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There is a general misconception about impotence and erectile dysfunction being two separate conditions. In fact, impotence is just another term for erectile dysfunction. If you have a problem in achieving an erection more than 70% of the times when you want to have sex, you are suffering from erectile dysfunction.
It is always better to ensure caution and stay protected against possible infections, which are caused by intimate contact amongst partners. Sexually Transmitted Diseases or STDs are common occurrences for many people all over the world. These many range in intensity and type, and may also happen due to various causes.
देर तक पेशाब रोकने से पेशाब के थैली (ब्लैंडर) में बैक्टीरिया जमा हो जाने से पेशाब में कई तरह के इन्फेक्शन हो जाते हैं इसे ही यूरिन इन्फेक्शन या यूरिनरी ट्रैक्ट इन्फेक्शन या यूटीआई (Urinary Tract Infection – UTI) कहते हैं. अधिकांश यूरिन इन्फेक्शन बैक्टीरिया के कारण होता है पर कभी-कभी या फंगस या वायरस द्वारा भी फैलता है. पुरुषों के अपेक्षा महिलाओं में यह समस्या अधिक देखने को मिलती है. यूरिन इन्फेक्शन का असर मूत्राशय, किडनी व मूत्र नली पर भी होता है. यूरिन इन्फेक्शन बने रहने से किडनी खराब भी हो सकती है. अतः यूरिन इन्फेक्शन को नजरअंदाज नहीं करनी चाहिए बल्कि इसका उचित इलाज किया जाना चाहिए. आइए हम यूरिन इन्फेक्शन के लक्षण, कारण व इलाज पर चर्चा करते हैं.
यूरिन इन्फेक्शन के लक्षण-
यूरिन इन्फेक्शन में कई तरह के लक्षण देखने को मिलते हैं. यूरिन इन्फेक्शन में पेशाब में जलन के साथ-साथ पेशाब करते समय दर्द भी हो सकता है. यूरिन इन्फेक्शन में बार-बार पेशाब या थोड़ा-थोड़ा पेशाब होता है या पेशाब करके आने पर फिर ऐसा लगता है कि फिर पेशाब होगा. यूरिन इन्फेक्शन में पेशाब में बदबू भी आ सकती है. कभी-कभी पेशाब में खून भी आता है. पेशाब का रंग गाढ़ा पीला हो जाता है. यूरिन इन्फेक्शन में पेट या नाभि के नीचे दर्द भी हो सकता है तथा इन्फेक्शन का असर किडनी तक पहुँच जाने पर तेज बुखार भी आ सकता है.
यूरिन इन्फेक्शन का कारण-
यूरिन इन्फेक्शन होने के कई कारण हैं. पेशाब आने पर तुरत पेशाब नहीं करना व पेशाब को रोके रखना इसका मुख्य कारण है. पेशाब रोके रखने से पेशाब के ब्लैंडर में बैक्टीरिया जमा हो जाता है और फिर इस बैक्टीरिया से संक्रमण या इन्फेक्शन हो जाता है. यूरिन इन्फेक्शन के अन्य कारण भी हैं. पानी कम पीने से भी यूरिन इन्फेक्शन होता है. इसके अलावा प्रोजेस्ट्रोन हर्मोन का बढ़ने या एस्ट्रोजन हर्मोन का कम होने से भी यूरिन इन्फेक्शन होता है. रीढ़ की हड्डी स्पाइनल कार्ड में चोट लागने से भी यूरिन इन्फेक्शन होता है. मधुमेह के मरीज को भी यूरिन इन्फेक्शन होने की संभावना अधिक रहती है. इसके अलावा यूरिन इन्फेक्शन आनुवांशिक भी होता है. जननांग क्षेत्र में साफ-सफाई का ध्यान न रखना भी यूरिन इन्फेक्शन का कारण होता है. लड़कियों या महिलाओं में महवारी के समय यूरिन इन्फेक्शन के संभावना बढ़ जाती है.
यूरिन इन्फेक्शन का इलाज
बेकिंग सोडा: - यूरिन इन्फेक्शन में आधा से एक चम्मच बेकिंग सोडा को एक गिलास पानी में मिलाकर दिन में एक या दो बार पीना चाहिए. इससे शरीर में एसिड का लेवल बना रहता है व पेशाब का इन्फेक्शन भी दूर होता है.
