पुराने समय से ही भारतीय भोजन में कई तरह के मसालों का प्रयोग किया जाता रहा है। ये मसाले न सिर्फ भोजन को स्वादिष्ट मदद करते हैं, बल्कि हमारे स्वास्थ्य की देखभाल करने में भी सहायक होते हैं। इन्ही मसालों में एक नाम कलौंजी का भी आता है। भारत में शायद ही कोई ऐसा हो जिसने अभी तक कलौंजी का इस्तेमाल नहीं किया होगा, या इसके नाम से परिचित नहीं होगा। लेकिन अगर हम कलौंजी के तेल की बात करें तो ऐसे कई लोग होंगे, जो अभीतक इससे अनभिज्ञ होंगे। आज हम अपने इस लेख के माध्यम से आपको कलौंजी के तेल के फायदों और इसके दुष्प्रभाव से परिचित कराएंगे।
दरअसल, भारतीय मसालों में अहम स्थान रखने वाला कलौंजी काले रंग का बीज होता है। यह बीज हमें कलौंजी सैटिवा नाम के एक छोटे से पौधे से प्राप्त होता है, जिसे पूरे भारत में उगाया जा सकता है। कलौंजी को सबसे महत्वपूर्ण चिकित्सक हर्ब जाना जाता है, इसीलिए इसे आशीष का तेल भी कहा जाता है। यह बीज तिल जितने की बड़े होते हैं। हालांकि इनका आकार अंडाकार की जगह त्रिकोण होता है। इसी बीज से तेल भी निकाला जाता है, जिसे कलौंजी का तेल कहते हैं। इसके अलावा इसे काले बीज का तेल भी कहा जाता है। वैसे तो बाजारों से कलौंजी के तेल को आसानी से प्राप्त किया जा सकता है। लेकिन अगर आप चाहे तो इसे घर में भी बना सकते हैं।
कलौंजी का तेल हमारे लिए काफी हितकारी है। यह भोजन को स्वादिष्ट बनाने में तो अहम भूमिका निभाता ही है। साथ ही हमें स्वस्थ जीवन जीने में भी मदद करता है। इसकी वजह इसमें पाए जाने वाले पौष्टिक तत्व हैं, जो हमारी सेहत के लिए काफी हितकारी हैं। कलौंजी के तेल में विटामिंस, प्रोटीन, फाइबर, आयरन, कैल्शियम, पोटैशियम और सोडियम जैसे पोषक तत्व पाए जाते हैं, जो कई तरह की बीमारियों को दूर करने में कारगर साबित हो सकते हैं। कलौंजी का तेल थाइमोक्विनोन का एक समृद्ध स्रोत है जो अपने ट्यूमर को कम करने अहम भूमिका निभाता है। इसके अलावा यह तेल सूजन रोधी और एंटीऑक्सीडेंट गुणों के लिए जाना जाता है।
मधुमेह की समस्या से पीड़ित लोगों के लिए कलौंजी का तेल बहुत फायदेमंद हो सकता है। इसकी वजह इसमें पाए जाने वाले एंटी-डायबटीज गुण हैं। इसी वजह से यह तेल मधुमेह रोगियों में ब्लड शुगर के स्तर को नियंत्रित करने में मदद करता है। इस तेल को टाइप 2 के डायबटीज पीड़ितों के लिए बिना किसी दुष्प्रभाव के उपयोगी पाया गया है।
वर्ष 2011 में किए गए शोध से पता चला है कि कलौंजी का तेल कई तरह की एलर्जी को कम करने में मददगार साबित हो सकता है। इसके उपयोग से नाक बहने, छींकने, खुजली और नाक बंद होने जैसी समस्याओं से छुटकारा पाया जा सकता है। ये समस्याएँ किसी न किसी एलर्जी के रूप में शरीर में पैदा हो जाती हैं।
अस्थमा की समस्या से पीड़ित लोगों में कलौंजी के तेल का प्रयोग अधिक लाभ दे सकता है। वर्ष 2017 में किए गए एक अध्ययन के अनुसार पता चला था कि अस्थमा के इलाज के लिए प्लेसीबो का उपयोग करने वाले लोगों की तुलना में कलौंजी का तेल कैप्सूल लेने वाले लोगों में इस बीमारी के नियंत्रण में अधिक सुधार देखा गया है।
