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Last Updated: Oct 23, 2019
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Blood Cancer in Hindi - ब्लड कैंसर यानि एक्यूट माइलॉइड ल्यूकीमिया

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Dt. RadhikaDietitian/Nutritionist • 15 Years Exp.MBBS, M.Sc - Dietitics / Nutrition
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बढ़ती आबादी, दिन-रात की तरक्की के इस दौर में बीमारियाँ भी तेज रफ़्तार से बढ़ रही हैं। हम आए  दिन किसी नई बीमारी से रूबरू होते हैं। वैसे तो कई बीमारियाँ हैं, जो सामान्य होती है पर कई बीमारियाँ ऐसी भी हैं, जिसका नाम सुनते ही घबराहट और निराशा होना लाज़मी है।ये जानलेवा बीमारियाँ ठीक ठीक कम और ज्यादातर पीड़ितों को मौत की आगोश में ले लेती हैं, और कई बार मरीज के साथ लापरवाही बरतने पर उसके अपनों को भी। तो ऐसी भयावह बिमारियों में से एक बीमारी की हम आज करेंगे बात जिसे ब्लड कैन्सर के नाम से जाना जाता है। इन दिनों ब्लड कैंसर के मरीजों की संख्या काफी तेज़ी से बढ़ती जा रही है। यूं तो कैंसर कई प्रकार के होते है, जैसे कि पेट का कैंसर, गले का कैंसर, ब्रेस्ट कैंसर आदि, जिनमे ब्लड कैंसर भी कैन्सर का एक प्रकार है जो की खून में होता है। इसमें कैंसर की कोशिकाएं धीरे-धीरे खून में फैलने लग जाती है। पर हाँ यह कोशिकाएं समाप्त नहीं होती है, बल्कि दिन-प्रतिदिन और गंभीर रूप लेने लगती है।

ब्लड कैंसर यानि एक्यूट माइलॉइड ल्यूकीमिया को जानें 
यह खून एवं बोन मैरो यानी अस्थिमज्जा का एक प्रकार का कैंसर है। दरअसल हमारी हड्डियों के अंदर पाई जाने वाली मज्जा ब्लड स्टेम सेल पैदा करता है। यह सेल्स विकास की प्रक्रिया में आगे बढ़कर परिपक्व होती हैं। इन्हीं से सफेद रक्त कणिका संक्रमण से लड़ती हैं। लाल रक्त कणिका पूरे शरीर में ऑक्सीजन पहुंचाती हैं और प्लेटलेट्स थक्का बनाकर खून को बहने से रोकती हैं, तैयार होती हैं।

बीमारी के बिगड़ने का स्वरूप 
एक्यूट माइलॉइड ल्यूकीमिया में ऐसा विकार पैदा हो जाता है कि सफेद रक्त कणिकाएं मतलब वाइट ब्लड सेल्स परिपक्व होती ही नहीं। वहीं कई लाल रक्त कणिकाएं और प्लेटलेट्स में भी खराबी आने लगती है। और ऐसा होने पर शुरूआती दौर में सही से ट्रीटमेंट न किया जाए तो यह कैंसर बड़ी तेजी से बेहद खराब दशा में पहुंच जाता है। मुख्यतः कैन्सर के तीन प्रकार होते हैं। 

ल्यूकेमिया ब्लड कैंसर
ल्यूकेमिया होने पर कैंसर के सेल्स शरीर के रक्त बनाने की प्रक्रिया में दखल देने लगते हैं। ल्यूकेमिया रक्त के साथ-साथ अस्थि मज्जा पर भी हमला करता है। इसकी वजह से रोगी को चक्कर आना, खून की कमी होना, कमजोरी होना और हड्डियों में दर्द होने की समस्या होती है। ल्यूकेमिया होने का पता ब्लड टेस्ट से किया जाता है जिसमें खास तरह के ब्लड सेल्स को काउंट किया जाता है।

लिंफोमाज ब्लड कैंसर
लिंफोमाज ब्लड कैंसर एक प्रकार के वाइट ब्लड सेल्स को प्रभावित कर लिम्फोसाइट्स में होता है। लिंफोमाज ब्लड कैंसर के लक्षण ट्यूमर की जगह व आकार पर डिपेंड करते हैं। इसकी शुरुआत गर्दन में, शोल्डर के नीचे व पेट व थाईज़ के बीच वाले हिस्से में सूजन से होती है।

