ब्लड कैंसर का उपचार - Blood Cancer Ka Upchar!
कैंसर के कई प्रकारों में से एक ब्लड कैंसर की शुरुआत हमारे शरीर की कोशिकाओं में होने वाले उत्परिवर्तन के कारण होती है, जो कि खून या अस्थि मज्जा में होता है. इसके बाद यह रक्त के जरिये धीरे-धीरे पूरे शरीर में फैलती है. फिर एक ऐसी स्थिति आती है जब ब्लड कैंसर की ये कोशिकाएं खत्म न होकर और बढ़ती ही जाती हैं. इसलिए ये अत्यंत आवश्यक है कि ब्लड कैंसर के लक्षण को देखते ही आपको तुरंत चिकित्सकीय जांच करवानी चाहिए. सभी रक्त कोशिकाओं की तरह ल्यूकीमिया भी पूरे शरीर में घूमता रहता है. ल्यूकीमिया के लक्षण ल्यूकीमिया सेल्स की संख्या और सेल्स शरीर में कहां पर है इस पर निर्भर करता है. ल्यूकीमिया चार प्रकार के होते हैं एक्यूट लिम्फोसाईटिक ल्यूकीमिया, क्रोनिक लिम्फोसाईटिक ल्यूकीमिया, एक्यूट माइलोसाईटिक ल्यूकीमिया और क्रोनिक माइलोसाईटिक ल्यूकीमिया. ल्यूकीमिया का इलाज उसके प्रकार पर निर्भर करता है, यानी हर तरह के ब्लड कैंसर को ठीक करने का अलग इलाज है. इसके साथ ही ब्लड कैंसर का इलाज रोगी की उम्र और प्रभावित स्थान पर निर्भर करती है. ल्यूकीमिया से पीड़ित रोगी के पास इलाज करने के कई विकल्प मौजूद हैं. रेडिएशन थेरेपी, कीमोथेरेपी, टार्गेटेड थेरेपी, बॉयोलॉजिकल थेरेपी और स्टेम सेल ट्रांसप्लांट थेरेपी. अगर ट्यूमर बड़ा है तो डॉक्टर सर्जरी करने की सलाह देते हैं. आइए इस लेख के माध्यम से हम ब्लड कैंसर के होने का के कारणों की पड़ताल करें ताकि इस विषय को लेकर लोगों में जागरूकता आए.
ब्लड कैंसर के प्रकार और इसे लक्षण
रक्त कैंसर के मुख्य रूप से तीन रूप होते हैं: -
- ल्यूकेमिया
- लिम्फोमा और
- मल्टीपल मायलोमा
इसके साथ ही यह भी जान लेना आवश्यक है कि ब्लड कैंसर आपको किसी भी उम्र में हो सकता है. हालांकि 30 साल के बाद रक्त कैंसर होने का जोखिम अवश्य बढ़ जाता है. ब्लड कैंसर होने पर आपके शरीर के हड्डियों और जोडों में दर्द का अनुभव होने लगता है. यदि हम इसके कुछ प्रमुख लक्षणों की बात करें तो इसमें बुखार आना, चक्कर आना, बार-बार इन्फेक्शन, रात को पसीना आना और वजन का कम होना इत्यादि है.
मरीज की देखभाल-
आपको डॉक्टर के साथ हर तीन महीने पर नियमित चेकअप करवानी होगी. अगर आपको किसी लक्षण का अनुभव होता हैं तो आप कैंसर के इलाज के लिए जा सकते हैं. देखभाल करना इलाज से कहीं बेहतर होता है. यदि आप उचित देखभाल करते है तो कैंसर के ट्रीटमेंट के साइड इफेक्ट्स को कम कर सकते हैं. इससे ल्यूकीमिया का पता बढ़ने से पहले ही चला जाता है और शुरुआती अवस्था में इलाज संभव होता है.
किमोथेरेपी-
ल्यूकीमिया का ट्रीटमेंट किमोथेरेपी के जरिए किया जाता हैं. किमोथेरेपी में दवाओं के माध्यम से कैंसर कोशिकाओं को खत्म किया जाता है. यह दवा टैबलेट या इंजेक्शन के माध्यम से रोगी को दी जाती है. मरीज के शरीर में फैले ल्यूकीमिया पर निर्भर करता है कि उसे एक दवा देनी है या उसके साथ कुछ और दवा देनी है.
बॉयोलॉजिकल थेरेपी-
ल्यूकीमिया से पीड़ित रोगी दवा का इस्तेमाल करते हैं इसे बॉयोलॉजिकल थेरेपी के रूप में जानते हैं. इस थेरेपी के जरिए शरीर की प्राकृतिक सुरक्षा बढ़ती है. इसमें त्वचा के अंदर मांस में दवा को सीरींज के जरिए डाला जाता है. यह रक्त में फैले ल्यूकीमिया सेल्स की गति को धीमा कर देता है और रोगी के कमजोर इम्मयून सिस्टम को शक्ति देता है. इस इलाज के साथ अन्य कोई दवा देने पर इसके दुष्प्रभाव भी हो सकते हैं.
रेडिएशन थेरेपी-
रेडिएशन थेरेपी एक्स रे के सामान होती है. इसमें रोगी को कोई दर्द नहीं होता है. इसमें एक बड़ी मशीन के जरिए निकलने वाली ऊर्जावान किरणें रोगी के शरीर में जाकर कैंसर के सेल्स को खत्म कर देता है. इस थेरेपी को करते समय शरीर के स्वस्थ्य सेल भी क्षतिग्रस्त हो जाते हैं लेकिन व सेल्स समय के साथ ठीक हो जाते हैं.
स्टेम सेल ट्रांसप्लांट-
ल्यूकीमिया का ट्रीटमेंट स्टेम सेल ट्रांसप्लांट के माध्यम से हो सकता है. स्टेम सेल ट्रांसप्लांट में आपको दवाईयों की हाई डोज व रेडिएशन थेरेपी दी जाती है. दवाओं के हाई डोज से बोन मेरो में ल्यूकीमिया कैंसर सेल और हेल्थी सेल दोनों प्रभावित होते हैं. हाई डोज किमोथेरेपी या रेडिएशन थेरेपी के बाद लंबी नस के माध्यम से आपको स्वस्थ कोशिकाएं मिलती हैं. ट्रांसप्लांटेड स्टेम सेल से नई रक्त कोशिकाएं बनती हैं.