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Last Updated: Oct 23, 2019
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Memory Problem (Dementia)!

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Dr. Surendra KhosyaNeurologist • 16 Years Exp.DM - Neurology, MD - General Medicine, MBBS
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डिमेंशिया (dementia) alzheimer disease क्या है? क्या यह संभव है कि आपका कोई प्रियजन डिमेंशिया से ग्रस्त है, और आपको मालूम ही नहीं? सतर्क रहने के लिए आप को डिमेंशिया के बारे मे क्या जानना चाहिए? या हो सकता है कि आपके परिवार में किसी को डिमेंशिया है, और आप समझ नहीं पा रहे कि उसकी देखभाल करें तो कैसे करें, क्योंकि वह व्यक्ति आपकी बात समझ ही नहीं पाता है और अजीब तरह से पेश आ रहा है. आइये, डिमेंशिया और उसकी देखभाल के बारे में कुछ आवश्यक बातें देखें.

डिमेंशिया: संक्षेप में कहें तो डिमेंशिया किसी विशेष बीमारी का नाम नहीं, बल्कि एक बड़े से लक्षणों के समूह का नाम है (संलक्षण, syndrome)। डिमेंशिया को कुछ लोग “भूलने की बीमारी” कहते हैं, परन्तु डिमेंशिया सिर्फ भूलने का दूसरा नाम नहीं हैं, इसके अन्य भी कई लक्षण हैं–नयी बातें याद करने में दिक्कत, तर्क न समझ पाना, लोगों से मेल-जोल करने में झिझकना, सामान्य काम न कर पाना, अपनी भावनाओं को संभालने में मुश्किल, व्यक्तित्व में बदलाव, इत्यादि। यह सभी लक्षण मस्तिष्क की हानि के कारण होते हैं, और ज़िंदगी के हर पहलू में दिक्कतें पैदा करते हैं। यह भी गौर करें कि यह ज़रूरी नहीं है कि डिमेंशिया से ग्रस्त व्यक्ति की याददाश्त खराब हो–कुछ प्रकार के डिमेंशिया में शुरू में चरित्र में बदलाव, चाल और संतुलन में मुश्किल, बोलने में दिक्कत, या अन्य लक्षण प्रकट हो सकते हैं, पर याददाश्त सही रह सकती है. डिमेंशिया के लक्षण अनेक रोगों की वजह से पैदा हो सकते हैं, जैसे कि अल्ज़ाइमर रोग (ad), लुई बॉडीज वाला डिमेंशिया (lwd) वास्कुलर डिमेंशिया (नाड़ी सम्बंधित/ संवहनी मनोभ्रंश) vad), फ्रंटोटेम्पोरल डिमेंशिया (ftd) पार्किन्सन dementia (pdd), इत्यादि।

लक्षणों के कुछ उदाहरण: हाल में हुई घटना को भूल जाना, बातचीत करने समय सही शब्द याद न आना, बैंक की स्टेटमेंट न समझ पाना, भीड़ में या दुकान में सामान खरीदते समय घबरा जाना, नए मोबाईल के बटन न समझ पाना, ज़रूरी निर्णय न ले पाना, लोगों और साधारण वस्तुओं को न पहचान पाना, वगैरह। रोगियों का व्यवहार अकसर काफी बदल जाता है। कई डिमेंशिया वाले व्यक्ति ज्यादा शक करने लगते हैं, और आसपास के लोगों पर चोरी करने का, मारने का, या भूखा रखने का आरोप लगाते हैं। कुछ व्यक्ति अधिक उत्तेजित रहने लगते हैं, कुछ अन्य व्यक्ति लोगों से मिलना बंद कर देते हैं और दिन भर चुपचाप बैठे रहते हैं। कुछ व्यक्ति अश्लील हरकतें भी करने लगते हैं। कौन से व्यक्ति में कौन से लक्षण नज़र आयेंगे, यह इस बात पर निर्भर है कि उनके मस्तिष्क के किस हिस्से में हानि हुई है। किसीमे कुछ लक्षण नज़र आते हैं, किसी में कुछ और। जैसे कि, कुछ रोगियों में भूलना इतना प्रमुख नहीं होता जितना चरित्र का बदलाव।

