अवलोकन
हमारे देश में कई तरह की जड़ी-बूटियां पाई जाती हैं, जो, कई तरह के पौष्टिक तत्वों से भरपूर होती हैं। इसी वजह से ये जड़ी-बूटियां प्राचीनकाल से ही कई छोटे बड़े रोगों को दूर करने के लिए उपयोग में लाई जाती रही हैं। आज हम एक ऎसी जड़ी बूटी के बारे में आपको बताने जा रहे, जिसका नाम शायद आपने पहले कभी न सुना हो। दरअसल, इस जड़ी-बूटी का नाम गोटू कोला है। अपने गुणों की वजह से यह जड़ी-बूटी भी आई रोगों को ठीक करने में कारगर है। आज अपने इस लेख के माध्यम हम आपका गोटू कोला के इन्ही गुणों से परिचय कराएंगे। साथ ही आपको इसके दुष्प्रभावों के बारे में भी बतायेंगे। सबसे पहले हम गोटू कोला के विषय में जानते हैं।
दरअसल, गोटू कोला एक ऐसी जड़ी बूटी है, जिसका उपयोग प्राचीनकाल से ही चिकित्सीय प्रयोजनों में किया जाता रहा है। यह एक बारहमासी जड़ी-बूटी है, जो आमतौर पर एशिया के कुछ क्षेत्रों में उगती है। यह एक पत्तेदार पौधा होता है। इसका वैज्ञानिक नाम सेंटेला असिएटिका है। इसे मण्डूकपर्णी और ब्राह्मी बूटी के नाम से भी जाना जाता है। इसके पत्ते कुछ मांसल और छ्त्राकार होते हैं तथा उनके किनारों पर दंतुर होते है। इसके पत्तों का व्यास लगभग आधा ईंच से लेकर एक ईंच तक होता है। उत्तरी भारत में यह लगभग हर नमी वाली और छाया वाली जगह पर मिल जाता है। इस पौधे के तने पतले होते हैं और फूल सफेद या गुलाबी रंग के होते हैं, जो झुंड के रूप में मिट्टी के नज़दीक होते हैं।
गोलू कोटा हमारे स्वास्थ्य के लिए काफी लाभकारी जड़ी-बूटी है। यह कई प्रकार के रोगों को दूर करने में कारगर है। गोटू कोला में ट्राइटरपेनॉइड सैपोनिन्स जैसे यौगिक होते हैं। इस वजह से चिकित्सीय रूप से इसका काफी महत्व है। खासतौर पर जली त्वचा को ठीक करने के लिए, याददाश्त मजबूत करने के लिए, जोड़ों के दर्द ठीक करने के लिए और घावों को जल्दी भरने के लिए इस गुणकारी जड़ी-बूटी का उपयोग किया जाता है। इसके अलावा ये कई अन्य रोगों के खिलाफ भी काफी कारगर साबित हो सकता है।
गोटू कोला की गिनती प्राचीनकाल से ही लाभकारी जड़ी-बूटियों के रूप में की जाती रही हैं। इसके स्वास्थ्य लाभ निम्नलिखित हैं-
आजकल की भागदौड़ भरी जिंदगी में चिंता और थकान रहना आम बात है। हालांकि, यह स्थिति हमारे मष्तिष्क पर बुरा प्रभाव डालते हैं। साथ ही इस वजह से सही तरह से सोचने की क्षमता भी छिन जाती है। गोटू कोला इस स्थिति से निजात दिलाने में काफी कारगर है। दरअसल, यह जड़ी-बूटी दिमागी उलझन और तनाव को कम करती हैं और क्षुब्त पड़ी मष्तिष्क की कोशिकाओं में नई जान फूंक देती है। यह दिमाग में खून की जरुरत को पूरा करती है और ऑक्सीजन देती है। इससे मष्तिक की स्पष्टता में सुधार होता है।
घावों और जलन को ठीक करने में मदद करने के लिए गोटू कोला को काफी उपयोगी बताया जाता रहा है। दरअसल, गोटू कोला में ठंडक पहुंचाने के गुण होते हैं। घाव और जली हुई त्वचा पर गोटू कोला का अर्क या लेप लगाने से काफी फ़ायदा मिलता है। हालांकि, अगर अधिक जला हुआ है तो तुरंत डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए।
गोटू कोला में स्मृति और तंत्रिका कार्य को बढ़ाने की क्षमता होती है, जो इसे अल्जाइमर रोग के इलाज में संभावित बनाती है। इसके अलावा यह कोशिकाओं को अल्जाइमर से जुड़ी पट्टिका बनाने से भी बचा सकता है। फिर भी, अभी इसको लेकर शोध चल रहा है कि अल्जाइमर के इलाज के लिए गोटू कोला का उपयोग कैसे किया जा सकता है। यदि आप इसे अपनी उपचार योजना में शामिल करने में रुचि रखते हैं, तो उपयोग करने से पहले अपने डॉक्टर से बात करें।
