आयुर्वेद पंचकर्म चिकित्सा का महत्व - Ayurveda Panchkarma Chikitsha Ka Mahtva!
आयुर्वेद में पंचकर्म चिकित्सा के माध्यम से नाना प्रकार के रोगों को ठीक किया जा सकता है. यह एक उत्कृष्ट चिकित्सा विधि है. इस चिकित्सा विधि के माध्यम से रोग और उसके मूल कारणों को ठीक करने के लिए तीनों दोषों अथार्त वात, पित्त, कफ को संतुलित करने के लिए विभिन्न प्रक्रिया को उपयोग में लायी जाती है. इस चिकित्सा विधि में पांच कर्मो अथार्त वमन, विरेचन, वस्ति, रक्तमोक्षण, और नस्य के माध्यम से निदान किया जाता है. इसलिए इस चिकित्सा विधि को ‘पंचकर्म’ के नाम से जाना जाता है. आइए इस लेख के माध्यम से हम उन पांचों क्रियाओं को जानें ताकि इस विषय को लेकर हम लोगों की जानकारी बढ़ा सकें.
क्या है आयुर्वेद की पंचकर्म चिकित्सा?
आयुर्वेद पंचकर्म चिकित्सा विधि सदियों से चली आ रही है. यह भारत के दक्षिणी प्रान्त में बहुत लोकप्रिय है. इसके उत्कृष्ट प्रभावशीलता के कारण, यह चिकित्सा अब धीरे-धीरे पूरे भारत में अपनायी जा रही है. इस चिकित्सा में शरीर से टॉक्सिक पदार्थ को निकालकर शुद्ध किया जाता है. यह रोग और इसके मूल कारण को जड़ से ठीक करती है. यह एक प्रकार की थेरेपी है. इस विधि में शरीर के टॉक्सिक को बाहर निकला जाता है. इस तरह, शरीर में रोगों को जड़ से ठीक करती है. यह एक तरह की शरीर शोधन प्रक्रिया है, जो स्वस्थ मनुष्य के लिए भी लाभदायक है. इसमें पाँच चरण होते हैं. जो इस प्रकार है-
1. वमन- इस इस प्रक्रिया में मुंह के माध्यम से उल्टी कराया जाता है. इसका मतलब उल्टी निकाल कर दोषों को बाहर निकाला जाता है. यह प्रक्रिया तब तक करना चाहिए जब तक की शरीर की विषाक्त पदार्थ तरल रूप धारण ना कर लें. इसके बाद आपको उल्टी होने वाली दवा के माध्यम से आपके टिश्यू से विषाक्त पदार्थ को बाहर निकाल दिया जाता है. जो लोग कफ की समस्या से परेशान है, उनके लिए यह विधि सबसे उत्कृष्ट है. इसके अलावा यह अस्थमा और मोटापा के लिए भी सहायक है.
2. विरेचन- यह मलत्याग की प्रक्रिया है. इस पद्धति में आंत से विषाक्त पदार्थ को निकाला जाता है. इसके बाद आपके शरीर पर तेल लगाया जाता है. इस पद्धति में -बूटी खिला कर अआप्के शरीर से आंत के माध्यम से विषाक्त पदार्थ बाहर निकाला जाता है. जो लोग पित्त की समस्या से पीड़ित है, उनके लिए यह पद्धति बहुत कारगर है.
3. नस्य- इस प्रक्रिया में आपके नाक के माध्यम से औषधि दी जाती है, जो आपके नाक, गले और सिर से विषाक्त पदार्थ को बाहर निकालता है. इस प्रक्रिया में सिर और कंधो पर मालिश है, जिसके बाद आप नस्य पंचकर्म के लिए तैयार हो जाता है. इसके बाद आपके नाक के माध्यम से औषधि की कुछ बूँद डाली जाती है. यह माइग्रेन, सिरदर्द और बालों की समस्या से निजात दिलाती है.
4. अनुवासनावस्ती- यह एक बहुत ही अद्भुत आयुर्वेदिक उपाय है. इस पद्धति में विषाक्त पदार्थो को बाहर निकालने के लिए कुछ तरल पदार्थो का उपयोग किया जाता है. जिसमें तेल,घी और दूध जैसे तरल आपके मल द्वार में पहुँचाया जाता है. यह पुरानी बिमारियों को ठीक करने के लिए बहुत उपयोगी माना जाता है. यह अत्यधिक वात से परेशान मरीजों के लिए उपयोगी माना जाता है. हालाँकि, यह तीनों वात पित्त और कफ के लिए अच्छा माना जाता है.
5. रक्तमोक्षण- इस चरण में आपके शरीर के खराब खून को शुद्ध किया जाता है. इस प्रक्रिया में मुहांसे और चेहरे की समस्या से राहत मालती है. यह आपके शरीर के किसी विशेष हिस्से या पूरे शरीर से रक्त को साफ किया जाता है.