भारत में ज़्यादातर लोग इन सब लक्षणों को उम्र बढ़ने का स्वाभाविक अंश समझते हैं, या सोचते हैं कि यह तनाव के कारण है या व्यक्ति का चरित्र बिगड गया है, पर यह सोच गलत है। ये लक्षण डिमेंशिया या अन्य किसी बीमारी के कारण भी हो सकते हैं, इसलिए डॉक्टर की सलाह लेना उपयुक्त है। अफ़सोस, भारत में डिमेंशिया की जानकारी कम होने के कारण इनमे से कई लक्षणों के साथ कलंक भी जुड़ा है। इसलिए डिमेंशिया से पीड़ित व्यक्ति यह सोच कर अपनी समस्याओं को छुपाते हैं कि या उन्हें पागल समझा जाएगा या लोग हंसेंगे कि क्या छोटी सी बात लेकर डॉक्टर के पास जाना चाहते हैं! परिवार वाले इन लक्षणों को बुढापे का नतीजा समझ कर नकार देते हैं। वे यह नहीं सोचते कि सलाह पाने से स्थिति में सुधार हो सकता है। उन्हें यह भी नहीं पता होता है कि व्यक्ति को सहायता की ज़रूरत है। व्यक्ति के बदले हुए व्यवहार को परिवार वाले हट्टीपन या चरित्र का दोष या पागलपन समझते हैं, और कभी दुःखी और निराश होते हैं, तो कभी व्यक्ति पर गुस्सा करने लगते हैं।

निदान (diagnosis) क्यों ज़रूरी है: अगर कोई व्यक्ति डिमेंशिया के लक्षणों से परेशान है तो डॉक्टर से सलाह करनी चाहिए। डॉक्टर जांच करके पता चलाएंगे कि यह लक्षण किस रोग के कारण हो रहे हैं। हर भूलने का मामला डिमेंशिया नहीं होता–हो सकता है कि लक्षण किसी दूसरी समस्या के कारण हों, जैसे कि अवसाद (depression). या हो सकता है कि यह लक्षण ऐसे रोग के कारण हैं जिसे दवाई से पूरी तरह ठीक हो सकता है (उदाहरण के तौर पर thyroid होरमोन की कमी होना)। कुछ प्रकार के डिमेंशिया ऐसे भी हैं जिनका उपचार तो नहीं, पर फिर भी दवाई से कुछ रोगियों को लक्षणों से कुछ आराम मिल सकता है। यह सब तो डॉक्टर की जांच के बाद ही पता चल सकता है।

डिमेंशिया किस को हो सकता है: डिमेंशिया शब्द अँग्रेज़ी का शब्द है, परन्तु इससे ग्रस्त व्यक्ति हर देश, हर शहर, हर कौम में पाए जाते हैं। इसकी संभावना उम्र के साथ बढ़ती है। अगर आप बुजुर्गों के किस्से सुनें तो पायेंगे कि परिवार ने जिसे एक अधेढ़ उम्र के व्यक्ति का अटपटा व्यवहार समझा था, वह शायद व्यवहार शायद डिमेंशिया के कारण था। (चूंकि डिमेंशिया अँग्रेज़ी का शब्द है, इसलिए देवनागरी लिपि में इसे लिखने के कई तरीके हैं, जैसे कि: डिमेन्शिया, डिमेंशिया डिमेंश्या, डिमेंटिया, डेमेंटिया, इत्यादि. कुछ लोग इसके लिए संस्कृत के शब्द, मनोभ्रंश का इस्तेमाल करते हैं)