मस्तिष्क के कार्य पर गोटू कोला का सकारात्मक प्रभाव इसे एक प्रभावी अवसादरोधी भी बना सकता है। दरअसल, दवा के रूप में गोटू ओला का सेवन करने पर तनाव, चिंता और अवसाद में कमी आती है। इसके अलावा शरीर के वजन, शरीर के तापमान और हृदय गति सहित व्यवहार संबंधी अवसाद के कुछ तत्वों पर भी इस हर्बल उपचार का सकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
गोटू कोला मिर्गी में बहुत प्रभावी नहीं है जब यह अकेले उपयोग किया जाता है। वच (एकोरस कैलामास), कुलंजन और इलायची के बीज जैसी अन्य जड़ी-बूटियों के साथ, मिर्गी के प्रबंधन में इसका बहुत अच्छा प्रभाव होता है। आयुर्वेद में, इन जड़ी बूटियों का उपयोग मिर्गी और बेहोशी के उपचार में किया जाता है।
गोटू कोला सूजन और परिसंचरण से जुड़ी समस्याओं को कम कर सकता है।दरअसल, वैरिकाज़ नसों के साथ हल्के से मध्यम सतही शिरापरक रोग का अनुभव करने वाले लोगों के लिए गोटू कोला एक लाभकारी उपचार हो सकता है। इसके साथ ही वैरिकाज़ नसों के इलाज में गोटू कोला उपयोगी हो सकता है। ऐसा इसलिए हो सकता है क्योंकि गोटू कोला का संवहनी दीवार के संयोजी ऊतक पर सकारात्मक चयापचय प्रभाव पड़ता है।
चिंता, तनाव और अवसाद का इलाज करने की अपनी कथित क्षमता को देखते हुए, गोटू कोला का उपयोग अनिद्रा के इलाज के लिए भी किया जा सकता है जो कभी-कभी इन स्थितियों के साथ होता है। अनिद्रा और अन्य नींद संबंधी अन्य विकारों के इलाज के लिए इस हर्बल उपचार का इस्तेमाल किया जा सकता है।
गोटू कोला खिंचाव के निशान को कम कर सकता है। ऐसा माना जाता है कि गोटू कोला में पाए जाने वाले टेरपेनोइड्स शरीर में कोलेजन उत्पादन को बढ़ाते हैं। यह नए खिंचाव के निशान को बनने से रोकने में मदद कर सकता है, साथ ही किसी भी मौजूदा निशान को ठीक करने में मदद कर सकता है।
गोटू कोला के सूजनरोधी गुण गठिया के इलाज में उपयोगी हो सकते हैं। इसमें मौजूद एंटीऑक्सीडेंट प्रतिरक्षा प्रणाली को शक्ति प्रदान करते हैं, जिससे दर्द से छुटकारा पाने में भी मदद मिलती है।
जिगर और गुर्दे की विषाक्तता पर गोटू कोला का अच्छा प्रभाव पड़ सकता है। इसका उपयोग एंटीबायोटिक आइसोनियाज़िड के विषाक्त दुष्प्रभावों को दबाने के लिए किया जा सकता है। आइसोनियाज़िड का उपयोग तपेदिक के इलाज और रोकथाम के लिए किया जाता है।
गोटू कोला का उपयोग निम्नलिखित तरीकों से किया जा सकता है-
वैसे तो गोटू कोला हमारे स्वास्थ्य के लिए एक लाभकारी जड़ी-बूटी है। लेकिन कुछ मामलों में यह सिरदर्द, पेट खराब और चक्कर आने का कारण बन सकता है। कम खुराक से शुरू करना और धीरे-धीरे पूरी खुराक तक काम करना आपके दुष्प्रभावों के जोखिम को कम करने में मदद कर सकता है। आपको एक बार में केवल दो से छह सप्ताह के लिए गोटू कोला लेना चाहिए। उपयोग फिर से शुरू करने से पहले दो सप्ताह का ब्रेक लेना सुनिश्चित करें। इसके अलावा जब इसे त्वचा पर लगाया जाता है, तो जलन पैदा को सकती है।इसके कई अन्य दुष्प्रभाव हैं, जो निम्नलिखित है-
गोटू कोला पौधा देश के उष्ण और उपोष्ण दलदली क्षेत्रों में पाया जाता है। इसकी खेती के लिए अत्याधिक नमी, उपजाऊ, रेतली दोमट और चिकनी मिट्टी अच्छी मानी जाती है। गोटू कोला की बुवाई का सही समय फरवरी-मार्च का महीना है। इसका पौधा छांव में अच्छे से बढ़ता है। बुवाई के लिए एक कटा हुआ तना प्रयोग किया जा सकता है। एक एकड़ में लगभग 120 तने प्रयोग किए जा सकते हैं। बुवाई के समय बीज के उपचार की जरूरत नहीं होती।