होली का पर्व जैसे-जैसे नजदीक आता है वैसे ही हमारे मन में रंगों के साथ साथ भांग का घोटा और भांग से बने पकवान का स्वाद लेने के लिए मन में लालच आ जाता है. भांग हमारे देश में खास कर उत्तर भारत में काफी लोकप्रिय है. भांग के बिना होली मानो अधूरी सी लगती है. इसका उपयोग आम तौर पर खाने में, भांग की गोली और भांग की ठंडाई के रूप में किया जाता है. भांग का घोटा पी कर होली में नाचने का मजा ही कुछ और होता है . तो आज ही लेख में हम भांग कैसे बनती है, भांग का घोटा क्या होता है और भांग का नशा उतरने की दवा के बारे में सम्पूर्ण जानकारी देने वाले हैं तो आइए जानते हैं कि भांग कैसे बनती है और भांग का नशा उतारने की दवा क्या है साथ ही साथ भांग का घोटा बनाने की विधि क्या है?
भांग का घोटा क्या है
भांग एक आयुर्वेदिक औषधि के रूप में जाने वाली जड़ी बूटी है जिसका इस्तेमाल सदियों से किया जा रहा है. भांग के पेड़ की लम्बाई 3 से 7 फीट की होती है. भांग आमतौर पर भांग के पेड़ की पत्तियों से लिया जाता है. इसका उपयोग विभिन्न प्रकार से की जाती है जैसे भांग की ठंडाई, भांग का घोटा और खाने में. भांग कैसे बनती है और ये कितने तरीके से इस्तेमाल किया जाता है इसके बारे में निम्न विस्तार से बताया गया है.
भांग का घोटा बनाने के विधि:-
भांग को घोटा बनाने के लिए हरे पत्तियों के पाउडर को दही और मट्ठे के साथ मिक्स कर के तैयार की जाती है. इसका सही तरह से मिश्रण करने के लिए हाथों से अच्छे तरह से मथा जाता है. यह बेहद स्वादिष्ट और ताज़ा होता है. इसके साथ ही कहीं-कहीं भांग के पकौड़े भी खाए जाते है.
भांग का घोटा के अलावा यह गोली और ठंडाई के रूप में भी इस्तेमाल की जाती है. भांग की गोलियां होली के दौरान व्यापक रूप से इस्तेमाल की जाती है. भांग की गोलियां भांग को पानी के साथ मिक्स कर के बनाया जाता है. हालाँकि, इसके खाने के कई साइड इफेक्ट्स भी है. इसलिए इसका सेवन सीमित मात्रा में और प्रतिदिन नहीं करना चाहिए. भारत में यह जगहों पर इसे बैन कर दिया गया है.
भांग में शामिल होने वाली सामग्री-
होली के दौरान भांग का अलग ही महत्व होता है लेकिन यदि भांग का सेवन सीमित मात्रा से ज्यादा कर लिया जाए, तो भांग का नशा बहुत नुकसानदायक साबित हो सकता है. तो आइए जानते है कि भांग का नशा कैसे उतारा जाता है और भांग का नशा उतारने की दवा क्या है.
प्रदूषण, इस समय की लाइफ स्टाइल और बाकी कारणों की वजह से अस्थमा के मामले इन दिनों काफी बढ़ रहे हैं। अस्थमा एक ऐसी स्थिति है जिसमें सांस लेने की नली और वायुमार्ग पतले हो जाते हैं या उनमें सूजन आ जाती है। ऐसी स्थिति में शरीर अतिरिक्त बलगम का उत्पादन कर सकता हैं।
इससे सांस लेना मुश्किल हो सकता है और सांस लेने में तकलीफ हो सकती है। अस्थमा की समस्या हर व्यक्ति के लिए अलग अलग हो सकती है। किसी के लिए यह एक छोटी सी परेशानी है। दूसरों के लिए, यह एक बड़ी समस्या हो सकती है। कई बार कुछ लोगों को जानलेवा अस्थमा का दौरा पड़ सकता है।
इस समस्या का सबसे खतरनाक पहलू है कि अस्थमा को ठीक नहीं किया जा सकता है, लेकिन इसके लक्षणों को नियंत्रित किया जा सकता है। वैकल्पिक चिकित्सा और प्राकृतिक उपचार में भी इस समय अस्थमा का कोई इलाज नहीं है। यह जरुर है कि कुछ प्राकृतिक उपचार आपको अस्थमा के लक्षणों को ठीक करने, उन्हें दबाने में मदद कर सकते हैं।
कुछ प्राकृतिक विश्राम, खाद्य पदार्थों में कुछ चीजों को शामिल करना, लाइफस्टाइल के उपाय जैसे योग और ध्यान, गहरी साँस लेना, मांसपेशियों में राहत दिलाने वाली एक्सरसाइज, गाइडेड इमेजरी और बायोफीडबैक तनाव को दूर करने में मदद कर सकते हैं।
अस्थमा के हमलों के लिए तनाव एक प्रमुख ट्रिगर है। नियमित योग या ध्यान अभ्यास तनाव को कम करने के लिए सांस लेने की तकनीक सीखने में मदद कर सकता है। ध्यान और योग के दौरान उपयोग की जाने वाली धीमी, गहरी सांसें आपके श्वसन तंत्र को आराम दिलाती हैं। इन्हें हाइपरवेंटिलेशन को कम करने के लिए तैयार किया जाता है। प्राणायाम और बुटेको ब्रीदिंग जैसी तकनीक में श्वास को प्रशिक्षित करने और अस्थमा के हमलों को रोकने के लिए बहुत प्रभावी पायी गयी हैं।
एक्यूपंक्चर वैकल्पिक चिकित्सा में आपके शरीर की ऊर्जा को संतुलित करने के लिए कुछ बिंदुओं पर त्वचा में छोटी सुइयों को चुभाना शामिल है। अस्थमा से पीड़ित कुछ लोगों का मानना है कि यह विधि अस्थमा के लक्षणों को कम करने में मदद कर सकती है। इस चिकित्सा में अक्सर विश्राम और ध्यानपूर्ण श्वास शामिल होती है ऐसे में एक्यूपंचर में राहत मिलने के लिए इसे लाभकारी माना जा सकता है।
बायोफीडबैक एक दृष्टिकोण है जो इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों का उपयोग कर आपके शरीर में होने वाले बदलाव की निगरानी करता है। इससे यह सीखने में मदद मिल सके कि शरीर की शारीरिक प्रतिक्रियाओं को कैसे प्रबंधित किया जाए। उदाहरण के लिए, हृदय गति की निगरानी की निगरानी की जाा सकती है और इसे मध्यम गति से नियंत्रित रखने के तरीके खोज सकते हैं। यह विधि हृदय गति परिवर्तनशीलता को प्रभावित कर सकती है और अस्थमा के रोगियों को वायुमार्ग के प्रवाह और फेफड़ों के कार्य में सुधार करने में मदद कर सकती है। इससे यह भी संकेत समझा जा सकता है कि आराम करना स्वाभाविक रूप से अस्थमा के हमलों को रोकने में एक बड़ी भूमिका निभा सकता है।
यह प्राकृतिक उपचार अस्थमा के लक्षणों को संभावित रूप से कम करने के सबसे सरल तरीकों में से एक है। जब लोग एक सामान्य सर्दी से पीड़ित होते हैं तो वायुमार्ग खोलने के लिए गर्म भाप एक सामान्य उपाय है। हालांकि यह कोई इलाज नहीं है, लेकिन अस्थमा के लक्षण सामने आने पर यह तेजी से ठीक कर सकता है। बस ध्यान रहे कि भाप ज्यादा गर्म न हो। अत्यधिक गर्मी कभी-कभी लक्षणों को बदतर बना सकती है।
अस्थमा के लक्षणों को रोकने और राहत देने के लिए कोई जादुई आहार नहीं है, लेकिन खाद्य एलर्जी कभी-कभी अस्थमा को ट्रिगर करती है और एक आहार अद्यतन राहत ला सकता है। हर व्यक्ति अपने में अलग होता है ऐसे में अपनी सटीक डाइट खोजने के लिए डायटीशियन का सहारा लेना पड़ सकता है। आहार विशेषज्ञ के साथ बातकर कोई बी अपने लिए एक आहार खोज सता है जो उसके शरीर के लिए सही हो। कुछ सामान्य आहार परिवर्तन जो अस्थमा पीड़ितों को राहत पहुंचा सकते हैं उनमें विटामिन सी,डी एंटीऑक्सिडेंट से भरपूर फल और सब्जियां शामिल हैं। अस्थमा से पीड़ित व्यक्ति को सल्फाइट्स से बचना चाहिए। साथ ही, स्वस्थ वजन बनाए रखने से लक्षणों को कम करने में मदद मिलती है।
जो खाद्य पदार्थ आप हर दिन खाते हैं वह प्राकृतिक उपचार के लिए एक सुरक्षित मार्ग हो सकता है। अदरक और लहसुन दोनों में सूजन-रोधी गुण होते हैं और आमतौर पर इसका उपयोग हृदय रोग के प्रबंधन के लिए किया जाता है। यह उपचार फेफड़ों में सूजन को भी कम कर सकता है और अस्थमा के हमलों को रोकने या राहत देने में मदद कर सकता है।
क्या आपको लगता है कि मछली का तेल सिर्फ कोलेस्ट्रॉल के लिए अच्छा था? यह पता चला है कि ये फैटी एसिड हृदय रोग को रोकने में मदद करते हैं, वायुमार्ग की सूजन को भी कम कर सकते हैं और फेफड़ों के कार्य में मदद कर सकते हैं। यदि आप सप्लीमेंट लेना पसंद नहीं करते हैं, तो मछली, अखरोट और अलसी जैसे ओमेगा 3 से भरपूर खाद्य पदार्थ खाने से फायदा हो सकता है।