मल्टीपल मायलोमा ब्लड कैंसर
मल्टीपल मायलोमा ब्लड कैंसर चपेट में अधिकतर बड़ी उम्र के लोग आते हैं। इसमें वाइट ब्लड सेल्स के एक प्रकार प्लाजमा प्रभावित होते हैं। इसके इलाज के लिए रेडिएशन, कीमोथेरेपी व अन्य दवाओं का प्रयोग किया जाता है।

ब्लड कैंसर का इलाज 
ब्लड कैंसर के उपचार के लिए कंप्लीट ब्लड काउंट किया जाता है। जिसे सीबीसी भी कहा जाता है। खून के नमूने में विभिन्न प्रकार की रक्त कोशिकाएं होती हैं। जब ब्लड में सेल्स की संख्या ज्यादा मिलती है या ब्लड में जो भी कोशिकाएं होती हैं वह बहुत छोटी होती हैं और असामान्य कोशिकाएं पायी जाती हैं, तब जांच से ब्लड कैंसर का पता लगाया जा सकता है।

1. एक्सरे
 सीने का एक्से-रे करके डॉक्टर यह मालूम कर सकते हैं कि कैंसर की कोशिकाएं फेफड़ों में कहां तक फैल गई हैं। चेस्ट एक्स-रे से लिम्फ नोड्स में रक्त कैंसर के संक्रमण का पता लगाया जाता है। फेफडों में कैंसर की कोशिकाओं के इन्फेक्शन का पता एक्स-रे द्वारा किया जाता है।

2. लेप्रोस्कोपी 
लेप्रोस्कोपी के जरिए ब्लड कैंसर की सर्जरी की जाती है। ब्लड कैंसर के उपचार के लिए लेप्रोस्कोपी बहुत ही आसान तरीका है।

3. ट्यूमर मार्कर टेस्ट
 ब्लड कैंसर के निदान के लिए डॉक्टर ट्यूमर मार्कर टेस्ट करते हैं। ट्यूमर मार्कर से शरीर के ऊतकों, ब्लड और यूरिन की जांच की जाती है। जब कैंसर के सेल्स उभरे हुए होते हैं, तब इस जांच से ब्लड कैन्सर का पता लगाया जा सकता है।

4. यूरीन जांच
माइक्रोस्कोप के जरिए मूत्र से ब्लड कैंसर के सेल्स की जांच की जाती है। मूत्र में एपिथेलियल सेल्स होती हैं जो कि मूत्र के मार्ग पर होती हैं और कैंसर के सेल्स इस मूत्र के रास्ते से बाहर निकलते हैं जिसको माइक्रोस्कोप के जरिए खोजा जा सकता है। इस जांच को यूरीन सीटोलॉजी टेस्ट कहा जाता है। कैंसर के सेल्स जब ज्यादा खतरनाक हो जाते हैं तब इस टेस्ट से इसकी जांच की जा सकती है। 

बल्ड कैंसर किसी को भी किसी भी उम्र में हो सकता है, लेकिन इसके होने का सबसे ज्यादा खतरा 30 साल की उम्र के बाद होता है। ब्लड कैंसर के लक्षणों को वक्त पर पहचान लिया जाए तो इसका इलाज मुमकिन है।

मुख्यतः ब्लड कैन्सर के आठ लक्षण होते हैं:

  1. पेशाब में आने वाले खून
  2. एनीमिया
  3. शौच के रास्ते खून आना
  4. खांसी के दौरान खून का आना
  5. स्तन में गांठ
  6. कुछ निगलने मेंपरेशानी 
  7. मीनोपॉस के बाद खून आना
  8. प्रोस्टेट के परीक्षण के असामान्य परिणाम

ब्लड कैन्सर के ठोस कारणों का पता तो अब तक नहीं चला पर वैज्ञानिकों के अनुसार जेनेटिक, आनुवंशिक, रेडिएशन, कैंसरकारक तत्व, एड्स, बढती उम्र, नशा जैसे कारण हैं, जो कैन्सर के लिए जिम्मेदार होते हैं । 

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