को काफी हद तक दबा देते हैं, ताकि कैंसर के खतरे को टाला जा सके।
सारांश- मैंगोस्टीन सेहत का दोस्त है। दिल की सेहत से लेकर इम्यूनिटी तक और शरीर के दर्द से लेकर एजिंग रोकने तक ये कारगर होता है। इसमें पाए जाने वाले यौगिक बड़े काम के हैं। तेज दिमाग हो या फिर कैंसर से रक्षा मैंगोस्टीन सबमें कमाल का है।
मौसम में केवल ताजे फलों का ही सेवन करें और अगर आपके स्थानीय स्टोर में मैंगोस्टीन का स्टॉक पुराना, सूखा और धब्बेदार दिखता है तो इससे बचें।
मैंगोस्टीन कुछ लोगों में एलर्जी का कारण बनता है इसलिए अगर आपको किसी प्रकार की एलर्जी है तो खाने से पहले अपने डॉक्टर की सलाह लें।
मैंगोस्टीन आमतौर पर गर्भवती और स्तनपान कराने वाली महिलाओं के लिए अनुशंसित नहीं है।
निष्कर्ष - मैंगोस्टीन गुणों से भरपूर है। लेकिन यह ध्यान देने वाली बात ये है कि ताजे फलों का ही सेवन करना चाहिए। यह भी गौर करना चाहिए कि कहीं आपको इससे एलर्जी तो नहीं। गर्भवती महिलाओं को डाक्टर से सलाह लेकर ही इसे खाना चाहिए।
हमारे शारीरिक स्वास्थ्य के लिए खाद्य पदार्थों में मौजूद पौष्टिक तत्वों और खनिजों की आवश्यता है और जब शरीर में इन्ही पौष्टिक तत्वों व खनिजों की कमी हो जाती है तो शरीर को कई प्रकार के विकारों का सामना करना पड़ता है। ऐसा ही एक विकार है एनीमिया, जिसकी वजह से शरीर को कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है। वैसे तो एनीमिया कई प्रकार के और कई कारणों से होते हैं। हालांकि इसका एक कारण विटामिन की कमी भी है। तो चलिए आइये जानते हैं कि वह कौन-कौन से विटामिन हैं, जिनकी कमी की वजह से एनीमिया होता है।
एनीमिया की वजह से शरीर लाल रक्त कोशिकाओं की कमी हो जाती है, जो पूरे शरीर में पर्याप्त ऑक्सीजन ले जाने के लिए आवश्यक है। शरीर में लाल रक्त कोशिकाओं के स्तर को पूरा रखने में कुछ विटामिन काफी सहायक होते हैं। अतः अगर हम ऐसे खाद्य पदार्थों का सेवन करते हैं, जिनमें लाल रक्त कोशिकाओं का निर्माण करने वाले विटामिन्स पर्याप्त मात्रा में पाए जाते हैं, तो एनीमिया नामक बीमारी से खुद का बचाव किया जा सकता है।
विटामिन सी- विटामिन-सी की कमी से शरीर में एनीमिया की समस्या उत्पन्न हो सकती है। इसके अलावा धूम्रपान भी एनीमिया की समस्या की वजह बनता है। क्योंकि धूम्रपान खाद्य पदार्थों से से विटामिन-सी को अवशोषित कर लेता है। संतरा, अनानास, कीवी पपीता, अमरुद जैसे फलों में विटामिन-सी पर्याप्त मात्रा में मौजूद रहता है।
विटामिन बी12- विटामिन बी12 की कमी से भी एनीमिया हो सकता है। इसलिए शरीर में विटामिन बी12 की कमी भी नहीं होनी चाहिए। यदि आप पर्याप्त विटामिन बी12 युक्त खाद्य पदार्थ का सेवन करते हैं तो आप एनीमिया की बीमारी से बच सकते हैं. मांस, अंडे और दूध का सेवन विटामिन बी12 की कमी को पूरा कर सकते हैं।
विटामिन बी9 या फोलेट- पत्तेदार हरी सब्जियां और फल विटामिन बी9 या फोलेट के प्राथमिक स्रोत हैं, और आपके आहार में उनकी अपर्याप्तता के परिणामस्वरूप एनीमिया भी हो सकता है।
विटामिन की कमी से होने वाला एनीमिया एक ऐसा रोग है जो धीरे-धीरे विकसित होता है। इसमें वह कई महीनों से लेकर सालों तक का समय ले सकता है। शुरुआत में तो एनीमिया के लक्षण सूक्षम हो सकते हैं, लेकिन जैसे-जैसे एनीमिया विकराल रूप लेता जाता है, शरीर में समस्याएं भी बढ़ती जाती हैं। इसके लक्षण निम्नलिखित हैं-
