Symptoms Of Platelet Deficiency - प्लेटलेट्स की कमी के लक्षण
खून में प्लेटलेट्स की मात्रा कम हो जाना डेंगू का सबसे बड़ा लक्षण है, मगर यह स्थिति दूसरी बीमारियों में भी हो सकती है. एक्सपर्ट्स के मुताबिक, डेंगू संक्रमण में सबसे पहले प्लेटलेट्स को नुकसान पहुंचता है, लेकिन गंभीर वायरल बुखार, कैंसर या एक्सिडेंट आदि की वजह से ज्यादा ब्लीडिंग भी इसकी वजह हो सकती है. मलेरिया हो या डेंगू किसी भी वायरल इन्फेक्शन से शरीर में प्लेटलेट्स कम हो ही जाते हैं. सामान्य तौर पर एक स्वस्थ व्यक्ति में 1.5 लाख से 4 लाख प्लेटलेट होना चाहिए, लेकिन यदि ये एक लाख, 90 हजार या उससे कम भी हैं, तब भी इंसान को कोई खतरा नहीं होता. भले ही ज्यादा खतरा नहीं होता लेकिन कई बार पैथोलॉजी लैब या चिकित्सक मरीज और उसके घरवालों के मन में इतना भय का माहौल बना देते हैं जिससे ऐसा लगने लगता है कि मरीज को प्लेटलेट चढ़वाने के अतिरिक्त अब कोई दूसरा रास्ता नहीं है. डेंगू जैसी बीमारियों में तो विशेष रूप से इसे खतरे के रूप में ही देखा जाता है. बिना चढ़ाए भी इन्हें बढ़ाया जा सकता है, केवल कुछ बीमारियां या स्थितियों में ही प्लेटलेट चढ़ाना जरूरी हो जाता है.
इन बीमारियों में हो सकती है प्लेटलेट्स की कमी
- डेंगू
- चिकनगुनिया
- ब्लड कैंसर
- लिवर संबंधी बीमारियां
- प्रेग्नेंसी
- प्लेटलेट्स चढ़ाने के तरीके
1. रैंडम डोनर प्लेटलेट (आरडीपी) - इसमें जरूरतमंद मरीज को ब्लड बैंक से उसके मैचिंग ग्रुप का प्लेटलेट दे दिया जाता है और उसके बदले में किसी भी ब्लड ग्रुप वाले डोनर से ब्लड डोनेट करा लिया जाता है. एक ग्रुप वाले कई डोनरों का प्लेटलेट एक साथ निकालकर दूसरे मरीजों के लिए रख लिया जाता है.
2. सिमिलर डोनर प्लेटलेट (एसडीपी) - इसमें डोनर और पेशंट का ब्लड ग्रुप समान होना चाहिए. इसमें डोनर का टीन ब्लड टेस्ट, हीमोग्लोबिन, प्लेटलेट्स, एचआईवी, एचसीवी, मलेरिया, हेपटाइटिस जैसे सारे टेस्ट किए जाते हैं. डोनर का वजन और उसकी फिटनेस भी देखी जाती है. अगर उसका प्लेटलेट काउंट दो लाख से कम है, तो भी उससे प्लेटलेट्स डोनेट नहीं कराया जाता है. इस तकनीक से प्लेटलेट चढ़ाने के लिए डोनर को भी पेशंट के साथ लिटाते हैं और साथ में प्लेटलेट सेपरेशन मशीन भी लगाते हैं. डोनर के शरीर से ब्लड निकालकर मशीन में ले जाया जाता है वहां से प्लेटलेट अलग होकर मरीज के शरीर तक पहुंचता है और बाकी ब्लड दोबारा डोनर के शरीर में पहुंचाया जाता है.
कुछ मरीजों को हो सकती है एलर्जी
प्लेटलेट चढ़ाते समय कुछ मरीजों में खुजली, शरीर पर चकत्ते जैसी समस्याएं हो सकती हैं. डॉक्टरों के मुताबिक ऐसी स्थिति में कुछ देर के लिए प्लेटलेट्स चढ़ाना रोक देते हैं और एलर्जी का इलाज करते हैं.
डेंगू में 1 प्रतिशत को ही प्लेटलेट चढ़ाने की जरूरत
बॉम्बे हॉस्पिटल में फिजिशियन मनीष जैन के अनुसार डेंगू के मामलों में केवल एक प्रतिशत मरीजों को ही प्लेटलेट चढ़ाने की जरूरत होती है. प्लेटलेट कम होना डेंगू होने का मुख्य लक्षण है. इसमें डर तब है, जब प्लेटलेट कम होने के साथ ब्लिडिंग भी हो रही हो. प्लेटलेट 10 हजार से कम हो जाते हैं, तो डेंगू के मरीजों में इसे चढ़ाने की जरूरत होती है. प्लेटलेट चढ़ाने का निर्णय हर मरीज की स्थिति पर निर्भर करता है. डॉक्टर को सारी जांच करने के बाद ही निर्णय लेना चाहिए.
बार-बार न चढ़ाएं प्लेटलेट
सीएचएल अस्पताल में हीमेटोलॉजिस्ट डॉक्टर विनय वोहरा के अनुसार मरीज को बार-बार प्लेटलेट चढ़ाए जाएं तो उसका साइड इफेक्ट भी हो सकता है. ऐसे मरीजों में प्लेटलेट के खिलाफ एंटी बॉडीज बनने लगती हैं. इन एंटीबॉडी के बनने से अगर उसे फिर से प्लेटलेट चढ़ाया जाता है तो यह उस प्लेटलेट को तोड़ देती हैं, जिससे मरीज का प्लेटलेट काउंट नहीं बढ़ता है. इसलिए मरीज को जब तक बहुत जरूरत न हो, प्लेटलेट नहीं चढ़ाने चाहिए. उसे निगरानी में रखकर सपोर्टिंग दवाइयों का सहारा लेना चाहिए.
गर्भवती महिलाएं रखें ध्यान
रोग विशेषज्ञ योगिता गौतम के मुताबिक गर्भवती महिलाओं को डेंगू या वायरल फीवर है तो उसका प्लेटलेट काउंट कम हो सकता है. यह 50 हजार तक पहुंच जाता है तो उन्हें प्लेटलेट चढ़ाने की जरूरत होती है, क्योंकि गर्भावस्था में प्लेटलेट कम होने से प्रीमैच्योर डिलिवरी होने यहां तक कि महिला की मौत का भी खतरा होता है. इसलिए इस समय स्वास्थ्य को लेकर सतर्क रहना चाहिए और गर्भावस्था के दौरान कम से कम तीन बार प्लेटलेट काउंट चेक कराना चाहिए.