अवलोकन

Last Updated: Jan 20, 2025
Change Language

छ्यलिने झिल्ली रोग (Hyaline Membrane Disease) : उपचार, प्रक्रिया, लागत और दुष्प्रभाव ‎ (Procedure, Cost And ‎Side Effects)‎

छ्यलिने झिल्ली रोग (Hyaline Membrane Disease) का उपचार क्या है? छ्यलिने झिल्ली रोग (Hyaline Membrane Disease) का इलाज कैसे किया जाता है ? छ्यलिने झिल्ली रोग (Hyaline Membrane Disease) के इलाज के लिए कौन पात्र है ? (इलाज कब किया जाता है ? ) उपचार के लिए कौन पात्र (eligible) नहीं है? क्या कोई भी दुष्प्रभाव (side-effects) हैं?‎ उपचार के बाद दिशानिर्देश (guidelines) क्या हैं? ठीक होने में कितना समय लगता है? भारत में इलाज की कीमत क्या है? उपचार के परिणाम स्थायी (permanent) हैं? उपचार के विकल्प (alternatives) क्या हैं?

छ्यलिने झिल्ली रोग (Hyaline Membrane Disease) का उपचार क्या है?

शिशु श्वसन संकट सिंड्रोम (Infant respiratory distress syndrome), नवजात श्वसन संकट सिंड्रोम (neonatal ‎respiratory distress syndrome), नवजात के श्वसन संकट सिंड्रोम(respiratory distress syndrome of new-‎born), सर्फेक्टेंट डिफेक्ट डिसऑर्डर (surfactant deficiency disorder), श्वसन रोग (respiratory illness), श्वसन ‎विकार (respiratory disorder) । छ्यलिने झिल्ली रोग, जिसे श्वसन संकट सिंड्रोम भी कहा जाता है, और यह आमतौर पर समय से पहले नवजात ‎शिशुओं द्वारा सामना की जाने वाली परेशानियों से होता है। जहां उन्हें साँस लेने में मदद के लिए ज़्यादा ‎ऑक्सीजन की ज़रूरत होती है। यह सिंड्रोम मुख्य रूप से फेफड़े के सर्फेक्टेंट के अपर्याप्त उत्पादन के साथ-‎साथ फेफड़ों में संरचनात्मक अक्षमता के कारण होता है। इसके अतिरिक्त, नवजात संक्रमण एक अन्य कारक है ‎जिससे यह समस्या हो सकती है। यह सिंड्रोम सर्फेक्टेंट संबंधित प्रोटीन के उत्पादन से जुड़ी कुछ आनुवांशिक ‎समस्या के कारण भी हो सकता है। शुरुआती 48 से 72 घंटों में हाइलिन झिल्ली की बीमारी बिगड़ती देखी जाती ‎है, जिसके बाद उपचार के बढ़ने के बाद स्थिति में सुधार होता है।

मुख्य रूप से लिपिड(lipids) और फॉस्फोलिपिड्स(phospholipids) से मिलकर सर्फैक्टेंट(surfactant), आमतौर ‎पर श्वसन पथ की कोशिकाओं से उत्पन्न होता है। जब यह सर्फेक्टेंट(surfactant) फेफड़े के ऊतकों में छोड़ा जाता है, ‎तो यह श्वसन पथ के भीतर सतह के तनाव को कम करके मदद करता है। सर्फेक्टेंट(surfactant) की अनुपस्थिति या ‎कमी प्रत्येक श्वास के साथ एल्वियोली के पतन का कारण बनती है। वायुकोश की ये क्षतिग्रस्त कोशिकाएं वायुमार्ग के ‎भीतर एकत्र हो जाती हैं और सांस लेने की क्षमता पर प्रतिकूल प्रभाव डालती हैं। ऐसी कोशिकाएँ बनाती हैं जिन्हें ‎हाइलिन झिल्ली के रूप में जाना जाता है। ढह चुके एल्वियोली को फिर से फुलाने के लिए बच्चा साँस लेने की ‎कोशिश करता है।