शरीर में विटामिन की कमी के कारण सिर्फ खानपान ही नहीं, इसके कई अन्य कारण भी हो सकते हैं। तो चलिए उन कारणों के बारे में जानते हैं जिनकी वजह से शरीर में विटामिन सी, विटामिन बी12 और विटामिन बी9 या फोलेट की कमी हो सकती है।
विटामिन बी12 या फोलेट की कमी से शरीर को निम्न स्वास्थ्य समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है-
आप विभिन्न प्रकार के विटामिन युक्त खाद्य पदार्थों को अपने दैनिक आहार में शामिल करके विटामिन की कमी वाले एनीमिया के कुछ रूपों को रोक सकते हैं।
विटामिन बी12 से भरपूर खाद्य पदार्थों में शामिल हैं:
वैसे तो मानव शरीर में कई तरह के अंग होते हैं, लेकिन कुछ ऐसे गुप्तांग होते हैं जिनके बारे में हम बात करने से कतराते हैं। इसकी वजह लोकलाज है। ऐसा ही एक अंग है निप्पल जो स्त्री और पुरुष दोनों के शरीर में होता है। वैसे तो मानव शरीर में दो निप्पल होते हैं लेकिन कई शोधो में बताया गया है कि कई लोगों के तीन या उससे भी ज्यादा निप्पल होते हैं। हालांकि तीसरे निप्पल का कोई काम नहीं होता इसलिए वह जन्म के साथ ही ख़त्म हो जाता है।
अपने इस लेख के माध्यम से आज हम आपको निप्पल से जुड़े ऐसे ही कई रोचक जानकारियों के बारे में बताने जा रहे हैं। हालांकि इसके पहले निप्पल और उसकी बनावट के बारे में जान लेते हैं।
निप्पल एक तरह के उभरे हुए बंप्स होते हैं। पुरुषों की तुलना में महिलाओं की बॉडी में इनका आकार कुछ बड़ा होता है। इनके चारों तरफ सॉफ्ट लेकिन डीप कलर की स्किन का गोल घेरा होता है, जिसे ऐरियोला या अरीअल कहते हैं। निपल हेयर, ऐरियोला साइज, हाइऐस्ट निपल साइज जैसी कई विशेषताएं आप यहां जानेंगे।
जन्म के समय लड़कों और लड़कियों के निप्पल और स्तन एक जैसे दिखते हैं। लेकिन युवावस्था में आते-आते हार्मोन के प्रभाव की वजह से इनमें बदलाव दिखना शुरू हो जाता है। दोनों के निप्पल बड़े हो जाते हैं लेकिन महिलाओं के निप्पल ज्यादा बड़े हो जाते हैं। इसी समय, पुरुष के स्तनों की नलिकाएं सिकुड़ जाती हैं जबकि महिला के स्तन बड़े हो जाते हैं और फिर से तैयार हो जाते हैं। वयस्कता से, पुरुष निपल्स महिलाओं की तुलना में छोटे और कम परिवर्तनशील होते हैं। स्तन और निप्पल के कुछ हिस्सों के बारे में बताते हैं।
निप्पल स्तन एक तरह के उभरे हुए बंप्स होते हैं। पुरुषों की तुलना में, महिलाओं की बॉडी में इनका आकार कुछ बड़ा होता है। इनके चारों तरफ सॉफ्ट लेकिन डीप कलर की स्किन का गोल घेरा होता है, जिसे ऐरियोला या अरीअल कहते हैं।
निप्पल के आसपास कई छोटे-छोटे छिद्र होते हैं। इन छिद्रों को लेक्टीफेरोस डक्ट कहते हैं। ब्रेस्ट फीडिंग के दौरान इन छिद्रों का उपयोग बढ़ जाता है। प्रेगनेंसी और ब्रेस्टफीडिंग के दौरान ये छोटे छोटे छिद्र निप्पल को सॉफ्ट बनाये रखने में सहयोग करते है। दरअसल, इनमें से एक किस्म का ऑइल निकलता है जो निप्पल्स को फटने और ड्राई होने से बचाता है। इसके साथ ही इस ऑइल में एंटी-बैक्टीरियल गुण होते हैं जो निप्पल में इन्फेक्शन को रोकते हैं।