खूब पानी पीना: - यूरिन इन्फेक्शन में खूब पानी पीना चाहिए. अधिक पानी पीने के कारण अधिक पेशाब आने से पेशाब के थैली (ब्लैंडर) का बैक्टीरिया पेशाब के माध्यम से शरीर से बाहर आ जाते हैं और इन्फेक्शन भी ठीक हो जाता है.
छाछ या दही: - यूरिन इन्फेक्शन में छाछ पीना फायदेमंद होता है. छाछ पीने से ब्लैंडर में पनप रहे बैक्टीरिया बाहर हो जाते हैं. छाछ के स्थान पर दही भी लिया जा सकता है.
क्रेनबेरी (Cranberry): - क्रेनबेरी फल का जूस यूरिन इन्फेक्शन में बहुत ही ज्यादा प्रभावशाली होता है. क्रेनबेरी फल का जूस को सेब के जूस के साथ मिलाकर पीया जा सकता है. इसके प्रयोग से कुछ ही दिन में इन्फेक्शन ठीक हो जाता है.
अन्नानास: - अन्नानास में ब्रोमेलाइन नमक एक एंजाइम होता है जो किडनी व पेशाब के इन्फेक्शन में फायदेमंद होता है. अतः यूरिन इन्फेक्शन में रोज अन्नानास खाना चाहिए या अन्नानास का जूस पीना चाहिए.
सेब का सिरका: - एक गिलास पानी में एक चम्मच सेब का सिरका डालकर अच्छी तरह मिला लेना चाहिए. अच्छे परिणाम के लिए इसमें नींबू का रस व शहद भी मिला लेना चाहिए. फिर इस सिरका को रोज दो बार पीना चाहिए. इससे इन्फेक्शन दूर होता है.
लहसुन: - लहसुन जीवाणुरोधी माने जाते हैं. अतः इसके सेवन से बैक्टीरिया को नष्ट किया जा सकता है. यूरिन इन्फेक्शन में लहसुन के 3-4 कली खाने चाहिए. लहसुन के दुर्गंध से दिक्कत हो तो लहसुन का पेस्ट बनाकर इसे मक्खन के साथ प्रयोग किया जा सकता है.
प्याज: - प्याज शरीर से फ्री रेडिकल्स व विषाक्त पदार्थों को बाहर निकालने में सहायक है. इसलिए यूरिन इन्फेक्शन में सलाद के रूप में या जूस के रूप में प्याज का सेवन से इन्फेक्शन जल्द ठीक होता है.
खट्टे फल: - यूरिन इन्फेक्शन में ब्लैंडर के बैक्टीरिया को साइट्रिक एसिड द्वारा दूर किया जा सकता है. अतः यूरिन इन्फेक्शन में खट्टा फल नींबू, संतरा इत्यादि खूब खाना चाहिए. नींबू पानी पीने से भी जल्दी लाभ होता है.
नोट: -
यूरिन इन्फेक्शन यदि जल्द ठीक न हो तो इसे नजरअंदाज नहीं करना चाहिए बल्कि चिकित्सक के परामर्श से उचित इलाज कराना चाहिए क्योंकि इन्फेक्शन बने रहने से अन्य बीमारी या किडनी पर प्रभाव भी हो सकता है. इन्फेक्शन किडनी तक पहुँच जाने पर किडनी खराब भी हो सकती है.
देखने में काला लेकिन बेहद चमकदार लगने वाला जामुन खाने में भी बहुत स्वादिष्ट होता है. इसके साथ ही इसमें कई तरह के औषधीय गुण भी मौजूद होते हैं. भले ही इसका सार्वाधिक लोकप्रिय नाम जामुन है लेकिन इसको कई अन्य नामों से भी जाना जाता है जैसे राजमन, काला जामुन, जमाली, ब्लैकबेरी इत्यादि. ये स्वभाव में अम्लीय और कसैली लेकिन पक जाने पर मीठी होती है. इसलिए पकने के बाद इसका स्वाद खाने में मीठा होता है. जामुन को नमक के साथ खाने पर इसका स्वाद और बेहतरीन हो जाता है. जामुन में ग्लूकोज और फ्रक्टोज भी मौजूद होते हैं. जामुन में खनिजों की अधिक होती है. इसके बीज में आपको कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन और कैल्शियम अधिक मात्रा में पाया जाता है. जामुन में आयरन, विटामिन और फाइबर पाया जाता है. आइए निम्नलिखित बिन्दुओं के माध्यम से जामुन के फ़ायदों को जानें.