कलौंजी का तेल एंटी-इंफ्लेमेटरी गुणों से संपन्न होता है और अपने इन्ही गुणों की वजह से यह रूमेटाइड आर्थराइटिस की समस्या से जूझ रहे लोगों को जबरदस्त फायदा पहुंचाता है। इस तेल को लगाने और मालिश करने से न केवल सूजन कम होती है बल्कि दर्द भी कम होता है। इसलिए कई बार डॉक्टर भी इस समस्या से परेशान लोगों को कलौंजी के तेल का इस्तेमाल करने की सलाह देते हैं।
कलौंजी का तेल मोटापे की समस्या से जूझ रहे लोगों के लिए भी काफी मददगार साबित हो सकता है। दरअसल, मोटापे को कम करने के लिए इस तेल को सप्लीमेंट के रूप में लिया जा सकता है। कलौंजी का तेल मोटापे से ग्रस्त लोगों के बॉडी मास इंडेक्स को कम करने में सहायता प्रदान करता है और इस प्रकार मोटापे से निपटने में आवश्यक सहायता प्रदान करता है।
अगर आप लीवर की समस्या से जूझ रहे हैं तो आपके लिए कलौंजी के तेल का उपयोग एक बेहतर विकल्प साबित हो सकता है। जी हां, कलौंजी का तेल लीवर रोग से जुड़ी जटिलताओं को कम करता है और लीवर के समुचित कार्य को उत्तेजित करता है। इससे आपके पाचन क्रिया में भी सुधार होता है।
इरेक्टाइल डिसफंक्शन की समस्या के इलाज के लिए कलौंजी का तेल एक बहुत प्रभावी प्राकृतिक उपचार हो सकता है। दरअसल, इस तेल का उपयोग श्रोणि क्षेत्र में रक्त परिसंचरण को बढ़ाता ही है साथ ही वीर्य की मात्रा और शुक्राणुओं की संख्या में सुधार करने में भी आवश्यक सहायता प्रदान करता है। इस वजह से यह आपकी शादीशुदा लाइफ में नई ख़ुशी ला सकता है।
हाल के शोध के अनुसार पूरक के रूप में काले जीरे के तेल का सेवन थायरॉयड ग्रंथियों के कामकाज को उत्तेजित कर सकता है जिससे हाइपोथायरायडिज्म की स्थिति में सुधार करने में सहायता मिलती है। इसलिए इस उद्देश्य से भी आप इस तेल का प्रयोग कर सकते हैं।
पाचन के मुद्दों से पीड़ित लोगों में कलौंजी का तेल बहुत अधिक लाभ प्रदान कर सकता है। यह सूजन के इलाज में मदद तो करता ही है। साथ ही भूख, दस्त और अपच में भी सुधार करता है। इस तेल में मौजूद थाइमोक्विनोन के गुण इसे एंटी-फंगल गुणों से संपन्न बनाता है और कारण पाचन तंत्र के फंगल संक्रमण से लड़ने में मदद करता है।
कलौंजी का तेल मजबूत फाइटोकेमिकल्स और एंटीऑक्सीडेंट गुणों से संपन्न होता है और इन गुणों के कारण यह तेल प्राकृतिक रूप से कैंसर का इलाज करने में मदद करता है। काले बीज के तेल का सबसे सक्रिय संघटक थाइमोक्विनोन मेटास्टेसिस को कम करता है और एपोप्टोसिस को प्रेरित करता है।
कलौंजी के तेल बालों को स्वस्थ रखने में मदद करता है। सिर में इस तेल की मालिश करने से खोपड़ी और बालों के स्वास्थ्य में वृद्धि होती है। निगेलोन की उपस्थिति के कारण कलौंजी का तेल एंड्रोजेनिक खालित्य की स्थिति का इलाज करने में मदद कर सकता है।इसके अलावा यह रूसी की समस्या से भी छुटकारा दिलाता है। जीवाणुरोधी, एंटीऑक्सिडेंट और सूजनरोधी गुणों की उपस्थिति कलौंजी का तेल बालों में सूजन और गुच्छे को कम करता है। यह सिर पर सुखदायक प्रभाव प्रदान करता है।
चूंकि कलौंजी का तेल जीवाणुरोधी और सूजनरोधी गुणों से संपन्न होता है इसलिए इस तेल का उपयोग विभिन्न त्वचा रोगों को सही करने के लिए भी किया जा सकता है। इस तेल का इस्तेमाल मुँहासे, सोरायसिस और एक्जिमा के उपचार में किया जा सकता है। इसके अलावा यह रूखी त्वचा के लिए लाभदायक साबित हो सकता है।