विश्व भर में डिमेंशिया की पहचान पिछले कुछ दशक में ज्यादा अच्छी तरह से हुई है, और अब डॉक्टरों का मानना है कि यह लक्षण उम्र बढ़ने का साधारण अंग नहीं हैं। जो रोग डिमेंशिया का कारण हैं, उन पर शोध हो रहा है ताकि बचाव और इलाज के तरीके ढूंढें जा सकें। आजकल भी, डिमेंशिया से ग्रस्त व्यक्तियों और उनके परिवार वालों के आराम के लिए कुछ उपाय मौजूद हैं, जिससे व्यक्ति और उसके परिवार वाले ज्यादा सरलता और सुख से रह सकें, लक्षणों की वजह से हो रही तकलीफें कम हो जाएँ, और घर के माहौल का तनाव कम हो।

डिमेंशिया और बुढ़ापे में फ़र्क: डिमेंशिया से ग्रस्त व्यक्ति के साथ रहना किसी अन्य स्वस्थ बुज़ुर्ग के साथ रहने से बहुत फ़र्क है। डिमेंशिया की वजह से व्यक्ति के सोचने-करने की क्षमता पर बहुत असर होता है, और परिवार वालों को देखभाल के तरीके उसके अनुसार बदलने होते हैं। व्यक्ति से बातचीत करने का, उसकी सहायता करने का, और उसके उत्तेजित या उदासीन मूड को संभालने का तरीका बदलना होता है। समय के साथ रोग के कारण मस्तिष्क में बहुत अधिक हानि हो जाती है, और व्यक्ति ज़्यादा निर्भर होते जाते हैं। परिवार वालों को देखभाल के लिए दिन भर व्यक्ति के साथ रहना पड़ता है, और इस को संभव बनाने के लिए अपनी अन्य जिम्मेदारियों में समझौता करना पड़ता है।

डिमेंशिया सिर्फ बुढापे में ही नहीं, पहले भी हो सकता है (जैसे कि 30, 40 या 50 साल में): कई लोग सोचते हैं कि डिमेंशिया बुढापे की बीमारी है, और सिर्फ बुजुर्गों में पायी जाती है, पर कुछ प्रकार के डिमेंशिया जल्दी शुरू हो सकते हैं। who (वर्ल्ड हेल्थ ऑरगैनाइज़ेशन) का अनुमान है कि 65 साल से कम उम्र में होने वाले डिमेंशिया (जिसे young onset या early onset कहते हैं) अकसर पहचाने नहीं जाते और ऐसे केस शायद 6 से 9 प्रतिशत हैं।

उचित देखभाल रोगियों और परिवार की खुशहाली के लिए बहुत ज़रूरी है: फिलहाल, अधिकांश डिमेंशिया में दवाई की भूमिका बहुत सीमित है. न तो दवाई मस्तिष्क को दोबारा ठीक कर सकती है, न ही बीमारी को बढ़ने से रोक सकती है, सिर्फ कुछ केस में दवाई लक्षणों से कुछ राहत पंहुचा पाती है। क्योंकि डिमेंशिया का सिलसिला कई साल तक चलता है, पर दवाई से कोई खास अंतर नहीं होता और रोग कम नहीं होता, इसलिए डिमेंशिया वाले व्यक्ति और परिवार की खुशहाली उचित देखभाल पर निर्भर है। यदि परिवार वाले यह समझ पाएँ कि डिमेंशिया वाले व्यक्ति को किस प्रकार की दिक्कतें हो रही हैं, और वे व्यक्ति से अपनी उम्मीदें उसी हिसाब से रखें और मदद के सही तरीके अपनाएँ तो स्थिति सहनीय रह पाती है, वरना व्यक्ति और परिवार, दोनों के लिए बहुत तनाव बना रहता है। कारगर देखभाल के लिए डिमेंशिया को समझना और सम्बंधित देखभाल के तरीके समझना आवश्यक है।
 

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