Gall Bladder Stones - Homeopathic Treatments!
गुर्दे की पथरी का होमियोपैथि में सबसे बेहतर उपचार-
शरीर में अतिरिक्त उष्णता बढ़ने, गर्म जलवायु के प्रभाव से, पानी कम मात्रा में पीने आदि कारणों से शरीर में जलीय-अंश की कमी यानी डिहाइड्रेशन होने की स्थिति में मूत्र में कमी और सघनता होती है, जिससे कैल्शियम आक्सलेट मूत्र में ही पाया जाता है या फॉस्फेट, अमोनियम फॉस्फेट, मैग्नीशियम कार्बोनेट आदि तत्त्व किडनी की तली में जमने लगते हैं और धीरे-धीरे पथरी का आकार ले लेते हैं।
पाचन प्रणाली की खराबी भी इसमें एक कारण होता है। मूत्राशय यानी ब्लैडर की पथरी स्त्रियों की अपेक्षा पुरुषों को ज्यादा होती है और इसका पता पेशाब करने में होने वाले कष्ट से चलता है। मूत्राशय की पथरी अविकसित देशों के गरीब लोगों में अधिकतर पाई जाती है और इसका कारण उनके आहार में फॉस्फेट और प्रोटीन की कमी होना होता है। पथरी के इन प्रकारों को मोटे तौर पर मूत्र-पथरी कहा जाता है, क्योंकि इनका सम्बन्ध मूत्र, मूत्राशय, मूत्रनलिका और गुर्दो से होता है।
विटामिन ‘डी’ की विषाक्तता तथा थायराइड ग्रंथि की अति सक्रियता के कारण शरीर में कैल्शियम के स्तर में बढ़ोतरी हो जाती है। साथ ही कैल्शियम युक्त पदार्थ अधिक खाने की स्थिति में भी गुर्दे में पथरी हो जाती है।
ऐसे फल-सब्जियां जिनमें आक्जलेट अधिक होता है, खाने पर जोड़ों में दर्द एवं गठिया वगैरह की स्थिति में अधिक यूरिक बनने के कारण भी क्रमश: आक्जलेट एवं यूरिक एसिड स्टोंस (पथरी) बन जाती है।
पथरी के लक्षण-
लक्षण मुख्यतया इस बात पर निर्भर करते हैं कि पथरी का आकार क्या है और कहां स्थित है।
1. छोटे-छोटे टुकड़े गुर्दे में पड़े रहें तो इनका पता नहीं चलता, न कोई कष्ट ही होता है, लेकिन जैसे ही यह टुकड़ा ‘यूरेटर’ में प्रवेश करता है, वैसे ही अचानक भयंकर दर्द होता है जिसे ‘रेनलकॉलिक’ कहते हैं।
2. कमर में तीव्र अथवा हलका दर्द पीछे की तरफ बना रहना एवं चलने-फिरने पर दर्द बढ़ जाना।
3. ‘रेनलकॉलिक’ अचानक शुरू होता है, दर्द की तीव्रता बढ़ती जाती है और यह जांघों, अण्डकोषों, वृषण, स्त्रियों में योनिद्वार तक पहुंच जाता है।
4. कभी-कभी मूत्र मार्ग में पथरी फंसने के कारण पेशाब बंद हो जाता है।
5. कभी-कभी मूत्र-मार्ग से छोटी पथरी के गुजरकर बाहर निकलने के बाद घाव हो जाने के कारण मूत्र-मार्ग से रक्त भी आ सकता है।
पथरी की जांच-
1. पेशाब में लाल रक्त कोशिकाएं पाई जाती हैं।
2. एक्स-रे जांच (गुर्दो एवं मूत्राशय तथा मूत्र-मार्ग की) कराने पर पथरी स्पष्ट दिखाई पड़ती है |
3. यूरेटर (मूत्र नलियों) को रंगने वाले पदार्थ (डाई) की रक्त वाहिकाओं के द्वारा वहां तक पहंचाकर एक्स-रे करने पर और स्पष्ट पता चल जाता है।
4. अल्ट्रासाउंड (तरंगों की आवृति के द्वारा) जांच द्वारा भी सही-सही स्थिति का पता लगाया जा सकता है।
पथरी से बचाव-
पानी अधिक मात्रा में पीना चाहिए। कैल्शियम एवं आक्जलेट युक्त पदार्थ सीमित मात्रा में ही खाने चाहिए। टमाटर, मूली, पालक, भिंडी, बैगन व मीट का परहेज़ रखें।