विभिन्न श्वसन विकारों की समस्या से पीड़ित लोगों में कलौंजी के तेल का सेवन बहुत फायदेमंद साबित हो सकता है। तेल के सूजनरोधी गुण श्वसन पथ की सूजन को कम करने में मदद करते हैं जिससे श्वसन विकार के उपचार में सकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
हाल ही में किए गए एक अध्ययन के अनुसार यह पता चला था कि कलौंजी के तेल के कैप्सूल लेने से ध्यान और स्मृति में सुधार करने में मदद मिलती है जिससे यह अल्जाइमर रोग की प्रगति को धीमा कर देता है।
वैसे तो किसी ख़ास परिस्थितियों के लिए कलौंजी के तेल के खुराक का कोई जिक्र नहीं किया गया है। फिर भी हम इसे बाजार में मिलने वाली इसके बोतलों में प्रिंटेड लेबल के अनुसार इस्तेमाल में ला सकते हैं। इस प्रिंटेड लेबल के अनुसार, प्रारंभ में, एक व्यक्ति एक दिन में आधा चम्मच से शुरू कर सकता है और फिर धीरे-धीरे एक दिन में 3 चम्मच तक बढ़ सकता है। अगर किसी व्यक्ति को तेल का स्वाद पसंद नहीं आता है तो वह काले बीज के तेल के कैप्सूल को लेने का वैकल्पिक तरीका चुन सकता है। इसमें भी एक व्यक्ति को एक दिन में 1 कैप्सूल से शुरू करने और फिर धीरे-धीरे एक दिन में 3 कैप्सूल तक ले जाने की आवश्यकता होती है। किसी विशेष उपयोग के लिए कलौंजी के तेल की कुछ बूँदें आवश्यक राहत प्रदान करने के लिए पर्याप्त हैं। हालांकि सभी की सेहत में अंतर होता है, इसलिए इसके इस्तेमाल से पहले डॉक्टर की सलाह जरूर ले लेना चाहिए।
स्वाद के लिए इसका इस्तेमाल भोजन में भी किया जा सकता है। साथ ही आचार में भी कलौंजी का तेल डाल सकते हैं। सलाद में ड्रेसिंग की तरह भी कलौंजी के तेल का इस्तेमाल कर सकते हैं। हालांकि, इसका स्वाद कड़वा होता है इसलिए इसे शहद के साथ मिलाकर सेवन करना चाहिए।
कलौंजी के तेल के विभिन्न लाभों के अलावा, इसके कुछ दुष्प्रभाव भी हैं जो किसी व्यक्ति द्वारा अनुभव किए जा सकते हैं।इसके ये दुष्प्रभाव निम्नलिखित हैं-
कलौंजी के तेल के दीर्घावधि उपयोग के बारे में बहुत कम जानकारी है। काले बीज का तेल मौखिक रूप से या शीर्ष पर लगाए जाने पर एलर्जी की प्रतिक्रिया या चकत्ते का कारण बन सकता है। तेल लगाने से पहले पैच टेस्ट करना बेहतर होता है।
तेल के मौखिक सेवन से कब्ज, उल्टी और पेट खराब होने जैसे कई दुष्प्रभाव हो सकते हैं।
कलौंजी के तेल के कारण शरीर का रक्त थक्का जमने की प्रक्रिया धीमी हो सकती है, इसलिए यदि किसी व्यक्ति को सर्जरी करवानी है तो उसे सलाह दी जाती है कि वह सर्जरी से कम से कम दो सप्ताह पहले इस तेल का सेवन बंद कर दे।
कलौंजी के तेल का उपयोग उन रोगियों द्वारा नहीं किया जाना चाहिए जो गर्भवती हैं या स्तनपान करा रही हैं। यह तेल उन दवाओं के साथ भी परस्पर क्रिया कर सकता है जो बीटा-ब्लॉकर्स की श्रेणी से संबंधित हैं।
कलौंजी की खेती के लिए ठंडी और बीज अंकुरण के समय शुष्क और गर्म जलवायु उपयुक्त मानी जाती है। इसलिए इसे रबी की फसल कहा जाता है। इसके लिए उचित जल निकासी वाली जीवाश्म युक्त बलुई दोमट सबसे उपयुक्त माना गया है। कलौंजी की बुवाई मध्य सितम्बर से मध्य अक्टूबर तक कर सकते सकते है। इसी कलौंजी को पीसकर इसका तेल बनाया जाता है। आप घर पर भी कलौंजी का तेल बना सकते हैं।