हल्दी, आमतौर भारतीय किचन का सबसे आम और विशिष्ट मसाला है। यहा करी और अन्य भारतीय और मध्य पूर्वी व्यंजनों में पाया जाता है। इसमें एक सक्रिय घटक होता है करक्यूमिन। अक्सर करक्यूमिन में पाया जाने वाला सूजन रोधी गुण और एंटीऑक्सीडेंट गुण अस्थमा के लिए एक संभावित प्राकृतिक उपचार के रूप में जाना जाता है। कुछ हद तक वैज्ञानिक भी इसे स्वीकार करते हैं।
एक अध्ययन में पाया गया कि अस्थमा से पीड़ित वयस्क जिन्होंने एक महीने के लिए प्रति दिन 500 मिलीग्राम करक्यूमिन के साथ अपने सामान्य अस्थमा उपचार को पूरक किया, उनके अस्थमा के लक्षणों में सुधार हुआ।
अस्थमा के लिए विटामिन सी का उपयोग करने को लेकर वैज्ञानिकों को अभी एक मत नहीं है पर बहुत से लोग इसे राहत देने वाला उपाय मानते हैं।
एसेंशियल ऑयल तेलों से बहुत से लोगों को राहत मिलती है क्योंक उनके भाप में सांस लेने पर वो लक्षणों में सुधार की बात स्वीकार करते हैं। हालांकि बहुत से डाक्टर मानते हैं कि एशेंशियल ऑयल से एलर्जी की प्रतिक्रिया भी हो सकती है। कई बार ये तेल परेशानी बढ़ा भी सकते हैं । ऐसे में एरोमा थेरेपिस्ट से बात करने बाद ही इनका उपयोग करना सही होता है।
अटेंशन-डेफिसिट/हाइपरएक्टिविटी डिसऑर्डर (एडीएचडी) को ध्यान ना देना और/या हायपर एक्टिविटी यानी अतिसक्रियता-आवेग के एक चल रहे पैटर्न द्वारा चिह्नित किया जाता है। यह कामकाज या विकास में हस्तक्षेप करता है। एडीएचडी वाले लोग कई प्रकार के लक्षणों के एक सतत पैटर्न का अनुभव करते हैं जैसे:
इसका अर्थ है कि किसी व्यक्ति को कार्य पर बने रहने, फोकस बनाए रखने और संगठित रहने में कठिनाई हो सकती है, और ये समस्याएं अवज्ञा या समझ की कमी के कारण नहीं होती हैं।
अतिसक्रियता का अर्थ है कि कोई व्यक्ति लगातार इधर-उधर घूमता रहता हो सकता है। चाहे ऐसी परिस्थितियाँ भी शामिल हों जब यह उचित ना लगे। इसके अलावा अत्यधिक फिजूलखर्ची, हाथ चलाना, टेबल बजाना, ज्यादा बातचीत करना शामिल है। वयस्कों में, अति सक्रियता का अर्थ अत्यधिक बेचैनी या बहुत अधिक बात करना हो सकता है।
इसका अर्थ है कि कोई व्यक्ति बिना सोचे समझे कार्य कर सकता है या उसे आत्म-नियंत्रण में कठिनाई हो सकती है। आवेग में तुरंत ही पुरस्कार की इच्छा या संतुष्टि में देरी होने पर बेचैनी शामिल हो सकती है। एक आवेगी व्यक्ति दीर्घकालिक परिणामों पर विचार किए बिना दूसरों के काम में बाधा ड़ाल सकता है या फिर कोई भी महत्वपूर्ण निर्णय ले सकता है।.
एडीएचडी से पीड़ित कुछ लोगों में ध्यान की कम होना मुख्य रूप के रूप में सामने आता है। कुछ लोगों में हायपरएक्टिवी मुख्य होती है और कुछ में दोनों तरह के लक्षण होते हैं। ये समस्या कई बार समान्य लोगों में भी हो सकती है पर एडीएचडी वाले लोगों में इसी गंभीरता ज्यादा होती है। ये अधिक गंभीर होती है और ये बार-बार ज्यादा होती है। इससे पीड़ित सामाजिक रूप से, स्कूल में, या नौकरी में वे जिस तरह से काम करते हैं उससे गुणवत्ता में कमी आती है
पीड़ित लोगों में ध्यान की कमी बहुत समान्य है, इसमें निम्न लक्षण दिखते हैं-
हायपर-एक्टिविटी और इम्पल्सिटी (आवेग) के लक्षण वाले लोगों को अकसर कई तरह के अनुभव होते हैं जैसे :
एडीएचडी वाले अधिकांश बच्चे की पहचान प्राथमिक विद्यालय के वर्षों के दौरान ही हो जाती है। एक किशोर या वयस्क के लिए एडीएचडी का निदान प्राप्त करने के लिए, लक्षण 12 साल की उम्र से पहले मौजूद होने चाहिए।
एडीएचडी के लक्षण 3 और 6 साल की उम्र के बीच में ही प्रकट हो सकते हैं और ये लक्षण किशोर और युवा अवस्था तक जारी रह सकते हैं। कई बार एडीएचडी के लक्षणों को सामान्य अनुशासन ना मानने या भावनात्मक समस्या मान लिया जाता है और बच्चों में इसे पूरी तरह नज़रअंदाज कर दिया जाता है। इससे इसके इलाज में भी देरी हो जाती है। जिन व्यस्को में एडीएचडी की समस्या का पता नहीं लग पाता उन्हें अकसर खराब अकादमिक प्रदर्शन, काम पर समस्याएं, या मुश्किल या असफल संबंधों का सामना करना पड़ सकता है। एडीएचडी के लक्षण समय के साथ एक व्यक्ति की उम्र के रूप में बदल सकते हैं। एडीएचडी वाले कई किशोर रिश्तों की असफलता और समाज के लिए चुनौती बन जाते हैं। असावधानी, बेचैनी और आवेग वयस्कता में बने रहते हैं।
समान्य तौर पर एडीएचडी का कोई सटीक और लक्षित इलाज नहीं है, वर्तमान में उपलब्ध उपचार लक्षणों को कम करने, कामकाज में सुधार करने पर ही केंद्रित है। उपचार में दवा, मनोचिकित्सा, शिक्षा या प्रशिक्षण, या उपचारों का संयोजन शामिल है।
एडीएचडी के इलाज के लिए इस्तेमाल की जाने वाली सबसे आम प्रकार की दवा को "स्टिमुलेंट" कहा जाता है। यह मस्तिष्क के रसायनों डोपामाइन और नॉरपेनेफ्रिन को बढ़ाकर काम करता है, जो ध्यान केंद्रित कराने में भूमिका निभाते हैं।
कुछ अन्य एडीएचडी दवाएं नान स्टिमुलेंट कहीं जाती हैं। ये दवाएं उत्तेजक की तुलना में काम करना शुरू करने में अधिक समय लेती हैं, लेकिन एडीएचडी वाले व्यक्ति में फोकस, ध्यान और आवेग में भी सुधार कर सकती हैं।
यदि किसी रोगी की कोई अन्य स्थिति भी हो, जैसे कि चिंता विकार, अवसाद या कोई अन्य मनोदशा विकार तो यह दवा स्टिमुलेंट के साथ दी जाती है। इन दवाओं को डाक्टर के परामर्श के बाद ही लें क्योंकि इनके दुष्प्रभाव भी हो सकते हैं।
एडीएचडी से पीड़ित व्यक्तियों और उनके परिवारों को लक्षणों का प्रबंधन करने और रोजमर्रा के कामकाज में सुधार करने में मदद करने के लिए कई विशिष्ट मनोसामाजिक कार्य किए जाते हैं।
बिहेविरल थेरैपी (व्यवहार चिकित्सा)- यह एक प्रकार की मनोचिकित्सा है जिसका उद्देश्य किसी व्यक्ति को अपना व्यवहार बदलने में मदद करना है। इसमें व्यावहारिक सहायता शामिल हो सकती है, जैसे कार्यों को व्यवस्थित करने या स्कूल का काम पूरा करने, या भावनात्मक रूप से कठिन घटनाओं के माध्यम से काम करने में सहायता। व्यवहार चिकित्सा एक व्यक्ति को यह भी सिखाती है कि कैसे:
यह थेरैपी एक व्यक्ति को यह सीखने में मदद करती है कि कैसे जागरूक रहें और अपने स्वयं के विचारों और भावनाओं को स्वीकार करें ताकि फोकस और एकाग्रता में सुधार हो सके।
परिवार के सदस्यों और पत्नियों को विघटनकारी व्यवहारों को संभालने, व्यवहार में बदलाव को प्रोत्साहित करने और एडीएचडी वाले व्यक्ति के साथ बातचीत में सुधार करने के लिए उत्पादक तरीके खोजने में मदद कर सकते हैं।
पेरेंटिंग कौशल प्रशिक्षण
इस ट्रेनिंग अभिभावक व्यवहार प्रबंधन प्रशिक्षण के जरिए माता-पिता को अपने बच्चों में सकारात्मक व्यवहार को प्रोत्साहित करने और पुरस्कृत करने के लिए कौशल सिखाता है। माता-पिता को एक बच्चे के व्यवहार को बदलने के लिए पुरस्कार और परिणामों की एक प्रणाली का उपयोग करने के लिए सिखाया जाता है, जिस व्यवहार को वे प्रोत्साहित करना चाहते हैं, उसके लिए तत्काल और सकारात्मक प्रतिक्रिया देने की बात बताई जाती है। इसके साथ ही उन व्यवहारों को अनदेखा या करने की ट्रेनिंग भी दी जाती है जिस व्यवहार को वे हतोत्साहित करना चाहते हैं।
ये प्रक्रिया स्कूल में और साथियों के साथ कामकाज में सुधार के लिए प्रभावी साबित हुई है। इस थेरैपी में व्यवहार प्रबंधन योजनाएं या शिक्षण संगठनात्मक या अध्ययन कौशल शामिल हो सकते हैं। इसमें क्लास में प्रेफरेंशियल सीटिंग, क्लास वर्क के भार को कम करना, टेस्ट और परीक्षाओं में ज्यादा समय देना जैसे प्रबंधन स परीक्षणों और परीक्षाओं में विस्तारित समय शामिल हो सकता है।
