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Last Updated: Sep 15, 2020
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लेसिक लेजर सर्जरी - LASIK Lazer Surgery!

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Dr. Sanjeev Kumar SinghAyurvedic Doctor • 15 Years Exp.BAMS
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लेसिक लेजर सर्जरी का इस्तेमाल आँखों के उपचार के लिए किया जाता है. जाहीर है आँखें अनमोल हैं इसलिए इनकी सुरक्षा बेहद आवश्यक है. नजर कमजोर होने पर चश्मा या कॉन्टैक्ट लेंस लगाना हर किसी को पसंद नहीं आता. ऐसे में सर्जरी का सहारा लेना पड़ता है. आज-कल लेजर तकनीक से होने वाली सर्जरी काफी अडवांस्ड हो गई है. इसकी मदद से बिना किसी खास तकलीफ के आप नजर के दोष से छुटकारा पा सकते हैं. लेसिक लेजर या कॉर्नियोरिफ्रेक्टिव सर्जरी नजर का चश्मा हटाने की तकनीक है. इससे जिन दोषों में चश्मा हटाया जा सकता है, वे हैलेसिक लेजर की मदद से कॉर्निया की सतह को इस तरह से बदल दिया जाता है कि नजर दोष में जिस तरह के लेंस की जरूरत होती है, वह उसकी तरह काम करने लगता है. इससे किसी भी चीज का प्रतिबिंब एकदम रेटिना पर बनने लगता है और बिना चश्मे भी एकदम साफ दिखने लगता है. आइए इस लेख के माध्यम से हम लेसिक लेजर सर्जरी के बारे में जानें ताकि इस विषय को लेकर लोगों में जानकारी बढ़े.

लेसिक लेजर सर्जरी के प्रकार-
लेसिक लेजर 3 तरह का होता है.

* सिंपल लेसिक लेजर
* ई-लेसिक या इपि-लेसिक लेजर
* सी-लेसिक या कस्टमाइज्ड लेसिक लेजर

सिंपल लेसिक लेजर-
आंख में लोकल एनेस्थीसिया डाला जाता है. फिर लेजर से फ्लैप बनाते हैं. कट लगातार कॉर्नियो को री-शेप किया जाता है. पूरे प्रोसेस में करीब 20-25 मिनट लगते हैं.
खूबियां-
- इससे ऑपरेशन के बाद चश्मा पूरी तरह हट जाता है और नजर साफ हो जाती है.
- खर्च काफी कम होता है. दोनों आंखों के ऑपरेशन पर करीब 20 हजार रुपये खर्च आता है.

खामियां-
- सिंपल लेसिक सर्जरी का इस्तेमाल अब ज्यादा नहीं होता. अब इससे बेहतर तकनीक भी मौजूद हैं.
- ऑपरेशन के बाद काफी दिक्कतों की आशंका बनी रहती है.

ई-लेसिक या इपि-लेसिक लेजर-
इसका प्रोसेस करीब-करीब सिंपल लेसिक जैसा ही होता है. असली फर्क मशीन का होता है. इसमें ज्यादा अडवांस्ड मशीन इस्तेमाल की जाती हैं.
खूबियां-
- इसके नतीजे बेहतर होते हैं और ज्यादातर मामलों में कामयाबी मिलती है.
- मरीज की रिकवरी काफी जल्दी हो जाती है.
- दिक्कतें काफी कम होती हैं.

खामियां-
- सिंपल लेसिक से महंगा है. दोनों आंखों के ऑपरेशन पर करीब 35-40 हजार रुपये तक खर्च आता है.
- छोटी-मोटी दिक्कतें हो सकती हैं, जैसे कि आंख लाल होना, चौंध लगना आदि.
- कभी-कभार आंख में फूला/माड़ा पड़ने जैसी दिक्कत भी सामने आती है.

सी-लेसिक: कस्टमाइज्ड लेसिक लेजर-
खूबियां-

- प्रोसेस काफी आसान है और रिजल्ट बहुत अच्छे हैं.
- ओवर या अंडर करेक्शन नहीं होती और नतीजा सटीक होता है.
- मरीज को अस्पताल में भर्ती रखने की जरूरत नहीं होती.
- साइड इफेक्ट्स काफी कम होते हैं.

खामियां-
- महंगा प्रोसेस है यह. दोनों आंखों के ऑपरेशन पर 40 हजार तक खर्च आता है. कुछ अस्पताल इससे ज्यादा भी वसूल लेते हैं.
- आंख लाल होने, खुजली होने, एक की बजाय दो दिखने जैसी प्रॉब्लम आ सकती हैं, जो आसानी से ठीक हो जाती हैं.
कुछ और खासियतें
- चश्मा हटाने के ज्यादातर ऑपरेशन आज-कल इसी तकनीक से किए जा रहे हैं. सिंपल लेसिक में पहले से बने एक प्रोग्राम के जरिए आंख का ऑपरेशन किया जाता है, जबकि सी-लेसिक में आपकी आंख के साइज के हिसाब से पूरा प्रोग्राम बनाया जाता है.
- सर्जन का अनुभव, कार्यकुशलता, लेसिक लेजर से पहले और बाद की देखभाल की क्वॉलिटी लेसिक लेजर सर्जरी के नतीजे के लिए काफी महत्वपूर्ण होती है.
- चश्मे का नंबर अगर 1 से लेकर 8 डायप्टर है तो लेसिक लेजर ज्यादा उपयोगी होता है.
- आज-कल लेसिक लेजर सर्जरी से -10 से -12 डायप्टर तक के मायोपिया, +4 से +5 डायप्टर तक के हायपरमेट्रोपिया और 5 डायप्टर तक के एस्टिग्मेटिज्म का इलाज किया जाता है.