पेट और पाचन शक्ति के लिए-
जामुन स्वाद में तो बेहतरीन है ही लेकिन इसके साथ ही ये कई अन्य फायदे भी दिलाता है. पेट के लिए ये एक टॉनिक की तरह काम करता है. ये आपका पाचनशक्ति को बढ़ाकर आपके पेट के कई विकारों को दूर करने का काम करता है.
मधुमेह में-
मधुमेह के उपचार के लिए जामुन बहुत ही फायदेमंद माना जाता है. मधुमेह के मरीजों को जामुन के बीजों सुखाने के बाद उसे पीसकर उनका सेवन करना चाहिए. ऐसा करने से उनके शुगर का स्तर सामान्य बना रहता है.
कैंसर रोधी फल के रूप में-
जामुन के फल में कैंसर रोधी गुण भी मौजूद रहते हैं. कई विशेषज्ञों का ऐसा मानना है कि कैंसर के उपचार के लिए किए जाने वाले कीमोथेरेपी और रेडिएशन थेरेपी के बाद जामुन खाने से काफी लाभ मिलता है.
पथरी के उपचार में-
जामुन खाने से पथरी में फायदा होता है. जामुन की गुठली के चूर्ण को दही के साथ मिलाकर खाने से पथरी में फायदा होता है. लीवर के लिए जामुन का प्रयोग फायदेमंद होता है. कब्ज और पेट के रोगों में भी जामुन बहुत फायदेमंद है.
मुंह के छाले में-
मुंह में होने वाले छालों से अक्सर कई लोग परेशान रहते हैं. लेकिन छालों को दूर करने के लिए यदि आप जामुन के रस का इस्तेमाल करें तो आपको इससे काफी लाभ मिलता है. जामुन के सीजन में आप इसका इस्तेमाल कर सकते हैं.
दस्त या खूनी दस्त में लाभकारी-
यदि आपको दस्त या खूनी दस्त की समस्या है तो आप इससे जामुन खाकर बच सकते हैं. इस दौरान आप जामुन का सेवन करें तो काफी लाभ मिलेगा. दस्त होने पर जामुन के रस को सेंधानमक के साथ मिलाकर खाने से दस्त बंद हो जाता है.
मुंहासों को दूर करने में-
मुंहासे के होने से चेहरे की सुंदरता में कमी आती है इसीलिए लोग इसे दूर करने के लिए कई तरह के उपाय करते हैं. इसके लिए यदि आप जामुन की गुठलियों का इस्तेमाल करना चाहें तो इन्हें सुखाकर पीस लीजिए. फिर इस पाउडर में रात को सोने से पहले गाय का दूध मिलाकर इसे चेहरे पर लगाएँ. इसके कुछ देर बाद इस लेप को सुबह ठंडे पानी से धो लीजिए.
आवाज के परेशानियों के लिए-
यदि आपको भी कभी आवाज से संबन्धित कोई परेशानी होती है तो आप इसे दूर करने के लिए अगर आवाज फंस गई हो या फिर बोलने में दिक्कत हो रही हो तो जामुन की गुठली के काढे़ से कुल्ला कीजिए. आवाज को मधुर बनाने के लिए जामुन का काढा बहुत फायदेमंद है.
दाँतों की मजबूती के लिए-
दांतों के मजबूती के लिए भी हम जामुन के छाल का उपयोग कर सकते हैं. इसके लिए आपको जामुन की छाल को एकदम बारीक पीसकर प्रत्येक दिन मंजन करना होगा. ऐसा करने से आपके दांत मजबूत और रोग-रहित बनते हैं.
एसिडिटी के उपचार में-
एसिडिटी आजकल एक आम समस्या है. जब भी आपको गैस से कोई परेशानी हो तो आप इसे दूर करने के लिए जामुन का के बीज का भूने हुए चूर्ण को काला नमक के साथ लें. ऐसा करने से आप गैस की समस्या से राहत पा सकेंगे.