तकनीक एडीएचडी वाले बच्चों के माता-पिता को निराशा से निपटने की क्षमता बढ़ाकर लाभान्वित कर सकती है ताकि वे अपने बच्चे के व्यवहार पर शांति से प्रतिक्रिया कर सकें।
माता-पिता और परिवारों को समान समस्याओं और चिंताओं वाले अन्य लोगों से जुड़ने में मदद कर सकते हैं। समूह अक्सर निराशाओं और सफलताओं को साझा करने, अनुशंसित विशेषज्ञों और रणनीतियों के बारे में जानकारी का आदान-प्रदान करने और विशेषज्ञों के साथ बात करने के लिए नियमित रूप से मिलते हैं।
पाचन तंत्र गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल ट्रैक्ट (जीआई पथ या पाचन पथ) और यकृत, अग्न्याशय और पित्ताशय की थैली से बना होता है। जीआई पथ खोखले अंगों की एक श्रृंखला है जो मुंह से गुदा तक एक लंबी, मुड़ने वाली ट्यूब में शामिल होती है। जीआई पथ बनाने वाले खोखले अंग मुंह, इसीफैगस (अन्नप्रणाली), पेट, छोटी आंत, बड़ी आंत और गुदा हैं। लिवर, पैंक्रियाज और गाल ब्लैडर पाचन तंत्र के ठोस अंग हैं।
छोटी आंत के तीन भाग होते हैं। पहले भाग को डुओडेनम कहा जाता है। इसके बाद जेजुनम बीच में है और इलियम अंत में है। बड़ी आंत में अपेंडिक्स, सीकुम, कोलन और रेक्टम शामिल हैं। अपेंडिक्स एक उंगली के आकार की थैली होती है जो सीकुम से जुड़ी होती है। सीकुम बड़ी आंत का पहला भाग है। कोलन अगला भाग है। रेटम यानी मलाशय बड़ी आंत का अंत है।
जीआई ट्रैक्ट में बैक्टीरिया, जिसे गट फ्लोरा या माइक्रोबायोम भी कहा जाता है, पाचन में मदद करते हैं। आपके नर्वस सिस्टम और सर्कुलेटरी सिस्टम के हिस्से भी मदद करते हैं। तंत्रिकाएं, हार्मोन, बैक्टीरिया, रक्त मिलकर पाचन तंत्र के अंग उन खाद्य पदार्थों और तरल पदार्थों को पचाते हैं जो आप हर दिन खाते या पीते हैं।
पाचन महत्वपूर्ण है क्योंकि आपके शरीर को ठीक से काम करने और स्वस्थ रहने के लिए खाने-पीने से पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है। प्रोटीन, वसा, कार्बोहाइड्रेट, विटामिन, खनिज, और पानी पोषक तत्व हैं। आपका पाचन तंत्र पोषक तत्वों को छोटे भागों में तोड़ता है ताकि आपके शरीर को ऊर्जा, विकास और सेल की मरम्मत के लिए इसे एबसार्ब कर उसका उपयोग किया जा सके। उदाहरण के लिए
आपके पाचन तंत्र का प्रत्येक भाग आपके जीआई पथ के माध्यम से भोजन और तरल को स्थानांतरित करने में मदद करता है, भोजन और तरल दोनों को छोटे भागों तोड़ता है। एक बार जब खाद्य पदार्थ छोटे पर्याप्त भागों में टूट जाते हैं, तो आपका शरीर पोषक तत्वों को अवशोषित और स्थानांतरित कर सकता है जहां उनकी आवश्यकता होती है। आपकी बड़ी आंत पानी को अवशोषित करती है, और पाचन के अपशिष्ट उत्पाद मल बन जाते हैं। तंत्रिका और हार्मोन की पाचन क्रिया में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका होती है। ये दोनों पाचन प्रक्रिया को नियंत्रित करने में मदद करते हैं।
पेरिस्टलसिस नाम की प्रक्रिया द्वारा भोजन जीआई पथ में चलता है। जीआई ट्रैक्ट के बड़े, खोखले अंगों में मांसपेशियों की एक परत होती है जिनकी वजह से जीआई टैक्ट हिलता है और खाना लगातार नीचे भेजा जाता है। इस संचालन की वजह से आपके जीआई पथ के माध्यम से भोजन और तरल को धक्का मिलता है और प्रत्येक अंग के भीतर सामग्री को मिलाता है। भोजन के पीछे की मांसपेशी सिकुड़कर भोजन को आगे की ओर ढ़केलती हैं, जबकि भोजन के सामने की मांसपेशी भोजन को गति को कम करके उनके एबसार्ब होने का समय देती हैं। पाचन प्रक्रिया तब शुरू होती है जब आप अपने मुंह में खाना डालते हैं।
जब आप खाते हैं तो भोजन आपके जीआई मार्ग से आगे बढ़ना शुरू कर देता है। जब आप निगलते हैं, तो आपकी जीभ भोजन को आपके गले में धकेलती है। टिश्यू का एक छोटा सा फ्लैप, जिसे एपिग्लॉटिस कहा जाता है, किसी कंजेशन रोकने के लिए आपके विंडपाइप पर फोल्ड हो जाता है और भोजन आपके अन्नप्रणाली में चला जाता है। जब आप चबाते हैं तो आपके मुंह में पाचन क्रिया शुरू हो जाती है। आपकी लार ग्रंथियां लार बनाती हैं, यह एक पाचक रस है जो भोजन को नम करता है इसलिए यह आपके अन्नप्रणाली के माध्यम से आपके पेट में अधिक आसानी से चला जाता है। लार में एक एंजाइम भी होता है जो आपके भोजन में मौजूद स्टार्च को तोड़ना शुरू कर देता है
एक बार जब आप निगलना शुरू करते हैं, तो प्रक्रिया स्वचालित हो जाती है। आपका मस्तिष्क अन्नप्रणाली की मांसपेशियों को संकेत देता है और पेरिस्टलसिस शुरू हो जाता है। इससे भोजन इसोफैगस से आपके पेट की ओर ढ़केल दिया जाता है । जब भोजन आपके एसोफैगस के अंत तक पहुंचता है, तो अंगूठी जैसी मांसपेशी-जिसे निचला एसोफेजियल स्फिंक्टर कहा जाता है रिलेक्स पोजीशन मे आ जाता है और भोजन को आपके पेट में जाने देता है। यह स्फिंक्टर आमतौर पर बंद रहता है ताकि आपके पेट में जो कुछ भी है उसे वापस आपके अन्नप्रणाली में प्रवाहित होने से रोका जा सके। पेट। आपके पेट की परत में ग्रंथियां पेट के एसिड और एंजाइम बनाती हैं जो भोजन को तोड़ते हैं। आपके पेट की मांसपेशियां इन पाचक रसों के साथ भोजन को मिलाती हैं।
आपका पैंक्रियाज एक पाचक रस बनाता है जिसमें एंजाइम होते हैं जो कार्बोहाइड्रेट, वसा और प्रोटीन को तोड़ते हैं। यह पाचन रस को नलिकाओं नामक छोटी नलियों के माध्यम से छोटी आंत में पहुँचाता है।
लीवर पित्त नामक पाचक रस बनाता है जो वसा और कुछ विटामिनों को पचाने में मदद करता है। पित्त नलिकाएं आपके लिवर से छोटी आंत में पित्त ले जाती हैं। जहां पर आपके पित्ताशय की थैली में इसे स्टोर किया जाता है या फिर इसका उपयोग किया जाता है।
गॉल ब्लैडर भोजन के बीच पित्त को जमा करता है। जब आप खाते हैं,आपका गॉल ब्लैडर बाइल डक्ट के जरिए बाइल यानी पित्त को आपकी छोटी आंत में निचोड़ता है।
भोजन आपके पेट में प्रवेश करने के बाद, पेट की मांसपेशियां भोजन और तरल को पाचक रसों के साथ मिलाती हैं। पेट धीरे-धीरे अपनी सामग्री को आपकी छोटी आंत में खाली कर देता है, जिसे चाइम कहा जाता है।
छोटी आंत की मांसपेशियां भोजन को अग्न्याशय, यकृत और आंत से पाचक रसों के साथ मिलाती हैं और आगे के पाचन के लिए मिश्रण को आगे धकेलती हैं। छोटी आंत पाचन रस बनाती है, जो प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट और वसा के टूटने को पूरा करने के लिए पित्त और अग्न्याशय के रस के साथ मिल जाती है। छोटी आंत में जीवाणु कार्बोहाइड्रेट को पचाने के लिए आवश्यक कुछ एंजाइम बनाते हैं। छोटी आंत भोजन को तोड़ने में मदद करने के लिए रक्तप्रवाह से पानी को आपके जीआई पथ में ले जाती है। छोटी आंत भी अन्य पोषक तत्वों के साथ पानी को अवशोषित करती है। इसके बाद पेरीस्टालिसिस के जरिए पाचन प्रक्रिया के अपशिष्ट उत्पाद बड़ी आंत में चले जाते हैं।
जीआई पथ की लाइनिंग से भोजन, तरल पदार्थ और पुरानी कोशिकाओं के अपचित भाग को पाचन प्रक्रिया का अपशिष्ट कहा जाता है। बड़ी आंत में, जीआई पथ से रक्तप्रवाह में अधिक पानी चला जाता है। बड़ी आंत पानी को सोख लेती है। आपकी बड़ी आंत में बैक्टीरिया शेष पोषक तत्वों को तोड़ने में मदद करते हैं और विटामिन-के बनाते हैं। पाचन के अपशिष्ट उत्पाद, भोजन के कुछ हिस्सों सहित जो अभी भी बहुत बड़े हैं, मल बन जाते हैं। पेरिस्टलसिस मल को आपके मलाशय में ले जाने में मदद करता है।