कैसे करते हैं ऑपरेशन-
इस ऑपरेशन में पांच मिनट का वक्त लगता है और उसी दिन मरीज घर जा सकता है. ऑपरेशन करने से पहले डॉक्टर आंख की पूरी जांच करते हैं और उसके बाद तय करते हैं कि ऑपरेशन किया जाना चाहिए या नहीं. ऑपरेशन शुरू होने से पहले आंख को एक आई-ड्रॉप की मदद से सुन्न (एनेस्थिसिया) किया जाता है. इसके बाद मरीज को कमर के बल लेटने को कहा जाता है और आंख पर पड़ रही एक टिमटिमाती लाइट को देखने को कहा जाता है. अब एक स्पेशल डिवाइस माइक्रोकिरेटोम की मदद से आंख के कॉर्निया पर कट लगाया जाता है और आंख की झिल्ली को उठा दिया जाता है. इस झिल्ली का एक हिस्सा आंख से जुड़ा रहता है. अब पहले से तैयार एक कंप्यूटर प्रोग्राम के जरिए इस झिल्ली के नीचे लेजर बीम डाली जाती हैं. लेजर बीम कितनी देर के लिए डाली जाएगी, यह डॉक्टर पहले की गई आंख की जांच के आधार पर तय कर लेते हैं. लेजर बीम पड़ने के बाद झिल्ली को वापस कॉर्निया पर लगा दिया जाता है और ऑपरेशन पूरा हो जाता है. यह झिल्ली एक-दो दिन में खुद ही कॉर्निया के साथ जुड़ जाती है और आंख नॉर्मल हो जाती है. मरीज उसी दिन अपने घर जा सकता है. कुछ लोग ऑपरेशन के ठीक बाद रोशनी लौटने का अनुभव कर लेते हैं, लेकिन ज्यादातर में सही विजन आने में एक या दिन का समय लग जाता है.

सर्जरी के बाद-
- ऑपरेशन के बाद दो-तीन दिन तक आराम करना होता है और उसके बाद मरीज नॉर्मल तरीके से काम पर लौट सकता है.
- लेसिक लेजर सर्जरी के बाद मरीज को बहुत कम दर्द महसूस होता है और किसी टांके या पट्टी की जरूरत नहीं होती.
- आंख की पूरी रोशनी बहुत जल्दी (2-3 दिन में) लौट आती है और चश्मे या कॉन्टैक्ट लेंस के बिना भी मरीज को साफ दिखने लगता है.
- स्विमिंग, मेकअप आदि से कुछ हफ्ते परहेज करना होता है.
- करीब 90 फीसदी लोगों में यह सर्जरी पूरी तरह कामयाब होती है. बाकी लोगों में 0.25 से लेकर 0.5 नंबर तक के चश्मे की जरूरत पड़ सकती है.
- जो बदलाव कॉर्निया में किया गया है, वह स्थायी है इसलिए नंबर बढ़ने या चश्मा दोबारा लगने की भी कोई दिक्कत नहीं होती, लेकिन कुछ और वजहों, मसलन डायबीटीज या उम्र बढ़ने के साथ चश्मा लग जाए, तो अलग बात है.

कौन करा सकता है?
- जिनकी उम्र 20 साल से ज्यादा हो. इसके बाद किसी भी उम्र में करा सकते हैं.
- चश्मे/कॉन्टैक्ट लेंस का नंबर पिछले कम-से-कम एक साल से बदला न हो.
- मरीज का कॉर्निया ठीक हो. उसका डायमीटर सही हो. उसमें इन्फेक्शन या फूला/माड़ा न हो.
- लेसिक सर्जरी से कम-से-कम तीन हफ्ते पहले लेंस पहनना बंद कर देना चाहिए.
 

कौन नहीं करा सकता?
- किसी की उम्र 18 साल से ज्यादा है लेकिन उसका नंबर स्थायी नहीं हुआ है, तो उसकी सर्जरी नहीं की जाती.
- जिन लोगों का कॉर्निया पतला (450 मिमी से कम) है, उन्हें ऑपरेशन नहीं कराना चाहिए.
- गर्भवती महिलाओं का ऑपरेशन नहीं किया जाता.
ऑप्शन: चश्मा/कॉन्टैक्ट लेंस ऐसे लोगों के लिए ऑप्शन हैं.

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