देखने में काला लेकिन बेहद चमकदार लगने वाला जामुन खाने में भी बहुत स्वादिष्ट होता है. इसके साथ ही इसमें कई तरह के औषधीय गुण भी मौजूद होते हैं. भले ही इसका सार्वाधिक लोकप्रिय नाम जामुन है लेकिन इसको कई अन्य नामों से भी जाना जाता है जैसे राजमन, काला जामुन, जमाली, ब्लैकबेरी इत्यादि. ये स्वभाव में अम्लीय और कसैली लेकिन पक जाने पर मीठी होती है. इसलिए पकने के बाद इसका स्वाद खाने में मीठा होता है. जामुन को नमक के साथ खाने पर इसका स्वाद और बेहतरीन हो जाता है. जामुन में ग्लूकोज और फ्रक्टोज भी मौजूद होते हैं. जामुन में खनिजों की अधिक होती है. इसके बीज में आपको कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन और कैल्शियम अधिक मात्रा में पाया जाता है. जामुन में आयरन, विटामिन और फाइबर पाया जाता है. आइए निम्नलिखित बिन्दुओं के माध्यम से जामुन के फ़ायदों को जानें.
पेट और पाचन शक्ति के लिए-
जामुन स्वाद में तो बेहतरीन है ही लेकिन इसके साथ ही ये कई अन्य फायदे भी दिलाता है. पेट के लिए ये एक टॉनिक की तरह काम करता है. ये आपका पाचनशक्ति को बढ़ाकर आपके पेट के कई विकारों को दूर करने का काम करता है.
मधुमेह में-
मधुमेह के उपचार के लिए जामुन बहुत ही फायदेमंद माना जाता है. मधुमेह के मरीजों को जामुन के बीजों सुखाने के बाद उसे पीसकर उनका सेवन करना चाहिए. ऐसा करने से उनके शुगर का स्तर सामान्य बना रहता है.
कैंसर रोधी फल के रूप में-
जामुन के फल में कैंसर रोधी गुण भी मौजूद रहते हैं. कई विशेषज्ञों का ऐसा मानना है कि कैंसर के उपचार के लिए किए जाने वाले कीमोथेरेपी और रेडिएशन थेरेपी के बाद जामुन खाने से काफी लाभ मिलता है.
पथरी के उपचार में-
जामुन खाने से पथरी में फायदा होता है. जामुन की गुठली के चूर्ण को दही के साथ मिलाकर खाने से पथरी में फायदा होता है. लीवर के लिए जामुन का प्रयोग फायदेमंद होता है. कब्ज और पेट के रोगों में भी जामुन बहुत फायदेमंद है.
मुंह के छाले में-
मुंह में होने वाले छालों से अक्सर कई लोग परेशान रहते हैं. लेकिन छालों को दूर करने के लिए यदि आप जामुन के रस का इस्तेमाल करें तो आपको इससे काफी लाभ मिलता है. जामुन के सीजन में आप इसका इस्तेमाल कर सकते हैं.
दस्त या खूनी दस्त में लाभकारी-
यदि आपको दस्त या खूनी दस्त की समस्या है तो आप इससे जामुन खाकर बच सकते हैं. इस दौरान आप जामुन का सेवन करें तो काफी लाभ मिलेगा. दस्त होने पर जामुन के रस को सेंधानमक के साथ मिलाकर खाने से दस्त बंद हो जाता है.
मुंहासों को दूर करने में-
मुंहासे के होने से चेहरे की सुंदरता में कमी आती है इसीलिए लोग इसे दूर करने के लिए कई तरह के उपाय करते हैं. इसके लिए यदि आप जामुन की गुठलियों का इस्तेमाल करना चाहें तो इन्हें सुखाकर पीस लीजिए. फिर इस पाउडर में रात को सोने से पहले गाय का दूध मिलाकर इसे चेहरे पर लगाएँ. इसके कुछ देर बाद इस लेप को सुबह ठंडे पानी से धो लीजिए.
