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Last Updated: Apr 01, 2019
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लेसिक आई सर्जरी - Lasik Eye Surgery!

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Dr. Sanjeev Kumar SinghAyurvedic Doctor • 15 Years Exp.BAMS
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जब आपकी दृष्टि कमजोर पड़ जाती है तो डॉक्टर आपको चश्मा या कॉन्टैक्ट लेंस निर्धारित करता है जो शायद हर किसी को पसंद नहीं आता है. ऐसे में हम दुसरे विकल्प की तरफ देखते है जिसमे हमें सर्जरी का सहारा लेना पड़ता है. वर्तमान समय में लेजर तकनीक से होने वाली सर्जरी बहुत उन्नत हो गयी है. इसकी सहायता से बिना किसी ज्यादा जोखिम के आप दृष्टि के समस्या से निजात पा सकते हैं. इस लेख में आपको लेज़र तकनीक सर्जरी के बारे में पूरी जानकारी दी जाएगी. लेसिक लेजर या कॉर्नियोरिफ्रेक्टिव सर्जरी कॉन्टैक्ट लेंस हटाने के लिए दो तकनीक है. इससे जिन दोषों में चश्मा हटाया जा सकता है, वे निम्नलिखित हैं:

1. मायोपिया:
मायोपिया को निकट दूर दृष्टि भी कहा जाता है. इसमें किसी भी वस्तु का प्रतिबिंब रेटिना के आगे बन जाता है, जिससे दूर का देखने में समस्या होती है. इसे ठीक करने के लिए माइनस यानी कॉनकेव लेंस की आवश्यकता पड़ती है.

2. हायपरमेट्रोपिया: हायपरमेट्रोपिया को दूरदृष्टि दोष के रूप में भी जाना जाता है. इस स्थिति में किसी भी चीज का प्रतिबिंब रेटिना के पीछे बनता है, जिससे पास का देखने में समस्या होती है. इसे ठीक करने के लिए प्लस यानी कॉनवेक्स लेंस की जरूरत होती है.

3. एस्टिगमेटिज्म: इसमें आंख के पर्दे पर रोशनी की किरणें अलग-अलग जगह केंद्रित होती हैं, जिससे दूर या पास या दोनों तरफ की चीजें साफ नजर नहीं आतीं है.

कैसे करता है काम-
लेसिक लेजर की सहायता से कॉर्निया को इस तरह से बदल दिया जाता है की नजर दोष में जिस तरह के कांटेक्ट लेंस की जरुरत पड़ती है, वह उसी तरह से काम करने लग जाता है. इससे किसी भी वस्तु का प्रतिबिंब रेटिना पर बनने लगता है और बिना चश्मे लगाए सब कुछ साफ नज़र आने लगता है.

लेसिक सर्जरी के प्रकार-
लेसिक लेजर 3 प्रकार का होता है.
* सिंपल लेसिक लेजर
* ई-लेसिक या इपि-लेसिक लेजर
* सी-लेसिक या कस्टमाइज्ड लेसिक लेजर

सिंपल लेसिक लेजर-
इस प्रक्रिया में आँखों में लोकल एनेस्थीसिया इंजेक्ट किया जाता है. इसके बाद लेजर से आँखों में फ्लैप बनाते हैं. और कट निरंतर कॉर्नियो के आकार को दोबारा आकार देता है. इस पूरे प्रक्रिया में लगभग 20-25 मिनट लगते हैं.

फायदे-
1. इस सर्जरी की मदद से आँखों से चश्मा उतर जाता है और दृष्टि स्पष्ट हो जाती है.
2. इस सर्जरी में खर्च भी बहुत कम हो जाता है. इस सर्जरी को करने में दोनों आंखों के लिए लगभग 20 हजार रुपये खर्च आता है.

नुकसान-
1. हालाँकि, इस सर्जरी का इस्तेमाल ज्यादा नहीं होता है. अब इससे बेहतर तकनीक भी मौजूद हैं.
2. इस सर्जरी के बाद काफी समस्याओं का शंका बना रहता है.