बड़ी आंत का निचला सिरा, मलाशय, मल को तब तक संग्रहीत करता है जब तक कि यह मल त्याग के दौरान मल को आपके गुदा से बाहर नहीं धकेल देता है।
छोटी आंत आपके भोजन में अधिकांश पोषक तत्वों को अवशोषित करती है, और आपकी संचार प्रणाली उन्हें आपके शरीर के अन्य भागों में स्टोर करने या उपयोग करने के लिए भेजती है। विशेष कोशिकाएं अवशोषित पोषक तत्वों को आपके रक्तप्रवाह में आंतों की परत को पार करने में मदद करती हैं। आपका रक्त सिंपल शुगर, अमीनो एसिड, ग्लिसरॉल, और कुछ विटामिन और लवण को यकृत में ले जाता है।
आपका लीवर जरूरत पड़ने पर आपके शरीर के बाकी हिस्सों में पोषक तत्वों को स्टोर, प्रोसेस और डिलीवर करता है। आपका शरीर ऊर्जा, विकास और कोशिका की मरम्मत के लिए आवश्यक पदार्थों के निर्माण के लिए शर्करा, अमीनो एसिड, फैटी एसिड और ग्लिसरॉल का उपयोग करता है।
पर्सोनल लुब्रिकेंट या ल्यूब एक तरल या जेल है जिसका उपयोग सेक्स के दौरान फ्रिक्शन और जलन को कम करने के लिए किया जाता है। चिकनाई का उपयोग लगभग हर प्रकार के सेक्स के दौरान किया जा सकता है, जिसमें लिंग-योनि में प्रवेश, गुदा मैथुन, साथी के साथ या उसके बिना सेक्स टॉय खेलना और हस्तमैथुन करना शामिल है।
अगर इतिहास की बात की जाय तो मनुष्य सदियों से पर्सनल लुब्रिकेंट्स का उपयोग कर रहा है। यहां तक कि 350 ईसा पूर्व में जैतून के तेल का ल्यूब की तरह इस्तेमाल होने का साक्ष्य मौजूद है। औद्योगिक और व्यवसायिक तौर पर वर्ष 1919 में के.वाई जेली की शुरुआत के साथ बाजार में प्रवेश किया। इसे मूल रूप से सर्जिकल ल्यूब्रिकेंट्स के रूप में बनाया गया था।
ल्यूब कई प्रकार के होते हैं और साथ ही ल्यूब का उपयोग करने के विभिन्न तरीके भी होते हैं। आपके लिए सबसे अच्छा उत्पाद कौन सा होगा यह आपकी आवश्यकताओं और प्राथमिकताओं पर निर्भर करता है। इसे निर्धारित करने में कुछ कारक निम्न हैं:
जब आप ल्यूब का उपयोग करना चाहते हैं तो आप किस प्रकार का सेक्स करेंगे, साथ ही साथ कि क्या आप सेक्स टॉय पर ल्यूब का उपयोग करना चाहेंगे, और क्या आप इसका उपयोग करेंगे या आपका साथी कंडोम पहनेगा। आप यह भी ध्यान रखें कि सिलिकॉन-आधारित ल्यूब सेक्स टॉयज को नुकसान पहुंचा सकते हैं, इसलिए यदि आप उनका उपयोग कर रहे हैं तो वे सबसे अच्छा विकल्प नहीं हैं। तेल आधारित ल्यूब्रिकेंट्स लंबे समय तक चलते हैं लेकिन वे लेटेक्स कंडोम को कमजोर कर सकते हैं, इसलिए यदि आप या आपके साथी ने कंडोम पहना है तो आप उनका उपयोग नहीं करना चाहेंगे।
त्वचा की जरूरतों पर विचार करें: यदि आपकी संवेदनशील त्वचा है, तो पानी आधारित ल्यूब्रिकेंट एक अच्छा विकल्प हो सकता है और उनका उपयोग अधिकांश प्रकार के सेक्स के लिए किया जा सकता है। यदि आपको कोई एलर्जी है, तो ऑयल बेस्ड ल्यूब पर लगे लेबल को सावधानीपूर्वक जांच लें। ल्यूब में इस्तेमाल होने वाले कुछ तत्व उन लोगों में भी जलन पैदा कर सकते हैं या त्वचा की प्रतिक्रिया का कारण बन सकते हैं जिन्हें ज्ञात एलर्जी नहीं है।
ल्यूब चुनन में स्वाद, गंध और सनसनी पैदा करने वाली (जैसे झुनझुनी) जैसी कई सुविधाएँ भी मिलेंगी। आपकी और एक साथी की प्राथमिकताएं आपकी ल्यूब्रिकेंट्स की पसंद निर्धारित करने में मदद करेगी।
ल्यूब कई प्रकार के होते हैं इन्हें इनके आधार के हिसाब से तीन श्रेणियों में बांटा जा सकता है
कंडोम और सेक्स टॉयज के साथ उपयोग करने के लिए सुरक्षित, साफ करने में आसान, त्वचा पर कोमल, लेकिन अन्य प्रकार के चिकनाई के रूप में लंबे समय तक नहीं रह सकता है
कंडोम के साथ उपयोग करने के लिए सुरक्षित, लेकिन सिलिकॉन सेक्स खिलौने या डायाफ्राम के संयोजन के साथ उपयोग करने के लिए असुरक्षित होता है। यह कम चिपचिपा होता है लेकिन पानी आधारित चिकनाई से अधिक समय तक रहता है
कंडोम या सेक्स टॉय के साथ उपयोग करना असुरक्षित है, क्योंकि तेल लेटेक्स को तोड़ सकता है और कंडोम की प्रभावशीलता में हस्तक्षेप कर सकता है। तेल आधारित चिकनाई, जैसे कि नारियल का तेल या पेट्रोलियम जेली, त्वचा से जुड़े कुछ सेक्स के लिए इस्तेमाल की जा सकती है।
ल्यूब सेक्स के दौरान फ्रिक्शन को कम करता है। यह योनि और गुदा प्रवेश और हस्तमैथुन (या तो अकेले या साथी के साथ) को आसान और बेहतरीन अनुभव में बदलता है। इसके साथ ही यह जलन पैदा करने की संभावना भी कम करता है। कभी ल्यूब्रिकेंट्स का इस्तेमाल सिर्फ मीनोपाज़ से गुजर चुकी महिलाओं के लिए ही होता था। ऐसा इसलिए क्योंकि मीनोपाज़ के दौरान एस्ट्रोजेन का स्तर घट जाता है। इसका असर यह होता है कि योनि का सूखापन काफी बढ़ता है। आज के समय ल्यूब को व्यापक रूप से सभी उम्र में यौन उपयोग के लिए स्वीकार और प्रोत्साहित किया जाता है।
ल्यूब विशेष रूप से कंडोम के उपयोग के साथ सहायक होता है, कई बार इसके टूटने का जोखिम होता है जिसके परिणामस्वरूप अनियोजित गर्भावस्था या यौन संचारित संक्रमण हो सकता है। ल्यूब के साथ कंडोम घर्षण को कम करता है। ऐसे में प्री-लुब्रिकेटेड कंडोम के साथ भी इसका उपयोग करना चाहिए।
बाहरी कंडोम के साथ चिकनाई का उपयोग करते समय, इसे कंडोम के बाहर लगाया जाता है सीधे लिंग पर नहीं। एक आंतरिक कंडोम यानी फीमेल कंडोम आप अधिक आराम के लिए कंडोम के अंदर और बाहर दोनों जगह चिकनाई लगाना चाह सकते हैं, भले ही यह पूर्व-चिकनाई वाला हो।
यदि ल्यूब का लंबे समय तक इस्तेमाल के बाद कभी-कभी अजीब महसूस होता है या फिर यह असहज रूप से मोटाई बढ़ा देता है तो आयल सिलिकॉन हायब्रिड ल्यूब पर स्विच करना चाहिए। यह ल्यूब स्पर्श करने के लिए चिकनी, रेशमी और फिसलन महसूस कराता है। लंबे समय तक भी उपयोग करने के बाद। यह ल्यूब ऐसा एहसास कराता है जैसे कि किसी ल्यूब्रिकेंट का इस्तेमाल नहीं किया गया है। महिलाएं इस बात को पसंद करती हैं।
जैतून के तेल के लिए रसोई ही एकमात्र जगह नहीं है। एक्ट्रा वर्जिन ऑलिव ऑयल भी आंतरिक ल्यूब्रिकेंट के तौर पर इस्तेमाल किया जा सकता है। ध्यान देने वाली बात है कि जितना संभव हो सके शुद्ध जैतून का तेल का उपयोग किया जाना चाहिए। इसे कंडोम के साथ प्रयोग नहीं करना चाहिए क्योंकि इससे लेटेक्स टूट सकता है।
कैनबिनोइड तेल रिलैक्सिंग गुणों की बात आती है तो यह बहुत कारगर हैं। सीबीडी को प्राकृतिक ल्यूब के रूप में भी इस्तेमाल किया जा सकता है। यह उन महिलाओं के लिए विशेष रूप से उपयोगी हो सकता है जो डिस्पैर्यूनिया से पीड़ित हैं। यह एक ऐसी स्थिति हैं जहां लिंग प्रवेश के दौरान दर्द का अनुभव होता है, क्योंकि सीबीडी आपके द्वारा महसूस किए जाने वाले दर्द की मात्रा को सीमित कर सकता है
एड्डेराल एटेंशन डेफिसिट हायपर एक्टिविटी डिसआर्डर (एडीएचडी) के इलाज के लिए दी जाने वाली एक प्रभावी दवा है। हालांकि, हाल के वर्षों में, इसका दुरुपयोग छात्रों द्वारा किया जाने लगा है। यह लोगों को लंबे समय तक सतर्क और प्रेरित रखने के इस्तेमाल होने वाली दवा बन गयी है जिससे छात्र लंबे समय तक जागते रहने के लिए इसका दुरुपयोग कर रहे हैं।
एड्डेराल एटेंशन डेफिसिट हायपर एक्टिविटी डिसआर्डर (एडीएचडी) के लक्षणों को कम करने में बहुत प्रभावी हो सकते हैं, लेकिन केवल तभी जब कोई चिकित्सक उन्हें निर्धारित करे। बिना चिकित्सक के परामर्श के इन दवाओं का सेहत पर बहुत बुरा असर होता है। एड्डेराल में एम्फ़ैटेमिन होता है, जिसे लत लग सकती है। उत्तेजक पदार्थों का लंबे समय तक उपयोग तंत्रिका तंत्र को भी नुकसान पहुंचा सकता है।