निप्पल पर या इसके आस-पास के एरिया में कुछ बाल निकलते हैं। इन्ही बालों को निप्पल हेयर के रूप में जाना जाता हैं। हालांकि स्त्रियों की तुलना में पुरुषों में यह बाल अधिक देखने को मिलते है। कई बार मेडिकल कंडीशन या हॉर्मोनल चेंजेज के कारण स्त्रियों में भी यह स्थिति देखने को मिलती है।
वैसे तो निप्पल का उपयोग शिशु को ब्रेस्टफीडिंग कराने के लिए होता है, लेकिन इसके अलावा निप्पल के और भी कई उपयोग हैं। सेक्स के दौरान निप्पल महिलाओं में उत्तेजना पैदा करने में सहायक होती है। इतना ही नहीं, कई महिलाओं को निपल्स के जरिए ही सेक्स संतुष्टि भी मिलती है। कई महिलाओं को तो निप्पल के माध्यम से ही सेक्स संतुष्टि मिलती है। सेक्सोलॉजिस्ट के अनुसार, कई महिलाएं निप्पलों को सहलाने से ओगाज़्म तक पहुंच जाती हैं।
सेक्स के दौरान महिला के निप्पल और स्तन उत्तेजना पहुंचाने में बहुत सहायक होते हैं, क्योंकि निप्पल में कई नर्व एंडिंग होते हैं, जिसके स्टिमुलेशन के परिणामस्वरूप अधिक उत्तेजना होती है। इन यौन अंगों को अक्सर गलत तरीके से पकड़ लिया जाता है, जिसके कारण ब्रेस्ट सेक्स महिला को प्रसन्न नहीं करता है। हालांकि, जब इसे सही तरीके से किया जाता है, तो ब्रैस्ट सेक्स वास्तव में दोनों भागीदारों के लिए बहुत संतोषजनक साबित हो सकता है।
कई शोध में कहा गया है कि लड़कियों के पहली बार मासिक धर्म आने के 4 से 5 साल बाद तक उनके स्तन और निप्पल पूरी तरह से विकसित हो जाते हैं। हर महिला के दोनों स्तनों और निप्पलों के आकार में अंतर होता है। इसके अलावा निप्पलों में रंग में भी अंतर हो सकता है। हालांकि इससे कोई समस्या नहीं होती है। महिला का एक निप्पल अधिक गहरे जबकि एक निप्पल कम गहरे रंग का हो सकता है। गर्भावस्था के दौरान और सेक्स के दौरान भी महिलाओं के निप्पल के आकार में परिवर्तन होता है और ये पहले से ज्यादा बड़े हो जाते हैं।
मुख्य रूप से निप्पल को विभिन्न वर्गों में बांटा गया है
प्रोट्रूडिंग: कुछ महिलाओं के निप्पल बाहर की ओर निकले हुए होते हैं और कुछ मिलीमीटर तक ऊपर उठे हुए होते हैं। ज्यादा उत्तेजित और ठन्डे होने परऐसे निप्पल कठोर हो जाते हैं।
सपाट: ऐसे निप्पलों में उभार न के बराबर होती है। यहां तक कि उत्तेजना के समय भी इनमें बिल्कुल भी उभार नहीं आता है। हालांकि ऐसे निप्पल से भी स्तनपान कराने में कोई समस्या नहीं होते हैं।
इंवर्टेड: कुछ निप्पल बाहर की बजाय अंदर की ओर मुड़े हुए होते हैं। कई बार ऐसे निप्पलों को देखकर महिलाओं को चिंता हो जाती है। हालांकि यह कोई बीमारी नहीं है। लेकिन अगर निप्पल में ज्यादा बदलाव देखने को मिले तो तुरंत डॉक्टर्स से संपर्क करना चाहिए।
अनक्लासिफाइड: ऐसे निपल्स बीच में से अलग होते हैं या इनके दो मुंह होते हैं।
इनवर्टेड: कुछ महिलाओं के निप्पल उल्टे होते हैं मतलब उनमें उभार तो होता है लेकिन यह उभार अंदर की और होता है। हालांकि इसमें चिंता की कोई बात नहीं होती है। ऐसे निप्पल से भी बच्चों को नार्मल तरीके से ही स्तनपान करा सकती हैं। क्योंकि जब आपका शिशु इसे चूसता है, तो आपका निप्पल अंततः बाहर आ जाएगा।
यूनिलैटरल: कई बार महिला के दोनों निप्पलों का आकार भिन्न भिन्न होता है। ऐसी स्थिति में एक स्तन के निप्पल का आकार सामान्य हो सकता है, तो दूसरे स्तन के निप्पल का आकार उल्टा, सपाट या फ्लैट भी हो सकता है।