2. ई-लेसिक या इपिलेसिक लेजर
यह प्रक्रिया तकरीबन सिंपल लेसिक के जैसा ही होता है. इसमें मूल अंतर मशीन का होता है. इसमें ज्यादा उन्नत मशीन इस्तेमाल की जाती हैं.

फायदे-
1. यह अच्छे परिणाम देते हैं और ज्यादातर मामलों में सफलता मिलती है.
2. मरीज जल्दी स्वस्थ हो जाते है.
3. जोखिम कम होती हैं.


नुकसान
1. सिंपल लेसिक के तुलना में थोडा महंगा होता है. इन दोनों आंखों के ऑपरेशन पर लगभग 35-40 हजार रुपये तक खर्च आता है.
2. छोटी-मोटी समस्याएं हो सकती हैं, जैसे कि आंख लाल होना, चौंध लगना इत्यादि.
3. कभी-कभार आंख में फूलने जैसी समस्या भी आ सकता है.


3. सी-लेसिक: कस्टमाइज्ड लेसिक लेजर
यह एक बहुत ही आसान प्रक्रिया है और परिणाम बहुत बेहतर होते हैं. इसमें ओवर या अंडर करेक्शन नहीं होती और नतीजा सटीक होता है. इस प्रक्रिया के दौरान ज्यादा समय नहीं लगता है, जिसमे मरीज को अस्पताल में भर्ती होने की जरूरत नहीं होती है. और इसके साइड इफेक्ट्स काफी कम होते हैं.

नुकसान
1. यह एक महंगी प्रक्रिया है. इसमें दोनों आंखों के ऑपरेशन पर करीब 40 हजार तक खर्च हो सकता है. कुछ अस्पताल इससे ज्यादा पैसे भी ले सकते हैं.
2. इसके साइड इफेक्ट्स में आंख लाल होने, खुजली, डबल विज़न जैसी समस्या आ सकती हैं, लेकिन यह आसानी से ठीक हो जाती हैं.

कुछ और खासियतें
1. आज कल कांटेक्ट लेंस या चश्मा हटाने के लिए ज्यादातर इसी प्रक्रिया का इस्तेमाल किया जा रहा है. सिंपल लेसिक सर्जरी मरीज को पहले से बने एक प्रोग्राम के जरिए आंख का ऑपरेशन किया जाता है, जबकि सी-लेसिक सर्जरी में आपकी आंख के साइज के हिसाब से पूरा प्रोग्राम बनाया जाता है.

2. सर्जन का अनुभव, काबिलियत, लेसिक लेजर से पहले और बाद की देखभाल की गुणवत्ता लेसिक लेजर सर्जरी के नतीजे के लिए काफी महत्वपूर्ण होती है.

3. चश्मे का नंबर अगर 1 से लेकर 8 डायप्टर है तो लेसिक लेजर ज्यादा उपयोगी होता है.

4. आज-कल लेसिक लेजर सर्जरी से -10 से -12 डायप्टर तक के मायोपिया, +4 से +5 डायप्टर तक के हायपरमेट्रोपिया और 5 डायप्टर तक के एस्टिग्मेटिज्म का इलाज किया जाता है.

