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Last Updated: Apr 01, 2019
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किडनी में सूजन - Kidney Mein Sujan!

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Dr. Sanjeev Kumar SinghAyurvedic Doctor • 15 Years Exp.BAMS
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किडनी का हमारे शरीर में महत्व से लगभग सभी परिचित हैं. हमारे शरीर में किडनी के मुख्य कार्य अम्ल-क्षार संतुलन, इलेक्ट्रोलाइट सान्द्रता, कोशिकेतर द्रव मात्रा को नियंत्रित करके और ब्लड प्रेशर पर नियंत्रण रखते हुए गुर्दे पूरे शरीर के होमियोस्टैसिस में भाग लेना है. गुर्दे इन होमियोस्टैटिक कार्यों को स्वतंत्र रूप से व अन्य अंगों, विशिष्टतः अंतःस्रावी तंत्र के अंगों, को साथ मिलाकर, दोनों ही प्रकार से पूर्ण करते हैं. इसके लिए जरूरी हार्मोन जैसे रेनिन, एंजियोटेन्सिस II, एल्डोस्टेरोन, एन्टिडाययूरेटिक हॉर्मोन और आर्टियल नैट्रियूरेटिक पेप्टाइड आदि शामिल हैं.

किडनी के कार्यों की रूपरेखा
गुर्दे के कार्यों में से अनेक कार्य नेफ्रॉन में होने वाले परिशोधन, पुनरवशोषण और स्राव की अपेक्षाकृत सरल कार्यप्रणालियों के द्वारा पूर्ण किये जाते हैं. परिशोधन, जो कि वृक्कीय कणिका में होता है, इसे एक प्रक्रिया भी कहा जा सकता है जिसके द्वारा सेल्स, बड़े प्रोटीन ब्लड से छाने जाते हैं. यह एक अल्ट्राफिल्ट्रेट का निर्माण होता है, जो अंततः मूत्र बनाता है. गुर्दे एक दिन में 180 लीटर अल्ट्राफिल्ट्रेट उत्पन्न करते हैं, जिसका एक बहुत बड़ा प्रतिशत पुनरवशोषित कर लिया जाता है और मूत्र की लगभग 2 लीटर मात्रा की उत्पन्न होती है. इस अल्ट्राफिल्ट्रेट से रक्त में अणुओं का परिवहन पुनरवशोषण कहलाता है. स्राव इसकी विपरीत प्रक्रिया है, जिसमें अणु विपरीत दिशा में, ब्लड से मूत्र की ओर भेजे जाते हैं. उत्सर्जित वेस्ट पदार्थों में प्रोटीन न पच पाने से उत्पन्न नाइट्रोजन-युक्त टॉक्सिक यूरिया और न्यूक्लिक अम्ल के मेटाबोलिक प्रोसेस से उत्पन्न यूरिक अम्ल शामिल हैं.

परासरणीयता नियंत्रण
हाइपोथेलेमस द्वारा प्लाज़्मा परासरणीयता लेवल ऊपर या नीचे होने की जाँच की जाती है. यह सीधे पिछली श्लेषमीय ग्लैंड से इंटरैक्ट करती है. ऑस्मोलोलेटी में वृद्धि होने पर यह ग्रंथि एंटीडाययूरेटिक हार्मोन एडीएच का स्राव करती है, जिससे मूत्र की कंसंट्रेशन बढ़ जाता है. ये दोनों कारक एक साथ कार्य करके प्लाज़्मा की परासरणीयता को पुनः सामान्य लेवल पर लाते हैं. एडीएच संग्रहण नलिका में स्थित मुख्य सेल्स से जुड़ा होता है. यह एक्वापोरिन को मैरो में स्थानांतरित करता है, ताकि जल सामान्यतः अभेद्य मैरो को छोड़ सके और फैट द्वारा शरीर में इसका पुन अवशोषण किया जा सके. ऐसा करने से शरीर में प्लाज़्मा की मात्रा में वृद्धि देखने को मिलती है.

ब्लड प्रेशर का नियंत्रण
लंबी-अवधि में ब्लड प्रेशर का नियंत्रण मुख्यतः गुर्दे पर निर्भर होता है. हालांकि, गुर्दे सीधे ही ब्लड प्रेशर का अनुमान नहीं लगा सकते, लेकिन नेफ्रॉन के सुचारू भागों में सोडियम और क्लोराइड की सुपुर्दगी में परिवर्तन द्वारा किए जाने वाले किण्वक रेनिन के स्राव को परिवर्तित कर देता है. जब कोशिकेतर द्रव उपखंड विस्तारित हो और ब्लड प्रेशर उच्च हो, तो इन आयनों की सुपुर्दगी बढ़ जाती है और रेनिन का स्राव घट जाता है. इसी प्रकार, जब कोशिकेतर द्रव उपखंड संकुचित हो और ब्लड प्रेशर निम्न हो, तो सोडियम और क्लोराइड की सुपुर्दगी कम हो जाती है और प्रतिक्रियास्वरूप रेनिन स्राव बढ़ जाता है.

रेनिन उन रासायनिक संदेशवाहकों की श्रृंखला का पहला सदस्य है, जो मिलकर रेनिन-एंजियोटेन्सिन तंत्र का निर्माण करते हैं. रेनिन में होने वाले बदलावों की वजह से इस तंत्र के आउटपुट, मुख्य रूप से एंजियोटेन्सिन II और एल्डोस्टेरॉन परिवर्तित करते हैं. प्रत्येक हार्मोन अनेक कार्यप्रणालियों के माध्यम से कार्य करता है, लेकिन दोनों ही गुर्दे द्वारा किए जाने वाले सोडियम क्लोराइड के अवशोषण को बढ़ाते हैं, जिससे कोशिकेतर द्रव उपखंड का विस्तार होता है और ब्लड प्रेशर बढ़ता है. जब रेनिन के स्तर बढ़े हुए होते हैं, तो एंजियोटेन्सिन II और एल्डोस्टेरॉन की सान्द्रता बढ़ जाती है, जिसके परिणामस्वरूप सोडियम क्लोराइड के पुनरवशोषण में वृद्धि होती है, कोशिकेतर द्रव उपखंड का विस्तार होता है और ब्लड प्रेशर बढ़ जाता है. इसके विपरीत, जब रेनिन के स्तर निम्न होते हैं, तो एंजियोटेन्सिन II और एल्डोस्टेरॉन के स्तर घट जाते हैं, जिससे कोशिकेतर द्रव उपखंड का संकुचन होता है और ब्लड प्रेशर में कमी आती है.

हार्मोन स्राव
मानव शरीर की बात करें तो गुर्दों से अनेक प्रकार के हार्मोन का स्राव होता हैं. जिसमें एरिथ्रोपीटिन, कैल्सिट्रिऑल और रेनिन शामिल हैं. एरिथ्रोपीटिन को डायलिसिस प्रवाह में हाइपॉक्सिया की प्रतिक्रिया के रूप में छोड़ा जाता है. यह बोन मैरो में एरिथ्रोपोएसिस यानि रेड ब्लड सेल के उत्पादन को उत्प्रेरित करता है. कैल्सिट्रिऑल, विटामिन डी का उत्प्रेरित रूप, कैल्शियम के आन्त्र अवशोषण तथा फॉस्फेट के किडनी रिअब्सोर्प्शन को प्रोत्साहित करता है. रेनिन, जो कि रेनिन-एंजिओटेन्सिन-एल्डोस्टेरॉन तंत्र का एक भाग है, एल्डोस्टेरॉन लेवेल के नियंत्रण में शामिल एक एंज़ाइम होता है.

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