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Last Updated: Oct 23, 2019
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Daaruharidra Ke Fayde Aur Nukasaan - दारुहरिद्रा के फायदे और नुकसान

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Dr. Sanjeev Kumar SinghAyurvedic Doctor • 15 Years Exp.BAMS
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दारुहरिद्रा सदाबहार झाड़ियों के रूप में लगभग 2 या 3 मीटर ऊंची होती है. इसके पत्ते 4.9 सेमी लंबे और 1.8 सेमी चौड़े होते हैं. भारत और नेपाल में इसको सबसे अधिक उगाया जाता है. लेकिन इसके पौधे हिमालय, भूटान, श्री लंका और नेपाल के पहाड़ी इलाकों में भी पाए जाते हैं. दारुहरिद्रा को भारतीय बारबेरी, ट्री हल्दी आदि के नामों से भी जाना जाता है. इसे ताज़ा फल के रूप में खाया भी जाता है. दारुहरिद्रा में एंटिफंगल, जीवाणुरोधी, सूजन को कम करने वाले, एंटीऑक्सिडेंट और हेपेटोप्रोटेक्टिव जैसे गुण पाए जाते हैं. इसका उपयोग बुखार, अल्सर, सूजन, संक्रमण, त्वचा की समस्याएं, आंखों की बीमारियों, घावों, दस्त के उपचार में किया जाता है. यह हृदय की विफलता, मलेरिया, लिवर रोग और पीलिया जैसे स्वास्थ्य की समस्याओं को दूर करने में हमारी मदद करता है. आइए अब दारुहरिद्रा के फायदे और नुकसान को विस्तार से समझें.

1. सूजन को करे कम
दारुहरिद्रा में एंटी-ग्रेन्युलोमा और एंटी-इन्फ्लैमेटरी के गुण मौजूद होते हैं. इनका काम सूजन को रोकना है.इसके आलावा इससे बने पेस्ट का उपयोग करके रहूमटॉइड आर्थराइटिस में दर्द और सूजन को दूर किया जा सकता है.
2. दस्त के उपचार में
इसमें हेपेटो-प्रोटेक्टिव, कार्डियोवास्कुलर, एंटीकैंसर और एंटीमिक्रोबियल गुणों के साथ-साथ एंटीस्पास्मोडिक, एंटीडिअरायल और एंटीमैरलियल जैसी गतिविधियों का भी पता चला है. इसलिए दस्त के समय इसका उपयोग किया जाता है. इसके लिए दारुहरिद्रा को पीसकर शहद के साथ मिश्रित करके इस्तेमाल करें.
3. शुगर के उपचार में
दारुहरिद्रा में एचबीए1सी को कम करने की क्षमता पाई जाती है जो कि रक्त ग्लूकोज के स्तर को नियंत्रित कर सकता है. इसके अतिरिक्त इसमें ग्लूकोज को नियंत्रित करके कार्बोहाइड्रेट का उपापचय भी करता है. जिससे शुगर के मरीजों को फायदा होता है.
4. कैंसर के उपचार में
बेरबेरीन और करक्यूमिन के संयोजन में दारुहरिद्रा का सेवन करने से एमसीएफ -7, ए 5 9 4, जर्कट, हेप-जी 2 और के 562 कोशिकाओं में एंटीकैंसर प्रभाव देखा जाता है. इसलिए इसका संयोजन कैंसर के लिए महत्वपूर्ण है.
5. बवासीर के उपचार में
दारुहरिद्रा को मक्खन के साथ 33 से 100 सेंटीग्राम की खुराक के साथ देने से रक्तस्त्राव थमता है. बवासीर के उपचार में इसे एक पतले घोल के रूप में भी बाह्य रूप से भी इस्तेमाल किया जा सकता है. इसके अलावा दारुहरिद्रा की जड़ की छाल में मौजूद बेरबेरिन में एंटिफंगल, जीवाणुरोधी, एंटीऑक्सिडेंट और एंटीवायरल गुण पाया जाता है.
6. बुखार में फायदेमंद
यह मलेरिया बुखार में, विशेष रूप से शरीर के तापमान में वृद्धि से राहत पाने में उपयोगी है. इसकी छाल और जड़ की छाल को एक काढ़े के रूप में दिया जाता है. काढ़े को 25 से 75 ग्राम की खुराक में दो बार या एक दिन में तीन बार देना चाहिए.
7. आँखों के लिए
मक्खन और फिटकिरी या अफीम या चूने के रस के साथ दारुहरिद्रा को मिलाकर आंखों और अन्य नेत्र रोगों के उपचार में पलकों पर बाह्य रूप से इसे लगाया जाता है. दूध के साथ मिक्स करने पर यह नेत्रश्लेष्मलाशोथ या कंजंक्टिवाइटिस (आँख आना) में लोशन के रूप में प्रभावी रूप से इस्तेमाल किया जा सकता है.
8. पीरियड्स के दौरान
पीरियड्स के दौरान महिलाओं की परेशानियों को दूर करने के लिए भी इसका इस्तेमाल किया जात है. ये मासिक धर्म के दौरान अत्यधिक रक्तचाप को कम करने में मदद कर सकती है. इसलिए मासिक धर्म के समय दर्द और ऐंठन से राहत के लिए 13 से 25 ग्राम की खुराक में इस्तेमाल करें.
9. त्वचा के लिए
त्वचा रोगों से निजात पाने के लिए आमतौर पर इसकी 13 से 25 ग्राम की खुराक दी जाती है. इसकी छाल का काढ़ा और जड़ की छाल मुहांसे, अल्सर और घावों के लिए एक शुद्धिकारक के रूप में इस्तेमाल की जाती है. 

दारुहरिद्रा के नुकसान

  • यह रक्त में शर्करा के स्तर को कम कर सकता है, इसलिए मधुमेह वाले लोग इसका उपयोग चिकित्सक के परामर्श के बाद ही करें.
  • एक सीमित मात्रा में इसका उपयोग बच्चों में और स्तनपान के दौरान किया जा सकता है.
  • गर्भावस्था के दौरान उपयोग करने के लिए चिकित्सा सलाह लें.
     

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