आवाज के परेशानियों के लिए-
यदि आपको भी कभी आवाज से संबन्धित कोई परेशानी होती है तो आप इसे दूर करने के लिए अगर आवाज फंस गई हो या फिर बोलने में दिक्कत हो रही हो तो जामुन की गुठली के काढे़ से कुल्ला कीजिए. आवाज को मधुर बनाने के लिए जामुन का काढा बहुत फायदेमंद है.
दाँतों की मजबूती के लिए-
दांतों के मजबूती के लिए भी हम जामुन के छाल का उपयोग कर सकते हैं. इसके लिए आपको जामुन की छाल को एकदम बारीक पीसकर प्रत्येक दिन मंजन करना होगा. ऐसा करने से आपके दांत मजबूत और रोग-रहित बनते हैं.
एसिडिटी के उपचार में-
एसिडिटी आजकल एक आम समस्या है. जब भी आपको गैस से कोई परेशानी हो तो आप इसे दूर करने के लिए जामुन का के बीज का भूने हुए चूर्ण को काला नमक के साथ लें. ऐसा करने से आप गैस की समस्या से राहत पा सकेंगे.
डिप्रेशन एक ऐसी बीमारी है जिसकी वजह से कई बार खतरनाक स्थिति पैदा हो जाती है. इसको हमलोग आम बोलचाल की भाषा में तनाव या चिंता भी कह कर पुकार सकते हैं. देखा जाए तो डिप्रेशन अपने आप में एक बिमारी तो है ही लेकिन साथ ही कई बीमारियों की जड़ भी है. इस बिमारी में हमें मुख्य रूप से दुःख, बुरा महसूस करना, रोजाना के कार्यों में रुचि या खुशी ना रखना आदि लक्षण दिखाई पड़ते हैं. जाहिर है इससे हम भी इन सभी बातों से भी लगभग परिचित ही होते हैं. यदि ये लक्षण थोड़े समय तक दिखाई दें तो ज्यादा परेशान होने की बात नहीं है लेकिन जब यही सारे लक्षण हमारे जीवन में अधिक समय तक रहते हैं तब ये हमें बहुत अधिक प्रभावित करते हैं. ये स्थिति बेहद तनाव से भरी होती है. विश्व स्वास्थ्य संगठन के डिप्रेशन की परिभाषा के अनुसार दुनिया भर में डिप्रेशन सबसे सामान्य बीमारी है. आपको जानकर हैरानी होगी कि दुनिया भर में लगभग 350 मिलियन लोग डिप्रेशन या इससे संबन्धित अन्य बीमारियों से प्रभावित हैं. डिप्रेशन एक मानसिक स्वास्थ्य विकार है जो कि कुछ दिनों की समस्या न होकर के एक लम्बी बीमारी है. आइए इस लेख के माध्यम से डिप्रेशन के लक्षणों पर एक नजर डालें ताकि इस संबंध में जागरूकता फैल सके.
डिप्रेशन कोई सामान्य स्थिति नहीं है जिसका कोई ज्ञात कारण हो. डिप्रेशन में जाने की सम्भावना अलग-अलग व्यक्तियों में भिन्न होती है. इसलिए अपने डॉक्टर से डिप्रेशन के लक्षणों पर बात करना ज़रूरी है. तो चलिए जानते हैं, डिप्रेशन के कई संभावित लक्षणों के बारे में –
डिप्रेशन का कारण हो सकता है जेनेटिक-
डिप्रेशन जेनेटिक कारणों से भी हो सकता है. यदि आपके परिवार में कोई भी डिप्रेशन से पीड़ित रहा है तो आप भी डिप्रेशन का अनुभव कर सकते हैं. हालाँकि, अभी तक इसका पता नहीं लगाया गया है की डिप्रेशन में कौन सा जीन शामिल है.