एड्डेराल एक केंद्रीय तंत्रिका तंत्र (सेंट्रल नर्वस सिस्टम ) का उत्तेजक है जो मस्तिष्क में कई न्यूरोट्रांसमीटर की असामान्य रूप से डेंसिटी बढ़ा देता है। इन न्यूरोट्रांसमीटर में डोपामाइन, एपिनेफ्रीन, सेरोटोनिन और नॉरपेनेफ्रिन शामिल हैं। इस बढ़ी हुई न्यूरोट्रांसमिटर डेंसिटी की वजह से सतर्कता, ऊर्जा और प्रेरणा बढ़ सकती है।
दुर्भाग्य से, यही सारी भावनाएं लत को भी जन्म देती हैं। इसके अतिरिक्त, एड्डेराल के लंबे समय तक उपयोग से सहनशीलता में वृद्धि हो सकती है। फिर, व्यक्ति को उसी प्रभाव का अनुभव करने के लिए अधिक दवा का उपयोग करने की आवश्यकता होती है। इससे लत और डोज दोनों ही बढ़ने लगती है। एड्डेराल का अत्यधिक उपयोग केंद्रीय तंत्रिका तंत्र के लिए हानिकारक हो सकता है और हानि और स्थायी क्षति का कारण बन सकती है। इसलिए कुछ लोगों के लिए एड्डेराल का विकल्प ढूंढना जरुरी हो जाता है। एड्डेराल के बेहतर प्राकृतिक विकल्पों के बारे में हम लेख में विस्तार से चर्चा करेंगे।
बेहतर फोकस के लिए कैफीन, कॉफी, चाय या पूरक उत्पादों के रूप में इस्तेमाल किय जा सकता है। यह प्रभावी रूप से फोकस और एकाग्रता में सुधार कर सकता है, जिससे यह एक एड्डेराल का प्रभावी विकल्प बन जाता है। हालांकि कैफीन सुरक्षित और आसानी से उपलब्ध है, बहुत अधिक कैफीन का सेवन करने से घबराहट, बेचैनी, सिरदर्द और अनिद्रा हो सकती है।
मैग्नीशियम का प्रयोग मन को शांत करने के लिए किया जा सकता है। मैग्नीशियम की खुराक तनाव को कम करने के साथ-साथ एक प्राकृतिक चिंता निवारक का काम करती है। इसके साथ ही यह एडीएचडी वाले व्यक्तियों को शांत करने में मदद कर सकती है। ये बात और है कि मैग्नीशियम के आम दुष्प्रभावों में पेट खराब, मतली, उल्टी और दस्त शामिल हैं। उच्च खुराक पर, मैग्नीशियम अनियमित दिल की धड़कन या निम्न रक्तचाप का कारण बन सकता है।
इसका प्रयोगी स्मृति प्रतिधारण और सीखने के लिए किया जाता है। इतना ही नहीं जिन्कगो बिलोबा ने बच्चों में एडीएचडी के लक्षणों को कम करने के लिए एक प्राकृतिक उपचार के रूप में अच्छी भूमिका निभाई है। ध्यान अवधि में सुधार करके, जिन्कगो अध्ययन के लिए Adderall का एक प्राकृतिक विकल्प हो सकता है। हालांकि आम तौर पर सुरक्षित, जिन्कगो अन्य दवाओं के साथ परस्पर रिएक्शन कर सकता है और उच्च खुराक पर रक्तस्राव, पेट की समस्याओं, सिरदर्द या दिल की धड़कन का कारण बन सकता है।.
मूड को स्थिर करने के लिए एल-टायरोसिन का प्रयोग आम है। तनावपूर्ण स्थितियों मे यह डोपामाइन की तरह ही प्रभाव दिखाकर मूड और अवसादग्रस्तता के लक्षणों को स्थिर करने में सक्षम है। हालांकि टाइरोसिन की उच्च खुराक से मतली, सिरदर्द, थकान, नाराज़गी और जोड़ों में दर्द हो सकता है।
आवेग नियंत्रण के लिए जिनसेंग एडीएचडी वाले व्यक्तियों में अच्छा परिणाम दिखा रहा है। जिनसेंग असावधानी में सुधार करता है और एडीएचडी वाले बच्चों में आवेग और अति सक्रियता को कम करता है। हालांकि एक संभावित प्रभावी ओटीसी एडरल विकल्प, जिनसेंग अन्य दवाओं के रिएक्शन कर घबराहट, अनिद्रा, उल्टी और रक्तचाप में परिवर्तन का कारण बन सकता है।
सबसे अच्छे एड्डेराल विकल्पों में से एक एल्फा जीपीसी है। अल्फा जीपीसी उपलब्ध एसिटाइलकोलाइन के स्तर को बढ़ाकर मस्तिष्क पर कार्य करता है। यह न्यूरोट्रांसमिटर ध्यान और सीखने के लिए आवश्यक है। अल्फा जीपीसी को फोकस और एकाग्रता में सुधार के लिए एक सुरक्षित और प्रभावी एडरल विकल्प के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है।
बकोपा मोननेरि पारंपरिक रूप से एक औषधीय जड़ी बूटी के रूप में इस्तेमाल किया जाता है और इसे एड्डेराल के लिए एक अच्छा प्राकृतिक विकल्प के रूप पाया गया है। बकोपा शरीर में सेरोटोनिन और डोपामाइन के साथ अच्छी तरह से रिएक्ट करता है। यह सक्रियता ऊर्जा के स्तर में सुधार करने में मदद करती है। बकोपा न्यूरॉन संचार को बढ़ाकर काम करता है। इस कारण से, बकोपा की खुराक मेमोरी बढ़ाने और फीलिंग्स के एहसास को बढ़ा सकती है। यह मूड को नियंत्रित कर सकता है।
हूपरज़िन ए एक हर्बल सप्लीमेंट है जिसका उपयोग चीन में दवा में बच्चों और वयस्कों दोनों में काॉग्निटिव वर्क में सुधार के लिए किया जाता है। अल्फा जीपीसी के साथ उपयोग किए जाने पर संज्ञानात्मक कार्य को बढ़ावा देने के लिए और भी अधिक प्रभावी होता है।
एड्डेराल विक्लप के तौर पर रोडियोला रसिया का उपयोग उत्तरी केरोलिना और आर्कटिक क्षेत्रों में किया जाता है। यह एक जड़ी-बूटी है, जिसमें एड्डराल की तुलना में उत्तेजक गुण होते हैं। सौभाग्य से, इस जड़ी बूटी में एम्फ़ैटेमिन-आधारित एडीएचडी दवाओं के दुष्प्रभाव नहीं होते हैं। रोडियोला रसिया और मेमोरी और साइको हेल्थ के लिए अच्छा माना जाता है। यह जड़ी बूटी सेरोटोनिन और डोपामाइन के नियमन में सहायता करती है। ऊर्जा के स्तर में वृद्धि, मानसिक प्रसंस्करण और संज्ञानात्मक कार्य भी इसके कथित स्वास्थ्य लाभों में से हैं।
भारत में तम्बाकू और गुटखे की लत काफी अधिक लोगो में पाई जाती है। शौक में खाने से शुरु होने वाली ये आदत कब लत में बदल जाती है इसका सेवन करने वाला समझ ही नहीं पाता। ये जानते हुए भी कि गुटखा सेहत के लिए बहुत हानिकारक है लोग इस लत को छोड़ नहीं पाते। गुटखा छोड़ने के लिए सबसे अधिक जिस चीज़ की ज़रूरत होती है वो है इच्छाशक्ति। इसलिए अगर आपने भी गुटखा और तम्बाकू छोड़ने का मन बना लिया है तो जानिए आप इस पर अमल कैसे कर सकते हैं।
कई बार गुटखा खाने वाले खुद की तुलना शराब का सेवन करने वालों से करते हैं। पर सच्चाई ये है कि शराब का कम मात्रा में सेवन करने से शरीर को कोई गम्भीर नुक्सान नहीं होता। पर गुटखा स्वास्थ्य को कई बड़ी बीमारियां दे सकता है। यहां तक कि ये लोगों की जान तक ले सकता है। आइए जानते हैं क्या है गुटखा खाने के नुकसान और कैसे आप इस नशे को बाय-बाय कर सकते हैं।
हम में से अधिकतर लोग ये समझते हैं कि फेफड़ों को नुक्सान केवल धूम्रपान से पहुंचता है ।पर गुटखा भी आपके फेफड़ों के लिए खतरनाक हो सकता है।जानकार मानतें हैं कि लम्बे समय तक गुटखे का सेवन करते रहने से फेफड़े कमज़ोर हो सकते हैं औऱ धीरे धीरे गलने की कगार पर आ जाते हैं। ये समस्या गम्भीर रूप लेकर कैंसर में भी बदल सकती है।
वैसे तो लिवर कैंसर के बहुत से कारण हो सकते हैं। कोई भी नशे की लत आपके लिवर को क्षति पहंचा सकता है ।पर गुटखा खाने वालों को ये समझने की आवश्यकता है कि गुटखा भी उन्हें लिवर कैंसर की तरफ धकेल सकता है। लगातार गुटखे का सेवन करने से उनके लिवर में संक्रमण हो सकता है जो बाद में कैंसर में तब्दील हो सकता है।
गुटखे का सेवन करने से पुरुषों में नपुंसकता का खतरा बढ़ा जाता है। विशेषज्ञ बताते हैं कि अधिकतर पुरुषों में ये इरेक्टाइल डिस्फंक्शन का कारण बन सकता है। लम्बे समय तक गुटखा खाने वालें पुरुषों में कामेच्छा में कमी आ सकती है और उनके स्पर्म की गुणवत्ता पर भी खराब प्रभाव पड़ सकता है।इरेक्टाइल डिस्फंक्शन पुरुषों के आत्मविश्वास पर गहरा आघात पहुंचा सकता है।साथ ही उनकी शादीशुदा ज़िंदगी पर भी खराब असर डाल सकता है।
