स्नायु दुर्बलता भगाएँ सेक्स का भरपूर मजा लें!
भीतर की शक्ति से ही जीवन चलता है। स्नायु दुर्बलता से भीतर की शक्ति जाती रहती है। स्नायु दुर्बलता के कारण हैं- अनियमित भोजन, चिंता, मद्यपान, अश्लील साहित्य पढ़ना, अश्लील सिनेमा देखना, अन्य गलत आदतें पड़ना, देर रात तक जागना, नींद की गोलियाँ तथा अनावश्यक दवाओं का सेवन करना।
पतन : स्नायु कमजोरी के कारण नपुंसकता और स्वप्नदोष जैसे रोगों का जन्म होता है। इसी कारण अनावश्यक तनाव बना रहेगा और चिड़चिड़ापन रोगी को दिमागी द्वंद्व में उलझा देता है। दिमागी द्वंद्व के कारण रोगी झूठ बोलना, स्वार्थी व नीच बन जाना आदि बुरी आदतों का शिकार हो जाता है।
इस द्वंद्व से भ्रम और संशय की उत्पत्ति होती है। संशय से खुद पर और दूसरों पर विश्वास की कमी होती जाती है। अविश्वास से अच्छे-बुरे को परखने की समझ पर असर पड़ता है। निर्णय क्षमता कमजोर होती है। इसके अलावा कब्ज बनी रहेगी। भूख लगना कम हो जायेगी। दूरदृष्टि कमजोर होने लगेगी आदि। इस तरह रोगी का दिन-प्रतिदिन मानसिक और शारीरिक पतन होता जाता है।
ऐसी स्थिति में ये करें :-
प्रतिबंध : यदि आपको लगता है कि आप इस रोग के शिकार हैं तो तुरंत ही ब्रह्मचर्य और पवित्र रहने के प्रति सक्रिय हो जाएँ। क्रोध करना और देर से सोकर देर से उठने की आदत छोड़ दें। गरिष्ठ भोजन, तली-भुनी चीजें, चाय और कॉफी त्याग दें। तेज धूप, धूल और धुएँ से बचें।
स्नान : स्नान करते वक्त गीले तौलीए से रगड़-रगड़ कर बदन की मालिश करें। स्नान में साबुन की अपेक्षा आयुर्वेदिक सुगंधित उबटन का उपयोग करें। स्नान के बाद 15-20 मिनट की योग-निद्रा या ध्यान करें। ध्यान करने से आँखों की थकान और दुर्बलता समाप्त होगी।
आहार : पहले बदलें अपना आहार और इसका पालन करें कम से कम पूरे एक वर्ष तक। शुरुआत में एक माह तक सिर्फ फलाहार और दूध लें। दूध में शहद तथा भीगे हुए बादाम या किशमिश का प्रयोग कर सकते हैं। बाद में 8-10 बादाम, 25 दाने किशमिश तथा 7-8 मनुक्के भिगोकर नाश्ते में लें। फिर हरी सब्जी और छिलकों वाली दाल का उपयोग पतली चपाती के साथ करें। चपाती मक्खन या मलाई के साथ लें। भोजन में सलाद का भरपूर उपयोग और प्याज, लहसुन तथा अदरक का संतुलित सेवन करें।
योग पैकेज : नियमित योगासनों का अभ्यास और प्रतिदिन आधे घंटे योग-निद्रा करना इसकी मुख्य चिकित्सा है। योगासनों में प्रारंभ में कमर चक्रासन, जानुशिरासन, सुप्तवज्रासन, भुजंगासन, हलासन, हस्तपादोत्तनासन, योगमुद्रा, पवनमुक्तासन तथा मकरासन करें। फिर धीरे-धीरे खुली और स्वच्छ हवा में नाड़ी शोधन प्राणायम का अभ्यास करें। तब कपालभाति तथा भ्रामरी का अभ्यास करें। बंधों में उड्डियान बंध लगाएँ। सप्ताह में एक बार तेल मालिश अवश्य कराएँ। यह सब करें किसी योग्य योग चिकित्सक की सलाह पर।