 
								सांप का नाम सुनकर कोई भी डर सकता है। इस सांप को संस्कृत में सर्प भी कहते हैं। वैसे तो सर्प बहुत ही खतरनाक प्राणी है और यह हमारे जीवन को खतरे में भी डाल सकता है, लेकिन इस सर्प से जुड़ा एक नाम ऐसा भी है जो हमारे स्वास्थ्य लाभ में काफी सहायक होता है। हम बात कर रहे हैं सर्पगंधा की, जो एक प्रकार की जड़ी-बूटी है। चलिए जानते हैं कि यह जड़ी-बूटी हमारे जीवन के लिए किस तरह से हितकारी है। साथ ही इसके दुष्प्रभाव के बारे में भी समझते हैं, जिससे हम इसका प्रयोग करते हुए किसी बड़ी मुसीबत में न फंसे। इसके पहले जानते हैं कि सर्पगंधा है क्या।
दरअसल, सर्पगंधा एक प्रकार की जड़ी-बूटी है, जो मुख्य रूप से चीन और भारत में पाई जाती है।यह एपोकिनेसी कुल के फूलों की एक प्रजाति है। यह जड़ी-बूटी पीले या भूरे रंग की होती और इसकी पत्तियां हरे रंग की होती है। यह पत्तियां तीन-तीन के जोड़ो में निकलती हैं। सर्पगंधा के फूल सफ़ेद रंग के होते हैं। यह एक बारहमासी पौधा है। इसके फल अंडाकार और मांसल होते हैं और पकने के बाद चमकीले बैंगनी-काले रंग में बदल जाते हैं। लोगों का कहना है कि सर्पगंधा का पौधा घर में लगाने से घरों में सांप नहीं आते हैं।
सर्पगंधा की गिनती जड़ी-बूटी में होती है। इसका अर्थ है यह अपने औषधीय महत्व के लिए जाना जाता है। इसकी वजह है सर्पगंधा में पाए जाने वाले पौष्टिक तत्व जो हमारे स्वस्थ जीवन के लिए अहम भूमिका निभा सकता है। इसमें 50 से अधिक विभिन्न अल्कलॉइड के साथ कई जैव सक्रिय रसायन शामिल हैं। इनमें अल्कलॉइड अजमलाइन, अजमलिनिन, इंडोबाइन, इंडोबिनिन, अजमलिनिन, सर्पेन्टाइन, सर्पेंटिनिन, डेस्परडाइन, रेसेरपाइन, रेसरपिलाइन, रेसिनमाइन, रेससिनैमिडाइन शामिल हैं।
इसका प्रयोग अनिद्रा, हिस्टीरिया और तनाव जैसी समस्याओं का समाधान है। इसके अलावा यह सांप के काटने के उपचार के रूप में भी सहायक है। केवल इतना ही नहीं, सर्पगंधा उच्च रक्तचाप कम करने, मानसिक विकारों से छुटकारा दिलाने, मासिक धर्म को नियमित करने, पेचिश को नियंत्रित करने में भी हितकारी है। साथ ही साथ यह गर्भस्राव के कारण या बाद में गर्भाशय के दर्द जैसी बीमारियों को भी सही करने में कारगर उपाय है।
 
											सर्पगंधा ब्लड प्रेशर को कम करने और एक स्तर पर रोके रखने में उपयोगी है। इसकी जड़ों में मौजूद रिसर्पाइन वेसिकुलर मोनामाइन ट्रांसपोर्टर्स (वीएमएटी) को बांधता है और स्रावी पुटिकाओं में नोरपाइनफ्राइन के अवशोषण को रोकता है। इसइ अलावा केंद्रीय और परिधीय अक्षतंतु टर्मिनलों से सेरोटोनिन और कैटेकोलामाइन को हटाता भी है। इसके परिणामस्वरूप न्यूरोट्रांसमीटर की कमी होती है और पोस्टसिनेप्टिक तंत्रिका कोशिकाओं में होने वाले तंत्रिका आवेगों के प्रसार को कम करता है।
इस कमी की वजह से सहानुभूति तंत्रिका फंक्शन का दमन होता है, जो धमनी ब्लड प्रेशर और हृदय गति को कम करता है और बदले में रक्तचाप को कम करता है।
सर्पगंधा में सम्मोहन क्रिया की ताकत होती है।इस वजह से यह अच्छी नींद दिलाने में अहम भूमिका निभाता है। इसका यह लाभ प्राप्त करने के लिए इसके पाउडर का सेवन रोजाना सोने से दो घंटे पहले किया जा सकता है।इसके अलावा इसके पाउडर को मिश्री और खुरासानी अजवाइन के साथ मिलाकर रात में सोने से पहले सेवन किया जा सकता है। इससे भी अच्छे परिणाम प्राप्त होगी।
सर्पगंधा में कृत्रिम निद्रावस्था, एंटीसाइकोटिक (न्यूरोलेप्टिक), शामक और चिंता-विरोधी गुण पर्याप्त मात्रा में मौजूद रहते हैं। इसलिए, यह आक्रामकता, रोना, दौड़ना, धड़कना और नींद न आना सहित कई प्रकार के मानसिक विकारों के इलाज में मदद करता है। ऐसे में सर्पगंधा के 1 भाग चूर्ण में 2 भाग जटामांसी की जड़ का चूर्ण मिलाकर दिन में दो बार गाय के दूध के साथ लेना चाहिए।
