टी बी का आयुर्वेदिक उपचार - TB Ke Ayurvedic Upchar!
टीबी एक ऐसी बीमारी है जो जानलेवा है. इसलिए टीबी के उपचार के लिए हम कई बार इसके उपचार से संबन्धित दुष्प्रभावों को नजरंदाज कर देते हैं. ट्यूबरकुलोसिस, यक्ष्मा, तपेदिक या क्षयरोग एक प्रकार का संक्रमण होता है जो धीमी-गति से बढ़ते बैक्टीरिया के कारण होता है जो शरीर के उन भागो में बढ़ता है जिनमे खून और ऑक्सीजन होता है इसलिए टीबी ज़्यादातर फेफड़ों में होता है. इसे पल्मोनरी टीबी कहते हैं. टीबी शरीर के अन्य भागों में भी हो सकता है जिसे एक्स्ट्रापल्मोनरी टीबी कहा जाता है. टीबी के उपचार में 6-9 महीने लग सकते हैं और कुछ स्तिथियों में 2 साल भी लग सकते हैं. ट्यूबरक्लोसिस को टीबी भी कहा जाता है. माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरक्लोसिस नामक बैक्टीरिया की वजह से होता है. हालांकि ये मूल रूप से एक श्वसन संक्रमण इस स्थिति के साथ साथ ट्यूबरक्लोसिस शरीर के अन्य अंगों को भी संक्रमित और प्रभावित करता जाता है. ये संक्रमण धीरे धीरे लसिका ग्रंथि और खून के ज़रिये फैलता जाता हैं. टीबी का इलाज यदि आप आयुर्वेदिक तरीकों से करें तो आपको कोई दुष्प्रभाव नजर नहीं आता लेकिन यदि आप एलोपैथिक दवाइयों का इस्तेमाल करेंगे तो आपको इसके कुछ दुष्प्रभावव भी नजर आएंगे. आइए इस लेख के माध्यम से हम टीबी के उपचार और इसके दुष्प्रभावों के बारे में जानें.
- लहसुन: - लहसुन सल्फरिक एसिड से पूर्ण होता है जो बैक्टीरिया को नष्ट करने में मददगार होता है, जिनके कारण टीबी रोग उत्पन्न होता है. इसमें एलिसिन और अजोएन भी होते हैं, जो की जीवाणु को फैलने से रोकते हैं. इसके साथ ही टीबी के मरीज के लिए एंटीबैक्टीरियल गुण और प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के प्रभाव बेहद फायदेमंद हैं. लहसुन को आप खाने के साथ या कच्चा भी खा सकते हैं.
- संतरे का करें उपयोग: - संतरे में आवश्यक मात्र में प्रयाप्त मात्रा में मिनरल और कंपाउंड्स होते हैं. संतरे का जूस लंग में सलाइन पहुंचाता है जिससे बलगम कम होता है और शरीर को संक्रमण से बचाता है. ये प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता भी है.
- सीताफल: - सीताफल व्यक्ति को दोबारा युवा बनाने में मदद करता है, इसके साथ, यह टीबी का भी निदान करते है. ज़्यादातर सीताफल को किडनी का इस्तेमाल किया जाता है.
- सहजन: - मोरिंगा (सहजन) की पत्तियों में सूजनरोधी और एंटीबैक्टीरियल गुण होते हैं जो लंग से बैक्टीरिया को नष्ट करते हैं जो टीबी रोग का कारण होता है. इसके साथ ही सूजन को भी ठीक करते हैं. मोरिंगा की फली और पत्तियों में केरोटीन, कैल्शियम, फॉस्फोरस और विटामिन सी भी पाए जाते हैं.
- आंवला: - आंवला में सूजनरोधी और एंटीबैक्टीरियल गुण मौजूद होते हैं. पोषक तत्वों के मौजूद होने के कारण शरीर को ऊर्जा देता है और क्षमता में वृद्धि करता है जिससे शरीर के अंगों के कार्य सही तरीके से हो सकता है.
- काली मिर्च: - काली मिर्च लंग को साफ़ रखती है जिसकी सहायता से छाती के दर्द में कमी मिलती है जो कि टीबी के कारण होता है. इसके अलावा, यह सूजनरोधी गुण के होने के कारण सूजन को ठीक करते हैं जो बैक्टीरिया और कफ के कारण बढ़ता है.