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कंधा- शरीर रचना (चित्र, कार्य, बीमारी, इलाज)

आखिरी अपडेट: Apr 04, 2023

कंधे (शोल्डर) का चित्र | Kandhe(Shoulder) Ki Image

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शरीर के ऊपरी हिस्से पर एक कॉम्प्लेक्स स्ट्रक्चर मौजूद होता है, जिसको कंधा कहते हैं। कंधे, भुजाओं को धड़ से जोड़ते हैं । इसमें कई कंपोनेंट्स होते हैं जो स्थिरता और गति की एक विस्तृत श्रृंखला प्रदान करने के लिए मिलकर काम करते हैं।

कंधा एक बड़ा और काम्प्लेक्स बॉल-एंड-सॉकेट या गोलाकार जॉइंट है जिसमें कई हड्डियां, मांसपेशियां, टेंडन और लिगामेंट्स होते हैं। ये स्ट्रक्चर्स, इस अत्यधिक लचीले जॉइंट को बनाने और उसको स्थिर रखने के लिए जुड़ते हैं, जिससे भुजाओं को हर दिशा में गति प्रदान होती है। हालांकि, इस गतिशीलता के कारण कंधे के अति प्रयोग से, अस्थिरता या चोट से नुकसान हो सकता है।

कंधे(शोल्डर) के अलग-अलग भाग और कंधे(शोल्डर) के कार्य | Kandhe(Shoulder) Ke Kaam

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कंधे का मुख्य कार्य हैं: भुजाओं को गति प्रदान करना। बाजुओं को ऊपर उठाने, नीचे करने और घुमाने में सक्षम होने से लोग कई तरह के काम कर पाते हैं, जैसे फेंकना और किसी वस्तु तक पहुंचना, साथ ही तैराकी जैसी खेल गतिविधियां।

कंधे में तीन मुख्य हड्डियाँ होती हैं। ये हैं:

  • हंसली: इसे कॉलर बोन भी कहते हैं। यह हड्डी हाथ को छाती से जोड़ती है और स्कैपुला के सामने मौजूद होती है। यह कई मांसपेशियों से जुड़ती है जो इसे बांह, गर्दन और छाती से जोड़ती हैं।
  • स्कैपुला: स्कैपुला को आमतौर पर शोल्डर ब्लेड कहते हैं। इसका आकार त्रिकोणीय (ट्राइएंगुलर) होता है। यह मुख्य रूप से मांसपेशियों के माध्यम से शरीर से जुड़ा होता है और प्रभावी रूप से छाती के पीछे फ्लोट होता है। स्कैपुला में एक बोनी कॉम्पोनेन्ट होता है, जिसे एक्रोमियन के रूप में जाना जाता है, जो हंसली से जुड़ा होता है। ग्लेनॉइड स्कैपुला पर एक शैलो सॉकेट होता है।
  • ह्यूमरस: ह्यूमरस, ऊपरी बांह की हड्डी है। यह कोहनी और कंधे के बीच की लंबी हड्डी होती है। बांह के ऊपर, ह्यूमरस में एक गोलाकार भाग होता है, जो स्कैपुला के 'सॉकेट' के लिए 'बॉल' के रूप में कार्य करता है।

कंधे में तीन जॉइंट्स मौजूद होते हैं। इसमें शामिल हैं:

  • एक्रोमियोक्लेविकुलर जोड़: यह हंसली को स्कैपुला से जोड़ता है। स्कैपुला में एक बोनी कॉम्पोनेन्ट होता है जिसे एक्रोमियन के रूप में जानते हैं। यहां पर हंसली जुड़ती है। जॉइंट, कंधे को स्थिरता प्रदान करता है और कंधों को ऊपर उठाने जैसे मूवमेंट में मदद करता है।
  • स्टर्नोक्लेविकुलर जॉइंट: यह हंसली को स्टेरनम से जोड़ता है। स्टेरनम, जिसे ब्रैस्ट-बोन के रूप में भी जाना जाता है, चेस्ट के बीच में मौजूद एक चपटी हड्डी है। जॉइंट(जोड़) के कारण, हंसली को अपनी मूवमेंट करने में मदद मिलती है।
  • ग्लेनोह्यूमेरल जॉइंट: यह जॉइंट, बॉल-एंड-सॉकेट जॉइंट है। यह ह्यूमरस को स्कैपुला से जोड़ता है। शरीर के इस जॉइंट में सबसे ज्यादा मूवमेंट होता है। जॉइंट के कारण, कंधे कई दिशाओं में घूम सकते हैं, जिसमें हाथ का घूमना और हाथ को शरीर से ऊपर और दूर ले जाना शामिल है।

कंधे में एक्सट्रिन्सिक(बाहरी) और इन्ट्रिंसिक(आंतरिक) मांसपेशियां होती हैं। एक्सट्रिन्सिक (बाहरी) मांसपेशियां, टोरसो (धड़) से निकलती हैं और कंधे की हड्डियों से जुड़ती हैं, जबकि इन्ट्रिंसिक (आंतरिक) मांसपेशियां स्कैपुला या हंसली से निकलती हैं और ह्यूमरस से जुड़ती हैं।

कंधे की इन्ट्रिंसिक(आंतरिक) मांसपेशियों में शामिल हैं:

  • डेल्टॉइड: ये मांसपेशी, कंधे के बाहर स्थित डेल्टॉइड का त्रिकोणीय आकार होता है। यह हंसली और स्कैपुला से जुड़ा होता है। डेल्टॉइड की सहायता से हाथ आगे, पीछे, बग़ल में और शरीर से दूर जा सकता है। वजन उठाने या सामान को ले जाने के दौरान, ये मांसपेशी कंधे को स्थिरता प्रदान करती है।
  • टेरिस मेजर: यह मांसपेशी, स्कैपुला से निकलती है और ह्यूमरस से जुड़ जाती है। टेरिस मेजर, हाथ के इंटरनल रोटेशन की अनुमति देता है।
  • सुप्रास्पिनैटस: यह मांसपेशी, स्कैपुला से निकलती है और ह्यूमरस से जुड़ जाती है। यह ग्लेनोह्यूमेरल जॉइंट को स्थिरता प्रदान करती है और हाथ को शरीर से दूर ले जाने की अनुमति देती है।
  • इन्फ्रास्पिनैटस: यह मांसपेशी, स्कैपुला से निकलती है और ह्यूमरस से जुड़ जाती है। इसकी सहायता से, भुजा बाहर की ओर घूम पाती है और ग्लेनोह्यूमेरल जोड़ को स्थिरता प्रदान करती है।
  • टेरिस माइनर: टेरिस माइनर, स्कैपुला से निकलती है और ह्यूमरस से जुड़ जाती है। इसके कारण, भुजा लेटरल तरीके से घूम पाती है और ग्लेनोह्यूमेरल जोड़ को स्थिरता प्रदान करती है।
  • सबस्कैपुलैरिस: यह पेशी स्कैपुला से निकलती है और ह्यूमरस से जुड़ जाती है। यह हाथ को शरीर की ओर घुमाने की अनुमति देता है और ग्लेनोह्यूमरल जोड़ को स्थिरता प्रदान करती है।

सुप्रास्पिनैटस, इन्फ्रास्पिनैटस, टेरस माइनर और सबस्कैपुलैरिस मांसपेशियों को रोटेटर कफ मांसपेशियों के रूप में जाना जाता है। वे सभी स्कैपुला से उत्पन्न होते हैं और ह्यूमरस से जुड़ते हैं। ये सभी मांसपेशियां मिलकर हाथ को ऊपर उठाने और घुमाने में मदद करती हैं।

कंधे की एक्सट्रिन्सिक(बाहरी) मांसपेशियों में शामिल हैं:

  • ट्रेपेज़ियस: ट्रेपेज़ियस, स्कल से निकलती है और हंसली और स्कैपुला से जुड़ जाती है। यह स्कैपुला को ऊपर उठाती है।
  • लैटिसिमस डॉर्सी: यह मांसपेशी, रीढ़ की हड्डी के निचले हिस्से से निकलती है और ह्यूमरस हड्डी से जुड़ जाती है। यह हाथ को पीछे के ओर ले जाती है ओर शरीर की तरफ भी ले जाती है और पुल-अप और रोइंग मूवमेंट के लिए सहायता प्रदान करती है।
  • लेवेटर स्कैपुला: यह एक लंबी और पतली मांसपेशी है। ये मांसपेशी, स्कैपुला को ऊपर उठाने में मदद करती है। यह ग्लेनॉइड कैविटी को घुमाने, रीढ़ को स्थिर करने और गर्दन को आगे और पीछे की ओर मोड़ने में भी मदद करती है।
  • रॉमबॉइड मेजर और रॉमबॉइड माइनर: रॉमबॉइड मांसपेशियां, मुख्य रूप से स्कैपुला को स्थिर करती हैं, उन्हें उनकी जगह पर बनाये रखती हैं, और ग्लेनॉइड कैविटी को घुमाने में मदद करती हैं।

कंधे(शोल्डर) के रोग | Kandhe(Shoulder) Ki Bimariya

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  • शोल्डर बर्साइटिस: बर्सा की सूजन, जो कि फ्लूइड से भरी हुई छोटी थैली होती है और रोटेटर कफ टेंडन पर टिकी होती है। इस समस्या के लक्षण हैं: ऊपरी गतिविधियों को करने में दर्द या ऊपरी, बाहरी भुजा पर दबाव।
  • लैब्राल टियर: दुर्घटना में या फिर कन्धों के अति प्रयोग से, लैब्रम फैट आ सकता है। लैब्रम, कार्टिलेज का कफ होता है जो ह्यूमरस के सिर के ऊपर होता है। अधिकांश लैब्रल टियर, सर्जरी के बिना ठीक हो जाते हैं।
  • फ्रोज़न शोल्डर: कंधे में सूजन आ जाती है जिसके कारण दर्द और अकड़न होती है। जैसे-जैसे फ्रोजन शोल्डर की समस्या बढ़ती है, कंधे की गति गंभीर रूप से सीमित हो सकती है।
  • ऑस्टियोआर्थराइटिस: उम्र बढ़ने के साथ होने वाला सामान्य 'वियर-एंड-टियर' आर्थराइटिस गठिया, ऑस्टियोआर्थराइटिस कहलाता है। घुटने की तुलना में कंधा ऑस्टियोआर्थराइटिस से कम प्रभावित होता है।
  • रहूमटॉइड आर्थराइटिस: आर्थराइटिस का एक रूप है, जिसमें हमारा इम्यून सिस्टम जोड़ों पर हमला करता है, जिससे सूजन और दर्द होता है। रहूमटॉइड आर्थराइटिस, कंधे सहित किसी भी जोड़ को प्रभावित कर सकता है।
  • गाउट: ये भी आर्थराइटिस का एक रूप है, जिसमें जोड़ों में क्रिस्टल बन जाते हैं, जिससे सूजन और दर्द होता है। शोल्डर में गाउट की समस्या होना असामान्य है।
  • रोटेटर कफ टियर: ह्यूमरस के शीर्ष के आसपास की मांसपेशियों या टेंडन में से किसी एक का भी फटना रोटेटर कफ टियर कहलाता है। एक रोटेटर कफ का फटना, अचानक चोट लगने से हो सकता है, या लगातार अति प्रयोग का परिणाम हो सकता है।
  • कंधे का टकराव(शोल्डर इम्पिंजेमेंट): जब भी हाथ उठाते हैं, एक्रोमियन (स्कैपुला का किनारा) रोटेटर कफ पर प्रेशर डालता है। यदि रोटेटर कफ में सूजन या चोट होती है, तो यह टकराव दर्द का कारण बनता है।
  • शोल्डर डिस्लोकेशन: ह्यूमरस या कंधे की अन्य हड्डियों में से एक हड्डी, अपनी जगह से बाहर निकल जाती है। हाथ ऊपर उठाने से दर्द होता है और अगर कंधा डिस्लोकेट हो जाता है तो 'पॉपिंग' जैसी सेंसेशन होती है।
  • शोल्डर टेंडोनाइटिस: कंधे के रोटेटर कफ में एक टेंडन की सूजन शोल्डर टेंडोनाइटिस के नाम से जानी जाती है।