गुटखा खाने वालों में सबसे अधिक होने वाली बीमारी मुंह का कैंसर है। लगातार गुटखा खाते रहने से गाल के अंदर या जीभ पर घाव बन जाते हैं जो कैंसर का रूप ले लेते हैं। इस प्रकार का कैंसर भारत में गुटखे के कारण होने वाली सबसे अधिक मौतों का कारण बनता है।कैंसर के कारण खाने पीने और यहां तक कि रोगी के बोलने की क्षमता तक खत्म हो जाती है।
लगातार गुटखा खाने से आपके दांत भी खराब हो जाते हैं। दांतों पर गुटखे में मिलाए जाने वाले केमिकल का रंग चढ़ जाता है। इसके अलावा दांतों की जड़े ढीली पड़ जाती है। इतना ही नहीं बिना ज़रूरत गुटखे जैसी कठोर चीज़ चबाने से आपके दांत घिस जाते हैं औऱ अंदर से खोखले हो सकते हैं।
वर्तमान समय में लोग तेज़ी से फास्ट फूड की तरफ आकर्षित हो रहे हैं। स्थिति ये है कि जो फास्ट फूड 90 के दशक में भारत में बस आया ही था वो आज हर गली नुक्कड़ का हिस्सा बन चुका है। कहीं भी नज़र डालें फास्ट फूड के ठेलों और दुकानों की कतारें नज़ार आएंगी। इतना ही नहीं इन सभी दुकानों में भीड़ की कोई कमी नहीं होती।
सप्ताह के हर दिन यहां उतने ही ग्राहक उमड़ते देखे जा सकते हैं जितने की वीकेंड पर। हालांकि फास्ट फूड स्वाद से भरपूर होता है पर इसके खाने से होने वाले नुक्सान की लिस्ट हर कोई गिना सकता है। कभी-कभी फास्ट फूड खाने से आपके स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ता है लेकिन जहां आप लगातार बर्गर और फ्राइज़ खाने लगते हैं, वहां समस्या बढ़ जाती है।
जो लोग नियमित रूप से फास्ट फूड खाते हैं, वे अक्सर सिरदर्द से पीड़ित होते हैं, दांतों में तकलीफ का अनुभव करते हैं, उनका वजन बढ़ जाता है और बीपी और कोलेस्ट्रॉल का स्तर भी बढ़ जाता है। पर ऐसा नहीं है कि फास्ट फूड आफको सिर्फ नुक्सान ही पहुंचा सकता है। इसके कुछ लाभ भी हैं।
हालांकि इन दिनों लोग इंटरमिटेंट फास्टिंग के ज़रिए वज़न कम करने की कोशिश कर रहे हैं पर और यह एक लोकप्रिय तरीका बन गया है। पर ज़रूरी नहीं कि आप भी इस रेस में शामिल हों। कई बार ये तरीका आपको सूट नहीं करता है। ऐसा भी हो सकता है कि आपको वज़न घटाने की ज़रूरत ही ना हो। ऐसे में खाना स्किप कर देना एक अस्वस्थ आदत मानी जाती है। जानकार मानते हैं कि वजन कम करने का सबसे अच्छा तरीका है कि आप अपने द्वारा उपभोग की जाने वाली कैलोरी की संख्या को कम करें। इसके साथ ही व्यायाम के माध्यम से अतिरिक्त कैलोरी को जलाएँ। भोजन छोड़ना इसका विकल्प नहीं हो सकता क्योंकि इससे आपको थकान हो सकती है। साथ ही आप कुछ आवश्यक पोषक तत्वों को खो देते हैं। इसलिए आप फास्ट फूड खाएं पर कोशिश करें कि एक स्वस्थ फास्ट फूड का चयन करें। स्वस्थ फास्ट फूड से मतलब है कि ऐसा भोजन जिसमें तेल मसालों का प्रयोग कम किया जाता हो।
जानकार मानते हैं कि एक औसत परिवार जिसमें पति पत्नी दोनों ही काम पर जाते हैं वो सिर्फ घर के काम काज औऱ दिन भर की गतिविधियों को प्रबंधित करने में लगभग दो घंटे बिता रहा है। इसका मतलब है कि घर पर खाना बनाने के लिए बहुत कम समय हो सकता है। चूंकि फ़ास्ट फ़ूड उद्योग लगभग हर जगह उपलब्ध है, इसलिए आप अपने शेड्यूल को प्रबंधित करने के साथ ही आसानी से भोजन का इंतेज़ाम भी कर सकते हैं। यदि आप घर पर लंच या डिनर बनाने की कोशिश करते हैं तो ज्यादा समय लगता है।पर फास्ट फूड को चुनने में 50% कम समय लगता है। आज की भागती दौड़ती ज़िंदगी में जितना समय भी बच सके वो आप खुद के आराम औऱ परिवार के साथ बिताकर उसका उपयोग कर सकते हैं।
फास्ट फूड आइटम अनी कम कीमतों की वजह से भी काफी लोकप्रिय हैं। आप अपने बजट के हिसाब से फास्ट फूड का चयन कर सकते हैं। ये उन लोगों के लिए आसान विकल्प है जिनके पास खाना पकाने का विकल्प मौजूद नहीं है या फिर सीमित संसाधनों में उन्हें अपना पेट भी भरना है। हालाँकि आप हर दिन तीन फास्ट फूड खाना नहीं खाना चाहेंगे, लेकिन कम दामों में मिलने वाला ये भोजन ना सिर्फ पेट भर शरीर की ज़रूरत के हिसाब से ऊर्जा पैदा करने के लिए काफी होता है। यदि आप खाने के लिए जैविक और ताजा उपजे उत्पादों को तरजीह देते हैं तो उसके लिए आपको काफी अधिक कीमत भी चुकानी पड़ती है।एक कम आमदनी वाले परिवार के लिए बाहर खाना वास्तव में सबसे सस्ता विकल्प हो सकता है।
जब आप घर में खाना बनाते हैं तो कई बार खाना अच्छा बनता है पर कई बार खराब भी बन जाता है। पर जब आप फास्ट फूड आर्डर करते हैं तो आप हर बार अच्छे खाने की उम्मीद कर सकते हैं। आजकल हर जगह कई अंतर्राष्ट्रीय श्रृंखलाएं भी मौजूद हैं जो कम दामों में अच्छा औऱ आपकी पसंद का खाना परोसती हैं। खाने कते स्वपाद के साथ आपको उत्कृष्ट सेवा भी प्रदान की जाती है जैसे खाना समय से पहुंचे और आपको मिलने तक उसकी गर्माहट बनी रहे।
हालांकि ये माना जाता है कि फास्ट फूड में कैलोरी बहुत अधिक होती हैं।पर सच्चाई ये भी है कि अगर आप किसी वेश्विक रेस्तरां से खाना मंगवाते हैं तो वे खऱाने में मौजूद कैलोरी की गणना प्रदान करते हैं ताकि आप अपने खाने के बारे में एक स्मार्ट निर्णय ले सकें। पोषण संबंधी जानकारी की पूरी खाने के पैकेट पर उपलब्ध कराई जाती है। यही नहीं ये जानकारी आपको उनकी वेबसाइट पर ऑनलाइन भी मिल जाएगी। इसका मतलब है कि फास्ट फूड उद्योग से ऑर्डर करने के लिए आप क्या चुनते हैं, इसके बारे में एक अच्छा विकल्प चुनने के लिए आपके पास जानकारी मौजूद होती है।
यदि आप फास्ट फूड को चुनते हैं तो ज़रूरी नहीं कि आप अधिक कैलोरी का सेवन कर रहे हों। ऐसे कई रेस्तरां हैं जो आपको मेनू पर स्वस्थ विकल्प प्रदान करते हैं ताकि आप अपने स्वास्थ्य के हिसाब से विकल्प चुन सकें।रेस्तरां आपको मैदे की जगह आटे की ब्रेड या बन का विकल्प देते हैं। इतना ही नहीं कई बार तो मैदे की जगह मल्टीग्रेन औऱ अलसी जैसे विकल्प तक मौजूद होते हैं जो आपके खाने के स्वस्थ बनाते हैं। आपकी ज़रूरत के हिसाब से वसा में कमी भी जा सकती है। आप वसा की जगह अधिक सब्ज़िया जैसे गोभी, गाजर,सलाद के पत्ते आदि को चुन सकते हैं। ऐसे में आप अपने शरीर की आवश्यकता के हिसाब से खाना चुनिकर फास्ट फूड को भी हेल्दी बना सकते हैं।
फास्ट फूड में स्वस्थ कल्प भी मौजूद होते हैं। ऐसी कॉम्बो मील के विकल्प मौजूद होते हैं जो आपको कम खर्च में सम्पूर्ण भोजन मुहैया करा सकते हैं। यदि आप कुछ समय पहले से अपने ऑर्डर की योजना बनाते हैं तो आप ऐसे स्मार्ट विकल्प चुन सकते हैं जो बहुत किफायती हों औऱ जिनमें उच्च गुणवत्ता वाले खाद्य पदार्थ शामिल हों। सैंडविच ऑर्डर करते समय मेयोनीज़ को हटाने का अनुरोध करें या फिर प्रोसेस्ड चीज़ की जगह पनीर के इस्तेमाल पर ज़ोर दें।एक कॉम्बों मील चुनने पर एक हेल्दी सैंडविच एक साइड विकल्प औऱ एक हेल्दी ड्रिंक मंगा सकते हैं।
जब हम फास्ट फूड विकल्पों के बारे में सोचना शुरू करते हैं, तो आम तौर पर बर्गर, सैंडविच ,पिज़्जा या चाउमिन जैसी चीज़ें ही दिमाग में आती है। पर संस्कृति ,हर देश में फास्ट फूड के अपने विकल्प होते हैं। यदि आप इन खानों के अलावा ऐसे विकल्प तलाशें जो दूसरे देशों और समुदायों से आपको रूबरू करा सकते हैं तो इससे बेहतर क्या होगा। किसी देश का सूप आपको अच्छा लग सकता है तो कहीं का डेज़र्ट।आप कम दामों में कभी चाइनीज़ तो कभी मैक्सिकन और भी इटैलियन व्यंजनों का स्वाद ले सकते हैं।
इतालवी आइटम नियमित रूप से उसी गति से उपलब्ध होते हैं जैसे बर्गर जॉइंट ऑफर करता है।
