द्विध्रुवी विकार कारण, लक्षण और उपचार - Dwidhruvi Vikar Karan, Lakshan Aur Upchar!
द्विध्रुवी विकार (Bipolar Disorder) एक गंभीर मानसिक रोग है, जिसमें बीमारी से ग्रस्त व्यक्ति की मनोदशा असामान्य रूप से बदलती है. इस बीमारी में वे कभी बहुत खुश, सक्रिय, उन्माद में रह सकते हैं और फिर इस स्थिति से वे उदास, निराश, निष्क्रिय, अवसाद में आ सकते हैं. फिर वे दोबारा से खुश हो सकते हैं. बीच में उनकी मनोदशा अक्सर सामान्य होती है. खुशी की मनोदशा को मेनिया और उदासी की मनोदशा को अवसाद कहते हैं. आगे हम द्विध्रुवी विकार के बारे मैं जानेंगे.
द्विध्रुवी विकार के लक्षण-
द्विध्रुवी विकार के लक्षण जीवन में कभी भी बचपन से 50 वर्ष के उम्र तक में उभर सकते हैं. हालांकि यह अक्सर किशोरावस्था के आगे व वयस्कता के शुरुआत में होता है. पर बच्चे व व्यसकों को भी यह हो सकता है. बीमारी हो जाती है तो यह बीमारी अक्सर जीवन भर रहती है.
द्विध्रुवी विकार से पीड़ित व्यक्ति की मनोदशा असामान्य रूप से बदलता हुआ प्रतीत हो सकता है. वह कभी एकदम खुश या उन्माद की स्थिति में तो फिर कभी एकदम निराश, अवसाद के रूप में हो सकता है. मरीज में असामान्य रूप से तीव्र भावना हो सकती है. उनके गतिविधि के स्तर में परिवर्तन पाये जा सकते हैं व उनमें असामान्य व्यवहार पाये जा सकते हैं. दिन-प्रतिदिन उनके कार्य करने की क्षमता प्रभावित हो सकती है.
द्विध्रुवी विकार में खुशी के मनोदशा को मेनिया व उदासी के मनोदशा को अवसाद कहते हैं. इस बीमारी के मेनिया एपिसोड व अवसाद एपिसोड में निम्न लक्षण हो सकते हैं:
1. द्विध्रुवी विकार के मेनिया एपिसोड के लक्षण
2. आत्म-महत्व की बढ़ती भावना
3. अति चिड़चिड़ापन
4. उत्तेजक या आक्रामक व्यवहार
5. कमजोर एकाग्रता
6. नींद नहीं आना
7. दवाओं का दुरुपयोग, जैसे कोकीन, शराब या नींद की दवाएँ लेना
8. पागलों के तरह खर्च करना
9. मूड में घबराहट
10. यौन व्यवहार में वृद्धि
11. विचारों का तेजी से बदलना, तेजी से बात करना, विचारों के बीच में दौड़ना
12. ऊर्जा बढ़ जाना, गतिविधि, बेचैनी
द्विध्रुवी विकार के अवसादग्रस्त एपिसोड के लक्षण-
1. ऊर्जा में कमी, थकान
2. उदास, चिंतित या खाली महसूस करना
3. अपराध, निष्ठा या असहायता की भावना
4. निराशा व निराशावाद की भावना
5. निर्णय लेने में कठिनाई होना
6. सेक्स या अन्य किसी भी गतिविधि में रुचि या खुशी का न होना
7. बेचैनी और चिड़चिड़ापन
8. भूख में कमी
9. अचानक वजन घटना या बढ़ना
10. मृत्यु या आत्महत्या का विचार आना
द्विध्रुवी विकार के कारण-
द्विध्रुवी विकार का सही कारण अब तक ज्ञात नहीं हो सका है. हालांकि आनुवांशिक, पर्यावरण, बदलती मस्तिष्क संरचना और रसायन विज्ञान का संयोजन का भूमिका इस विकार के लिए हो सकता है. जिस समय इस विकार के लक्षण सामने आते हैं उस समय भी इसका कारण हमेशा स्पष्ट नहीं होता है. यह आनुवांशिक भी हो सकता है. असामान्य मस्तिष्क संरचना और क्रियाविधि के कारण भी ऐसा विकार हो सकता है. पर इसके सबसे सामान्य कारण मस्तिष्क के चोट, अधिक तनाव, तंत्रिका संबंधी चोट हो सकते हैं.
द्विध्रुवी विकार के उपचार-
जैसा कि द्विध्रुवी विकार होने के सही कारण का अब तक पता नहीं चला है. अतः इसका कोई निश्चित उपचार भी अब तक नहीं ढूंढा जा सका है. वर्तमान में इसके निदान बीमारी के लक्षण और परिवार के इतिहास पर आधारित होता है. मनोचिकित्सा व दवाओं के द्वारा ही इसका इलाज का प्रबंध किया जाता है.
इसके इलाज में दवा के रूप में आमतौर पर मस्तिष्क स्थिर करने वाली दवा दिया जाता है. लिथियम सबसे अधिक निर्धारित मूड स्टेबलाइजर है. जब्ती विकारों के इलाज के लिए एंटीकनवाल्स्लेट दवाएं दी जाती है. एंटीसाइकोटिंक्स व एंटीडिप्रेसंट का भी प्रयोग किया जाता है. द्विध्रुवी विकार के इलाज में दवाओं के अलावा मनोचिकित्सा व परिवार के लोगों का सहायता भी लिया जाता है.
द्विध्रुवी विकार (Bipolar Disorder) के लिए सबसे अच्छा मूड स्टेबलाइजर में कार्बमाजिपिन (कार्बाट्रोल, एपिटोल, इकेट्रो, टेगेटोल), डेवलप्रोक्स सोडियम (डीपकोटे), लैमट्रीजीन (लैमिक्टल), लिथियम व वैलप्रोइक एसिड (डेपाकिन) शामिल है.
दवाओं के साइड इफेक्ट-
द्विध्रुवी विकार के इलाज में प्रयोग की जाने वाले दवाओं के कुछ साइड इफेक्ट भी हैं. इस बीमारी के इलाज में प्रयोग की जाने वाली दवाओं से मतली, उल्टी और दस्त हो सकते हैं. शरीर में सिहरन या उनींदापन भी हो सकते हैं. प्यास ज्यादा लगना व पेशाब ज्यादा होने की शिकायत भी हो सकती है. दवाई के प्रयोग शुरू होने के बाद प्रारंभ के कुछ महीनों में वजन में वृद्धि हो सकती है.