कंधे(शोल्डर) की जांच | Kandhe(Shoulder) Ke Test

  • कंप्यूटेड टोमोग्राफी (सीटी स्कैन): एक सीटी स्कैनर कई एक्स-रे लेता है, और एक कंप्यूटर कंधे की डिटेल्ड इमेजेज को बनाता है।
  • कंधे का एक्स-रे: कंधे के एक्स-रे से डिस्लोकेशन, ऑस्टियोआर्थराइटिस या ह्यूमरस के फ्रैक्चर का पता चल सकता है। एक्स-रे से मांसपेशियों या टेंडन की चोटों का पता नहीं चल सकता है।
  • मैग्नेटिक रेजोनेंस इमेजिंग (एमआरआई स्कैन): एक एमआरआई स्कैनर, कंधे और आसपास के स्ट्रक्चर्स की हाई-रिज़ॉल्यूशन इमेजेज को बनाने के लिए, एक हाई पावर वाली मैगनेट और एक कंप्यूटर का उपयोग करता है।

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कंधे(शोल्डर) का इलाज | Kandhe (Shoulder) Ki Bimariyon Ke Ilaaj

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  • फिजिकल थेरेपी: व्यायाम करने से, कंधे की मांसपेशियां मजबूत बनती हैं और कंधे में लचीलेपन में सुधार होता है। कंधे की कई स्थितियों के लिए फिजिकल थेरेपी एक प्रभावी, नॉनसर्जिकल उपचार है।
  • दर्द निवारक: एसिटामिनोफेन (टाइलेनॉल), इबुप्रोफेन (मोट्रिन) और नेप्रोक्सन (एलेव) जैसे ओवर-द-काउंटर रिलीवर कंधे के अधिकांश दर्द से राहत दिला सकते हैं। कंधे के अधिक गंभीर दर्द के लिए, चिकित्सकीय दवाओं की आवश्यकता हो सकती है।
  • कॉर्टिकोस्टेरॉइड (कोर्टिसोन) इंजेक्शन: एक डॉक्टर कंधे में कोर्टिसोन इंजेक्ट करता है, जिससे बर्साइटिस या आर्थराइटिस के कारण होने वाली सूजन और दर्द कम हो जाता है। कोर्टिसोन इंजेक्शन का प्रभाव कई हफ्तों तक रह सकता है।
  • राइस(RICE) थेरेपी: राइस (RICE) का अर्थ है रेस्ट, आइस, कम्प्रेशन और एलिवेशन। राइस(RICE), कंधे की कई चोटों के दर्द और सूजन में सुधार कर सकती है।
  • कंधे की सर्जरी: आमतौर पर कंधे के जोड़ को अधिक स्थिर बनाने के लिए, सर्जरी की जाती है। कंधे की सर्जरी या तो आर्थोस्कोपिक (कई छोटे चीरे) या खुली (बड़ी चीरा) हो सकती है।
  • आर्थोस्कोपिक सर्जरी: एक सर्जन कंधे में छोटे चीरे लगाता है और एक एंडोस्कोप (एक लचीली ट्यूब जिसके सिरे पर एक कैमरा और उपकरण होते हैं) के माध्यम से सर्जरी करता है। आर्थ्रोस्कोपिक सर्जरी में ओपन सर्जरी की तुलना में रिकवरी में कम समय लगता है।