डिप्रेशन का कारण हैं दिमाग में परिवर्तन-
कुछ लोगों में डिप्रेशन दिमाग में होने वाले परिवर्तन के कारण भी हो सकता है. हालांकि, अभी तक इसके बारे में कोई तथ्य नहीं है. डिप्रेशन दिमाग के कार्यप्रणाली में बदलाव के कारण होता है. इसलिए कुछ मनोचिकित्सक डिप्रेशन के मामलों में माइंड केमिकल साइंस की सहायता लेते हैं. मस्तिष्क में न्यूरोट्रांसमीटर, विशेष रूप से सेरोटोनिन, डोपामाइन या नोरेपेनेफ्रिन खुशी और आनंद की भावनाओं को प्रभावित करते हैं और डिप्रेशन की स्तिथि में ये असंतुलित हो सकते हैं. अभी तक इसके कारण का सही पता नहीं चला है. एन्टीडिप्रेंटेंट्स न्यूरोट्रांसमीटर को संतुलित करने का काम करता है. यह मुख्यतः सेरोटोनिन को संतुलित करता है. न्यूरोट्रांसमीटर संतुलन से बाहर क्यों निकल जाते हैं और यह डिप्रेशनग्रस्त में क्या भूमिका है इसका अभी तक पता नहीं चला है.
डिप्रेशन का कारण है हार्मोन परिवर्तन-
हार्मोन उत्पादन या हार्मोन के कामकाज भी डिप्रेशन के लिए जिम्मेदार हो सकते है. हार्मोन में परिवर्तन जैसे मेंसट्रूअल, लेबर, थायरॉयड समस्या या अन्य डिसऑर्डर के दौरान परिवर्तन भी डिप्रेशन का कारण बन सकते हैं. पोस्टपार्टम डिप्रेशन में बच्चे के जन्म के बाद माताओं में डिप्रेशन की समस्या हो जाती है. हालांकि हार्मोन्स में बदलाव के कारण संवेदनशील होना काफी सामान्य है, लेकिन पोस्टपार्टम डिप्रेशन एक गंभीर समस्या है.
मौसम में परिवर्तन है डिप्रेशन का कारण-
मौसम भी एक हद्द तक डिप्रेशन के लिए जिम्मेदार होते हैं. सर्दियों के दिन आते हैं ही दिन छोटे होने लगते हैं, जिससे बहुत से लोग सुस्ती, थकान और रोजाना के कार्यों में रूचि नहीं रख पाते हैं. इस समस्या को मौसम प्रभावित विकार (SAD) के नाम से भी जाना जाता है. यह स्थिति आमतौर पर सर्दियां जाते ही ठीक हो जाती है जब दिन बड़े हो जाते हैं. इसके इलाज के लिए आप डॉक्टर से दवा या सलाह ले सकते हैं.
जीवन में बड़ा परिवर्तन है डिप्रेशन का कारण-
यदि आपके जीवन में कोई बड़ी घटना या कोई ट्रॉमा या जीवन में अत्यधिक संघर्ष भी डिप्रेशन जैसी समस्या का कारण बन सकती है. उदहारण के रूप में जैसे अपने किसी करीबी को को खो देना, जॉब में समस्या या निकाल दिया जाना, धन की हानि होना या कोई और बड़े परिवर्तन लोगों में डिप्रेशन की समस्या को पैदा करते हैं. पोस्ट-ट्रोमैटिक तनाव विकार (PTSD) डिप्रेशन का एक रूप है जो जीवन में किस गंभीर परिस्थिति से गुजरने के बाद होता है. अक्सर युद्ध से लौटने वाले सैनिकों में PTSD की समस्या होती है. यह कई घटनाओं के कारण भी हो सकता है जैसे बचपन में ट्रामा के कारण, किसी डरावनी घटना के कारन, दुर्व्यवहार या हमले के कारण, गंभीर कार दुर्घटना या अन्य दुर्घटना के कारण, किसी ने धमकी दी हो उसके कारण आदि.
इस बदलते जीवनशैली में बिमारियों से खुद को दूर रखना एक बहुत ही मुश्किल कार्य प्रतीत होता है. अब ऐसी ही एक बीमारी हार्ट अटैक है. हार्ट अटैक हमारे बदलते जीवनशैली का परिणाम है. हार्ट अटैक के कारण ज्यादातर लोग अपनी जान गवां रहे हैं. दुनियाभर की बात करें तो सबसे ज्यादा मौतें हार्ट अटैक के कारण होती है. इसलिए इस बीमारी के बारे में सही जानकारी रखना बहुत महत्वपूर्ण है. यदि आप दिल का दौरा पड़ने पर पहले 15 मिनट में उपचार का प्रबंधित करते है तो रोगी को आसानी से जान बचाई जा सकती है. लेकिन अगर उपचार में 12 घंटे से अधिक समय लग गये तो एंजीयोप्लास्टी भी काम नहीं करती है.