बच्चो के फेफड़े के कार्य में कमी होने की वजह से यह सही ढंग से ऑक्सीजन नहीं ले पाता और ऑक्सीजन लेने ‎की क्षमता कम हो जाती है, जिसकी वजह से खून में अधिक कार्बन डाइऑक्साइड(carbon dioxide) का निर्माण ‎शुरू हो जाता है। इससे खून में एसिड बहुत ज़्यादा बढ़ जाता है, जिससे एसिडोसिस(acidosis) नाम की बीमारी ‎हो सकती है, जो शरीर के अन्य अंगों पर भी असर डालती है अंग सही ढंग से काम नहीं करते । यदि अनुपचारित ‎छोड़ दिया जाता है, तो बच्चा साँस लेने के लिए कड़ी मेहनत करते हुए थक जाता है और अंत में हार मान लेता है।

हाइलिन झिल्ली रोग(hyaline membrane disease) से पीड़ित ऐसे बच्चो का उपचार यांत्रिक वेंटिलेशन के साथ-‎साथ बहिर्जात फेफड़े के सर्फेक्टेंट का उपयोग करके अच्छे तरीके से किया जाता है।

छ्यलिने झिल्ली रोग (Hyaline Membrane Disease) का इलाज कैसे किया जाता है ?

समय से पहले बच्चों में हाइलीन झिल्ली की बीमारी आम होती है, इसलिए यह सलाह दी जाती है कि अगर यह ‎संभव हो तो माता-पिता को प्रसव पूर्व प्रसव से बचना चाहिए। बच्चो को समय से पहले जन्म से रोकना, इस ‎सिंड्रोम के जोखिम को काफी हद तक रोक सकता है। ऐसे मामलों में, जहां इस तरह समय से पहले जन्म से बचा ‎नहीं जा सकता है, डिलीवरी से पहले कॉर्टिकोस्टेरॉइड्स वाली गर्भवती मां का चिकित्सा उपचार, बच्चे में इस ‎सिंड्रोम के जोखिम और गंभीरता को कम करने में मदद कर सकता है। इन स्टेरॉयड को गर्भावस्था के 24 वें और ‎‎34 वें सप्ताह के बीच उन महिलाओं को दिया जाना चाहिए जिन्हें जल्दी प्रसव होने की संभावना होती है। हाइलीन झिल्ली( hyaline membrane) की बीमारी शुरू होने वाले बच्चों को सांस लेने में कठिनाई होना शुरू जो ‎जाती है जो समय के साथ परेशान करती है , नाक के छिद्रों में जलन होने लगती है , बच्चो छाती को पीछे हटाना ‎शुरू करदेता है , सांस लेने के साथ-साथ सियानोसिस भी हो जाता है। ये लक्षण आमतौर पर उपचार के तीसरे ‎दिन अपने चरम पर पहुंच जाते हैं और बच्चे को दस्त शुरू हो जाते हैं उसके बाद इसका जल्दी से हल किया जा ‎सकता है और सांस लेने के लिए कम ऑक्सीजन और यांत्रिक सहायता की आवश्यकता होती है।

हाइलिन झिल्ली की बीमारी के उपचार में बच्चे को ट्रेकिआ में एक एंडोट्रैचियल ट्यूब(endotracheal tube) से ‎सम्मिलित करना, कृत्रिम वेंटिलेशन(artificial ventilation) और पूरक ऑक्सीजन प्रदान करना, निरंतर सकारात्मक ‎वायुमार्ग दबाव (CPAP) बनाए रखना, कृत्रिम और (बहिर्जात) सर्फैक्टेंट की दवाएं और प्रशासन शामिल हैं।

जन्म के बाद पहले छह घंटों के अंदर प्रशासित होने पर इस समस्या के उपचार में कृत्रिम सर्फेक्टेंट सबसे अच्छा ‎साबित हुआ है। पोर्सिन सर्फेक्टेंट(Porcine surfactant) या गोजातीय सर्फेक्टेंट(bovine surfactant) को हाइलिन ‎झिल्ली की बीमारी के इलाज में अत्यधिक लाभकारी पाया गया है। ये सर्फेक्टेंट आमतौर पर ज्यादातर शिशुओं के ‎लिए निवारक उपचार के रूप में दिए जाते हैं जो इस बीमारी के उच्च जोखिम में हैं।