निप्पल में दर्द होता या दरार जैसा महसूस होना आम है। कई शोध में पता चला है कि महिलाओं को मासिक धर्म आने से पहले निप्पल में दर्द ,महसूस होता है। हालांकि यह दर्द चिंता का विषय नहीं है। हाँ अगर यह दर्द आपको सहन करने में मुश्किल हो रही है तो डॉक्टर्स से सम्पर्क जरूर करें। निपल्स का फटना भी काफी सामान्य है। तंग कपड़े और इंटेंस वर्कआउट रूटीन ऐसा होने का कारण बन सकते हैं। स्तनपान कराने से निप्पल में दरारें भी आ सकती हैं। चिंता न करें, केवल एक अच्छी मॉइस्चराइजिंग क्रीम का उपयोग करें। निश्चित ही आप ठीक हो जाएंगी।
एक संतुलित आहार एक ऐसा आहार है जिसमें निश्चित मात्रा और अनुपात में विभिन्न प्रकार के खाद्य पदार्थ होते हैं ताकि कैलोरी, प्रोटीन, खनिज, विटामिन और वैकल्पिक पोषक तत्वों की जरुरत पूरी हो सके। शरीर की दुर्बलता को कम करने के लिए इन पोषक तत्वो का एक हिस्सा शरीर अपने भविष्य के उपयोग के लिए बचा भी लेते है।
इसके अलावा, एक संतुलित आहार में बायोएक्टिव फाइटोकेमिकल्स जैसे आहार फाइबर, एंटीऑक्सिडेंट और न्यूट्रास्यूटिकल्स भी होने चाहिए जिनके सकारात्मक स्वास्थ्य लाभ हैं।
एक संतुलित आहार में कार्बोहाइड्रेट से कुल कैलोरी का लगभग 60-70%, प्रोटीन से 10-12% और वसा से कुल कैलोरी का 20-25% प्रदान करना चाहिए। यानी हम कह सकते हैं कि एक संतुलित आहार वह है जो किसी व्यक्ति की पोषण संबंधी सभी जरूरतों को पूरा करता है।
मनुष्य को स्वस्थ रहने के लिए एक निश्चित मात्रा में कैलोरी और पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है। संतुलित आहार खाने से, लोग पोषक तत्वों और कैलोरी की आवश्यकता प्राप्त कर सकते हैं और जंक फूड या बिना पोषण मूल्य के भोजन खाने से बच सकते हैं।
किसी व्यक्ति की आधी थाली में फल और सब्जियां होनी चाहिए। अन्य आधा हिस्सा अनाज और प्रोटीन का होना चाहिए। विशेषज्ञ प्रत्येक भोजन के साथ कम वसा वाले डेयरी या डेयरी में पाए जाने वाले पोषक तत्वों के अन्य स्रोत की सेवा करने की सलाह देते हैं। आम तौर पर विशेषज्ञ खाने को 5 भोजन समूह में बांटते हैं। एक स्वस्थ, संतुलित आहार में इन पांच समूहों के खाद्य पदार्थ शामिल होते हैं:
पर्याप्त पोषक तत्व प्राप्त करने और खाने में विविधता लाने के लिए लोगों को विभिन्न प्रकार की सब्जियां चुननी चाहिए। इसलिए वनस्पति समूह को भी बांटा गया है। मौसम और उपलब्धता के हिसाब से वनस्पति समूह में पाँच उपसमूह शामिल हैं:
लोग सब्जियों को कच्चा या पकाकर खा सकते हैं। हालांकि, यह याद रखना महत्वपूर्ण है कि सब्जियां पकाने से उनके कुछ पोषण मूल्य कम हो जाते हैं। इसके अलावा, कुछ तरीके, जैसे डीप-फ्राइंग, एक डिश में अस्वास्थ्यकर वसा जोड़ सकते हैं।
संतुलित आहार में भरपूर मात्रा में फल भी शामिल होते हैं। जूस से फल लेने के बजाय पोषण विशेषज्ञ पूरे फल खाने की सलाह देते हैं। जूस में पोषक तत्व कम होते हैं। इसके अलावा, अतिरिक्त चीनी के कारण निर्माण प्रक्रिया में अक्सर खाली कैलोरी जुड़ जाती है। लोगों को सिरप के बजाय ताजे या जमे हुए फल, या पानी में डिब्बाबंद फलों का चुनाव करना चाहिए।