कुछ मामलों में, उच्च श्रेणी के बुखार (103 F से 106 F) के परिणामस्वरूप मतिभ्रम, भ्रम, चिड़चिड़ापन और आक्षेप होता है। सर्पगंधा बुखार को कम करने, इन लक्षणों को रोकने और इलाज के लिए सबसे अच्छा उपाय है। उच्च श्रेणी के बुखार में सर्पगंधा पाउडर को नारियल पानी या गुलाब के साथ रोजाना 500 मिलीग्राम की खुराक में तीन बार प्रयोग किया जाता है।
गर्भस्राव के कारण होने वाले गर्भाशय दर्द के उपचार में सर्पगंधा उपयोगी है। यह गर्भाशय को सिकोड़ता है और गर्भाशय गुहा से विषाक्त पदार्थों और अवशेषों को खत्म करने में मदद करता है। इसके अलावा यह गर्भाशय की मांसपेशियों को आराम देता है, जिससे रक्तस्राव बंद हो जाता है और दर्द कम हो जाता है। ऐसे में सर्पगंधा चूर्ण को 500 मिलीग्राम की खुराक में दिन में तीन बार 1 से 2 दिन तक इस्तेमाल करना चाहिए। फिर इसकी खुराक को और 3 दिनों के लिए प्रतिदिन तीन बार 250 मिलीग्राम तक कम किया जाना चाहिए।
सर्पगंधा मासिक धर्म के दौरान होने वाले दर्द को कम करती है। यह मासिक धर्म के दौरान रक्त प्रवाह को नियंत्रित करता है और ऐंठन और धड़कते हुए दर्द को कम करता है। ऐसे में सर्पगंधा की जड़ के चूर्ण का 1 भाग जटामांसी की जड़ के चूर्ण के 1 भाग के साथ 2 से 3 दिनों तक पानी के साथ लेना चाहिए।
कुटजारिष्ट के साथ सर्पगंधा चूर्ण 250 मिलीग्राम की खुराक में दिन में तीन बार पेचिश के इलाज के लिए उपयोगी है। यह ढीले मल की आवृत्ति को कम करता है, रक्तस्राव की जांच करता है और दर्द कम करता है।
सर्पगंधा आयुर्वेद में सॉ स्केल्ड वाइपर स्नेक के काटने की दवा है। ऐसे में इसकी जड़ के चूर्ण को काली मिर्च और पानी में मिलाकर सांप के जहर के उपचार के लिए प्रयोग किया जाता है।
कई बार चिंता कई तरह की शारीरिक परेशानी का सबब बन जाती है। हालांकि, सर्पगंधा के इस्तेमाल से आप चिंता को कम कर सकते हैं। कुछ वैज्ञानिक ने अपने शोध में बताया है। इसमें एंटीऑक्सीडेंट होता है जो चिंता को कम करने में सहायता कर सकता है। चिंता को समाप्त करना चाहते है तो सर्पगंधा जड़ी बूटी का उपयोग जरूर करे।
सर्पगंधा के पौधे के जड़, पत्तियां, फूल और फल सभी चिकिस्तीय मदद पहुंचाने के गुण रखते हैं। अलग-अलग बीमारियों में इसे अलग अलग तरह से इस्तेमाल में लाया जाता है। इसकी पत्तियों के रस निकालकर उपयोग में लाया जा सकता है। जबकि इसकी जड़ों को सुखाकर उसका पाउडर बनाकर उसे कई बीमारियों को दूर करने के लिए उपयोग में लाया जा सकता है।
सर्पगंधा कई तरह को बीमारियों से बचाव के लिए हमारी मदद करता है। हालांकि, इसके कुछ साइड इफेक्ट्स भी होते हैं, इसलिए जहां तक संभव हो डॉक्टर से सलाह लेने के बाद ही सर्पगंधा का प्रयोग करना चाहिए। ये साइड इफेक्ट्स या दुष्परिणाम निम्नलिखित हैं।-
सर्पगंधा भारत, पाकिस्तान, श्रीलंका और म्यांमार में पाई जाती है। भारत में यह पंजाब से नेपाल, सिक्किम और भूटान में वितरित किया जाता है। इसके अलावा यह पूर्वी और पश्चिमी घाट, गंगा के मैदानों की निचली पहाड़ियों और अंडमान में भी पाया जाता है। इस प्रकार यह भारत के कई हिस्सों में व्यापक रूप से खेती की जाती है। वे एमएसएल से 1200 - 1300 मीटर के बीच की ऊंचाई पर मध्यम से गहरी काली मिट्टी में ह्यूमस से भरपूर मिट्टी में 4.7 – 6.5 के बीच पीएच के साथ सबसे अच्छी तरह से उगाए जाते हैं। सर्पगंधा की खेती के लिए आर्द्र और गर्म जलवायु, छाया-प्रेमी परिस्थितियाँ, लगभग 300-500 मिमी की वार्षिक वर्षा और 10°C-30°C के बीच का तापमान सबसे उपयुक्त है।