छ्यलिने झिल्ली रोग (Hyaline Membrane Disease) के इलाज के लिए कौन पात्र है ? (इलाज कब किया जाता है ? )

हाइलिन झिल्ली रोग से पीड़ित बच्चो के लिए, फिर दुबारा यह बीमारी न हो उसको रोकने के लिए एक तत्काल ‎उपचार की बहुत ज़रूरत होती है। ऐसा समय से पहले जन्म लेने वाले बच्चो के लिए उपचार की ज़रूरत होती है ‎उनको कम से कम 72 घंटे या जब तक जोखिम की अवधि समाप्त नहीं होती है तब तक उपचार की ज़रूरत होती ‎है। शिशु के खतरे से बाहर होने के बाद भी, इसको उपचार कुछ समय तक चलता रहता है ।आगे फुफ्फुसीय ‎समस्याओं के मामले में, माता-पिता को सलाह दी जाती है कि वे जल्द से जल्द अपने डॉक्टर से परामर्श करें और ‎इस बीमारी को आगे होने से रोके।

उपचार के लिए कौन पात्र (eligible) नहीं है?

प्रीटरम में जन्मे बच्चों को, जिन्हें सांस लेने में समस्या हो रही हो या हाइलिन झिल्ली(( hyaline membrane) ) की ‎बीमारी से संबंधित कोई अन्य लक्षण हो, तो जल्द से जल्द इलाज कराना चाहिए। उपचार की प्रक्रिया में देरी बच्चे ‎के लिए बुरी साबित हो सकती है। इस बीमारी से पीड़ित बच्चो के लक्षण शुरुआती 48 या 72 घंटों के उपचार के ‎दौरान अपने चरम पर पहुंच जाते हैं, जिसके बाद आमतौर पर हालत में सुधार देखा जाता है। इस बीमारी से पीड़ित ‎बच्चे को ठीक होने में औसतन लगभग 5 दिन लगते हैं अगर रोग गंभीर हो जाता है तो 1 महीना भी लग जाता है ।

क्या कोई भी दुष्प्रभाव (side-effects) हैं?‎

यदि समय से पहले जन्म लेने वाले बच्चो की तत्काल देखभाल शुरू की जाती है, जिससे हाइलिन झिल्ली की ‎बीमारी वाले बच्चो का सबसे अच्छा इलाज किया जा सके। ऐसे मामलों में, उपचार शुरू होने के बाद कुछ दिनों ‎के अंदर स्थिति ठीक हो जाती है। हालांकि, ऐसे बच्चो के ज़िन्दगी में आगे भी खतरा होने की सम्भावना होती है। ‎ऐसे बच्चों को उचित देखभाल की ज़रूरत होती है जब तक कि वे एक निश्चित उम्र तक नहीं बढ़ते। इसके अलावा, ‎यदि ऐसे बच्चों को भविष्य में किसी अन्य लक्षण से पीड़ित देखा जाता है, तो उन्हें उचित चिकित्सा के लिए तुरंत ‎डॉक्टर के पास ले जाना चाहिए।

उपचार के बाद दिशानिर्देश (guidelines) क्या हैं?

उपचार के बाद, रोगियों को डॉक्टरों की मर्ज़ी से दवा का उपयोग करके दर्द को ख़त्म करना होगा। इसके ‎अलावा, उचित स्वास्थ्य बनाए रखने के लिए एक उचित आहार की आवश्यक है। मरीजों को हर समय ‎हाइड्रेटेड(hydrate) लेने की जरूरत है। इस तरह के एक चरण में इलेक्ट्रोलाइट(electrolyte) लेने की ज़रूरत ‎है। इसके साथ ही रोगियों को शराब और धूम्रपान तम्बाकू का सेवन पूरी तरह से बंद कर देना चाहिए। यदि इन ‎परिवर्तनों का पालन नहीं किया जाता है, तो एपी बाद के समय में फिर से शुरू हो सकता है।ठीक होने में कितना ‎समय लगता है?‎