साबुत अनाज में आमतौर पर परिष्कृत अनाज की तुलना में अधिक प्रोटीन होता है। अनाज को दो भाग में बांटा गया है-साबुत अनाज और प्रोसेस्ड अनाज।
साबुत अनाज में अनाज के तीनों भाग शामिल होते हैं, जो चोकर, जर्म और एंडोस्पर्म हैं। शरीर साबुत अनाज को धीरे-धीरे तोड़ता है, इसलिए उनका व्यक्ति के रक्त शर्करा पर कम प्रभाव पड़ता है। इसके अतिरिक्त, साबुत अनाज में रिफाइंड अनाज की तुलना में अधिक फाइबर और प्रोटीन होता है।
परिष्कृत अनाज को संसाधित किया जाता है और इसमें तीन मूल घटक नहीं होते हैं। परिष्कृत अनाज में भी कम प्रोटीन और फाइबर होता है, और वे रक्त शर्करा के स्पाइक्स का कारण बन सकते हैं।
एक व्यक्ति के दैनिक कैलोरी का अधिकांश हिस्सा अनाज से आता है। हालाँकि, अद्यतन दिशानिर्देश बताते हैं कि अनाज को एक व्यक्ति की थाली का केवल एक चौथाई हिस्सा बनाना चाहिए। कम से कम आधा अनाज जो एक व्यक्ति रोजाना खाता है वह साबुत अनाज होना चाहिए। स्वस्थ साबुत अनाज में शामिल हैं:
जानकार और हेल्थ डाइटीशियन बताते हैं कि प्रोटीन को एक व्यक्ति की प्लेट का एक चौथाई हिस्सा बनाना चाहिए। पौष्टिक प्रोटीन निम्न से प्राप्त किया जा सकता है:
डेयरी और फोर्टिफाइड सोया उत्पाद कैल्शियम का एक महत्वपूर्ण स्रोत हैं। यूएसडीए जब भी संभव हो कम वसा वाले संस्करणों का सेवन करने की सलाह देता है। कम वसा वाले डेयरी और सोया उत्पादों में शामिल हैं:
जो लोग लैक्टोज असहिष्णु हैं वे कम-लैक्टोज या लैक्टोज-मुक्त उत्पादों का विकल्प चुन सकते हैं, या कैल्शियम और अन्य पोषक तत्वों के सोया आधारित स्रोतों का चयन कर सकते हैं।
स्वस्थ भोजन ऊर्जा बढ़ाता है, आपके शरीर के कार्यों में सुधार करता है, आपकी प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत करता है और वजन बढ़ने से रोकता है।
यह आपकी पोषण संबंधी आवश्यकता को पूरा करता है। एक विविध, संतुलित आहार पोषक तत्वों की कमी से बचने के लिए आवश्यक पोषक तत्व प्रदान करता है।
बीमारियों को रोकता है और कुछ के इलाज में सहायक है। स्वस्थ भोजन से मधुमेह, कैंसर और हृदय रोग जैसी कुछ बीमारियों के विकास के जोखिम को रोका जा सकता है। यह मधुमेह और उच्च रक्तचाप के इलाज में भी मददगार है।
एक विशेष आहार का पालन करने से बीमारियों के लक्षण कम हो सकते हैं, और आपको किसी बीमारी या स्थिति को बेहतर ढंग से प्रबंधित करने में मदद मिल सकती है।
संतुलित भोजन से व्यक्ति ऊर्जावान महसूस करता है और अपने वजन को सही रख सकता है। एक स्वस्थ आहार किसी को भी बेहतर महसूस करने, आपको अधिक ऊर्जा प्रदान करने और तनाव से लड़ने में मदद करेगा।
भोजन कई सामाजिक और सांस्कृतिक कार्यक्रमों का मुख्य आधार है। पोषण संबंधी गुणों के अलावा, यह व्यक्तियों के बीच संबंधों को सुगम बनाने में मदद करता है।
आईसीएमआर ने संतुलित भोजन के लिए एक चार्ट दिया है जिसमें किसी आहार को दिन भर में कितना खाना है वो स्पष्ट है। चार्ट निम्नलिखित है
फूड |
रोजाना कितना खाएं |
कितने प्रतिशत एनर्जी |
अनाज |
270 ग्राम |
45 |
दाल/मीट |
90 ग्राम |
17 |
दूध या डेयरी उत्पाद |
300 ग्राम |
10 |
सब्जियां |
350 ग्राम |
05 |
फल |
150 ग्राम |
03 |
नट्स और सीड्स |
20 ग्राम |
08 |
घी, बटर, तेल |
27 ग्राम |
12 |