हार्ट अटैक होने पर-
हार्ट अटैक होने पर आपको फ़ौरन ट्रीटमेंट की जरूरत पड़ती है, यह एक इमरजेंसी स्थिति है. यदि आपके ऐसी किसी परिस्थिति में होते है या आपके साथ कोई दिल का मरीज है तो घबराने के बजाय उसका ट्रीटमेंट करना चाहिए. दिल के दौरे का लक्षण देखते ही 15 मिनट में अगर व्यक्ति सही तरह का ट्रीटमेंट मिल जाये तो स्थिति गंभीर होने से बचाया जा सकती है और मरीज को जाना जाने से बचायी जा सकती है.
लक्षणों को पहचानें-
सबसे महत्वपूर्ण होता है की आपको दिल का दौरा पड़ने से पहलें लक्षणों को पहचानें. यह आपको किसी प्रकार के वहम की स्थिति में नहीं रखता है. दिल के दौरे पर पड़ने वाले लक्षणों में सीने में जकड़न और बेचैनी, तेजी से सांसों का चलना, कंधों और जबड़ों में दर्द, चक्कर के साथ पसीना आना, नब्ज कमजोर पड़ना और मतली आना जैसे प्रमुख लक्षण हैं.
मरीज को लिटायें-
हार्ट अटैक आने पर सबसे पहलें मरीज को आराम की मुद्रा में लिटायें और मरीज को अगर उपलब्ध हो तो एस्प्रीन टेबलेट चूसने को दें. एस्प्रीन टैबलेट चूसने से हार्ट अटैक से मरने की संभावना 15 प्रतिशत तक कम हो जाती है. क्योंकि यह दवा ब्लड क्लॉट बनने को रोकती है है जिससे नसों और मांसपेशियों में खून नहीं जमता है.
इमरजेंसी फोन करें-
मरीज को लिटाने के दौरान ही आपको शीघ्र ही इमरजेंसी नंबर पर फ़ोन कर के अपने स्थिति के बारे में अवगत करा कर तुंरत बुलायें. जरुरी है की आप किसी अच्छे अस्पताल से संपर्क करें.
सीने को दबायें-
हार्ट अटैक आने से हार्ट रेट बंद हो सकती हैं. यदि अचानक हार्ट अटैक पड़ता हो और कार्डियो पल्मोनेरी के लक्षण हो जहां हार्ट रेट बंद होने लगती है तो सीने को दबाकर सांस चालू करने की कोशिश करें. यह बहुत आसान है और इससे धड़कने फिर से शुरू हो जाती हैं. इसे सीपीआर तकनीक कहते हैं.
सीपीआर कैसे दें-
सीपीआर तकनीक से बंद हुई हार्ट रेट फिर से शुरू हो जाती हैं. इसे करने के लिए रोगी को कमर के बल लिटाना चाहिए. इसके बाद अपने हथेली से मरीज के सीने को जोर से दबाए, जिससे मरीज का सीना एक से लेकर आधा इंच तक निचे जाए. ऐसा प्रति मिनट सौ बार करें और तब तक करते रहे जब तक मरीज को अन्य मदद नहीं मिल जाती है.
कृत्रिम सांस दीजिए-
हार्ट अटैक आने पर मरीज को शीघ्र ही कृत्रिम श्वांस देने की व्यवस्था करना चाहिए. मरीज को सीधा कर के लिटा दें. इससे सांस की नली का अवरोध कम हो जाता है, और कृत्रिम सांस में कोई अवरोध नहीं होता है.इसके बाद मरीज की नाक को उंगलियों से दबाकर रखिये और अपने मुंह से कृत्रिम सांस दें. नथुने दबाने से मुंह से देने वाली सांस सीधे लंग तक जा सकेगी. लंबी सांस लेकर अपना मुंह मरीज के मुंह में चिपकायें, जिससे हवा मरीज के मुंह से किसी तरह से बाहर न निकल सकें. मरीज के मुंह में धीरे-धीरे सांस छोड़ें, 2-3 सेकेंड में मरीज के लंग में हवा भर जायेगी. ऐसा दो से तीन बार कीजिए. अगर मरीज सांस लेना बंद कर दे तब सांस न दें.