रिकवरी बीमारी पर निर्भर करती है या फिर इस चीज़ पे की आप कितना ख्याल रख रहे हो दवाएं टाइम से लेते हो ‎या नहीं । उदाहरण के लिए, एक गैर-सर्जिकल उपचार के मामले में, रिकवरी तेज हो सकती है, लेकिन यदि ‎उपचार में सर्जरी शामिल है, तो रिकवरी दर बहुत धीमी हो जाएगी।

ठीक होने में कितना समय लगता है?

ठीक होने का समय व्यक्ति से व्यक्ति अलग होता है। किस मरीज़ की बिमारी कितनी गंभीर है और वह किस तरह का इलाज ले रहा है ठीक होने का इस बिमारी में कोई निश्चित समय नहीं है। मरीज़ किस डॉक्टर से इलाज करवा रहा है ठीक होने का समय इस बात पर भी निर्भर करता है।

भारत में इलाज की कीमत क्या है?

हाइलिन झिल्ली(( hyaline membrane) ) रोग से पीड़ित शिशुओं के उपचार की कीमत भारत केअलग अलग ‎जगहों पे अलग अलग है। हालांकि, इस बीमारी को उपचार काफी खर्चे वाला है। हाइलिन झिल्ली रोग के उपचार ‎की औसत लागत 29,100 रुपये से लेकर 58,200 रुपये तक है। यह उपचार भारत के सभी प्रमुख अस्पतालों में ‎उपलब्ध है।

उपचार के परिणाम स्थायी (permanent) हैं?

आमतौर पर, ज्यादातर मामलों में, उपचार के परिणाम सकारात्मक होने के साथ-साथ स्थायी भी होते हैं। ‎लेकिन संक्रमण को वापस आने से रोकने के लिए पर्याप्त आत्म देखभाल करना अनिवार्य है। ‎इस प्रकार, दवाएं जिनमें क्रीम और मलहम शामिल हैं, उन्हें चकत्ते के गायब होने के बाद भी कुछ समय के ‎लिए लागू किया जाना चाहिए ताकि जिससे बिलकुल ही निशान चले जाए और पूर्ण रूप से ‎आराम हो जाये। जिन लोगों को एक बार फंगल संक्रमण हो चुका होता है, उन्हें दोबारा होने का अधिक ‎खतरा होता है। यदि उचित देखभाल और निवारक उपाय नहीं किए जाते हैं, तो कवक फिर से वापस आ ‎सकता है और पैर की उंगलियों और तलवों को प्रभावित कर सकता है।

उपचार के विकल्प (alternatives) क्या हैं?

इन उपचारों के अलावा, कोई भी विभिन्न होम्योपैथी(homeopathy) और ‎आयुर्वेदिक(ayurvedic) तरीकों से हाइलिन झिल्ली(( hyaline membrane) ) रोग से पीड़ित शिशुओं को ठीक करने का विकल्प चुना जा सकता है। घरेलू ‎उपचार और एक स्वस्थ जीवनशैली भी ठीक करने में मदद कर सकती है।

लोकप्रिय प्रश्न और उत्तर

Hello doctor my relatives girl baby was affected by canavan disease. What the treatment available for that?

MBBS
General Physician, Mumbai
It is a genetic disease and hence there is no treatment for cure and we should plan treatment for symptomatic relief and do palliative management and even life is not more than 10 years and giving 2.5mg folicacid tablet will be helpful lifelong
1 person found this helpful

Hi my son is 4 years old from last few days he is excessively crying, I think that he has problem with his digestive system whenever he takes milk he started crying after sometime please help me he is also diagnosed with canavan diseases.

MD - Homeopathy
Pediatrician, Mumbai
Intake of milk might be making him cry because he must not be liking milk. Crying usually at this age is attention seeking behaviour. Ignore at times when you think that he is crying without any reason.
लोकप्रिय स्वास्थ्य टिप्स

Gangrene - In-depth Of It!

