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Last Updated: Oct 25, 2021
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नवजात शिशु को पीलिया - Jaundice To Newborn!

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Dr. Sanjeev Kumar SinghAyurvedic Doctor • 15 Years Exp.BAMS
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नवजात शिशु को पीलिया होने पर कई बार पता भी नहीं चल पाता है क्योंकि कई नवजात शिशुओं के त्वचा का रंग भी जन्म के पहले कुछ दिनों में पीली ही होती है. इसलिए शिशु स्वस्थ है या पीलिया ग्रसित? इसका अंदाजा लगाने के लिए आपको दुसरे लक्षणों पर गौर करना होगा. इसके बाद शिशु को उचित के लिए ले जाना चाहिए. आप शिशु के पेट या टांगों को देखें यदि ये पिला लगे चिकित्सक के पास जाएँ.

क्या है नवजात में पीलिया का कारण
 

जाहिर है छोटे शिशुओं में पीलिया (जॉन्डिस) होने के कारण वयस्कों से अलग होते हैं. इसे लेकर घबराने की आवश्यकता नहीं है. जैसा कि आप जानते होंगे कि वयस्कों में पीलिया यकृत (लीवर) में उत्पन्न समस्याओं के कारण होता है. जबकि शिशुओं में इसकी वजह उनके खून में पित्तरंजक (बिलीरुबिन) की मात्रा में वृद्धि हो जाना होती है. आपको बता दें कि नवजात शिशु में बिलिरुबिन का लेवल अधिक होता है. ऐसा इसलिए होता है क्योंकि उनके शरीर में ऑक्सीजन का वहन करने वाली लाल रक्त कोशिकाएं अतिरिक्त होती हैं. नवजात शिशु का लीवर अभी पूरी तरह परिपक्व न होने के कारण अतिरिक्त बिलिरुबीन का अपचय नहीं कर पाता है. इसी वजह से उनमें पीलिया की संभावना बनती है. जैसे जैसे शिशु की उम्र बढ़ती है उनमें बिलिरुबिन का स्तर भी सामान्य से बढ़ता ही जाता है. पीलापन ऊपर से नीचे की तरफ फैलना शुरु हो जाता है. यानि यह सिर से गर्दन, छाती और गंभीर मामलों में पैरों की उंगलियों तक पहुंच जाता है. अगर, कोई गंभीर स्थिति न हो, तो नवजात शिशु में पीलिया आमतौर पर हानिकारक नहीं होता है. हलांकि ये भी धान देने योग्य बात है कि कुछ गंभीर लेकिन दुर्लभ मामलों में यदि पीलिया, लीवर के रोग या माँ व शिशु के खून में असामान्यता के कारण हो, तो यह उसके तंत्रिका तंत्र को नुकसान पहुंचा सकता है.

क्या है इसका लक्षण?

हमारे यहाँ शिशुओं में पीलिया का होना काफी सामान्य बात है. जब किसी महिला का प्रसव अस्पताल में ही होता है तब डॉक्टर पीलिया के विशिष्ट लक्षणों को देखकर ही इसकी पहचान कर लेते हैं. लेकिन यदि आपको घर आने के बाद लगे कि शिशु को पीलिया हो सकता है, तो आप विशेषज्ञों द्वारा बताए गए आसान घरेलु जांच को आजमाएं.
जिस कमरे में पर्याप्त रौशनी हो उसमें शिशु की छाती को हल्के से दबाएं. जब आप दबाव हटाती हैं तब अगर शिशु की त्वचा में पीलापन नजर आए तो आपको अपने डॉक्टर से बात करनी चाहिए. जिन शिशुओं का रंग साफ़ होता है उन शिशुओं पर यह तकनीक बेहतर परिणाम देती है.

दुसरे शिशुओं में पीलिया की जांच के लिए देखें कि उनकी आंखों के सफेद हिस्से, नाखूनों, हथेलियों या मसूढ़ों में पीलापन तो नहीं है. इस बात को भी ध्यान में रखें कि नवजात शिशुओं में पीलिया का होना एक अस्थाई स्थिति है. इसलिए यह कई बार बिना किसी उपचार के जल्द ही ठीक हो जाती है. इसलिए इसका कोई दीर्घकालीन प्रभाव भी नहीं होता है. अगर आपको किसी प्रकार का कोई संदेह है तो अपने चिकित्सक से बात करें.

इन सवालों के जवाब के आधार पर स्थिति जानें

जिन शिशुओं का जन्म समय से पहले होता है उनको जन्म के बाद पहले कुछ हफ्तों तक अस्पताल में ही रखा जाना ठीक रहता है. ताकि डॉक्टर उनपर नजर रख सकें. लेकिन जब आपको छुट्टी मिल जाती है और आप डॉक्टर के निर्देशों का पालन भी करते हैं उसके बावजूद शिशु का पीलिया ठीक नहीं होता तो आपको पुनः डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए. इसका पता आप निम्लिखित सवालों के जरिये लगा सकते हैं.

क्या शिशु को बुखार है?
क्या वह सही से स्तनपान कर रहा है?
क्या उसका मल काफी फीके रंग का है (करीब-करीब चिकनी मिट्टी या सफेद रंग का)?
क्या शिशु निरुत्सहित और उनींदा सा है?
क्या पीलिये का पीलापन गहरे पीले रंग में बदल रहा है?
क्या पेशाब का रंग भी गहरा हो रहा है?
क्या है नवजात शिशु में पीलिया का उपचार?

अगर आपके शिशु को पीलिया हो, तो डॉक्टर उसके खून में बिलिरुबिन के स्तर को मापने के लिए जांचें करवाने के लिए कह सकते हैं. गर्भावस्था की पूर्ण अवधि पर जन्मे और स्वस्थ शिशु में पीलिये का उपचार डॉक्टर तब तक शुरु नहीं करते, जब तक कि शिशु के रक्त में बिलिरुबिन का स्तर 16 मिलिग्राम प्रति डेसीलीटर से ज्यादा न हो. मगर यह शिशु की उम्र पर भी निर्भर करता है. 70 के दशक की शुरुआत से पीलिये का उपचार फोटोथैरेपी से किया जा रहा है. यह एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसमें नवजात शिशु को फ्लोरोसेंट रोशनी में रखा जाता है. इससे शरीर से अतिरिक्त बिलिरुबिन टूटने लगता है.

शिशु को आमतौर पर पूरे कपड़े उतारकर एक या दो दिन के लिए इस रोशनी में रखा जाता है. उसकी आंखों को रक्षात्मक पट्टी (मास्क) से ढक दिया जाता है. अगर नवजात के शरीर में बिलिरुबिन का स्तर कम हो और फोटोथैरेपी की जरुरत न हो, तो भी आप शिशु को सुबह-सुबह या शाम होने पर सूरज की रोशनी में ले जा सकती हैं. इससे भी बिलिरुबिन का स्तर घटने में मदद मिलती है. ध्यान रखें कि शिशु को ज्यादा समय तक धूप में न रखें क्योंकि इससे शिशु की नाजुक त्वचा में सनबर्न हो सकता है. माँ और शिशु के खून में असंगति होने के कुछ दुर्लभ मामलों में बिलिरुबिन का स्तर खतरनाक उच्च स्तर पर पहुंच सकता है. ऐसी परिस्थिति होने पर शिशु को खून चढ़वाने की भी जरुरत पड़ सकती है.
 

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