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नवजात शिशु जितने ज्यादा छोटे होते हैं, उनकी देखभाल भी बहुत नाजुकता से करनी पड़ती है. माँ और शिशु का रिश्तों सभी रिश्तों से अनमोल होता है. इस रिश्तों को माँ से बेहतर कोई नहीं जन सकता है. बच्चे के जन्म के बाद ही बहुत सावधानी से देखभाल करना चाहिए. ऐसे में शिशु का सम्पूर्ण स्वास्थ्य उसके जन्म से 28 दिन के बीच निर्धारित होता है. जन्म के बाद शिशु को माँ का दूध प्रयाप्त मात्रा में कैसे मिले, उसके कपडे बदलना, उसका रोना इत्यादि सभी बातों को बारीकी से ध्यान रखना पड़ता है. यदि आपका बच्चे में ऐसी कोई भी बदलाव दिखता है, तो उसे नजरअंदाज ना करें. इसके अलावा नवजात का शरीर बहुत ही संवेदनशील होता है, इसलिए शिशु के कमरे का तापमान का भी ख्याल रखना चाहिए, क्योंकि यह बच्चे के लिए नुकसानदेह हो सकता है. स्वस्थ बच्चों में भी कुछ बातों का खास ख्याल रखने की आवश्यकता होती है. आइए इस लेख के माध्यम से जानें कि नवजात शिशु की देखभाल कैसे करें.
मां का दूध पिलाना चाहिए.-
बच्चों को धुप में ले जाकर बैठने की प्रकिया को फोटोथेरेपी कहते हैं. नवजात बच्चे को कुछ समय के लिए कपड़े में रख कर धूप भी दिखाएं. इससे बच्चे की हड्डियां स्वस्थ होती हैं.
नवजात शिशु को 6 महीने तक केवल मां का दूध ही देना चाहिए. इसके 6 महीने के बाद शिशु को कुछ हल्के आहार भी दे सकते हैं. इस बात का ख्याल रखें की आहार में कुछ ऐसा ना हो जिससे पाचन में समस्या हो.
पहली बार माँ-बाप बनने पर इन बातों का रखें ध्यान-
चूंकि शिशुओं में कमजोर प्रतिरक्षा प्रणाली होती है और संक्रमण के लिए अतिसंवेदनशील होते हैं. इसलिए यह सबसे महत्वपूर्ण है कि आपके बच्चे को संभालने वाला कोई भी व्यक्ति स्वच्छता का ख्याल अवश्य रखता हो. आपको अपने बच्चे के सिर और गर्दन को हमेशा समर्थन और क्रैडलिंग के बारे में भी सावधान रहना होगा, क्योंकि जन्म के दौरान गर्दन में मांसपेशियों कमजोर होती है और बच्चे केवल छह महीने के बाद ही सिर नियंत्रण करना विकसित करते हैं. अपने नवजात शिशु को प्यार करने या गुस्से में आकार ज्यादा हिलाने की कोशिश न करें. इससे बच्चे के सिर से ब्लीडिंग हो सकती है, जो गंभीर मामलों में मौत का कारण भी बन सकती है. नवजात शिशु को उठाने के लिए बच्चे के पैर में गुदगुदी करें.
उगलना और उल्टी में अंतर नए मां-बाप अक्सर उगलना और उल्टी में अंतर नहीं कर पाते और घबरा जाते हैं. दरअसल जो चीज शिशु को पसंद नहीं आती है वो उसे उगल देता है या थूक देता है. मगर उल्टी अलग चीज है. उगलना और उल्टी करने में अंतर है. शिशुओं में उल्टी आमतौर पर कुछ खिलाने के 15 से 45 मिनट के बाद ही होती है जबकि उगलने की क्रिया खिलाने के साथ ही हो सकती है. इसलिए इस अंतर को समझें. किसी रोग की स्थिति में शिशु कुछ खिलाने के साथ ही उल्टी कर सकता है. मगर उसकी बदबू में थोड़ा अंतर होता है इसलिए इसे पहचाना जा सकता है.
डायपरिंग:
सबसे पहले आपको यह तय करना होगा कि क्या आप अपने शिशु के लिए डिस्पोजेबल या कपड़ा वाले डायपर चाहते हैं. शिशु कम से कम प्रतिदिन दस डायपर से गुजरते हैं (भले ही वे कपड़े या डिस्पोजेबल हों). डायपरिंग करते समय, आपको ध्यान रखना चाहिए कि बदलने वाले टेबल पर अपने बच्चे को न छोड़ें. अपने शिशु के डायपर बदलने से पहले साफ डायपर, डायपर ऑइंटमेंट (रैश के मामले में), फास्टनर, डायपर वाइप्स और गर्म पानी जैसी सभी आवश्यक चीजें रख लें.
नहाना:
नवजात शिशुओं को गर्म पानी के साथ एक स्पंज स्नान करवाना चाहिए और जब तक नाभि पूरी तरह से ठीक नहीं होता है तब तक हल्के साबुन लगाना चाहिए. इसमें लगभग एक से चार सप्ताह लग सकते हैं. नवजात शिशु को ठीक होने के बाद बच्चे को दो या तीन बार नहाना चाहिए, क्योंकि बार-बार स्नान करने से बच्चे की त्वचा को नुकसान हो सकता है.
स्तनपान और डकार:
डॉक्टर्स बच्चे को बोलने पर खिलाने की सलाह देते हैं यानी जब भी आपका बच्चा भूखा हो. रोना, मुंह में उंगलियां डालना या चूसने वाली शोर बनाने से पता चलता है कि बच्चे को भूख लगी है. नवजात शिशु को हर दो घंटे में खिलाना चाहिए.
डकार महत्वपूर्ण है ताकि भोजन के दौरान सेवन हवा को बाहर निकाला जा सके, क्योंकि यह बच्चे को उबाऊ बनाता है. नवजात शिशु की पीठ को पट्टी पर रगड़ने से आमतौर पर उन्हें गैस पास करने में मदद मिलती है.