कंधे की बीमारियों के लिए दवाइयां | Kandhe(Shoulder) ki Bimariyo ke liye Dawaiyan

  • नॉनस्टेरॉयड एंटी-इंफ्लैमेटरी दवाएं (NSAIDs): शरीर के अन्य हिस्सों में दर्द और पीड़ा का इलाज करने के लिए नॉनस्टेरॉयड एंटी-इंफ्लैमेटरी दवाएं (NSAIDs) का उपयोग किया जाता है। इन दवाओं की तरह ही कुछ और ऐसी दवाएं हैं जो शोल्डर में असुविधा को दूर करने के लिए उपयोग की जाती हैं। मानव शरीर के भीतर इसके प्रयोग से बुखार की स्थिति को भी नियंत्रण में लाया जा सकता है। नॉनस्टेरॉयड एंटी-इंफ्लैमेटरी दवाएं (NSAIDs) के उदाहरण हैं: इबुप्रोफेन, एस्पिरिन और नेपरोक्सन सोडियम, इबुप्रोफेन, केटोरोलैक, डिक्लोफेनाक, मेलॉक्सिकैम, सेलेकोक्सिब के साथ नेपरोक्सन इंडोमेथेसिन।
  • प्लेटलेट-रिच प्लाज्मा (PRP): प्लेटलेट-समृद्ध प्लाज्मा, जिसे अक्सर PRP के रूप में जाना जाता है, कई ग्रोथ फैक्टर्स का मिश्रण होता है जिसे एक जोड़ में इंजेक्ट किया जाता है, जैसे कि शोल्डर में। यह न केवल सूजन को कम करने में सहायता करता है बल्कि घायल टिश्यू की उपचार प्रक्रिया पर भी सकारात्मक प्रभाव डालता है। ऑस्टियोआर्थराइटिस, कुछ रिपोर्टों के अनुसार, एक और स्थिति है जो पीआरपी उपचार से लाभान्वित हो सकती है।
  • DMARDs: DMARDs ऐसी दवाएं होती हैं जिनका उपयोग रूमेटिक स्थितियों के इलाज के लिए किया जाता है। रहूमटॉइड आर्थराइटिस जैसे ऑटोइम्यून विकारों से पीड़ित रोगियों को अक्सर दर्द की इन दवाओं को निर्धारत किया जाता है। मेथोट्रेक्सेट, एडालिमुमैब, बारिसिटिनिब और टोफैसिटिनिब कुछ डिजीज-मॉडीफाइंग एंटीरूमेटिक दवाएं (DMARDs) हैं जो अब बाजार में उपलब्ध हैं।
  • न्यूट्रिशनल सप्लीमेंट्स: व्यक्ति के दर्द को कम करने और जोड़ों में उपचार प्रक्रिया को बढ़ावा देने के लिए, चिकित्सक ग्लूकोसामाइन और कॉन्ड्रोइटिन जैसे न्यूट्रिशनल सप्लीमेंट्स की डोज़ निर्धारित करते हैं। विटामिन डी और कैल्शियम की डोज़, सामान्य हड्डियों के विकास और मेटाबोलिज्म के लिए आवश्यक तत्वों की उम्र और कमी के अनुसार दी जाती है।
  • ट्राईसाइक्लिक एंटीडिप्रेसेंट्स (टीसीए): ये दवाएं अवसाद, ओसीडी, बेडवेटिंग, माइग्रेन, टेंशन सिरदर्द और बहुत सारे दर्द के डिसऑर्डर्स के इलाज के लिए इस्तेमाल की जाती हैं। उदाहरण के लिए, एमिट्रिप्टिलाइन।
  • सेरोटोनिन-नॉरएपिनेफ्रिन रीअपटेक इनहिबिटर (एसएनआरआई): ये दवाएं, एंटीडिप्रेसेंट की श्रेणी में आती हैं जो अवसाद, चिंता आदि का इलाज करने में मदद करती हैं। कुछ उदाहरणों में मिल्नासीप्रान, ड्यूलोक्सेटीन शामिल हैं।