हमने आपको फास्ट फूड से होने वाले कई फायदों की जानकारी दी पर इनसे होने वाले नुकसान से भी इंकार नहीं किया जा सकता। अधिक तैलीय फास्ट फूड खाने से आपका कोलेस्ट्राल बढ़ सकता है जो हाई बीपी औऱ हृदय रोग का कारण बन सकता है।इसके अलावा अधिक मसालों औऱ मैदे के इस्तेमाल के कारण फास्ट फूड कई बार आपके पाचन के लिए समस्या खड़ी कर देता है। इनमें कार्बोहाइड्रेट की मात्रा अधिक होती है। ऐसे में ये शरीर में शुगर लेवल को भी बढ़ा सकता है। लगातार फास्ट फूड खाने से आप अधिक कैलोरी का सेवन कर सकते हैं जो मोटापे का कारण बन सकता है।
ऐसे में फास्ट फूड खाने वालों को यही सलाह दी जाती है कि वो अपने विवेक का इस्तेमाल कर खाने का चुनाव करें। अगर आपको किसी तरह कि परेशानी का अनुभव होता है तो चिकित्सक से सलाह अवश्य लें।
इरिटेबल बोवेल सिंड्रोम (आईबीएस) एक आम विकार है जो बड़ी आंत को प्रभावित करता है। यह एक प्रकार का कार्यात्मक गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल (जीआई) विकार है। यह आपकी आंत और मस्तिष्क के एक साथ काम करने की समस्याओं से संबंधित है।इन समस्याओं के कारण आपका पाचन तंत्र बहुत संवेदनशील हो जाता है। इसमें आपकी आंत की मांसपेशियां के सिकुड़ने में बदलाव आ जाता है ।जिससे व्यक्ति के पेट में दर्द,ऐंठन, सूजन, गैस और दस्त या कब्ज हो सकते हैं। अगर आपको लम्बे समय से आईबीएस है तो आपको हमेशा इसे प्रबंधित करने की आवश्यकता होगी।
आईबीएस से पीड़ित कुछ ही लोगों में गंभीर लक्षण होते हैं। कुछ लोग आहार, जीवन शैली और तनाव को प्रबंधित करके अपने लक्षणों को नियंत्रित कर सकते हैं। अधिक गंभीर लक्षणों का इलाज दवा और परामर्श से किया जा सकता है।
विशेषज्ञ आपके मल त्याग की समस्याओं के प्रकार के आधार पर आईबीएस को वर्गीकृत करते हैं। आपको किस प्रकार का आईबीएस है उसी के अनुसार आपका उपचार किया जा सकता है। अक्सर, आईबीएस से पीडत लोगों में कुछ दिनों में सामान्य मल त्याग होता है और अन्य दिनों में असामान्य होता है। लक्षणों के आधार पर इसे तीन वर्गों में बांटा गया है-
आंतों की दीवारें मांसपेशियों की परतों के साथ पंक्तिबद्ध होती हैं जो सिकुड़ती हैं क्योंकि वे आपके पाचन तंत्र के माध्यम से भोजन को स्थानांतरित करती हैं। संकुचन जो मजबूत होते हैं और सामान्य से अधिक समय तक चलते हैं, वे गैस, सूजन और दस्त का कारण बन सकते हैं। कमजोर आंतों का संकुचन भोजन के मार्ग को धीमा कर सकते हैं और कठोर, शुष्क मल का कारण बन सकता है।
जब आपका पेट गैस या मल से फैलता है तो आपके पाचन तंत्र की नसों में असामान्यताएं आपको अधिक परेशानी का अनुभव करा सकती हैं। मस्तिष्क और आंतों के बीच खराब समन्वयित संकेत आपके शरीर की पाचन प्रक्रिया में सामान्य रूप से होने वाले परिवर्तनों पर अधिक प्रतिक्रिया दे सकते हैं।इसके परिणामस्वरूप दर्द, दस्त या कब्ज हो सकता है।
आईबीएस बैक्टीरिया या वायरस के कारण होने वाले दस्त (गैस्ट्रोएंटेराइटिस) के गंभीर हमले के बाद विकसित हो सकता है। आईबीएस आंतों में अत्यधिक बैक्टीरिया के कारण भी हो सकता है।
तनावपूर्ण घटनाओं के संपर्क में आने वाले लोगों में, विशेष रूप से बचपन में आईबीएस के अधिक लक्षण होते हैं।
आपकी आंतों में मौजूद बैक्टीरिया, कवक और वायरस में परिवर्तन के कराण भी आपको आईबीएस हो सकता है।ऐसे बैक्टीरिया जो आम तौर पर आंतों में रहते हैं और स्वास्थ्य में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं उनमें बदलाव के चलते ये समस्या उत्पन्न होती है। माना जाता है कि आईबीएस वाले लोगों में रोगाणु स्वस्थ लोगों से भिन्न हो सकते हैं।
यह स्थिति अक्सर लोगों में उनकी किशोरावस्था के अंत से लेकर 40 के दशक की शुरुआत तक होती है। पुरुषों की तुलना में महिलाओं को आईबीएस होने की संभावना दोगुनी हो सकती है। आईबीएस एक ही परिवार के कई सदस्यों को हो सकता है।
इसका कोई विशिष्ट उपचार नहीं है लेकिन आईबीएस से पीड़ित लोग इसका प्रबंधन कर के सामान्य जीवन व्यतीत कर सकते हैं। उपचार के विकल्पों में आहार और जीवन शैली में परिवर्तन शामिल हैं।
एक आहार विशेषज्ञ आपको ऐसा आहार बनाने में मदद कर सकता है जो आपके जीवन के अनुकूल हो। अपने आहार में फाइबर बढ़ाएं। अधिक फल, सब्जियां, अनाज और नट्स खाएं। आहार में पूरक फाइबर शामिल करें। भरपूर पानी पिएं। दिन में करीब 4 लिटर पानी पीने से आपको लक्षणों में राहत मिल सकती है। कैफीन वाले पदार्थों जैसे कॉफी, चॉकलेट, चाय और सोडा से बचें। पनीर और दूध के उत्पादों को सीमित करें। आईबीएस वाले लोगों में लैक्टोज असहिष्णुता अधिक आम है। इसलिए दूध के बजाय अन्य स्रोतों से कैल्शियम प्राप्त करना सुनिश्चित करें, जैसे ब्रोकली, पालक, सैल्मन या सप्लीमेंट्स।
अपनी जीवनशैली में बदलाव लाने के लिए खुद को सक्रिय रखें।नियमित रूप से व्यायाम करना सुनिश्चित करें। धूम्रपान आपके लिए हानिकारक है, इसे न करें।योग के ज़रिए विश्राम तकनीकों का अभ्यास करें। खाली पेट ना रहें। हर दो घंटे पर कुछ खाते रहें जिससे पेट खाली न रहे। अपने खाने में शामिल खाद्य पदार्थों को रिकॉर्ड करें ताकि आप यह पता लगा सकें कि कौन से खाद्य पदार्थ आईबीएस के लक्षण बढ़ा रहे हैं। लाल मिर्च, हरी प्याज, रेड वाइन, गेहूं और गाय का दूध आमतौर पर आईबाएस को ट्रिगर करता है।
आईबीएस की कोई सटीक चिकित्सा नहीं है। चिकित्सक आपको इसके लक्षणों को नियंत्रित करने की दवाएं ही दे सकते हैं।जैसे दस्त, कब्ज या पेट दर्द में मदद करने वाली दवाओं की सलाह ही रोगी को दी जाती है। इसके अलावा प्रोबायोटिक्स आपके लिए एक अच्छा विकल्प हो सकता है। ये आपके शरीर में अच्छे बैक्टीरिया पहुंचाता है जिससे आपको आराम महसूस हो सकता है।
डॉक्टर से कब मिलें अगर आपको आईईबीएस के गंभीर लक्षण नज़र आएं तो चिकित्सक से परामर्श लेना आवश्यक है।कई बार बिगड़ते लक्षण अधिक गंभीर स्थिति का संकेत दे सकते हैं।ये कोलन कैंसर की तरफ इशारा कर सकते हैं। अधिक गंभीर संकेतों और लक्षणों में शामिल हैं:
आईबीएस का कोई इलाज नहीं है।इसलिए ये आपके जीवन भर आपके साथ रहेगा। लेकिन यह आपके जीवनकाल को छोटा नहीं करता है और इसके इलाज के लिए आपको सर्जरी की आवश्यकता नहीं होगी। अपना जीवन की गुणवत्ता बनाए रखने के लिए कुछ खाद्य पदार्थों, दवाओं और तनावपूर्ण स्थितियों सहित अपने ट्रिगर्स को पहचानने और उनसे बचने का प्रयास करें। एक आहार विशेषज्ञ आपकी विशिष्ट आवश्यकताओं के अनुसार पौष्टिक आहार की योजना बनाने में आपकी सहायता कर सकता है। यदि लक्षणों में सुधार नहीं होता है तो अपने चिकित्सक से बात करें औऱ इसका समाधान करें।।
मवेशियों मे होने वाला लंपी स्किन डिजीज जिसे लंपी रोग या लंपी त्वचा रोग भी कहा जाता है। यह रोग मवेशियों का एक वायरल संक्रमण है। मूल रूप से अफ्रीका में पाया जाता है, यह मध्य पूर्व, एशिया और पूर्वी यूरोप के देशों में भी फैल गया है। रोग के लक्षणों की बात करें तो मवेशियों में बुखार, लैक्रिमेशन, हाइपरसैलिवेशन और विशिष्ट त्वचा का फटना शामिल हैं। क्लीनिकल हिस्टोपैथोलॉजी, वायरस अलगाव, या पीसीआर द्वारा इसका पता लगाया जाता है। एटेन्यूएटेड टीके प्रकोप को नियंत्रित करने में मदद कर सकते हैं।
