सोरायसिस का आयुर्वेदिक उपचार - Psoriasis Ka Ayurvedic Upchar!
सोरायसिस चमड़ी पर होने वाली एक ऐसी बीमारी है जिसमें त्वचा पर एक मोटी परत जम जाती है. यदि इसे दूसरे शब्दों में कहें तो चमड़ी की सतही परत का अधिक मात्रा में बनना ही सोरायसिस है. त्वचा पर सोराइसिस की बीमारी सामान्यतः हमारी त्वचा पर शुरुवात में लाल रंग की सतह के रूप में उभरकर आती है. इसके बाद सिर के बालों के पीछे, हाथ-पांव अथवा हाथ की हथेलियों, पांव के तलवों, कोहनी, घुटनों और पीठ पर इसके प्रभाव अत्यधिक दिखाई पड़ते हैं. हालांकि यह रोग केवल 1-2 प्रतिशत लोगों में ही पाया जाता है. आपको बता दें कि इसके होने का एक पर्याप्त कारण आनु्वंशिक भी हो सकता है. आनु्वंशिकता के अलावा इसके होने के लिए पर्यावरण भी एक बड़ा कारण माना जाता है. यह बीमारी कभी भी और किसी को भी हो सकती है. कई बार इलाज के बाद इसे ठीक हुआ समझ कर लोग निश्चिंत हो जाते हैं, लेकिन यह बीमारी दोबारा हो सकती है. इसके साथ ही यह बात भी ध्यान रखना चाहिए कि सर्दियों के मौसम में यह बीमारी ज्यादा होती है. आइए इस लेख के माध्यम से हम सोरायसिस का आयुर्वेदिक उपचार जानें.
क्या कहता है आयुर्वेद सोरायसिस के बारे में-
आयुर्वेद के अनुसार, सोरायसिस एक नॉन इन्फेक्टेड स्किन डिजीज है. सोरायसिस होने पर बॉडी में पित्त और वात्त की अधिकता के कारण स्किन के टिश्यूज में टॉक्सिक तत्त्व फैल जाते है, जो बाद में सोरायसिस की समस्या पैदा करते हैं. आज हम आपको अपने इस लेख के माध्यम से हम आपको सोरायसिस के कारण, लक्षण और उपचार की विस्तृत जानकारी दे रहे हैं. अगर आप इस बीमारी से परेशान हैं तो आपको इस लेख से समाधान मिल सकता है.
सोरायसिस के लक्षण-
सोरायसिस के कारण त्वचा में कई प्रकार के दुष्प्रभाव देखने को मिलते हैं. ये सभी ऐसे दुष्प्रभाव होते हैं जिन्हें आप आसानी से अनुभव कर सकते हैं.
* इस दौरान आपके स्किन पर जलन महसूस होगा.
* सोरायसिस में लोगों को त्वचा में खुजली की भी शिकायत होती है.
* सोरायसिस की बीमारी में आपकी त्वचा लाल होने लगती है.
* कई लोगों को इस दौरान त्वचा में सूजन भी हो सकती है.
क्यों होता है सोरायसिस?
सोरायसिस होने का कारण जेनेटिक भी हो सकता है. यदि माता-पिता दोनों इससे ग्रस्त हैं, तो बच्चे को भी सोरायसिस होने की संभावना 60 प्रतिशत तक बढ़ जाती है. इसके अलावा प्राकृतिक वेगों (मल व पेशाब) को कई बार रोकना भी कालांतर में इस रोग का कारण बन सकता है. इसी प्रकार मसालेदार, तैलीय, चिकनाईयुक्त व जंक फूड्स खाने, चाय काफी और शराब का सेवन व धूम्रपान भी सोरायसिस के कारण बन सकते हैं.
सोरायसिस का आयुर्वेदिक उपचार
इसके आयुर्वेदिक आपको से राहत मिलेगी लेकिन यदि आपको इन उपचार विधियों से राहत नहीं मिलती है, तो आयुर्वेद चिकित्सक से सलाह अवश्य लें. आयुर्वेद चिकित्सा के माध्यम से सर्वप्रथम रक्त व ऊतकों की शुद्धि की जाती है. फिर उपचार के ये तरीके आपके पाचन तंत्र को मजबूत कर त्वचा के ऊतकों को सशक्त करने का काम करते हैं.
- अखरोट और केले के पत्ते: - पानी में साबुत अखरोट उबालकर और इसे हल्का ठंडाकर त्वचा के प्रभावित अंगों पर लगाएं. प्रभावित अंग को ताजे केले के पत्ते से ढक दें.
- तिल के दाने: - 15 से 20 तिल के दाने एक गिलास पानी में भिगोकर पूरी रात रखें. सुबह खाली पेट इनका सेवन करें.
- करेले का रस: - पांच से छह महीने तक प्रात: 1 से 2 कप करेले का रस पिएं. यदि यह रस अत्यधिक कड़वा लगे, तो एक बड़ी चम्मच नींबू का रस इसमें डाल सकते हैं.
- खीरे का रस और गुलाबजल: - खीरे का रस, गुलाब जल व नींबू के रस को समान मात्रा में मिलाएं. त्वचा को धोने के बाद इसे रातभर के लिए लगाएं.
- हल्दी: - आधा चम्मच हल्दी चूर्ण को पानी के साथ दिन में दो बार लें.
- घृतकुमारी का ताजा गूदा: - घृतकुमारी का ताजा गूदा त्वचा पर लगाया जा सकता है या इस गूदे का प्रतिदिन एक चम्मच दिन में दो बार सेवन करें.
- नीम की पत्तियां और गुडिच: - नीम की पत्तियां या गुडिच के तने को पीस कर या उबाल कर सोरायसिस से प्रभावित अंग धोएं.
- तीसी का सेवन: - प्रतिदिन 20-30 ग्राम तीसी (अलसी) का सेवन करने से भी लाभ होता है.
- प्राणायाम: - कपालभाति और अनुलोम-विलोम का नियमित अभ्यास भी रोग से राहत देने में उपयोगी है.
- सुबह टहलें और नियमित रूप से पेट साफ रखें.
- आयुर्वेद स्वास्थ्य विज्ञान में सोरायसिस की चिकित्सा के लिए अनेक औषधियों के विकल्प के साथ-साथ आहार-विहार, परहेज का विशेष ध्यान रखा जाता है. कभी-कभी शरीर में व्याप्त हानिकारक तत्वों को निकालने के लिए पंचकर्म नामक विशिष्ट चिकित्सा का प्रयोग काफी लाभ दायक होता है.