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Last Updated: Apr 01, 2019
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प्राणायाम कैसे करें - Pranayam Kaise Karen!

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Dr. Sanjeev Kumar SinghAyurvedic Doctor • 16 Years Exp.BAMS
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भारत द्वारा दुनिया को दिए गए कुछ नायाब तोहफों में से एक प्राणायाम भी है. प्राणायाम एक ऐसी अद्भुत विधि है जो हमारे सम्पूर्ण व्यक्तित्व को निखारती है. मन की एकाग्रता से आने वाली शांति को पाने का रास्ता ही ध्यान है और यहीं ध्यान अष्टांग योग के अंतिम चरण में समाधि की अवस्था पा लेता है. ध्यान योग का एक ऐसा महत्वपूर्ण तत्व है जिसके माध्यम से तन, मन और आत्मा के बीच एक सुंदर और लयात्मक संबंध का निर्माण होता है. अंग्रेजी में इसे मेडिटेशन कहते हैं. ध्यान चारों दिशाओं में प्रकाश फैलाने वाले बल्ब की तरह है. योगियों का ध्यान सूर्य के प्रकाश की तरह होता है. आइए इस लेख के माध्यम से हम प्राणायाम करने के कुछ महत्वपूर्ण पहलुओं पर प्रकाश डालें ताकि इस विषय में लोगों को जागरुक किया जा सके.
योग के 8 अंगों में प्राणायाम का स्थान चौथे नंबर पर आता है. प्राणायाम को आयुर्वेद में मन, मस्तिष्क और शरीर की औषधि माना गया है. चरक ने वायु को मन का नियंता एवं प्रणेता माना है. आयुर्वेद अनुसार काया में उत्पन्न होने वाली वायु है उसके आयाम अर्थात निरोध करने को प्राणायाम कहते हैं. आइए जानते हैं कैसे करें प्राणायाम और प्राणायाम से कौन-कौन से रोग ठीक होते है.

प्राणायाम की शुरुआत
प्राणायाम करते समय 3 क्रियाएं करते हैं-

1.पूरक, 2.कुंभक और 3.रेचक. इसे ही हठयोगी अभ्यांतर वृत्ति, स्तम्भ वृत्ति और बाह्य वृत्ति कहते हैं.

पूरक: - अर्थात नियंत्रित गति से श्वास अंदर लेने की क्रिया को पूरक कहते हैं. श्वास धीरे-धीरे या तेजी से दोनों ही तरीके से जब भीतर खींचते हैं तो उसमें लय और अनुपात का होना आवश्यक है.

कुंभक: - अंदर की हुई श्वास को क्षमतानुसार रोककर रखने की क्रिया को कुंभक कहते हैं. श्वास को अंदर रोकने की क्रिया को आंतरिक कुंभक और श्वास को बाहर छोड़कर पुन: नहीं लेकर कुछ देर रुकने की क्रिया को बाहरी कुंभक कहते हैं. इसमें भी लय और अनुपात का होना आवश्यक है.

रेचक: - अंदर ली हुई श्वास को नियंत्रित गति से छोड़ने की क्रिया को रेचक कहते हैं. श्वास धीरे-धीरे या तेजी से दोनों ही तरीके से जब छोड़ते हैं तो उसमें लय और अनुपात का होना आवश्यक है.

पूरक, कुंभक और रेचक की आवृत्ति को अच्छे से समझकर प्रतिदिन यह प्राणायाम करने से कुछ रोग दूर हो जाते हैं. इसके बाद आप भ्रस्त्रिका, कपालभाती, शीतली, शीतकारी और भ्रामरी प्राणायाम को भी इसी में जोड़ लें. प्राणायाम द्वारा 4 प्रकार के वात दोष और कृमि दोष को भी नष्ट किया जा सकता है. इससे मस्तिष्क की गर्मी, गले के कफ संबंधी रोग, पित्त-ज्वर, प्यास का अधिक लगना आदि रोग भी दूर होते हैं.

प्राणायाम कैसे करें?
1. एक मिनट के लिए शांत मुद्रा में बैठे. इसके बाद सामान्य रूप से श्वास लें और छोड़ें. इस एक मिनट के दौरान, सोचें कि आप स्वस्थ और मजबूत रहने के लिए शरीर और मन में एनर्जी प्राप्त करने जा रहे हैं. मन में ये सोचे की सारी अशुद्धियों श्वास के माध्यम से बाहर निकालने वाले हैं और ऊर्जा और प्राण श्वास लेने के साथ प्राप्त करने वाले हैं. सोचें कि आप जो श्वास लेंगे, वह जीवन, ताकत, पाजिटिविटी और एनर्जी से बाहरी होगी.
2. इसके बाद आखें बंद कर लें, अपनी दृष्टि को नाक पर केंद्रित करें, पीठ सीधी रखें और दिमाग़ को शांत करें.
3. धीरे-धीरे एक गहरी साँस लें. इसके पश्चात धीमी गति से साँस को बाहर छोड़ें. साँस छोड़ने की अवधि साँस लेने की अवधि के जितनी ही होनी चाहिए. सांस छोड़ते समय, सोचें कि आपके शरीर और दिमाग के सभी दोष बाहर निकाल रहे हैं.
4. अपनी सुविधा के अनुसार 10-20 बार दोहराएं.

प्राणायाम करने के दौरान बरती जाने वाली सावधानियाँ-
1. यदि चक्कर आने लगे या साँस लेने में कठिनाई होने लगे, पसीना आने लगे तो तुरंत प्राणायाम करना रोक दें.
2. खुल्ली हवादार जगह पर जा कर बैठ जायें, और सामान्य रूप से साँस लें.
3. प्राणायाम फिर से करने की कोशिश ना करें. यह गर्भवती महिला या 12 वर्ष से कम उम्र के बच्चों के लिए उपयुक्त नहीं है. 4. यह अस्थमा, या अन्य श्वसन समस्याओं वाले लोगों के लिए उपयुक्त नहीं है. यह दिल की बीमारी, कैंसर आदि जैसे गंभीर बीमारियों वाले लोगों के लिए उपयुक्त नहीं है. एक योग्य योग गुरु के निरीक्षण में ही दुबारा प्राणायाम करें.

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