लंपी त्वचा रोग भारत में पहली बार 2019 में ओडिशा से रिपोर्ट किया गया था। हालांकि, वर्तमान में गुजरात और राजस्थान समेत की राज्यों में मवेशी इसकी चपेट में हैं। मवेशियों के बीच संक्रामक लंपी त्वचा रोग (एलएसडी) का प्रसार अधिक से अधिक क्षेत्रों से प्रभावित हो रहा है, जो अब तक भारत के छह राज्यों / केंद्रशासित प्रदेशों में 5,000 से अधिक मवेशियों की जान ले चुका है। हरियाणा और उत्तर प्रदेश समेत अन्य राज्यों से भी हजारों मवेशियों में संक्रमण के मामले सामने आए हैं। 15% तक की मृत्यु दर के साथ वर्तमान प्रकोप काफी व्यापक और घातक है, विशेष रूप से गुजरात और राजस्थान सहित देश के पश्चिमी हिस्सों में इसका प्रभाव काफी ज्यादा है।
समय के बीतने के साथ देश में इसके और ज्यादा फैलने की आशंका जताई गई है क्योंकि वायरस के प्रसार को नियंत्रित करने के लिए टीकाकरण के प्रयास अभी उतने तेज नहीं हो सके हैं। इस सबके बावजूद माना जा रहा है सरकार मवेशियों की सेहत लेकर जिस तरह गंभीर है उससे जल्द ही भारत में बने टीके को बाजार में पूरी तेजी से उतारा जा सकता है।
लंपी त्वचा रोग मवेशियों की एक संक्रामक, विस्फोटक बीमारी है जो कभी-कभी घातक रुप ले लेती है। इस बीमारी में त्वचा और शरीर के अन्य भागों पर गांठों का होना ही इसक सबके बड़ा लक्षण है। जीवाणु संक्रमण की सेकेंडरी स्टेज अक्सर स्थिति को और ज्याद गंभीर बना देते हैं। इस बीमारी का कारक वायरस चेचक से संबंधित है। लंपी त्वचा रोग छिटपुट रूप में पाया जाता है पर ये महामारी का रूप भी अकसर ले लेता है। अकसर, संक्रमण के नए केंद्र प्रारंभिक प्रकोप से दूर क्षेत्रों में दिखाई देते हैं। यह बीमारी सबसे ज्यादा अधिक गर्मी और नमी वाले मौसम में होती है, लेकिन यह सर्दियों में नहीं होती ऐसा नहीं है। ये बीमारी सर्दियों में भी हो सकती है। मवेशियों में रोग की विशेषता त्वचा की गांठों के विकास से पहचानी जाती है। ये बीमारी बुखार, लिम्फ नोड्स के बढ़ने और अवसाद से जुड़ी होती है, जिसके परिणामस्वरूप अंततः दूध की उपज कम हो जाती है, गर्भवती जानवरों में गर्भपात और सांडों में बाँझपन होता है।
संक्रमित मवेशियों में बुखार के अलाव कई लक्षण होते हैं जैसे लैक्रिमेशन, नाक से स्राव और हाइपरसैलिवेशन। इसके बाद अतिसंवेदनशील मवेशियों में त्वचा और शरीर के अन्य हिस्सों पर खास तौर पर गांठें देखी जाती हैं। इसका बीमारी का इन्क्यूबेशन पीरियड 4-14 दिन है।
मवेशियों की गांठें यानी नोड्यूल अच्छी तरह से घिरे हुए, गोल, थोड़े उभरे हुए, दृढ़ और दर्दनाक होते हैं। ये नोड्यूल्स संपूर्ण कटिस और जीआई, श्वसन और जननांग पथ के म्यूकोसा में पाए जाते हैं। नोड्यूल्स थूथन पर और नाक और मुख म्यूकस झिल्ली के भीतर विकसित हो सकते हैं। इन नोड्यूल्स में टिश्यू का एक फर्म, मलाईदार-ग्रे या पीले रंग का द्रव्यमान होता है। रीजनल लिम्फ नोड्स सूज जाते हैं, और एडिमा थन, छाती और पैरों में विकसित होती है। इसके परिणाम स्वरूप, जानवर बेहद कमजोर हो सकता है। समय के साथ, ये उभार वाले नोड्यूल्स या तो समाप्त हो जाते हैं या फिर त्वचा की नेक्रोसिस की वजह से आसपास की त्वचा से अलग एक कठोर, उभरे हुए क्षेत्र के तौर पर स्पष्ट रूप से दिखाई देने लगते हैं। बाद में ये क्षेत्र धीरे-धीरे अल्सर बना देते हैं जो ठीक तो हो जाते हैं पर इनके निशान बन जाते हैं।
इस बीमारी की वजह से मवेशी की जीवन गुणवत्ता पर 5% -50% का असर पड़ता है; आमतौर पर इस बीमारी में मृत्यु दर कम होती है। सबसे बड़ा नुकसान दूध की कम उपज, जानवर की सेहत और गुणवत्ता में कमी, और मवेशी की स्किन गुणवत्ता होती है।
अकसर लंपी रोग को चिकित्सकीय रूप से कम खतरनाक स्यूडो लंपी त्वचा रोग समझ लिया जाता है। इस भ्रम की वजह एक हर्पीसवायरस (गोजातीय हर्पीसवायरस 2) होती है। ये रोग चिकित्सकीय रूप से समान हो सकते हैं, हालांकि दुनिया के कुछ हिस्सों में हर्पीसवायरस घाव गायों के टीट्स और थन तक ही सीमित लगते हैं, और इस बीमारी को बोवाइन हर्पीज मैमिलिटिस कहा जाता है।
स्यूडो लंपी त्वचा रोग एक हल्का रोग है, लेकिन इसकी पहचान जानवर को अलग कर उसके विस्तृत परिक्षण से ही हो सकती है। लंपी त्वचा रोग के चेचक वायरस को प्रारंभिक त्वचा के घावों में इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोपी द्वारा पहचाना जा सकता है। पीसीआर द्वारा इन दो बीमारियों की पहचान और उसमें अंतर के बारे में जाना जा सकता है। डर्माटोफिलस कांगोलेंसिस भी मवेशियों में त्वचा की गांठ का कारण बनता है।
हाल के वर्षों में अफ्रीका के अपने मूल स्थान से परे लंपी त्वचा रोग का प्रसार चिंताजनक है। क्वारेंटाइन का उपयोग भी बहुत प्रभावी साबित नहीं हुआ है। इस बीमारी का प्रसार टीकाकरण से ही रोका जा सकता है। टीकाकरण नियंत्रण का सबसे आशाजनक तरीका प्रदान करता है और बाल्कन देशों में इस तरह के टीकाकरण से इस रोग के प्रसार को प्रभावी रूप से रोका गया था। वैसे तो लंपी त्वचा रोग मुख्य रूप से मवेशियों की बीमारी है, पर इस बीमारी के भैंस, ऊंट, हिरण और घोड़े में हल्की लक्षण और बीमारी के साक्ष्य भी मिले हैं।
भारत में प्रभावित राज्य वर्तमान में गोट-पॉक्स के टीके के माध्यम से खतरे से लड़ रहे हैं जिसे लंपी त्वचा रोग के लिए विशिष्ट टीके के अभाव में आपातकालीन उपयोग के लिए अधिकृत किया गया है। राहत की बात यह है कि देश में ही इस लंपी त्वचा रोग के लिए टीका बना लिया गया है। एनआरसीई द्वारा आईसीएआर-भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान (एलवीआरएल), लजतनगर (यूपी) के सहयोग से वैक्सीन विकसित की गई है। एनआरसीई वर्तमान में नए विकसित एलएसडी टीकों की सीमित मात्रा में 'गौशालाओं' और उन डेयरी किसानों को मुफ्त में आपूर्ति कर रहा है जिनके पास प्रभावित राज्यों में बड़ी संख्या में मवेशी हैं। हाल ही में बनाए स्वदेशी टीकों - लंपी-प्रोवैक्सइंड - का कर्मशियल प्रोडक्शन भी शुरु होने वाला है जिससे इसकी व्यापकता पर रोक लगाई जा सकेगी।
माध्यमिक संक्रमण को नियंत्रित करने के लिए एंटीबायोटिक दवाओं और अच्छी नर्सिंग से राहत मिल सकती है। लेकिन अगर ये बीमारी मवेशियों के झुंड के भीतर बड़ी संख्या में फैल चुकी है तो इससे इलाज प्रभावित हो सकता है।
इस बीमारी से ग्रस्त जानवरों को व्यावसायिक रूप से उपलब्ध एंटीपायरेटिक्स जैसे कि वेटलगिन, मेलॉक्सिकैम, केटोप्रोफेन इत्यादि के साथ प्रबंधित या ठीक किया जा सकता है। हालांकि, अगर बुखार बना रहता है या जानवर नाक से निर्वहन / श्वसन लक्षण दिखाता है, तो एंटीबायोटिक्स जैसे सीफ्टियोफुर, एनरोफ्लोक्सासिन, या सल्फोनामाइड्स को माध्यमिक संक्रमण की जांच के विचार किया जाना चाहिए।
इसके अलावा, एंटीसेप्टिक मरहम को त्वचा पर लगाया जा सकता है इस एंसीसेप्टिक में मक्खी, कीड़े मकोड़े भगाने वाले गुण भी होने चाहिए। प्रभावित पशुओं का उपचार फार्म में ही किया जाना चाहिए; उन्हें अस्पतालों या पॉलीक्लिनिकों में नहीं ले जाया जाना चाहिए, क्योंकि उच्च तापमान और आर्द्रता के कारण इन जानवरों में अक्सर तेज बुखार या अतिताप विकसित होता है।
घबराएं नहीं ये कोरोना की तरह नहीं
कोरोना के ड़र से सहमे हम सभी के लिए लंपी रोग से ड़रने की जरुरत नहीं है। मनुष्यों के लिए राहत की बात यह है कि यह रोग जूनोटिक नहीं है यानी ये रोग मवेशियों या दूसरे जानवरों से मनुष्यों में नहीं फैलता है, और इसलिए दूध पाश्चुरीकरण/उबालने के बाद मानव उपभोग के लिए सुरक्षित है।
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