MD - Acupuncture, Diploma In Accupuncture, Advanced Diploma In Accupuncture
Acupuncturist, Delhi
Gangrene - In-depth Of It!
Gangrene In gangrene, body tissue dies due to an inadequate supply of blood. The main cause of gangrene is the loss of blood supply that occurs due to an underlying illness, injury and/or infection. Generally, it affects fingers, toes, and limbs. ...

Treatment of Gaucher s disease!

MD - Acupuncture, Diploma In Accupuncture, Advanced Diploma In Accupuncture
Acupuncturist, Delhi
Treatment of Gaucher s disease!
Treatment of Gaucher s disease Homeopathic Treatment of Gaucher s disease Acupuncture & Acupressure Treatment of Gaucher s disease Psychotherapy Treatment of Gaucher s disease Conventional / Allopathic Treatment of Gaucher s disease Surgical Treat...

Colorectal Cancer - In a Nutshell!

Post Doctoral Research (Ph.D.) (A.M) (Integrative Oncology), PGCert.- Integrative Oncology For Physicians (MSKCC, N.Y, USA), PG (Doctoral) - Doctor of Natural Medicine (N.D/ N.M.D), PGDip.- Clinical Nutrition, PGDip.- Clinical Counseling, PGCert.- Advanced Homeopathic Oncology (PGCCHO), PGCert.- Homeopathic Oncology (CCHO), PGDip.- Oncology & Haematology (A.M), CME Cert. - Clinically Relevant Herb-Drug Interactions (Cine-Med Inc. USA), CME Cert.- Advances in Cancer Immunotherapy, CME Cert.- Immunotherapy Guidelines (NSCLC), CME Cert. Cancer Nutrition, PG Cert. - Ayurveda (I), PGCert.- Advanced Strategic Management Programme (APSM), B.E - CSE, CME Cert. - Essentials of Palliative Care, CME Cert. - Symptom Management in Palliative Care, CME Cert. - Transitions in Care from Survivorship to Hospice, Cert. of Specialization in Palliative Care Always, CME Cert. - Traditional Herbal Medicine in Supportive Cancer Care (Integrative Oncology)
Alternative Medicine Specialist, Bhubaneswar
Colorectal Cancer - In a Nutshell!
Colorectal cancer is otherwise known as cancer of the colon or the rectum. This can affect both men and women with age being a major risk factor. Majority of such cancers are seen to occur after age of 50 years. Type: colorectal cancers can presen...
3249 people found this helpful
Content Details
Written By
Diploma in Paediatric
Pediatrics
Play video
Heart Diseases
Hi, I am Dr. M Wali. Internal Medicine Specialist. Lybrate is serving to the doctor who is practicing in their various specialty as well as helping patients to reach to the best doctor. I congratulate Lybrate for doing this great job which is the ...
Play video
Know More About Motor Neuron Disease
Hi, I am Dr. A.K Gupta, Homeopath. Aaj hum baat krenge motor neuron disease ki. Isme message muscles tak nhi phuchta hai. Iski vjha se muscles me weakness aani shuru ho jati hai. Is bimari ka kafi late pta chalta hai. Isme agar patient ko chalne f...
Play video
Lifestyle Diseases
I am Dr. Dinesh Kumar and I am a General Physician. Lifestyle diseases are defined as disease link with a way, people live their life. This is commonly caused by alcohol, drugs, smoking as well as lack of physical activities and unhealthy eating. ...
Play video
Parkinson's Disease
Hi, I am Dr. Namit Gupta. Aaj hum baat karenge disease of elderly, Parkinson's disease, ye disease ek neurodegenerative disorder hai and mostly elder patient mein paya jata hai, as the patient grows old the incidence increases. Most of the patient...
Play video
Tropical Diseases
Hello everyone! I am Dr. Himanshu Shekhar. I am the medical director for SCI International Hospital, Greater Kailash, New Delhi. As well as I am a consultant in the internal medicine department. I would like to discuss the cases which we are getti...
Having issues? Consult a doctor for medical advice