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Last Updated: Apr 20, 2019
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बाईपास सर्जरी - Bypass Surgery!

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Dr. Sanjeev Kumar SinghAyurvedic Doctor • 16 Years Exp.BAMS
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हमारे शरीर से टिश्यू या सेल्स के एक सैंपल को लैब में जाँच करने के लिए निकाले जाने की प्रक्रिया को ही बायोप्सी कहते हैं. बायोप्सी की आवश्यकता तब पड़ती है जब आप में कुछ निश्चित प्रकार के संकेत या लक्षण महसूस हो रहे हैं या जब आपके डॉक्टर को त्वचा के किसी क्षेत्र में किसी प्रकार का संदेह होता है. इस जांच से कैंसर या किसी अन्य समस्या का पता लगाया जाता है. अगर कैंसर की संभावनाएं ज्यादा हैं, तो रोग की निश्चित पहचान के लिए बायोप्सी नमूने की नजदीक से जांच करना एक मात्र तरीका है. यदि आपको निम्न में से कोई समस्या है, तो आमतौर पर आपको बायोप्सी करवाने की सलाह दी जाती है. ठीक ना होने वाले अल्सर, जिसके कारण का पता न चल पाए. स्तन में गांठ बनना. अगर लक्षणों की पहचान अस्पष्ट हो और मरीज को लक्षण महसूस हो रहे हों. अगर एक्स रे या सीटी स्कैन में सिस्ट या ट्यूमर देखा गया हो. ब्लड कैंसर के परीक्षण के लिए अस्थि मज्जा लंबे समय से शराब का अधिक सेवन करने वाले लिवर संबंधी रोगों के मरीज. आइये इस लेख के माध्यम से हम बायोप्सी के विभिन्न पहलुओं को विस्तारपूर्वक जानें.

बायोप्सी क्या है?
बायोप्सी, रोग की जांच और पहचान करने का एक तरीका होता है. इस प्रक्रिया में रोगी के बॉडी में टिश्यू या सेल्स में से एक सैंपल निकाला जाता है, जिसकी आमतौर पर माइक्रोस्कोप के द्वारा चेक की जाती है. सैंपल की जांच अक्सर पैथोलॉजिस्ट द्वारा की जाती है. पैथोलॉजिस्ट नमूनों की जांच कर के रोग के संकेत, उसके फैलाव आदि का पता लगाता है. इसके उद्देश्य के आधार पर, बायोप्सी द्वारा त्वचा में चीरा देकर नमूना निकाला जाता है. इन प्रक्रियाओं को एक्सीजनल और इनसीजनल कहा जाता है.

एक्सीजनल बायोप्सी-
इसकी सहायता से त्वचा के ऊपर उभरी हुई सिस्ट को सर्जरी के माध्यम से पूरी तरह निकाल दिया जाता है.

इनसीजनल बायोप्सी – इसको कोर बायोप्सी भी कहा जाता है. इस प्रक्रिया के दौरान टिश्यू में से सैंपल लिया जाता है.

बायोप्सी के विभिन्न प्रकार होते हैं, जैसे
1. स्क्रैप बायोप्सी-
इस प्रक्रिया में टिश्यू की सतह से कोशिकाओं को निकाल लिया जाता है, इस प्रक्रिया को मुंह के अंदर से या गर्भ की गर्दन आदि के लिए इस्तेमाल किया जाता है.

2. पंच बायोप्सी- पंच बायोप्सी में पंच डिवाइस का इस्तेमाल किया जाता है, पंच एक चाकू जैसा गोल डिवाइस होता है, जो टिश्यू से एक डिस्क के आकार में सैंपल निकाल लेता है. इसका इस्तेमाल त्वचा में सड़न और अन्य समस्याओं आदि की जांच करने के लिए किया जाता है.

3. नीडल बायोप्सी- आमतौर पर नीडल बायोप्सी का इस्तेमाल फ्लूइड सैंपल निकालने के लिए किया जाता है. कोर बायोप्सी के लिए एक ब्रॉड नीडल का उपयोग किया जाता है, जबकि पतली नीडल बायोप्सी का इस्तेमाल फाइन-नीडल एस्पिरेशन बायोप्सी के लिए किया जाता है. सुई बायोप्सी का उपयोग आमतौर पर ब्रेस्ट और थायराइड आदि का सैंपल लेने के लिए किया जाता है.

4. स्टीरियोटेक्टिक बायोप्सी- मस्तिष्क से बायोप्सी के सैंपल लेने के लिए स्टीरियोटैक्टिक बायोप्सी की मदद से सैंपल लेने की उचित जगह खोजी जाती है.

5. एंडोस्कोपिक बायोप्सी- इस प्रक्रिया में सैंपल लेने के लिए एक एंडोस्कोप नाम के डिवाइस का इस्तेमाल किया जाता है. एंडोस्कोप एक पतला, लंबा और ऑप्टिकल डिवाइस होता, इसको शरीर के अंदरूनी अंगों की जांच करने के लिए बॉडी के अंदर भेजा जाता है.

इन बीमारियों में पड़ती है बायोप्सी की आवश्यकता
कुछ ऐसी स्थितियां जिनमें बायोप्सी एक अहम भूमिका निभाती है, जैसे:
1. कैंसर: –
अगर रोगी के बॉडी में कहीं उभरी हुई सिस्ट बन गई है, जिसके कारणों का पता नहीं चल पा रहा, तो सिर्फ बायोप्सी की सहायता से ही पहचान किया जाता है कि यह कैंसर है या कोई और समस्या.

2. पेट में अल्सर: - बायोप्सी, डॉक्टर को यह पता लगाने में सहायता कर सकता है कि क्या नॉन-स्टेरॉयडल एंटी-इंफ्लेमेटरी ड्रग्स ही पेट में अल्सर का कारण हैं. छोटी आंत की बायोप्सी का इस्तेमाल मरीज में कुअवशोषण, एनीमिया या सीलिएक रोग आदि की जांच करने के लिए भी किया जाता है.

3. लिवर रोगों का टेस्ट करने के लिए: – इसकी मदद से लिवर में ट्यूमर और लिवर कैंसर आदि की जांच की जा सकती है. इसका इस्तेमाल सिरोसिस या लिवर फाइब्रोसिस का परीक्षण करने के लिए भी किया जा सकता है. बायोप्सी का इस्तेमाल तब भी किया जाता है, जब लिवर किसी पिछली चोट या बीमारी के कारण पूरी तरह से जख्मी हो गया है, जैसे हैपेटाइटिस या शराब की लत के कारण लिवर का क्षति ग्रस्त होना.

4. संक्रमण: – सुई बायोप्सी की मदद से यह पता लगाया जाता है कि क्या मरीज को संक्रमण हो गया है और अगर है तो यह किस प्रकार के जीव के कारण हुआ है.

5. इन्फ्लमेशन: – कोशिकाओं की अंदर से जांच करना, उदाहरण के लिए जैसे सुई बायोप्सी का इस्तेमाल करना. इसकी मदद से डॉक्टर इन्फ्लामेशन के कारण की पहचान कर पाते हैं.

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