  • प्रेगाबालिन: यह एक एंटीकॉन्वल्सेंट है, जिसका उपयोग न्यूरोपैथिक दर्द और फाइब्रोमायल्गिया के इलाज के लिए किया जाता है। इसके अतिरिक्त, जब बहुत सारी दौरे-रोधी दवाओं के साथ संयोजन में इसका उपयोग किया जाता है, तो यह आंशिक-प्रारंभिक दौरे के उपचार में उपयोगी होता है।
  • कोर्टिसोन इंजेक्शन: कुछ प्रकार के एंकल आर्थराइटिस का इलाज करने के लिए, एंकल के जोड़ में कोर्टिसोन का इंजेक्शन लगाया जाता है। इसके उपयोग से एंकल के जोड़ में सूजन कम हो जाती है और संबंधित दर्द को कोर्टिसोन के उपयोग से कम किया जा सकता है।
  • बिसफ़ॉस्फ़ोनेट्स: बिसफ़ॉस्फ़ोनेट्स, दवाओं के ऐसे वर्ग से संबंधित हैं जो या तो हड्डी के नुकसान की प्रक्रिया को रोक देती हैं या कम कर देती हैं, जिससे हड्डियां मजबूत हो सकती हैं। ओस्टियोक्लास्ट को रोकना, जो हड्डी से कैल्शियम जैसे मिनरल्स को हटाने और पुन: अवशोषण के लिए जिम्मेदार हैं, बिसफ़ॉस्फ़ोनेट का प्राथमिक कार्य है (इस प्रक्रिया को हड्डी पुनर्जीवन के रूप में जाना जाता है)।
  • हाइपरयुरिसीमिया उपचार दवाएं: गाउट के साथ-साथ ट्यूमर के इलाज के लिए ये दवाएं प्रभावी हैं: एलोप्यूरिनॉल, जो ज़ैंथिन ऑक्सीडेज को रोकता है, फेबक्सोस्टैट, जो ज़ैंथिन ऑक्सीडेज़ को रोकता है, प्रोबेनेसिड, जो पीसीटी पेग्लोटिकेज़ में यूरिक एसिड के ट्यूबलर रिसोर्प्शन को रोकता है, और रासबरीकेस, जो एक रिकॉम्बिनेंट यूरिकेज़ है जो यूरिक एसिड को पानी में घुलनशील होने के लिए कैटलाइज़ करता है।
  • एंटीबायोटिक्स: एंटीबायोटिक्स एक प्रकार की दवा है जिसका उपयोग बैक्टीरियल डिसऑर्डर्स के इलाज के लिए किया जाता है। सेल्युलाइटिस सबसे आम स्थिति है जिसका इलाज एंटीबायोटिक दवाओं द्वारा किया जाता है।
  • कॉर्टिकोस्टेरॉइड्स: जो रोगी मांसपेशियों में मौजूद विशिष्ट प्रकार के मायोसिटिस से पीड़ित होते हैं, उनको कोर्टिसोन जैसी दवाएं जैसे प्रेडनिसोन, बीटामेथासोन और डेक्सामेथासोन निर्धारित की जा सकती हैं।
  • एंटीवायरल दवाएं: अमैंटाडाइन, रिमांटाडाइन, ज़ानामिविर, ओसेल्टामिविर, रिबाविरिन, एसाइक्लोविर, गैनिक्लोविर और फोसकारनेट ऐसी कुछ दवाएं हैं जो इस वर्ग से संबंधित हैं और अक्सर निर्धारित की जाती हैं।

कंटेंट टेबल

कंटेट विवरण
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लेखकDrx Hina FirdousPhD (Pharmacology) Pursuing, M.Pharma (Pharmacology), B.Pharma - Certificate in Nutrition and Child CarePharmacology
Reviewed By
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Reviewed ByDr. Bhupindera Jaswant SinghMD - Consultant PhysicianGeneral Physician

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