कैसे करते हैं ऑपरेशन-
इस ऑपरेशन में बहुत कम समय लगता है, इसे करने में ज्यादा से ज्यादा 10 से 15 मिनट तक का समय लग सकता है. इस सर्जरी के दौरान मरीज को हॉस्पिटल में भर्ती होने की जरुरत नहीं होती है. ऑपरेशन की शुरुआत करने से पहले डॉक्टर आँखों को अच्छे से चेक करते हैं. इसके बाद ही सर्जरी करने का निर्णय लिया जाता है. जब ऑपरेशन करने का निर्णय लिया जाता है तो शुरू होने से पहले आँखों को आई-ड्रॉप के द्वारा सुन्न (एनेस्थिसिया) किया जाता है. फिर मरीज को कमर के बल लेटकर आंख पर पड़ रही एक टिमटिमाती लाइट को देखते रहने को कहा जाता है. अब एक विषेशरूप से तैयार किए गए यंत्र माइक्रोकिरेटोम की सहायता से आंख के कॉर्निया पर कट लगाकर आंख की झिल्ली को उठा देते हैं. हालांकि अब भी इस झिल्ली का एक हिस्सा आंख से जुड़ा ही रहता है. अब ऑलरेडी तैयार एक कंप्यूटर प्रोग्राम के द्वारा इस झिल्ली के नीचे लेजर बीम डालते हैं. लेजर बीम कितनी देर तक डालते रहना है इसे चिकित्सक जांच के दौरान ही पता कर लेते हैं. लेजर बीम पड़ने के बाद झिल्ली को वापस कॉर्निया पर लगा दिया जाता है और ऑपरेशन पूरा हो जाता है. यह झिल्ली एक-दो दिन में खुद ही कॉर्निया के साथ जुड़ जाती है और आंख नॉर्मल हो जाती है. मरीज उसी दिन अपने घर जा सकता है. कुछ लोग ऑपरेशन के ठीक बाद रोशनी लौटने का अनुभव कर लेते हैं, लेकिन ज्यादातर में सही विजन आने में एक या दिन का समय लग जाता है.

सर्जरी के बाद-
1. ऑपरेशन के बाद दो-तीन दिन तक आराम करना होता है और उसके बाद मरीज नॉर्मल तरीके से काम पर लौट सकता है.
2. लेसिक लेजर सर्जरी के बाद मरीज को बहुत कम दर्द महसूस होता है और किसी टांके या पट्टी की जरूरत नहीं होती.
3. आंख की पूरी रोशनी बहुत जल्दी (2-3 दिन में) लौट आती है और चश्मे या कॉन्टैक्ट लेंस के बिना भी मरीज को साफ दिखने लगता है.
4. स्विमिंग, मेकअप आदि से कुछ हफ्ते परहेज करना होता है.
5. करीब 90 फीसदी लोगों में यह सर्जरी पूरी तरह कामयाब होती है. बाकी लोगों में 0.25 से लेकर 0.5 नंबर तक के चश्मे की जरूरत पड़ सकती है.
6. जो बदलाव कॉर्निया में किया गया है, वह स्थायी है इसलिए नंबर बढ़ने या चश्मा दोबारा लगने की भी कोई दिक्कत नहीं होती, लेकिन कुछ और वजहों, मसलन डायबीटीज या उम्र बढ़ने के साथ चश्मा लग जाए, तो अलग बात है.

कौन करा सकता है-
1. जिनकी उम्र 20 साल से ज्यादा हो. इसके बाद किसी भी उम्र में करा सकते हैं.
2. चश्मे/कॉन्टैक्ट लेंस का नंबर पिछले कम-से-कम एक साल से बदला न हो.
3. मरीज का कॉर्निया ठीक हो. उसका डायमीटर सही हो. उसमें इन्फेक्शन या फूला/माड़ा न हो.
4. लेसिक सर्जरी से कम-से-कम तीन हफ्ते पहले लेंस पहनना बंद कर देना चाहिए.

कौन नहीं करा सकता-
1. किसी की उम्र 18 साल से ज्यादा है लेकिन उसका नंबर स्थायी नहीं हुआ है, तो उसकी सर्जरी नहीं की जाती.
2. जिन लोगों का कॉर्निया पतला (450 मिमी से कम) है, उन्हें ऑपरेशन नहीं कराना चाहिए.
3. गर्भवती महिलाओं का ऑपरेशन नहीं किया जाता.
विकल्प: चश्मा/कॉन्टैक्ट लेंस ऐसे लोगों के लिए ऑप्शन हैं.

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